हुजूर इन कानूनी बारीकियों में मत जाइए अन्याय अन्याय है अन्याय ग्रस्त औरत की जिंदगी तो मौत से बदतर होती है तुम ठीक कह रहे हो महमूद अली अदालत सीखी तो पूरी श्रेष्ठ कांप उठी नहीं मैं मुद्दों के अलावा जिद्दा लोगों की फरियाद सुनने का हक भी लेता हूं जो जीते जी मुर्दा मान लिए गए हैं पलट कर अदालत ने क्यों हक सुन की ओर देखा था तो अपनी कहानी बताओ किम हक सुन ने कहा सर मैं कोरियन हूं तब मैं 17 साल की थी वैसे मैं पैदा तो सन 1924 में जून में हुई थी ।
लेकिन 1941 में मुझे बैंकिंग से जापानी फौजियों ने उठाया था और दूसरे महायुद्ध के दौरान मुझसे जापानी सोल्जर में लगातार 15 * प्रतिदिन बलात्कार किया मुझे 30 इन हाई कोर्ट में भर्ती किया गया जो सेक्स को थी जिसे कंफर्ट कोर के नाम से पुकारा जाता था इसको में करीब 40000 औरतें लड़कियां जबरदस्ती भर्ती की गई थी और हम प्रतिदिन कम से कम 15 जापानी फौजियों की पार्श्विक वासना की क्षति और तृप्त करती थी तभी बिल्किस की तेज रुलाई फूट पड़ी लक्षण याद तो तुम्हारे साथ तब हुआ जब जंग जारी थी पर मेरे साथ तो या तब हुआ जब जंग नहीं थी मुझे तो सिर्फ तस्वीर और डाक के जरिए ज्ञाता के नाम पर इस देश में डाला गया डालते आलिया बिल्किस फूट-फूट कर रो पड़ी जो ना तो मुझे उनकी जुबान आती थी ना उनकी तहजीब पर वह अरब था जो मुझे ब्याह का नाटक करके ले गया था वह मुझसे 28 बरस बड़ा था और जैसे यह किस ऑप्शन 15 जापानियों की हवस की शिकार होती थी उसी तरह मैं हर दिन विषयों पर अपने उस आबिद की धरती और गर्ग धरती हरकतों का शिकार होती थी फिर जो बच्चा हम जैसों से पैदा होता था उसे तेरी बच्चा कहा जाता था।
और अब समाज से उसे दूर रखा जाता था अदालत के माथे पर सिलवटें पड़ी फिर वह चिकी अरब अमीरात के अफसर बिलाल के अफसर की अस्मत का जवाब तो जापानी देंगे जो जबरदस्ती पैदा किया गया कि पैदा हो गया और साथ ही अदालत ने अर्दली को देखते हुए कहा कि तुम अभी तक यही खड़े हो मैंने तुम्हें हुक्म दिया था जिंदगी को हाजिर करो उन वैसी जापानियों को इस बिलाल का बयान में दर्ज कर लूंगा पर तुम फौरन जाओ और पाकिस्तान कराची के हवाई अड्डे से जिंदगी बुलाओ जो जिंदा होते हुए भी अपनी जिंदगी नहीं जी पाई हुक्म शामिल करने के लिए अर्दली जैसे ही तेजी से चला अदालत पर हमला हुआ तरह-तरह के नारों का शोर बरपा हो गया तड़ा तड़ा गुड़िया चलने लगी कोहराम मच गया ।
