बूटा सिंह ने कपड़ों की जोड़ी लाकर जीने के पास रख दिया और पूछा निकालूं तुम बाहर जाओ मैं निकाल आऊंगी धीरे-धीरे जैनेब रेट टिकट दे से निकल आई उसने तार-तार हुई कुर्ती को उतारा और वही संभाल कर रख दिया ना जाने कब जरूरत पड़ जाए घाघरा तो उसने जीत डाला था उसमें नारे के नशे के सिवा कुछ बचा ही नहीं था उसे खोल कर उसने एक तरफ फेंक दिया फिर उससे नहीं उठा सिंह वाले बाजार से लाए घागरे को देखा और चिकन नाडा कटने लगी तभी उसकी पीठ पर बूटा सिंह की आवाज आई सजनी समझने में क्या इतनी देर लगती है जेनी ने वहीं से कहा अभी बाहर रहना और कांचली हो पाएंगे यह पर ही किया फिर बाहर झांकी छातियों को अंदर दबा दिया कुर्ती पहन कर ऊपर से ओढनी डाल दिया तब उसने आवाज लगाई आ जाओ बूटा सिंह अंदर आकर बैठ गया आदत के मुताबिक वाह गुदगुदाया ओंकार ओंकार सतनाम उसके ऊपर से आवाज तो नहीं फूटी थी पर जिंदगी अपने अंदाज लगाकर कहा वाहे गुरु को सिमर सिमरन कर रहे हो कर तो रहा हूं लेकिन तुमने कैसे जाना कभी कभी हमारे यहां हिंदू सिंध सूबे में के नानकी आकर ठहरा करते थे उन्हीं से सुनती थी |
वाहेगुरु का नाम हमारे घर के इशारे में संगत ही हो जाती थी तब तो ठीक है बूटा सिंह ने इस चिंता से कहा अगर हुकुम हो तो एक बात कहूं कपड़े पहनना पहना दिए हैं तो कुछ भी कह सकते हो यह निर्णय कहा पर उसके बाद में कोई पेज नहीं था नहीं औरत के कपड़े तो कोई भी मर्द उतार देगा पर साड़ी के दो एक बुजुर्ग कह रहे हैं कि तुम आ ही गई हो तो तुमसे प्यार कर लूं साथ रहकर दूर दूर रहना ठीक नहीं होगा जैसी तुम्हारी और दाढ़ी के बुजुर्गों की मर्जी से नहीं कहा लेकिन एक बात है क्या मेरे सगे भाई नहीं चाहते कि मैं शादी करूं तुम शादीशुदा हो क्या नहीं शादी तो मेरी आज तक नहीं हुई जो भी रिश्ता आया उसे मेरे भाई उठ जाते रहे असल में उन्हें मेरी शादी मंजूर ही नहीं थी क्यों वैसे भी खेतों में पैदावार नहीं है जो कुछ होती है उससे भी के बाल बच्चों का पेट भर जाए यही काफी है मेरी शादी होती बाल बच्चे होते तो गरीबी और बढ़ जाती खेतों का बंटवारा होता जिंदा रहने की मारामारी में कुछ भी हो सकता था इसलिए वह लोग हमारी शादी के खिलाफ हैं |
कहकर बूटा सिंह रेती को हथेलियों में उठा उठा कर छाने लगा तुम परेशानी में मत पढ़ो जैन ने कहा मैं बिना शादी के ही तुम्हारे साथ अपने मन की भरी पूरी जिंदगी गुजार लूंगी औलाद तो बात की बात है तुम अपने भाइयों की वजह से शादी नहीं भी करोगे तो भी तुम्हें मुझे तुम्हारे साथ रहना मंजूर है नहीं जेनी मैं तुमसे शादी करूंगा नहीं तो मैं जिंदगी भर हर रात तुम्हें रेट के गड्ढे में गाड़ कर तुम्हारा साथ दूंगा आमीन जिंदगी में अपनी हथेलियां आंखों से लगाते हुए कहा और तब गांव के बड़े विशाली सिंह ने आज जरूरी समझा कि बूटा सिंह और चीनी का आनंद कारज हो जाना चाहिए बूटा सिंह के भाई भाइयों ने यह सुना तो उनके कान खड़े हुए वह दूसरी सिंह के पास समझाने बुझाने और शादी का विरोध करने पहुंचे बुजुर्गों ने नहीं माना बल्कि ऊपर से उन्हें फटकार दिया कैसे भाई भोजाई हो तुम लोग अपने स्वार्थ के कारण उसे अल्लाह रखा अब एक औरत उसके घर आ गई है तो शादी ब्याह कर के साथ साथ रहना सही होगा आखिर औरत की भी कोई मर्यादा होती है |
