shabd-logo

भाग 27

13 अगस्त 2022

14 बार देखा गया 14

वह आवाज बिजली की तरह तड़प और कड़क रही थी और अब वह कौन सी भी कमरे में खड़ी हो गई थी अजीब या कौन है डर से असहमति सलमानी उसके कंधे के पीछे छुपे हुए पूछा मैं चला दो आलमगीर औरंगजेब का जल्लाद मैं कोतवाल भी हूं और जल्लाद भी वही चला जिसने जमा मस्जिद की सीढ़ियों पर शुभी शर्मा का सिर धड़ से अलग किया था मैं वही हूं जिसने शिवाजी के बेटे संभाजी को की जुबान काटी थी और भरे दरबार में उसकी दोनों आंखें होठों से निकाली थी मैंने भी मैंने ही कोर्ट पिथौरा के किताबों में गोदाम को तहस-नहस किया था उन्हें जलाया था किताबों का एक एक खबर जलाकर राख कर दिया था खामोश या काली तत्वों का नुमाइंदा है जो संभावना और उसके उज्जवल इतिहास को रोकना चाहती है| 

 ऐसे जल्लादों में ही दुनिया को बदलने से रोका है कोई जल्लाद अपने वक्त का प्रवक्ता नहीं बन सकता पता है कोई किताब मरती नहीं हुआ अभी सिर्फ चोला  बदलती है जिन किताबों को तुमने पढ़ा और जलाया था उनके विचार सफेद घोड़ों की शक्ल में उड़ गए तूने नहीं देख पाया या आवाज और कर्जदार थी सामने इतिहास पुरूष फिर खड़ा था क्योंकि इतिहास के शहंशाह अलमगीर को बदनाम कर रहा है हालांकि औरंगजेब ने बड़े कहर ढाहे  है लेकिन वह फिर भी शहंशाह था उसने 10 गलत काम किए तो एक आद अच्छा काम भी किया होगा औरंगजेब अगर अकबर के रास्ते पर चला होता तो आज हिंदुस्तान का नहीं दुनिया का नक्शा दूसरा होता इस्लाम विश्व धर्म की 14 ज्ञान व्यापी शब्द का हुआ होता लेकिन औरंगजेब या नहीं कर पाया लेकिन कुछ भी सही आलमगीर को तेरे जैसे रिद्धि समर्थकों की जरूरत नहीं है ! 

 तुझ जैसे जल्लादों की वजह से ही आलमगीर और बदनाम हुए हुआ देख देख सकता है देख औरंगजेब ने अपनी कब्र में औरंगजेब की आसमानी नींद तूने तोड़ दी कब्र में करवट बदल रही है अरे शर्मा जी बात तो तूने आज साहू जी को भी दी थी जब वह सिर्फ 7 साल का था उसे हजारी का पद दिया था और राजा का खिताब उसे पढ़ाने के लिए आया था उसकी सही देखभाल के लिए एक दीवाना था उसके दोनों छोटे भाइयों मदन सिंह रुप सिंह को युवाओं का दर्जा दिया था औरंगजेब ने समस्त दक्षिण एशिया की तारीख बदलने की कोशिश की इसके लिए वह मजहब का इस्तेमाल ना करें ! तो बेहतर होता नहीं मजहब तो हम मुसलमानों की जीत है जल्लाद ने चेक कर कहा औरंगजेब ने हमें मुसलमान होकर जीना सिखाया उसने कहा अस्सलाम वालेकुम नमस्कार या राम राम की जगह मंजूर करो उसने शहंशाह की दर्शन प्रथा को खत्म किया ताकि वह काफिरों को अलग कर सके क्योंकि दर्शन परंपरा और कुछ नहीं मूर्ति पूजा थी वह चाहे शहंशाह की हो क्यों ना हो हमें हिंदू दर्शन परंपरा को बंद किया और हमने इस्लाम के तहत आलमगीर परदादा शहंशाह अकबर और उसके बड़े भाई धारा शिकवा का विरोध किया क्योंकि वे करीब करीब काफिर हो गए थे ! 

