नक्सलवाद का समर्थन कर रहे थे एक के बाद एक ताने कसे तो इमाम नाजिश बौखला गए और और बोले तब तुम भी हमसे कहां लगते अधीन तुम अमृता प्रीतम करतार सिंह दुग्गल मोहन राकेश भीष्म साहनी देवेंद्र सत्यार्थी और यहां तक कि तुम्हारे यशपाल अश्क और आगे तक खामोश रहे तुम लोगों ने पार्टीशन के बाद खौफनाक मंजर पेश किया लेकिन इमानदार समाजसेवियों की तरह वह सिर्फ मंटो था जिसने टोबा टेक सिंह की लाश सरहद एक उधर की धरती फेंक पर फेंकी थी।
हमने गलती की पर तुमने भी तो उस गलती में हाथ बताया नाम ना जिसने देश में कहा जब सज्जाद जहीर पाकिस्तान कमेटी पार्टी जनरल सेक्रेट्री बने तो ईस्ट पाकिस्तान छोड़कर वेस्ट पाकिस्तान चला गया वही हमें मजे भी बुनियाद पर बने मूल पाठ की असलियत का पता चला मैंने महसूस किया था कि मजहब के नाम पर काम करना गलत था लेकिन अब तो सब मुल्कों में नफरत का एक पाकिस्तान बनाने की कोशिश जारी की है क्या हुआ ओसियां में हुआ क्या चाय साइप्रस में क्या हुआ ।
तब के टूटे सोवियत और अब के बने एशियन फेडरेशन में क्या हो रहा है आज के पाकिस्तान में हर व्यक्ति रहता है एक ही आदमी की पहचान देती है नफरत से ही आदमी और उसके जाति समुदाय पहचाने जाने लगे हैं नफरत एकता के लिए असीम काम आता है और स्मृतियां जो करती हैं अपने अतीत को ठीक करने की दृष्टि दे सकता है पर इतिहास को भी अतीत अग्निकुंड में झोंक दिया जाता है इतिहास का विश्लेषण उसकी सामाजिक व्याख्या मनुष्य की घड़ा को तर्क में शामिल करती है पर अतीत की पद्धति को स्वीकार नहीं करता वह केवल आशिक शक्तियों को स्मृति की कहानियों में बदल देता है ।
उसे सदियों जीवित रखता है नफरत का एहसास स्कूल है जो जिसमें पहले खुद को प्रताड़ित अपमानित किया जाता है उसे घड़ा की खाद में शिक्षा जाता और उसकी शोध के जोधपुर उसको फिर हमलावर किया जाए जाता है इसलिए घृणा वादियों के प्रति गहरे और एक से होते हैं उनके पास अधिक बातें नहीं होती हजारों लाखों लाखों में से एक ही स्वर बोलते हैं एक प्रश्न उठते हैं उठाते हैं एक से दलीलें देते हैं यही उनकी एकता की पहचान बन जाती है और जलीय भाषण कौन दे रहा है आदि ने पूछा सर यह यहूदी लेखक होमोस्पर्स हैं एक लेखक इस रेगिस्तान में क्या कर रहा है मैंने पता किया है यही या यहीं रहता है रेगिस्तान के आ रहा है रात में या शहर कहां है या बस्ती में हुजूर बस्ती जी हां हुजूर या रेगिस्तानी बस्ती में दुनिया के तमाम शरणार्थी लेखक आकर बस गए चलो मैं तुम्हें ले चलता हूं आओ हम उसकी छाया में कहां हुआ आगे आगे चलने लगी फिर पता नहीं वह कब तक चलते रहे हैं रास्ते में इमाम नागिन ना जिस अपनी दर्द भरी कहानी सुनाते रहे देखो अभी अब मेरे पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं नफरत के लिए सैलाब का हमने समर्थन किया है उसने किसी को कहीं भी नहीं पहुंचाया