अजीब बात यह हुई मुर्दे फिर मरने लगे वे जिंदा लोगों के तरह भी चीखने कराने और चिल्लाने लगे या मालूम ही नहीं चल सका कि कौन किसको मार रहा था कि स्कूल क्योंकि दुनिया के सारे पाकिस्तानियों के बाशिंदे अपनी ही कम के मशीनों के खून के प्यासे हो गए थे अभी घबरा गया वह चीज की खाया क्या बदतमीजी है हम इंसान की तकदीर के फैसले के साथ-साथ जिंदा आदमियों की जिंदगी यों का फैसला करने के लिए भी मौजूद है या मुर्दों के अधिकारियों का ही नहीं जिंदा इंसानों के अधिकारियों का सवाल भी है जो रे बात मत करो अगर जिंदा लोगों की जिंदगी का फैसला करने के लिए तुमने अदालत लगाई है तो फिर तुमने मुर्दों की मजलिस क्यों जमा रखी है एक हमलावर ने सवाल किया क्योंकि यह मुझे अपनी जिंदगी से पहले मारे गए हैं इनकी जिंदगी अभी बाकी है और मैं उन्हीं मुद्दों से मिल रहा हूं जो अपनी कुदरती मौत से पहले मर गए हैं ।
जिंदगी और गलत मौत के बीच 29 दिन की उम्र का हिसाब कौन देगा अजीब सी का कयामत के दिन तक यह कहां इंतजार करेंगे इनके कर्म का ब्यौरा किसने दर्ज किया जिससे इनकी अगली जिंदगी का रूट तय होगा यह अशांत और अधूरी आत्माएं अकाल मृत्यु की शिकार आत्माएं हैं इनकी गलत मत काले दाल लेनदार और देनदार कौन है अजीब चीज का ही रह गया हमले जारी थे और कहर बरपा था धुआं धमाके तड़ तड़ हल्ला हंगामा और मिनी चीखने चिल्लाने और आगजनी देखकर अर्जुनी तेजी से लौटा जैसे तैसे उसने अपने अधीन की जान बचाई और उसे लेकर भागा भागते-भागते वे लस्त हो गए।वह बड़ा रेगिस्तान था उसकी बालू पर भागना आसान नहीं था रेगिस्तानी तूफान के मारे और भी मुश्किल थी ।
उसकी आंखें कानून न सुनो बालों में कपड़ों में रेत भर गई चारों तरफ बियाबान रेगिस्तान उड़ती गर्म रेत के बा बगुले और बाघ भालू की लहरों में बनते और बिगड़ते पीले हंसते हुए आदिम गिर पड़ा और दिलीप बुरी तरह आते हुए उसके पास ही बैठ गया थोड़ा दम में दम आया सांसे ठीक हुई तो उसने अंजलि से पूछा हम कहां हैं हुजूर हम एक भी आवाज रेगिस्तान में है दोस्त मैं अब बुरी तरह नष्ट हो चुका हूं मैं अपने दोस्तों और समकालीन समकालीन ओं को आवाज देना चाहता हूं मेरा साथ दो राकेश बारोट संतरा ही परछाई रघुवीर श्रीकांत के अलावा मैंने अपने तमाम दोस्तों के आवाज लगाना चाहता हूं ।
जिन्होंने अपनी रचनात्मक शक्ति और अपनी कलम की सच्चाई से दुनिया हाथ को बेहतर बनाना चाहते हैं उनसे कहो मेरा साथ दें मैं बहुत अकेला पड़ गया हूं उनसे हाथ जोड़कर कहोगी दुनिया को उनकी जरूरत है पर पहले मुझे बताओ यह कौन सा रेगिस्तान है इसका नाम क्या है अभी अपनी परेशानी से पूछा पता नहीं क्या कौन सा रेगिस्तान है लेकिन रेत के सिवा यहां कुछ ही नहीं है हुजूर अर्दली ने अपनी रहते हुए कहा अपनी रेत साफ करके अब तक अधिक कुछ सुरते से बैठ गया ।
उसने आसमान की तरफ देखा तो चकित रह गया अर्दली देखो देखो इन सफेद अंशु देखो कैसे उड़ रहे हैं हुजूर यहां नहीं इसी हसी सफेद रेत के परिंदे हैं गरम बा बाबू लोगों के साथ उड़ते हैं कुछ देर से मैं यह परिंदे अपने पंख फड़फड़ा आते हैं फिर इसीलिए तो मिल जाते हैं अर्थ अली ने अदब से बताया अधि अधि उन परिंदों को देखता रहा कुछ देर बाद उठ कर खड़ा हुआ और चलने लगा हम किधर जा रहे हो जो हर दिन में पूछा यहां दिशाएं तो ही नहीं है जिधर पर उठ गए उसी तरफ चल पड़ा हूं थोड़ी मदद रेत के उड़ते हुए परिंदों से मिल रही है अजीब ने कहा और चलता रहा ।