अकबर और धारा शिकवा हिंदुस्तान में मौजूद धर्म और आध्यात्मिकता में इतिहास के आध्यात्मिक सोच की परंपराओं को उठा देना चाहते थे यह सभ्यता और संस्कृत के समीकरण का एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक अवसर था पर औरंगजेब ने इस अवसर को अपने और भाइयों भतीजे की हत्या की अंगूठा के तहत नामंजूर किया एक इस्लामी इलाके की परिकल्पना की जो इंसानी मोहब्बत पर नहीं बल्कि नफरत पर आधारित था उसने तिब्बत से लेकर गोलकुंडा बीजापुर बंगाल से लेकर काबुल कंधार तक के इलाके को उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक जूतों और खूबियों को नकार कर इस्लामी राज्य का सपना देखा था इसीलिए औरंगजेब ने मरा हुआ जो बदलती दुनिया में एक जिद्दी मुसलमान बादशाह बनकर मराठों से हारकर और अंग्रेजों का रास्ता खोल कर चल बसा या गलत है !

अंग्रेजों को बागडोर उसकी निकम्मी औलाद नहीं सौंपी वह भारत का पैसा मक्का और शरीर को हर साल भेजता था मक्का शरीफ के लोग भारत आते और भर भर कर पैसा ले जाते या वही पैसा था जो जजिया के रूप में काफिरों से वसूल किया जाता था भारत को अपना मुल्क मानता ही नहीं था इसीलिए उसने अंग्रेजों को सूरत और मुंबई के बंदरगाहों पर पर तिजारत की खुली छूट दी थी इसीलिए अंग्रेज इतिहासकार लेन पूर्ण ने उसे बहुत समझदार और इंसाफ पसंद बादशाह कहा इस या भी कहा कि उसके निजाम में काफिरों पर जो कुछ जुल्म होते भी थे वह सिर्फ इसलिए कि वह कट्टर मुसलमान था अगर वह भारत को अपना मुल्क नहीं मानते तो वह आज तक औरंगजेब में जमींदोज ना पड़े रहते जल्लाद ने कहा कुछ भी हो सारी ता तारीख 1 तारीख है बताती हैं कि औरंगजेब से बड़ा मुसलमान बादशाह दुनिया में नहीं हुआ किताबों में लिखा है उसने दिन दिन के लिए अपनी जिंदगी सौंप दी किताबों में लिखा है कि आलमगीर ने तैमूर खानदान की अजमत में चार चांद लगाए

उसी तैमूर की अजमत में जिसने इस्लाम का मजाक उड़ाते हुए कहा था आसमान का खुदा तो नहीं दिखाई देता लेकिन जमीन का खुदा दिखाई भी देता है और सुनाई भी देता है वह बादशाह उसी तरह जैसे आसमान में ए खुदा उसी तरह जमीन पर भी एक बादशाह होना जरूरी है वह इस्लाम को ताक पर रखकर खुदा को खुदा का दर्जा देता था तुम दारा शिकोह की तरह बुद्धिमान नहीं तुम तैमूर अब्दाली औरंगजेब की तरह जाहिल जाहिल और अनपढ़ हो और अनपढ़ हजारों की परंपरा में जल्लाद ही पैदा हो सकते हैं खैर इस बहस को छोड़ो इतना बताओ कि तुम सलमा और अभी तो कुछ लम्हे जीने के लिए कुछ वक्त दोगे या नहीं इतिहास पुलिस ने सवाल किया हमारी हदीद हमारी शरीयत किताबों की बात मत करो  ! 

