🌹आक्रोश की जगह जो ,
आक्रोश दिखाते नहीं है,
मूक दर्शक होते हैं बस ,
और कुछ करते नहीं है।
🌹मुझे आक्रोश है उन्हीं पर
हां आक्रोश है उन्हीं पर,
हां मुझे आक्रोश..........!
🌹मुंह मोड़ लिया है जिन्होंने ,
सभी मसलों से समाज के,
मानवता को वो खो रहे हैं ,
आप-आप ही बस जी रहे हैैं
🌹वह पशु हो गए हैं! वह पशु
हो गए हैं! हां वह पशु हो गए हैं
वह पशु हो गए हैं..............!
🌹 मुझे आक्रोश है उन्हीं पर!
मुझे आक्रोश है उन्हीं पर
हां मुझे आक्रोश है..............!
स्वरचित रचना सय्यदा----✒️
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