रेत ही रेत चारों तरफ कहीं कोई रास्ता नहीं कोई पढ़ाओ या मंजिल नहीं थी सिर्फ एक ही रेट पता नहीं वह दोनों कब तक और कहां तक चलते रहे कितनी रातें गुजरी कितने दिन बीते कुछ पता नहीं जहां भी मैं पहुंचते यही लगता कि यही से तो चले थे सहारा रेगिस्तान एक साथ आ देखते-देखते कदमों के अक्षर भी मिट जाते पता ही नहीं चलता था कि वह चले भी थे या नहीं हम हर दिन इतना चलते की लेकिन कहीं पहुंच नहीं रहे आखिर एक दिन अली बोल ही पड़ा चलना अपनी जगह और पहुंचना अपनी जगह इन दिनों इन दोनों को मिलाते हुए क्यों हो अजी बोला इसका सबूत है या ठहरी हुई जिन सर्दियां जो लाखों करोड़ों वर्ष पहले चली थी पर वही पहुंची जहां से वह चली थी बीच-बीच में उन्हें मजहब के पढ़ाओ मिले और उन्होंने फिर उन्हें उसी बियाबान रेगिस्तान में पहुंचा दिया अर्दली उसकी बात नहीं समझ पाया तो अदीब ने कहा देखो हर चीज़ अपनी काम करती है अंधेरा आता है पर वह खुद से यह पूछ कर नहीं आता कि वह कितना चल कर आया है रोशनी आती है वह भी अपने फैसलों का हिसाब किताब रखकर नहीं आ चलती यार एक उड़ती है उड़ कर चलती है पर इसमें भी नहीं बताया कि इसमें कितना फासला तय किया अंजलि को चुप रहना ही ठीक लगा उसे लगा कि साहब फिर वह एक रहे हैं ।
आखिर कहीं दूर पर एक छाया सी नजर आई ताज्जुब की बात यह थी कि वह छाया देखते-देखते पिघल जाती फिर उभर जाती अजीब ने कई बार आंखों की दूरबीन बनाकर उस छाया को देखा उठाया ने भी उसे देखा और वह भागती हुई आई और पास पहुंच ही कर छाया पुरुष उससे लिपट ते हुए बोले अरे नदीम तुम का यहां हिंदुस्तान से कब आए अनेक कामरेड इमाम नजीब तुम तुम पाकिस्तान से कब आए बनने भाई अरे अपने सज्जाद जहीर खान तुम कैसे हो मामा जी मैं अच्छा नहीं हूं जिंदा भी हूं मुर्दा भी मैं पाकिस्तान गया था जम्हूरियत के लिए गरीबों की लड़ाई लड़ने के लिए मैं पाकिस्तान गया था अपनी बीवी अपना घर अमरोहा को छोड़ कर आना जी मुझे याद है तब तुमने भी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे और सेंड हवेली में जीएस सैयद ने भी पाकिस्तान के स्वागत किया था बनने भाई भी तब या भूल गए थे पाकिस्तान महकमे ने का मुल्क नहीं बड़े-बड़े शर्मा सरदारों का मुल्क है जिसकी बुनियाद मजहब की नफरत से भरी गई थी और तुम मार्क्सवाद उस मजहबी नफरत को तब एक धार्मिक संप्रदाय की जरूरत मानकर मूल को बांटने का समर्थन कर रहे हो तुम धर्म के आवाम की अफीम मानते हुए धार्मिक और आशावादी नसीर दे रहे थे अजीब में एक के बाद एक थाने का शेर तो इमाम नाजिश बौखला गए।