जल्लाद इस्लाम की किताबें बहुत तुमने बहुत बड़ी बड़ी है पर तुमने किताबों की किताब रहने कहां दिया तुम कितने किताब के नाम पर खुद को लागू करते हो नाम किताब का लेते हो तुम कौन सी किताब लागू करोगे सब ने अपना-अपना पेश किया इन चारों पत्तों को भी अलैहे हदीस का पंथ मंजूर नहीं करता सुनियो ने आपसी झगड़े हैं सिया तो इसमें अलग अपनी ही व्याख्या मंजूर करते हैं इन पौधों को किस देश से आंखों के खुदा के लिए तुम किताबों को अपनी जाति उसूलों और व्याख्या ओं का गुलाम मत बनाओ इन दोनों का खुदा रहमत पर जीने दो खुदा के सब सब को सुकून से जीने का हक दिया है इन्हें जिंदगी में जीने दो अल्लाह जल्लाद में किताबों के हाथों में मत बांधो भरोसा बातचीत में नहीं मुझे बहस में मत उलझा सवाल तो उस औरत का है और औरत खुली ब्याई में पढ़ी गई है इसमें अल्लाह की तय हुई पदों को लहंगा है इसलिए इन दोनों की बहस के बीच सलमान लगभग बेहोशी हो गई वह समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या हो गया है सलमा मुसलमान होना या मुसलमान रहकर जीना इतना मुसलमान बना दिया गया है क्या मुसलमान होते हुए भी जीने में शर्ते सिर्फ किताबों की शर्त है मैं जिंदगी के कुदरती और बड़े उसूलों के लिए कोई जगह नहीं है !

43
रचनाएँ
कितने पाकिस्तान
0.0
कितने पाकिस्तान हिन्दी के विख्यात साहित्यकार कमलेश्वर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान के बँटवारे और हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर आधारित है। यह उनके मन के भीतर चलने वाले अंतर्द्वंद्व का परिणाम माना जाता है।'कितने पाकिस्तान' कमलेश्वर का लिखा हुआ एक प्रयोगवादी उपन्यास है। इस उपन्यास को 2003 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था। यह उपन्यास बाकी उपन्यासों से कई मामलों में अलग है। पहला, इसमें सामान्य घटनायें, जैसे उपन्यासों में होती हैं, नहीं हैं, बल्कि ऐतिहासिक घटनाओं का लेखक के नज़रिये से वर्णन है। क्योंकि सारा कथानक उसी के इर्दगिर्द घूमता है। उपन्यास में सदियों से चले आ रही हिंसा और मारकाट के प्रति गहरा क्षोभ है। पात्रों की इस कमी को इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्तियों को कटघरे में लाकर दूर किया गया है। अगर उपन्यास का सार निकालने की कोशिश की जाए तो यही आयेगा कि विभाजन अब बंद होने चाहिये।
1

भाग 1

21 जुलाई 2022
4
0
1

एक भूली हुई दास्तान उसे याद आती है  ।   वह तो एक बंजर जमीन से आया था ।  खामोश  आकर्षणों की दुनिया से जहां कहां कुछ भी नहीं जाता । मन ही मन में कुछ अरमान करवटें लेते हैं । अनबूझी इच्छाएं आती और चली जा

2

भाग 2

21 जुलाई 2022
2
0
0

- हुआ या था नहीं स !  पहले या सुनिए कि हुआ क्या है...... उसने चौक कर आवाज की तरफ देखा था उसका एक में 3 सहायक स्टोनो और अर्दली महमूद उसके सामने खड़ा था।  उसके हाथ में टेलीप्रिंटर से आई खबरों के कुछ कु

3

भाग 3

21 जुलाई 2022
1
0
0

खत भेजने के बाद अभी बहुत परेशान था । वह सोच रहा था कि उसके उद्गार और विचार कहीं देश की रक्षा सुरक्षा के नाम पर दूसरों के लिए मौत तो पैदा नहीं करते क्या एक के जीवित रहने के लिए दूसरे की मौत जरूरी है?

