भाई दूज, यम द्वितीया, चित्रगुप्त जयन्ती
कल यानी
कार्तिक शुक्ल द्वितीया – भाई दूज – जिसे यम
द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है का
पावन पर्व है | नेपाल में इसे भाई टीका कहते हैं | यम द्वितीया नाम के पीछे भी एक कथा है कि समस्त चराचर को सत्य नियमों में
आबद्ध करने वाले धर्मराज यम बहुत समय पश्चात अपनी बहन यमी से मिलने के लिए इसी दिन
गए थे | यमी अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई और उनकी ख़ूब
आवभगत की | बहन के स्नेह से प्रसन्न यमराज ने बहन से वर
माँगने के लिए कहा तो यमी ने दो वरदान माँगे – एक तो यह कि यह दिन भाई बहन के
प्रेम के लिए विख्यात हो और दूसरा यह कि इस दिन जो भाई बहन यमुना के जल में स्नान
करें वे आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाएँ | कहते हैं तभी से
ये प्रथा चली कि कार्तिक धुकल द्वितीया को सभी भाई अपनी बहनों के घर जाकर टीका
कराते हैं और अपनी दीर्घायु तथा सुख समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद लेते हैं |
एक कथा
एक वर्ग विशेष के साथ जुड़ी हुई है | माना जाता है कि आज के ही दिन
धर्मराज
यम के लेखाकार चित्रगुप्त का जन्मदिवस है | भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के लेखाकार माने
जाते हैं । मृत्यु जीवन का चरम सत्य है इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है | जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही
विधि का विधान है | चाहे कोई भगवान हों, ऋषि मुनि हों – कोई भी हों – जीवन के इस सत्य को कोई झुठला नहीं पाया |
सभी को निश्चित समय पर इस नश्वर शरीर का त्याग करना ही पड़ता है |
और यह भी एक सत्य है कि मरणोपरान्त क्या होता है यह एक रहस्य ही बना
हुआ है | गीता दर्शन के अनुसार तो इस शरीर का त्याग करते ही
आत्मा तुरन्त नवीन शरीर धारण कर लेती है:
वासांसि
जीर्णानि यथा विहाय, नवानि ग्रहणाति नरो
पराणि |
तथा
शरीराणि विहाय जीर्णान्यानि संयाति नवानि देही ||
किन्तु
ऐसी भी मान्यता है कि आत्मा किस शरीर में प्रविष्ट होगा अथवा किस लोक में जाएगा
इसका निश्चय उस “दूसरे” लोक में जाने के बाद ही होता है | पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मृत्युलोक के ऊपर एक दिव्य लोक है जहाँ न
जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक – वह लोक जीवन मृत्यु तथा समस्त प्रकार के
भावों से परे है | जीवात्मा को इस दिव्य लोक में जाना है
अथवा अपने किन्हीं संचित कर्मों का फल भोगने के लिए या किसी नवीन ज्ञान के अर्जन
के लिए पुनः पृथिवी पर वापस लौटना है इसका निर्णय धर्म और नियम संयम के देवता
यमराज के द्वारा किया जाता है | चित्रगुप्त को इन्हीं यमराज
का लेखाकार माना जाता है | गरुड़ पुराण में इस प्रकार के अनेक
सन्दर्भ उपलब्ध होते हैं | इन्हें महाशक्तिमान क्षत्रिय के
नाम से भी सम्बोधित किया जाता है | ऋग्वेद के एक मन्त्र में
चित्र नामक राजा का सन्दर्भ आया है जिन्हें चित्रगुप्त माना जाता है:
चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु |
पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ||
कहते हैं
सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की
कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल का प्रादुर्भाव हुआ जिस पर एक पुरूष आसीन था | क्योंकि इसकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के
उद्देश्य से हुई थी अत: इन्हें “ब्रह्मा” नाम दिया गया | इन्हीं
से सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गन्धर्व, किन्नर, अप्सराएँ, स्त्री-पुरूष,
पशु-पक्षी और समस्त प्रकृति का प्रादुर्भाव हुआ | बाद में इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा
प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को दण्ड देने का कार्य सौंपा गया था |
अब धर्मराज को अपने लिए एक लेखाकार सहयोगी की आवश्यकता हुई |
धर्मराज की इस माँग पर ब्रह्मा जी समाधिस्थ हो गये और एक हजार वर्ष
की तपस्या के बाद जब वे समाधि से बाहर आए तो उन्होंने अपने समक्ष एक तेजस्वी पुरुष
को खड़े पाया जिसने उन्हें बताया कि उन्हीं के शरीर से उसका जन्म हुआ है | तब ब्रह्मा जी ने उसे नाम दिया “चित्रगुप्त” | क्योंकि
इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये | कायस्थ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता अपने शरीर में स्थित | अपनी इन्द्रियों पर जिसका पूर्ण नियन्त्रण हो गया हो वह भी कायस्थ कहलाता
है |
भगवान
चित्रगुप्त एक कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार
न्याय प्राप्त होता है । आज के दिन धर्मराज यम और चित्रगुप्त की पूजा अर्चना करके
उनसे अपने दुष्कर्मों के लिए क्षमा याचना का भी विधान है |
जो
भी मान्यताएँ हों, जो भी किम्वदन्तियाँ हों,
यम द्वितीया यानी भाई दूज भाई बहन का एक स्नेह तथा उल्लासमय पर्व है
| इस उल्लास तथा स्नेहमय पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…
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