वहां मौजूद तमाम देवताओं की चिंता का एक स्वर में अनुमोदन किया और देवी तान्या ने तब उन्हें आगाह करने वाला भाषण दिया दजला फरात और डेन्यूब की परा धरती के समस्त देवताओं तुम सब आज चिंतित हो क्योंकि मनुष्य में प्रेम तथा मित्रता जैसे तत्वों की खोज दिया है लेकिन तुम्हें किसने रोका था तुम सब घोर ऐंकारी हो तुम या भूल गए कि मनुष्य ने ही तुम्हें सजा है |
मनुष्य के बिना तुम्हारी और हम जैसी देवियों की कोई औकात नहीं है तुम समस्त देवता लोग प्रेम विहीन और एक आदि व्यक्ति हो तुम सब स्त्री पर आसक्त होकर उसका सम शीलभंग कर सकते हो अवैध संतानें पैदा कर सकते हो क्योंकि तुम अहंकारी हो तुम नितांत व्यक्तिवादी हो तुम्हारे पास मित्रता का मूल्य नहीं है तुम एक दूसरे के पूरक नहीं हो तुम हमेशा एक दूसरे से स्पर्धा करते हो तुम्हारे सारे आचरण अवैध हैं|
इसीलिए तुम किसी वैध सभ्यता या संस्कृति का निर्माण नहीं कर सकते हो तुम सब भूल रहे हो धरती के मनुष्य ने प्रेम और मित्रता के अलावा प्रजनन की वैध परंपरा का आविष्कार भी कर लिया है इसीलिए उन्हें संस्कार जैसी महाशक्ति भी प्राप्त हो गई है तुम्हारे पास केवल वासना है प्रेम नहीं केवल व्यक्तित्व श्रेष्ठता का देश है इसीलिए मित्रता नहीं तुमने स्त्री को मात्र भोग्या मान कर अवैध संतानों का देवलोक स्थापित कर लिया है|
इस पर देव लोग के पास कोई संस्कार या परंपरा नहीं है देव तानिया तुम अपने तुम अपने ही वंशजों का अपमान कर रही हो तमाम देवता और कुछ दिव्या एक साथ चीख उठे मैं अपमान नहीं सिर्फ तुम्हें आगाह कर रही हूं मनुष्य ने जिन जीवन तथ्यों को तलाशा है और आगे तलाशी गांव वह हमारी मित्र की घोषणा होगी देवी तान्या ने कहा और अंतर्ध्यान हो गई सारे देवता आवाज और हजरत रह गए और तब अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए परम देवता अनु ने सुझाव दिया|
अस्तित्व के संकट की इस घड़ी में हमें सप्तसिंधु के आर्य देवताओं के से संपर्क करना चाहिए हमारे पास केवल 3 नदियां हैं दजला, फरात और डेन्यूब हमें केवल इन तीन नदियों की संपदा मिली है उनके पास शब्द सिंधु की 7 मुख्य नदियां हैं सिंधु विस्ता, आशिकी, पर रोशनी विकास और सरस्वती इतना ही नहीं देवाधिदेव संदेशी ने आदर्श से सर झुका कर कहा आगे कुछ कहता इससे पहले एक देवता ने टोका तुम कौन श्रीमान हम तो घुमंतू पशुपालक हैं पर आपके संदेश ईस्वर का कार्य भी करते हैं हम तो शब्द सिंधु से लेकर आपके प्रदेश तक और यहां से लेकर मलेशिया पाषाण क्षेत्र लेकर वास पोरस और दर्रे दानियाल तक हमेशा घूमते ही रहते हैं यहां से लेकर तो आर्य कबीले सिंधु घाटी तक गए हैं|
उन्हीं में से कुछ कबीले आर्य में बस गए जो आगे बढ़ते गए वे सिंधु सरस्वती और तिश्ता नदी को पार करके यमुना के मध्य प्रदेश तक पहुंच चुके हैं उससे वे ब्रह्मवर्त के नाम से पुकारते हैं पूरब की ओर उनका सीमांत जो नदी बनाती है उस नदी का नाम है गंगा और देवताओं ने साम्राज्य स्थापित कर लिया है उनके साम्राज्य में उत्तर पश्चिम की और 4 नदियां की संपदा भी मौजूद है क्या आर्यों ने उन नदियों का नामकरण कर दिया है हां श्रीमान उन्होंने उनका नामकरण करके अपनी संपदा बना लिया है आर्य इसी के लिए बिछड़ते गए क्योंकि उन्होंने नामकरण की पद्धत नहीं अपनाई आर्यन उत्तम उत्तर पश्चिमी की नदियों का नाम दिए हैं |