4

भाग 4

21 जुलाई 2022
0
0
0

और तभी यूरोप के सम्राट गिल गमेंश की गूंजती आवाज आई -  - मैं पीड़ा से लड़ लूंगा यातना सहूँगा  कुछ भी हो मैं मृत्यु को पराजित कर लूंगा मैं मृत्यु से मुक्त की औषधि खोज कर लाऊंगा !  सम्राट गिल गणेशा की

5

भाग 5

21 जुलाई 2022
0
0
0

वहां मौजूद तमाम देवताओं की चिंता का एक स्वर में अनुमोदन किया और देवी तान्या ने तब उन्हें आगाह करने वाला भाषण दिया दजला फरात और डेन्यूब की परा धरती के समस्त देवताओं तुम सब आज चिंतित हो क्योंकि मनुष्य म

6

भाग 6

29 जुलाई 2022
0
0
0

उसी कहानी में शामिल है बूटा सिंह और रेतपरी किया की  यह कहानी राजस्थान का तपता रेगिस्तान कोई चीखा बन गया साला पाकिस्तान आसमान की आंख सूखी हुई थी उनमें एक बूंद भी पानी नहीं था मौसम विभाग के वैज्ञानिक

7

भाग 7

29 जुलाई 2022
0
0
0

बूटा सिंह जब जीने के लिए कपड़े लेने निकला था पाकिस्तान नाम की लकीर तो फिर चुकी थी मौसम विशेषज्ञों की भविष्यवाणी सही साबित हुई रक्त की वर्षा हो रही थी रेत परिचय नहीं अभी भी गर्दन तक रेत में दबी हुई है

8

भाग 8

29 जुलाई 2022
0
0
0

आतंकी देवताओं ने धरती की ओर देखा वह सकते में आ गए जो लोग के समस्त सफेद पंखों वाले पंछी देवदासी रोना को लेकर मित्रों पर उतर रहे थे "के समय उसके साथ अभी सभी तरह के पंछी पखेरू शामिल होते गए थे उनमें अंजन

9

भाग 9

29 जुलाई 2022
0
0
0

बूटा सिंह ने कपड़ों की जोड़ी लाकर जीने के पास रख दिया और पूछा निकालूं तुम बाहर जाओ मैं निकाल आऊंगी धीरे-धीरे जैनेब रेट टिकट दे से निकल आई उसने तार-तार हुई कुर्ती को उतारा और वही संभाल कर रख दिया ना जा

10

भाग 10

29 जुलाई 2022
0
0
0

बूटा सिंह ने कपड़ों की जोड़ी लाकर जीने के पास रख दिया और पूछा निकालूं तुम बाहर जाओ मैं निकाल आऊंगी धीरे-धीरे जैनेब रेट टिकट दे से निकल आई उसने तार-तार हुई कुर्ती को उतारा और वही संभाल कर रख दिया ना जा

11

भाग 11

6 अगस्त 2022
0
0
0

उसके  अदालत के दरवाज़े पर रक्त  दस्तके  पड़ने लगी । वह दस्तक  से परेशान था। परेशान नही  पागल। और फिर दस्तक  पर दस्तक  ।पश्मी सीमांत से एके-47 चीनी राइफल ने दस्तक दी । हथियार बनेंगे तो चलेंगेभी ।  उत्तर

12

भाग 12

6 अगस्त 2022
0
0
0

वह कौन सी तारीख थी।  इब्राहिम लोदी से मैंने पार्क पानीपत की लड़ाई 20 अप्रैल 1526 को जीती थी और रजत 15 जुम्मे के दिन यानी 27 अप्रैल 1526 को मारे मेरे नाम का खुतबा पढ़ा गया था या खुद बा मौलाना महमूद और

13

भाग 13

6 अगस्त 2022
0
0
0

अजीम फैजाबाद स्टेशन पर उतरा ही था कि वह धमाकेदार झापड़ उसके पड उसके पड़ा स्टेशन की दीवार पर लिखा हुआ नारा सामने खड़ा था बोला फैजाबाद आए हो तो पहले इसे पढ़ पढ़ो इसमें लिखा था कि अपने धर्म स्थानों का अप

