पंकज हमेशा अपनी ही चलाता है , किसी की भी नहीं सुनता ,सुमित्रा जी हमेशा ,एक उम्मीद के सहारे आगे बढ़ उसका समर्थन करतीं और कहतीं -पंकज ,अभी बच्चा है ,समझदार हो जायेगा ,तब सब समझने लगेगा ,कहना भी मानेगा किन्तु पंकज ने तो जैसे न सुनने की कसम खा ली है ,उनका इकलौता बेटा है ,माँ -बाप उसी में अपनी दुनिया देखते ,देखने और सुनने वाले सलाह देते ,इसे घर से निकाल बाहर करो ,जब बाहर सड़कों की धूल फांकेगा , अक्ल ठिकाने आएगी।
लोग तो कहकर ,अपनी सलाह देकर चले जाते हैं ,किन्तु जिस बच्चे को इतने लाड -प्यार से पाला ,उसे कैसे बाहर सड़कों कि धूल फाँकने भेज दें ,क्या उसे इसीलिए पाल -पोषकर बड़ा किया कि उसे निकाल बाहर करेंगे। ये सब किसके लिए जोड़ा और कमाया है ?इन आँखों ने पल -पल उसकी खुशियों के सपने देखे हैं। हमेशा उसके सुनहरे भविष्य के ख्वाब सजाये हैं। जो हमारी ''आँखों का तारा ''है ,हमारे'' दिल की धड़कन 'है। उस धड़कन को ,अपने ही हाथों से ,कैसे बंद कर दें ?हमेशा यही चिंता सताती रहती , कहीं किसी गलत सोहबत में न पड़ जाये किन्तु उसकी हरकतें मन को परेशान कर देतीं।
आज तो उसने हद ही कर दी , बिना खाना खाए ,घर से बाहर निकल गया ,मैं नहीं जानता ,माँ -बेटे में क्या बातचीत हुई ?किन्तु वो तो क्रोध में बाहर निकल गया और उसकी माँ उसके पीछे ,बेटा सुन तो जा...... किन्तु उसने एक नहीं सुनी। मैं बैठा अख़बार पढ़ रहा था ,मैंने अपनी पत्नी को समझाया -तुम उसकी आदत जानती हो ,तो क्यों उससे किसी भी तरह की उम्मीद लगाती हो ?
मैंने कोई उम्मीद नहीं लगाई ,मैं तो बस उसे समझा रही थी कि अपने जीवन को सही दिशा की ओर लेकर चले ,''जिरह करने लगा ,' आपकी दृष्टि में सही दिशा क्या है ? आपके विचारों के अनुकूल चलना ही क्या सही दिशा है ? आप उसे समझाइये !मुझे लगता है ,गुस्से में गया है ,कहीं वापस ही न आये ,कहते -कहते वो एक तरफ को लुढ़क गयी।
उसकी यह हालत देखकर मैं ,घबरा गया ,अख़बार एक तरफ रख ,मैं उसके करीब गया उसे पुकारा -सुमित्रा... सुमित्रा !उठो ,सुमित्रा !कहते हुए ,मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसे ले जाकर ,बिस्तर पर लिटाया और रसोईघर से पानी लेकर उसके मुंह पर छींटे मारे किन्तु वो होश में नहीं आई। डॉक्टर को फोन किया किन्तु फोन नहीं लग रहा था ,तब मैंने गाड़ी निकाली और हॉस्पिटल की तरफ चल दिया।
माता -पिता बच्चे को क्या इस दिन के लिए पैदा करते हैं ? ,दुःख देने के साथ -साथ किसी सहारे की कोई उम्मीद नहीं ,अब इस उम्र मैं अकेला ही ,सब कर रहा था। सुमित्रा को देखकर डॉक्टर ने बताया -इन्हें हल्के ''दिल के दौरे ''का अंदेशा है। अभी सभी टैस्ट हो जायेंगे ,तब पता चल जायेगा।
पंकज क्रोध में बाहर तो निकल गया किन्तु थोड़ा मन शांत हुआ सोचने लगा -हाथ में एक भी पैसा नहीं ,कुछ कार्य भी नहीं जानता ,ऐसे में कहाँ जाऊँगा ?फिर भी दोस्त के पास चल दिया ,दोस्त के घर के करीब ही पहुंचा था। किसी के बड़ी तेजी से चिल्लाने की आवाज आ रही थी।उसने एक तरफ कान लगाकर सुनने का प्रयास किया ,उनके पापा बहुत तेजी से डांट रहे थे और सामान भी इधर -उधर फ़ेंक रहे थे। मेरे मम्मी -पापा ने तो मुझसे कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया बल्कि मैं ही ,उन्हें कुछ न कुछ कह देता हूँ। क्या ये सब मैंने सही किया ?उसने आपने आप से प्रश्न किया। वो समझा ही तो रहीं थीं। हमेशा पापा से बचाती रहती हैं। वैसे तो पापा ने भी ,मुझसे आज तक इस तरह से कठोर व्यवहार नहीं किया। पता नहीं ,मुझे ही क्या हो जाता है ? शीघ्र ही भड़क जाता हूँ ,चलकर देखता हूँ , घर में क्या हो रहा है ?
घर पहुंचकर देखा तो ताला लगा है ,पड़ोसियों से पूछा -किन्तु उन्होंने भी अनभिग्यता जाहिर की ,एक ने बताया ,तुम्हारे पापा गाड़ी से गए हैं ,शायद , कुछ ग़ड़बड़ है ,तुम्हारी मम्मी पीछे बैठी नहीं लेटी थीं। इतना सुनते ही पंकज की हालत खराब हो गयी।
अब क्या करूं? किससे पूछूं ,कहाँ जाऊँ ? जो पता चल सके कि असल में हुआ क्या है ?उसने आव देखा न ताव दौड़ पड़ा ,नजदीक के ही हॉस्पिटल में , वहां जाकर पूछा -यहाँ कोई अभी नया मरीज भर्ती हुआ है ?
जी नाम बताइये ? सुमित्रा महाजन !
हाँ , इन्हें अभी भर्ती किया गया है।
क्या हुआ था ?उन्हें !
मुझे ,नहीं मालूम !डॉक्टर से बात कीजिये।
डॉक्टर अंकल को देखते ही ,वो समझ गया ,वो हमारे पारिवारिक डॉक्टर हैं ,पापा ,ने इन्हें ही बुलाया होगा।
अंकल नमस्ते !अरे तुम !यहाँ क्या कर रहे हो ?तुम्हारी मम्मी की हालत ख़राब हो गयी।
मम्मी को क्या हुआ ?अंकल !
तुम्हें पता है ,तुम्हारी मम्मी के दिल की धड़कन अचानक से बंद हो गयीं थीं ,वो तो तुम्हारे पापा ने 'उन्हें 'सी. पी. आर. 'दिया ,उन्हें मैंने ऐसी परिस्थिती में क्या करना है ?समझा रखा है ,वरना देरी हो जाती ,अब तुम यहाँ खड़े क्या कर रहे हो ?जाओ !तुम्हें उनके साथ होना चाहिए। शीघ्र ही वो बाहर आया और कमरा नंबर पूछा ,उस ओर दौड़ लगा दी। कमरे के बाहर आकर एकदम से कदम जैसे ठहर गए ,वो किस मुँह से उनके सामने जाये ?उसके कारण ही तो ,मम्मी की यही हालत हुई होगी। बाहर आहट सुनकर ,मैंने पुकारा -कौन है ?बाहर अंदर आओ !
अपराध बोध से भरा ,पंकज अंदर आया ,अपनी मम्मी की ये हालत देखकर उसकी रुलाई फूट पड़ी और रोने लगा ,दोनों पति -पत्नी ने एक -दूसरे को देखा। आज मैंने उसे समझाया ,तुम्हारी मम्मी तुमसे कितना प्यार करती है ?तुम उसके इकलौते बेटे हो ,तभी उन्होंने भूल सुधार किया और बोले -हर माता -पिता अपनी औलाद को प्यार करते हैं ,एक हो या दो ,यहाँ तुम्हारा प्यार बाँटने वाला भी कोई नहीं। तुम ही हम दोनों के ''दिल की धड़कन ''हो ,अब ऐसे में ,तुम गुस्से से बाहर निकल गए ,तब उस तनाव के कारण इनका ये हाल हुआ।
नहीं पापा !अब से मैं अपने को संभालने का प्रयास करूंगा ,पता नहीं क्यों ? मुझे क्रोध आ जाता है। आज मम्मी की हालत देखकर मैं बुरी तरह घबरा गया था। यदि मैं आप लोगों के दिल की धड़कन हूँ तो आप लोग मेरा ''दिल ''हैं।अपने बच्चे के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर ,हम दोनों मुस्कुरा दिए ,वही एक अच्छी शुरुआत की उम्मीद में।