नहीं नहीं तो या नीम की पत्तियां झड़ रही है ना हां पतझड़ का मौसम है ना नहीं या अंधेरे का मौसम है लगता है मेरा पति पति झड़ रहा है तो एक बात क्यों ना करें क्या हम न कुछ पूछे न जाने अपने रवा अति जिंदगी के जवाब एक दूसरे से ना मांगे दिमाग को व्रत रख कर दें उसे जी ने जो मन चाहता है उन मोतियों को बटोरने गोताखोर की तरह जो समुंदर की तरफ में जब उतरता है तो किसी बात का जवाब नहीं देता है सलमा ने यह कहा कि कुछ ज्यादा ही पत्तियां झड़ने लगी थी तभी कोई आवाजें आने लगी दक्षिणी ध्रुव के पास से अजीब आओ ना वर्जित प्यार ही असली प्यार होता है जिस प्यार में मर जना नहीं हुआ वेश्यावृत्ति है पर वह वृद्धि समाज द्वारा स्वीकृत है तुम समाज को बहिष्कृत करो मैंने अभी-अभी सुना तुम्हारी प्रेमिका ने चाहा है उसे जी लो जो मन चाहता है सुनो दिमाग से जिओगे तो जी नहीं पाओगे और दुनिया भी तुम्हें जीने नहीं देगी अपनी अपनी वर्जना से ऊपर उठकर आ सकती को ग्रहण करो आ सकती में ही आनंद है आ सकती ही अंतिम है|
वह चाहे किसी शासक मार्ग से प्राप्त होती है या नशा उड़ान सेवा दान से तो क्या पाल और वर्जनी जैसे शासक प्रेम कथा के उपादान दशरथे अजीम ने पूछा तो क्या इंजीनियर भूला अगर मिसेस बाय-बाय ना होती तो उसके पति की बात कभी मंजू नहीं करता वही तो कहानी है मैं तो मारीशस के मैसेज के लिए रुका था तब कहीं किन्नरी मेरे उपन्यास की नायिका बनी बनी थी और मैं खुद बना था पाल उसके पति को मैंने बनाया था उसे ढूंढो है अभी तुम किस असमंजस में फंसे हो अपनी प्रेमिका को लेकर मालिश चले आओ वर्जना आसक्ति का वर्णन करो इसे जियो क्योंकि मनुष्य की सबसे ऊंची क्षण क्षण आ सकती ही में ही निहित होती है और प्रकृति में पवित्र बनाती है सलमा सब सुन रही थी अजीब सोच रहा था फिर वो धीरे से बोला शर्मा की पवित्रता तो मारीशस में बिजली पड़ी है लोग केवल उसका सुंदर देखते हैं ग्रांड में जितनी पवित्र जगह तो दुनिया में नहीं सुंदर तो खुद हमारे पास मौजूद है और सुंदर की पवित्रता कोई नहीं देखता वह तो वहां बिखरी पड़ी है तिरुपुर में भी सभी जगह है सोचना आसान है दीप सोचे हुए को जीना बहुत मुश्किल हमारे और तुम्हारे हालात क्या हमें इस बात का मौका देंगे कि हम उसे जी सकेंगे हमारा मन जीना चाहता है सलमा ने कहा था .....
नीम के झड़ते पत्तों और उतरते अंधेरे के बीच चलती हुई या बात ना जाने को कैसे तब प्रयोग इस के चांदी के तट पर पहुंच गई थी रात चांदनी थी सागर की लहरें सफेद फूलों की चादर की तरह कांप रही थी भीगा हुआ तब सर में हूं कुछ गा रहा था रेत चांदी की तरह बिखरी हुई थी कहीं रंग के कितने पौधे हथेलियां खोले खड़े थे पत्तियां पलट दी थी उनके हथेलियां चांदी की चरित्र स्त्रियों की में बदल जाती थी लगता है पूरे चांद की रात है हेली चांदनी को देख कर कह रहा था आज चांद थोड़ा सा अधूरा है कल पूरे चांद की रात होगी सलमान ने चांद को देखकर कह आज चांद उतरकर आया है ।
उसके रेशमी बाल तक छुपा कर चला गया रेत पर दोनों बैठे थे तब सलमान ने कुछ सोचते हुए कहा क्या यह सब ठीक नहीं हम दोनों इसी तरह पास रहते हुए दूर रहे बस एक दूसरे के लिए सोचे यह क्यों कुछ ऐसा है जो तुम्हारे रोकता है नहीं ऐसा तो कुछ नहीं कोई यादें यादव तो बहुत सी हो सकती पर कोई भी याद मुझे बांधती नहीं कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने लिए कि नहीं खूबसूरत यादों को विसर्जन कर रहे हो शायद यह ठीक हो अधिक पर यादें तो वही हैं जो एक खलिश की तरह जिंदगी के साथ देने के लिए टिकी रह जाती हैं और शायद ही अधूरी यादों को हम बार-बार पूरा करने की कोशिश करते हैं।
सलमान ने कहा उसकी पलके भीगी तट की तरह कुछ और भी कहने लगी सलमा यादें पवित्र होती हैं शायद इसीलिए टिकी रह जाती हैं कोई याद ना छोटी बड़ी होती है लेकिन हर याद की आंखें अलग होती हैं कोई ना हम इन गहरी और अगर हो सके तो पूरी यादों में तब्दील होने की सफर पर चल पड़े अजीब ने कहा और पहली बार उसने बदन में बदन की ओर से भीगी सलमा की गर्दन पर अपने होंठ रख दिए रखे हैं सलमा लहर की तरह से हीरो की थी उसके वोट से दिल्ली के पंखों की तरह खुले और कहां पर थे पलकें सीपीओ की तरह मुंह गई थी कुछ बूंदे मोतियों की तरह अजीब के हथेलियों पर गिरी थी वह उन्हें देखता रहा मोती उनकी हथेलियों पर सूख गए थे उनके दाग फिर से नहीं छूटे आंसुओं के नाम मिटने वाले दाग उनसे पहली बार देखे थे रात का पता नहीं चला कब आई हो कब बीत गई गैरों के साथ आती हवा की नमी में बताया था कि रात बीत गई चांदनी सुबह के सुरीले अंधेरे में भूल गई भूलने लगी वह दोनों रेती से उठकर कॉटेज में चले आए थे।