14

भाग 14

6 अगस्त 2022
0
0
0

बस आग लगाते घूम रहे हैं सब ही ना ही चाह सोजत की भारत का क्या होगा पहले ही या हिंदू मुसलमान को लगवाना चाह ना ही लड़ बाय पाए तो अब शिया सुन्नी को डलवाना चाहते हैं अब पानी शरबत बिस्कुट और मूंग के दाल मोड

15

भाग 15

6 अगस्त 2022
0
0
0

हुजूर इन कानूनी बारीकियों में मत जाइए अन्याय अन्याय है अन्याय ग्रस्त औरत की जिंदगी तो मौत से बदतर होती है तुम ठीक कह रहे हो महमूद अली अदालत सीखी तो पूरी श्रेष्ठ कांप उठी नहीं मैं मुद्दों के अलावा जिद्

16

भाग 16

6 अगस्त 2022
0
0
0

नक्सलवाद का समर्थन कर रहे थे एक के बाद एक ताने कसे तो इमाम नाजिश बौखला गए और और बोले तब तुम भी हमसे कहां लगते अधीन तुम अमृता प्रीतम करतार सिंह दुग्गल मोहन राकेश भीष्म साहनी देवेंद्र सत्यार्थी और यहां

17

भाग 17

6 अगस्त 2022
0
0
0

और मार दो अपने ही सब सृष्टि की रचना की थी उसने अपने दादा अनु को आकाश का सम्राट बनाया था अपने पिता ऐसा को धरती का और तब माधुरी ने एक महा मंदिर बनाया था कि आकाश के देवता और ईश्वर जो उसकी प्रजाति धरती पर

18

भाग 18

6 अगस्त 2022
0
0
0

जी शायद आप मुझे ठीक ही पहचान रहे हैं सलमा की जान में जान आई मैं सीएसपी के जनाब आफताब अहमद की हूं  और हिंदुस्तान में रहती हूं वह मेरे नाना है सलमान ने कहा तब पुलिसवाला कुछ नाराज सा होकर काउंटर वाले से

19

भाग 19

6 अगस्त 2022
0
0
0

अदालत में क्या कह रहे हो तुम मैं तो कराची के होलीडे इन होटल के रेस्टोरेंट में बैठा हुआ था और सलमा से बातें कर रहा था हुजूर आपकी यादों की परछाई का नाम क्या है या तो मुझे नहीं मालूम पर आपके होंठ मिलता ल

20

भाग 20

6 अगस्त 2022
0
0
0

तब अजीब चीन से लौट आया था सलमा भी अपने नाना से मिलकर कोटा से लौट आई थी उसे उम्मीद नहीं थी कि इतने महीनों बाद भी सलमा उस पेपर नैपकिन पर लिखे पते पर फोन का नंबर को संभाल कर रखे गी पर उसने रखा था ना रखा

21

भाग 21

6 अगस्त 2022
0
0
0

नहीं नहीं तो या नीम की पत्तियां झड़ रही है ना हां पतझड़ का मौसम है ना नहीं या अंधेरे का मौसम है लगता है मेरा पति पति झड़ रहा है तो एक बात क्यों ना करें क्या हम न कुछ पूछे न जाने अपने रवा अति जिंदगी के

22

भाग 22

13 अगस्त 2022
0
0
0

बिस्तर उनका इंतजार कर रहा था वह भी  वह भी त्रियोबिश की  रेती की तरह साफ़ था। मेरे संपर्क से छूने से कुछ ऐसा तो नहीं जो तुमने जीवित होता हो और मेरा प्रतिकार करता हूं नहीं ऐसा भी कुछ नहीं सलमा ने बहुत गह

23

भाग 23

13 अगस्त 2022
0
0
0

जब अजीब और शर्मा कॉटेज से निकले तब भी नीले फूल खिले हुए थे। सलमा ने साड़ी पहनी थी बदन में बाकी फूल तो साड़ी और ब्लाउज के अंदर उन देशों की तरह समा गए थे । प्रभावों पर उन नीले फूलों की जो लेटर उतर आई थी