शादी को 3 महीने हुए हैं मैं अपने बड़े पूरे घर और बीवी को सैलाब में बहता हुआ पाकिस्तान पहुंच गया अपनी सरजमी से उखड़ कर पाकिस्तान में लगातार मुझे भूमिगत रहना पड़ा मुझे लगता था कि अब शायद मैं कभी अमरोहा लौट नहीं पाऊंगा मेरी बीवी टीचर हो गई और अमरोहा में ही उसने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की पढ़ाई लगा दी उसने हिंदुस्तान में एक नई नस्ल पैदा कर दी मैंने एक बर्बाद कर दी उसी के साथ-साथ मैं खुद ही बर्बाद हो गया मैं बरसों बाद में अमरोहा पहुंच गया पाया पाया कि घर के बच्चे भतीजे भतीजी ने 3344 साल का छोड़कर जवान हो गया गया था वह खुद बाल बच्चे दार हो गए मेरी बीवी रिटायर होने की कगार पर खड़ी है जब अमरोहा में मेरी उससे मुलाकात हुई ऐसी रेगिस्तान पर बेहद खूबसूरत जिंदगी एक औरत ही गुजार सकती है नफरत केशव का हिस्सा बना और मेरी बीवी एक नई तमीज के सैलाब का हिस्सा बनी जिंदगी की राहें ज्यादातर पछतावे से ही खुलती हैं अजीब ने कहा तो अमोस भोजपुरी की लेकिन मुश्किल यह धीरे के सैलाब एक साथ नहीं आते और पछतावे का एहसास भी एक साथ पैदा नहीं होता उसमें समय का अंतराल रहता है ।
इसीलिए इसीलिए सदियां और नस्ले बलवान होती रहती हैं हां जब तक पछतावा उभरता है तब तक कहीं कोई दूसरा अंधेरा सैलाब बनकर आ जाता और जब बहुत-बहुत उसके पछतावे का दौर शुरू होता है तब तक कोई तीसरा चौथा पांचवा अंधेरा उठ खड़ा होता है अभी अभी अपनी बात कही रहा था कि अमोस पोज ने सामने इशारा किया अपने अपने तंबू में सभी मौजूद थे समय को इस तरह बहते देखना उसके लिए अजीब सा अनुभव था कई कई सदियां साथ बहती चली जा रही थी रेत के चीते उस पर पड़े तो उसे बड़ी राहत मिली तभी अर्दली ने पेशकश की हुजूर कहिए तो वक्त को पकड़ लूं जरूरत क्या है इन लेखकों ने खुद समय को कैद किया है हर लेखक का वक्त उसकी किताब में कहे गए इनका हर वक्त वक्त किताब में ज्यादातर मजबूत साबित हुआ है अजीम ने कहा वह अमोश खोज के साथ आगे बढ़ गया बस्ती में शांति थी रेत की जुगनू चारों तरफ भरे हुए थे रेतीले खा खरगोश दौड़ते हुए अतिथि रखते और फिर कहीं और जाते कभी रेट की चादर उड़ती हुई ।
आती फिर फट जाती है उसके टुकड़े तीनों में बदल जाते हैं तितलियां बस्ती के दूसरे छोर की ओर चली जाती है लेखक की पूरी जमात एक जगह बैठी थी वहां मनुष्य गाथा पर बात चल रही थी हजारी प्रसाद द्विवेदी उस समय कुछ कह रहे थे मिथक तो या एक अलौकिक था है अलौकिक था जिसका प्रथम अनुभव मनुष्य के ने प्रकृति के साथ किया अपनी संकल्प शक्ति से उसने अपने उस अलौकिक अनुभव को अलौकिक और अपराध बना दिया पूरा कथाएं मॉल मौखिक रूप से चलती रहे यह मनुष्य गाथाएं मिथक पूरा कथाएं पौराणिक इतिहास में बदल गई इन्हीं से धर्म कथाएं निकली धारणाएं स्थापित हुई के संकीर्ण धर्मों ने जन्म लिया अपने-अपने ईश्वर को तो इन्हीं संकीर्ण धर्मों ने पैदा किया हां नहीं तो ईश्वर कहां था अपने में ईश्वर को तो इन्हीं संगठनों ने पैदा किया मिट्टी के पलकों पर मौजूद पूरा कथाएं बताती हैं कि ईश्वर अनुमानित और अमर नहीं था उसे इराकी विमल उमिया सभ्यता ने पैदा किया उस सभ्यता पर परम पुरुष और ईश्वर बना वनस्पति था उसके राज्याभिषेक के लिए देवता बुलाए गए थे उसका सिंहासन देवताओं ने खुद बनाया था और उन्होंने मार दूं को परम देव ईश्वर घोषित किया उसे श्रेष्ठ संघार और संभाल ब्रह्मा विष्णु महेश की शक्तियां दी थी उसे असशत प्रदान किए थे।