काबुल कुर्रम गोमती गोमल और श्वासतू इतने दीर्घ नाम श्रीमान नदियों के नामकरण के साथ-साथ उन्होंने विभागों को भी अंकित कर लिया है हम तो घुमंतू हैं जब भी आर प्रदेशों तक जाते हैं तो गंधारी जनपद से पशु के सिले जाते हैं मौजवंत में पहुंचते ही तो श्रेष्ठ सुरापान का आनंद उठाते हैं फिर हम उनके दो और बस प्रदेशों में रुकते हैं और धान में भी प्राप्त कर लेते हैं इन प्रदेशों का अन्य है श्रीमान आर्यों के पास जलसंपदा के अलावा सुंदर कालीन प्रातः कालीन ऊंचा पर्वत है परिजन ने पूरब में और घनघोर वर्षा है उन्होंने अपने क्षेत्र को वैदिक गणित और जनों में विभक्त कर रखा है उनके पास है वह है और अन्य पशु भी हैं विकृति कर्म करने लगे हैं या श्रम क्या आर्य देवता स्वयं करते हैं देवता अनु ने पूछा नहीं श्रीमान आर्य देवता आप सब देवताओं की तरह ही कर्म विहीन हैं उन्हें श्रम की जरूरत ही नहीं श्रम तो उन देवताओं की मनुष्य जाति ही करती है परंतु तभी एक देवता ने हस्तक्षेप किया हमें संदेशी के प्रांतों में नहीं लेना चाहिए हमारी समस्या सम्राट गिलगमेश है जो मृत्यु की औषधि तलाशने की घोषणा कर चुके हैं|
संदेशी ने उन्हें शांत किया मैं आपकी इस समस्या के लिए ही सारे वृतांत दे रहा हूं | ताकि आप इस समस्या को पूरे परिप्रेक्ष्य में समझ सके देखिए यहां आकर एक एकन्दु भूल गया कि वह आकाश पुत्र है मनुष्य बनते ही उसने प्रेम नामक संवेग को तलाशा और स्थापित कर लिया सम्राट गिलगमेश शांति का रास्ता को खोज लिया और उधर आर्य मनुष्य ने पृथ्वी के महत्वपूर्ण को खोजा और आतंक कारी प्रवृत्ति को वशीभूत करने के लिए उसने शांति जैसी महाशक्ति का आविष्कार कर लिया
शांति के बाद अब यदि मनुष्य को अंतिम रूप से कुछ तलाशना है तो वह है मृत्यु और औषधि आप देवताओं का प्रभाव निश्चित है संदेश कि यह बात सुनते ही देव मंडलियों के प्रत्येक देवता की भर्तियां तन गई उनकी आंखों से क्रोध बरसने लगा क्रोधित मन सत्य को शिव कार्य मनुष्य ने जिन महा शक्तियों का अन्वेषण किया है वह आपके पास नहीं है उसने आ विकृत कर लिया है जीवन कर्म श्रम प्रेम मित्रता और शांति जय जीवन के महा तत्वों को इसलिए अब उसकी अमृत की कामना अनुचित नहीं है नहीं नहीं उसकी यह कामना हमें स्वीकार नहीं है तमाम देवता सन्देश लिखने लगे फिर अलग-अलग घोषणाएं करने लगे हम कर्म को कर्म हीन बना देंगे, हम श्रम को श्रम हीन बना देंगे, हम प्रेम के विरुद्ध घृणा करेंगे हम मित्रता को शत्रुता में बदल देंगे, हम शांति को अशांत में ध्वस्त कर देंगे, हम जीवन को मृत्यु के उन्मुक्त नहीं होने देंगे, तभी 3 देवियो ने वहां प्रवेश किया उन्हें देवताओं ने आश्चर्य से देखा देवता अनु ने उनसे प्रश्न किया तुम तीनों इस समय यहां क्यों आई हो कोई विशेष कारण हम तीनों देव लोग तोड़कर मित्र लोग जा रहे हैं हम स्त्रियां तुम्हारे पाप से पीड़ित हैं तुमने हमें मात्र भोग्या बना रखा है प्रेम की वह मर्यादा जो मनुष्य ने विकसित कर ली है उसका लेश मात्र अंश तुम में नहीं है तुम सब विचारी हो और तुम ही ने सिंधु सभ्यता के देवता भी तुम्हारी ही तरह है अप्सराओं को देखते ही उनका तप भंग हो जाता है विभिन्न बात करने लगते हैं तुम्हारे सखा जीएस इस समय भी पाषाण प्रदेश में मंदिर में देवदासी ईस्टर के साथ रति मग्न है देवता डेन्यूब नदी के किनारे देवी पति के साथ संभोग में लिप्त हैं सिंधु सभ्यता का ब्रह्मा अपनी पुत्री शतरूपा सरस्वती पर आसक्त होकर पिछले 100 वर्षों से उसके साथ संभोग में लिप्त है |
तभी इना ने घोषित किया प्रलय के समय एक मत्स्यकन्या के ने गिलगामेश को अमरता प्राप्त करने का रहस्य बताया था मत्स्य कन्या के कहे मुताबिक गिलगामेश ने मृत्यु के विरुद्ध जीने की शक्ति रखने वाले सभी जीवाणुओं अणुओं को अपनी नाभि में छुपा लिया थ इसीलिए वहां जल प्रलय में वह जीवित रह सका था उस मत्स्य कन्या ने भी उसे स्वरूप के जानकारी दी थी जिसके पास मित्र से मुक्त की औषधि सुरक्षित थी किसी को मालूम नहीं था कि जल प्रलय के बाद शुरू पक्का वाह औषधि को लेकर कहां छुप गया था तो सुनो सुमेर सभ्यता के देवताओं सम्राट गिलगामेश निश्चय ही शुरु उस स्थान का पता लगाकर रहेगा उस औषधि को प्राप्त करके रहेगा जो मनुष्य को अमरता देगी इसीलिए हम तीनों तुम्हारा देव लोग छोड़कर मित्र लोग में जा रही हैं क्योंकि सम्राट गिलगामेश उस सागर तक पहुंच गया है जहां से वह जलमार्ग जाता है जहां अतल जल समाधि के नीचे के प्रदेश में शुरू चिपक का युद्ध मित्र से मुक्त की औषधि लिए छुपा बैठा है |
या सूचना सुनते ही देवताओं की मंडली में फिर भूकंप आ गया अब क्या होगा क्या दूसरी प्रलय होगी कोलाहल और जबरदस्त शोर के बीच परम देवता अनु ने ऐलान किया इससे पहले कि गिलगामेश सागर के अतुल गहराइयों में उतर सके उसे बंदी बनाया जाए |
अब तुम उसकी परछाई को भी बंदी नहीं बना सकते इना ने कहा रुको रुको परम देवता ने अपनी सृष्टि के विषय में जीव जंतुओं को पुकारा विषधर भुजंग ओ विषैले विश्व को गिलगामेश को अपने नाक पास में ले लो अपने विषय में धन से उसके शरीर को जिस पर वार्निश प्राण कर दो और तब तीनो देवियों ने देखा समुद्र में छलांग लगाने के लिए उधर गिलगामेश के शरीर पर सैकड़ों विषैले सर्व लिपट के लिपट गए थे उन्होंने उसे पकड़ जकड़ लिया था सैकड़ों बिच्छू उसके शरीर पर डंक मार रहे थे या दृश्य देखकर देवियां विचलित हो उठे लेकिन तभी गिलगामेश ने उन विषय लेविस घरों और मिश्री को की परवाह न करते हुए अपनी बलिष्ठ भुजाओं को पसारा और और उसने उस सागर में छलांग लगा दी |
सागर ने अपनी उटांग तरंगों में उसका स्वागत किया और कहा धरतीपुत्र जब तक तेरा एक अंग भी सक्रिय रहेगा तब तक इन विश्व धर्म काविश प्रभावहीन होता जाएगा मेरा जल पृथ्वी के हर विश्व को सुमित करता है तू पाताल लोक की अपनी यात्रा पूरी कर और गिलगामेश था पानी के उत्तल हीन संसार के नीचे उतरता गया उतरता चला गया सदियां बीत गई और अब तक गिलगामेश की यात्रा जारी है औषधि की तलाश में वह अभी सागरतल की गहराइयों में उतरता जा रहा है |
और अब तक गिलगामेश की यात्रा जारी है औषधि की तलाश में वह अभी सागरतल की गहराइयों में उतरता जा रहा है उतरता जा रहा सदियां बीत गई मित्र से मुक्त की औषधि लेकर मनुष्य सम्राट गिलगामेश अभी लौटा नहीं है लेकिन देव साहनी रूणा और वन्य पुरुष एक अंजू ने प्रेम नामक जिस संवेग का अन्वेषण सहज ही कर लिया था उसे मृत्यु का भय नहीं था मनुष्य जाति में वह जीवित जागृत और सदा सदा के लिए स्थिर हो गया उसे मृत्यु मार नहीं सकती अग्नि जला नहीं सकती वायु उड़ा नहीं सकती शस्त्र उसे काट नहीं सकता सागर उसे डुबो नहीं सकता मृत्यु की तरह यह उस दिन स्थापित हो गया था जिस दिन मिस्र की एक मंदिर की पथरीली दीवार पर किसी धातु के नुकीले कलम से या वाक्य उत्कीर्ण मिला था मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा है या तुम्हारी या दुनिया की प्रथम प्रेम कहानी थी इस प्रथम प्रेम कहानी के बाद मिस्र के पिरामिड बने थे पिरामिडों के इतिहास से ज्यादा बड़ा और पुराना है मनुष्य का प्रेम का इतिहास देवयानी रूणा और वन्य पुरुष एकन्दू के एकांत क्षण जब वासना के बाद उन्होंने एक दूसरे की आंखों में अपने अस्तित्व की तलाश की थी और उसे प्राप्त किया था प्रेम की यही शास्वत कहानी तब से सांस ले रही है|