24

भाग 24

13 अगस्त 2022
0
0
0

वह मेरा बेटा ही सही पर मर्द हो जीने के लिए कहीं मुश्किल नहीं होता मैं एक रिश्तेदार की तरह आपको राय देता हूं कि बेहतर होगा कि आप अपने बेटे के साथ अपने नाना के पास पाकिस्तान लौट आए नईम ने कहा आप तो बिल्

25

भाग 25

13 अगस्त 2022
0
0
0

कुछ नहीं ऐसे लोग आकर यहां क्यों नहीं समझते कि मुसलमानों के नाम पर पाकिस्तानियों को बोलने का कोई हक नहीं है आज है हिंदुस्तान में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमानों पाकिस्तान से ज्यादा इस्लाम की समझने वाले ल

26

भाग 26

13 अगस्त 2022
0
0
0

सलमा और अधीन ने मजहब तो नहीं बदले पर उन्हें इस बात में मजा जरूर आने लगा या उनके लिए जैसे खेल की बात बन गई सबसे पहले तो उन्होंने जगह बदली वह पूरब की ओर भागे भागते भागते ब्लैक रिवर के घने जंगलों को पार

27

भाग 27

13 अगस्त 2022
0
0
0

वह आवाज बिजली की तरह तड़प और कड़क रही थी और अब वह कौन सी भी कमरे में खड़ी हो गई थी अजीब या कौन है डर से असहमति सलमानी उसके कंधे के पीछे छुपे हुए पूछा मैं चला दो आलमगीर औरंगजेब का जल्लाद मैं कोतवाल भी

28

भाग 28

13 अगस्त 2022
0
0
0

इस्लाम में हर कुदरती जरूरत के लिए जगह है लेकिन जब मजहब और सियासी फायदे के लिए नफरत में बदला जाता है तो एक नहीं तमाम पाकिस्तान पैदा होते हैं मेरी बच्ची तुम्हारी जिंदगी को इस गलत विभाजन ने तोड़ दिया है

29

भाग 29

13 अगस्त 2022
0
0
0

गहरी नहीं जरूरी अंग्रेजों और जिन्ना साहब ने सोचा ही नहीं था कि जब हिंदुस्तान नाम का मूल नसीब होगा तब मेरी जैसी एक सलमा कैसे तक्सीम होगी और वह अपनी इज्जत कहां  कहां तलाशग अदीब ने उसे बहुत प्यार से पुका

30

भाग 30

13 अगस्त 2022
0
0
0

तभी नूरजहाँ  उसका ध्यान नीचे मौजूद रियाया की तरफ दिलाया उधर देखिए हुजूर इतने दिनों बाद आप बाहर निकले आपकी रे आया आपके दीदार के लिए उम्र पड़ी है तभी भीड़ ने पुरजोर आवाजें का आने लगी बादशाह सलामत जिंदाब

31

भाग 31

13 अगस्त 2022
0
0
0

मुझे जाना चाहिए वक्त आप को माफ नहीं करेगा और फिर आपको भी वक्त की बरात बर्बादी का मलाल कठोरता रहेगा सारा शगुफ्ता देखिए आपके अर्दली साहब बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे हैं चलने से पहले एक यशपाल दरख्वास्त

32

भाग 32

13 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने कोई निमंत्रण बाबर को नहीं भेजा था राणा सांगा नितेश में कहा तुम्हारा वह दावत नामा मेरी तिवारी बाबरनामा में दर्ज है और वह दस्तावेज आज का नहीं सोलवीं सदी का है अगर या गलत है तो तुमने तब क्यों नहीं

33

भाग 33

15 अगस्त 2022
0
0
0

 या गलत है हमारी गलती से विभाजन तो एक सच्ची घटना में तब्दील हो गया था पर विभाजन के भयानक दौर में भी सिंध में मारकाट नहीं हुई हमने मन ही मन अपनी ऐतिहासिक गलती मंजूर करते हुए बहुत भरे दिल से अपने हिंदू

