उसी कहानी में शामिल है बूटा सिंह और रेतपरी किया की यह कहानी
राजस्थान का तपता रेगिस्तान
कोई चीखा बन गया साला पाकिस्तान
आसमान की आंख सूखी हुई थी उनमें एक बूंद भी पानी नहीं था मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने सूचना दी थी कि इस बार धरती वर्षा के पानी से नहीं मानव रक्त की बरसात से सीची जाएगी |
इन्हीं घोषणा के बीच पचास पचपन्न साल का सिख किसान बूटा सिंह अपने बंजर खेतों की ओर से लौट रहा था उसके तीन भाई थे लेकिन खेतों की जायदाद का बंटवारा ना हो पाए इसीलिए उन्होंने बूटा सिंह की शादी नहीं की थी | वह अभी तक कुंवारा था, उस रेगिस्तान नी धरती की तरह जिस पर वर्षा की एक बूंद तक नहीं गिरी थी वह बूटा सिंह अपने खेतों की ओर से घर को वापस जा रहा था आवाजें गूंज रही थी |
बन गया साला पाकिस्तान जो बोले सो निहाल सत श्री काल, अल्लाह हू अकबर, हर हर महादेव, बूटा सिंह को पता नहीं था कि मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने क्या सूचना दी थी वह इस बात से बेखबर था कि आजादी के इस साल पानी की जगह खून की बरसात होने वाली थी बूटा सिंह रेत पर रास्ता बनाना बनाता चला जा रहा था या रास्ता वह रोज बनाता था जो रोज मिट जाता था घर पहुंचने की भी उसे कोई जल्दी नहीं थी |
किसी की आंखें उसके लौट कर आने का रास्ता नहीं देखती थी तब पीठ पीछे से उसे एक गरीब हुई कमसिन आवाज सुनाई दी बचाओ बचाओ बूटा सिंह ने पलटकर देखा सोलह 17 साल की लड़की अपनी अस्मत की रक्षा के लिए उसकी ओर दौड़ती चली आ रही थी उसके कपड़े तार-तार थे बाल बिखरे हुए और बुरी तरह आप रही थी एक हिंसक सा नौजवान उसका पीछा कर रहा था वह नंगी बूटा सिंह के पैरों पर आ गिरी मुझे बचाओ मुझे इज्जत मेरी इज्जत लूटना चाहता है कहती थी और बूटा सिंह से चिपक गई |
तू बच कर कहां जाएगी उस हिंसक नौजवान ने लड़की से कहा फिर वह बूटा सिंह से बोला इसे मेरे हवाले कर दो नहीं इससे मैं तुम्हारे हवाले नहीं करूंगा तुम्हें करना होगा यह मेरे हिस्से में आई है हिस्से में बूटा सिंह ने आंखें तरेर कर पूछा तेरे हिस्से में हां हिंदू मुसलमान का बंटवारा हो चुका है पाकिस्तान बन चुका है कहां बन चुका है पाकिस्तान तीसरी ढाँणी के उस पार पाकिस्तान बनने की लकीर खींच चुकी है उसी लकीर के बाद या मुसलमान लड़की मेरे हिस्से में आई है मैं इसे काफिले वालों से छीन कर लाया हूं...... मेरे हवाले कर दो !
नहीं ! बूटा सिंह ने इस अधनंगी लड़की को पीठ के पीछे छुपाते हुए कहा हिंदुस्तान पाकिस्तान की लकीर खींच गई तो खींच जाए लेकिन हिंदू मुसलमान के नाम पर औरत की इज्जत का बंटवारा तो नहीं हो सकता ! उस हिंसक नौजवान ने तेज नजरों से बूटा सिंह को देखा और बोला तुम चाहो तो इसकी इज्जत खरीद लो खरीद लूं बूटा सिंह जाते हुए कहा तुम बेचने को तैयार हो हां कितने में नगर 1500 में उस हिंसक नौजवान ने बूटा सिंह की औकात देखकर चढ़ते दाम बताएं ठीक है इतने पैसे तो कर लूंगा आओ मेरे साथ घर तक चलना पड़ेगा तीनो लोग घर की ओर चल दिए हिंसक नौजवान बूटा सिंह के साथ आगे आगे चल रहा था और लड़की सर झुका है उनके पीछे पीछे घर पहुंचकर बूटा सिंह ने एक कोने में जाकर पुराने घरों और हड्डियों में हाथ डाल डाल कर पैसे ताला से कुछ हाथ नहीं आया वह हिंसक नौजवान इंतजार में खड़ा था
आज नंगी लड़की अपना बदन चुराए दोनों बाहें लपेटे घड़ी बनी दूसरे कोने में बैठी थी आखिर करके बूटा सिंह दे देती हटा हटा कर उसमें घड़ी एक निकाली और और बूढ़े बूढ़े हो चले नोट गिनने लगा कुछ सिक्के भी थे आखिर पैसे पूरे पड़ गए इन सब नौजवान ने पैसे गिने और अपनी पगड़ी में रखे और लड़की पर नजर डालकर बोला बुड्ढा है आराम से रहेगी लड़की वैसे ही घड़ी बनी बैठी रही वह चला गया तो वह इतना ही बोली मेरे खातिर क्यों तुमने इतनी बड़ी रकम उस जालिम को दे दी ?
बूटा सिंह कुछ नहीं बोला दिन डूब रहा था रात उत्तरी तब मुश्किल सामने आई लड़की जरूर जरूरत से ज्यादा नंगी थी दिन में तो ठीक पर रात में ऐसे कैसे रहेगी बूटा सिंह ने मुश्किल हल की कोई कपड़ा तो है नहीं तुम मेरा बेटा लपेट लो तब तुम नंगे हो जाओगे लड़की ने लाचारी से कहा बूटा सिंह को तब एकाएक खुद पर शर्म आई तुम ठीक कहती हो एक जुगत ध्यान में आई कहते हुए बूटा सिंह ने दोनों हाथों से रेत हटा हटा कर गड्ढा बनाना शुरू कर दिया लड़की उसी जुगत समझ गई वह चुपचाप उसे गड्ढा बनाते देखती पैर मोड़ेगी या खड़ी रहेगी बूटा सिंह ने पूछा खड़ी रही तो नींद कैसे आएगी तब इतना बहुत है बूटा सिंह ने गड्ढे की गहराई देकर कहा आ जाओ लड़की उस तरह उसी तरह गरीबनी तलवों के सारे धीरे धीरे गद्दे तक खिसक आई और खुद ही उसमें कमर के बल पर लेटी हो गई बूटा सिंह ने उसके शरीर को रेप उड़ेल कर गले तक तो दिया उसे देखते हुए बोला अब ठीक है ।
लड़की ने उसे एक बार भरपूर नजरों से देखा बूटा सिंह ने भी कंधे में दाढ़ी गुजारने का बहाना करते हुए उसी उसी तरह भरपूर नजरों से देखा आखिर लड़की के ऊपर हल्की सी मुस्कान आई और उसने आंखें नीची कर ली गर्दन रेत रेत में वह वेद परी लग रही थी अरे अभी तक हमने पूछा ही नहीं नाम क्या है तुम्हारा बूटा सिंह ने जानना चा जानना चाहा जैनी गांव मड़ियाल दाढ़ी जात हिंदू राजपूत धर्म मुसलमानी तुम उसके हाथ कैसे पड़ गई हर घर छोड़कर पाकिस्तान जा रहे थे हम घर छोड़कर पाकिस्तान जा रहे थे ।
वैसे तो हमारे घर में सब कुछ था हमारे अब्बा बटाई पर खेती करके आराम से रहते थे घर में गाय भैंस बैल थे हम गाय का गोश्त नहीं खाते भैंसिया बैल का भी नहीं सब आराम से चल रहा था फिर पाकिस्तान की लकीर खींची तो दाढ़ी में रहना मुश्किल हो गया गांव दाढ़ी के सब मुसलमान अपना सामान बांधकर उस लकीर के पार पहुंचने के लिए चल पड़े फिर भी समझ में नहीं आ रहा था कि हम अपनी दाढ़ी क्यों छोड़ रहे थे ऐसे झगड़े कहा सुनी और वहां चावल तो पहले भी होती रहते थे मैं कारवां से पीछे छूट गई तब उसने मुझे पकड़ लिया आज नंगा तिरंगा कर जैसे तैसे मैं उससे बचकर दौड़ी तभी तुम मुझे दिखाई दिए कहते कहते थे ।
परिजनों ने बूटा को एहसास भरी नजर से देखा बूटा सिंह ने उसे तब खामोशी से देखा सुबह हुई तो बूटा सिंह के भाइयों को पता चला कि उसके घर में कोई लड़की आ गई है तो गांव में बड़े बूढ़े ने सलाह दी बूटा सिंह अब या लड़की तुम्हारे घर आ गई है तो तुम इससे शादी कर लो उस समय बूटा सिंह 4 कोस दूर के बाजार से जाने के लिए कपड़े लेने जा रहा था। उसने चलते-चलते बड़े-बूढ़ से कहा—पहले उसके लिए कपड़े तो ले आऊँ. .......