बुजुर्गों ने चीनी भी मर जा जा रखी भाइयों के विरोध पर काम ना देकर उन्होंने पास के गांव में गुरुद्वारे के दोनों को ले जाकर गुरु ग्रंथ साहिब को साक्षी बनाया और बूटा सिंह का जीने के साथ आनंद कारज हो गया वाहे गुरु की कृपा हुई समय आने पर जी ने अपने बूटा सिंह को एक नन्ही मुन्नी बेटी का बाप बना दिया दोनों ने मिलकर बिटिया का नाम तनवीर कौर रखा जिस साल बिटिया तनवीर पैदा हुई उन सर्दियों में एक बहुत ही खूबसूरत नजारा देखा उत्तर के देशों से उड़कर हजारों लाखों पंछी उनके देश में आए थे |
यही तो विडंबना है पहले विश्व युद्ध के बाद मन मजबूरी में ही सही साम्राज्यवाद को अधिक उदार उत्तरदाई बनाना पड़ा और गांधी के साथ दुनिया में पहली बार जो इन आंदोलन शुरू हुआ उन्होंने सत्ता के केंद्र को बदल दिया गांधी ने पहली बार सत्ता को धारण करने के और चित्र की अवधारणा को राजवंशों से छीन कर जनता को सौंप दिया यहीं से इस दुनिया का रूप बदलना शुरू हुआ एडमिन ने प्रश्नवाचक नजर से लाडली माउंटबेटन को देखा यहीं से विनम्र बनाए पैदा हुई कोई साम्राज अपने फैसलों को कई वाहनों और तरीकों से बदल सकता है वह प्रधानमंत्री जी नित्य सलाहकार का सहारा लेकर अपनी इज्जत बचा सकता है लेकिन जनता के लीडरों की जो नई जमानत आई है वह अपने सार्वजनिक उद्देश में जो कुछ कह जाती है उन स्थानों से पीछे नहीं हट सकती यही मोहम्मद अली जिन्ना की विडंबना है |
उन्होंने एक बार साजन इस दौर पर इंडिया का विभाजन मांग लिया तो फिर उनका मन चाहे जितना पछताता रहे पर वह उस मांग से पीछे नहीं हट सकते हटेंगे तो अपना नेतृत्व खो देंगे किसी नेता को या गवारा नहीं होता जनता की भावनाओं को भड़का कर पैदा किए गए आंदोलनों की यही ताकत और कमजोरी है एक बार जो कह दिया गया वह बाद में चाय अनुचित और गलत लगने लगे पर उसे बदला नहीं जा सकता अगर बदला गया तो रोड और घटिया ताकतें परिवर्तित विचार भी दुश्मन बन कर सामने आ जाती हैं एडविना मैं गवा हूं यही जिन्ना के साथ हुआ है उन्होंने बड़ी शिद्दत से पाकिस्तान मांगा और जब तमाम विकल्पों की तलाश में और खारिज करने की मुश्किल प्रक्रिया से गुजरने के बाद मैंने उनके सामने पाकिस्तान और विभाजन का प्रस्ताव रखा तो खामोश और उदास है उन्होंने ना हां या ना ना किया तब मैंने उनसे कहा था कि आखिर मैंने वही दिया जो उन्होंने मांगा और मैंने विभाजन की जरूरत को पंडित नेहरू सरदार पटेल आचार्य कृपलानी से मंजूर करवा लिया इतना ही नहीं विभाजन से जिन सिखो को सबसे ज्यादा तकलीफ और नुकसान उठाना पड़ा उनके नेता सरदार बलदेव सिंह को भी मैंने अंकिता सहमत कर लिया अब उन्हें पाकिस्तान के निर्माण में अवसर से पीछे नहीं हटना चाहिए विभाजन को मंजूर करना चाहिए तब तक उन्होंने क्या कहा