34

भाग 34

15 अगस्त 2022
0
0
0

मुसलमान का था मीरा का था कबीर का था नाना कोटा कोलकाता सुब्रमण्यम भारती और नज़रुल इस्लाम कथा संत रैदास के और ज्ञानेश्वर का था किसका खुदा नहीं था लेकिन इंक इकबाल ने खुदा के मस्जिदों में कैद कर देने का प

35

भाग 35

15 अगस्त 2022
0
0
0

और आपकी सलमा जो खुदा हाफिज कह कर चली गई है इस अहम अदालत का कारोबार रोक कर आपको फिर अपने लिए हासिल करने की कोशिश में लगी है और उधर आपके दोस्त भवानी सिंह उप ईरान की राजधानी तेहरान से लौटकर कुछ जरूरी बात

36

भाग 36

20 अगस्त 2022
0
0
0

हुजूर हमसूफी है इस पागल शहंशाह ने हुजूर पैगंबर के जन्मदिन पर गाए जाने वाले हम हमारे भजनों पर भी पाबंदी लगा दी तब हम सूफी संतों को उसके गुर्गे और दरोगा मिल जावा वाकर के खिलाफ गोलबंद होकर निकलना पड़ा इस

37

भाग 37

20 अगस्त 2022
0
0
0

मौका पाते ही सल्तनत के वजीरे खारी खारी जा राजा रघुनाथ को हटाकर या वादा किसी से मुसलमान को दिया जाए किसी हिंदू अफसर के नीचे मुसलमान को तैनात किया जाए और अब खुलकर इन काफिरों हिंदुओं को बता दिया जाए कि व

38

भाग 38

20 अगस्त 2022
0
0
0

यही कि जो मैंने किया वह गलत भी था वह सही भी था सर जमीन ए हिंद की नजर में मैंने बहुत कुछ गलत किया जो मुझे शायद नहीं करना चाहिए था लेकिन इस्लामी मिल्लत की नजर में जो कुछ मैंने किया वह शायद सही था ऑरेंज

39

भाग 39

20 अगस्त 2022
0
0
0

तभी इतिहास के करोड़ों पन्नों से चीखती हुई आवाज आने लगी औरंगजेब तुम जालिम हो तुमने पोस्ते का पानी पिला पिला कर मुराद को मारना चाहा जब वह तंदुरुस्त शहजादा अफीम के पानी से नहीं मारा तो तुमने उसे चला दो उ

40

भाग 40

20 अगस्त 2022
0
0
0

शिब्ली नोमानी बड़े जोश खरोश से बता रहे थे मजहब की शक्ति का अगर किसी ने पहली बार इस्तेमाल किया तो बस सिर्फ यही दिलेर आलमगीर था कहीं ऐसा तो नहीं कि औरंगजेब ने इस्लाम का सहारा अपनी कमजोरियों और जातियों क

41

भाग 41

20 अगस्त 2022
0
0
0

तुम लोग कहर की बात करते हो हम कयामत बरपा करेंगे और मिस्र में बाप कुछ भी नहीं जिंदा छोड़ेंगे जो इस्लाम से पहले का है हम उसे बराबर करके रहेंगे दूरदराज अमेरिका से आई वहां मिस्र का मूल्य से कुमार अब्दुल र

42

भाग 42

20 अगस्त 2022
0
0
0

या तेज भाई जारी थी कि लश्कर मंदिर के उत्तर पूर्वी तरफ अबू हज आज मंदिर से इमाम वाहिद मोहम्मद अपनी ने भय ग्रस्त आंखों से जाकर देखा यहीं इसी मस्जिद में अपने समय के सबसे बड़े विद्वान अबू हज्जाज दफन हैं जि

43

भाग 43

20 अगस्त 2022
0
0
0

इसीलिए पश्चिम वाले ईरान की इस्लामी क्रांति की को आत्मसात नहीं कर पाए अयातुल्लाह खोमेनी और इस्लामी क्रांति में ईरान जैसे सभ्यता संपन्न देश को फिर एक बार उसकी दूरी दे दी आज अपनी धुरी पर लौटकर ईरान अपने

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए