🌹याद है आज भी मुझे
रेल का वह सफर
जब हम पहली बार गए थे
तुम्हारे साथ में।
🌹 हम तो बैठे थे सकुचाए से
कोने में बर्थ पर कहीं
और तुम थे के पढ़ रहे थे
अख़बार पास में।
🌹 हम बैठे बोर हो रहे थे
किसी कोने में यहां
और तुम मगन थे, रंग-बिरंगी
ख़बरों में वहां।
🌹तभी टीटी ने हमसे हंसते हुए
आकर ये कहा
क्या हम बैठ जाएं मोहतरमा
आपके पास में।
🌹मुस्कुरा कर हमने भी उनको
इशारा कर दिया
जैसे ही आए वो लेके फाइल
वहां पर बैठने,।
🌹 घबरा गए थे तुम फेंक कर
अख़बार को वहीं
बोले थे आकर हटिए जनाब
हम हैं इनके साथ में।
🌹 आज भी दुश्मन है मेरा
ये अख़बार ही दिखता नहीं
कुछ भी तुम्हें जब भी वो
होता है तुम्हारे हाथ में।
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स्वरचित रचना सय्यदा----✒️
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