कितना अविश्वसनीय है
आंधी,बारिश, और
धूप का खिलना....।
कितना अविश्वसनीय है
रात के बाद निश्चित ही
सुबह का होना.......।
कितना अविश्वसनीय है
एक इंसान में हज़ार रुपों
का होना.................।
कितना अविश्वसनीय है
किसी अनजान को ठीक
से समझना....!
सिर्फ मैसेज से बात होती
हो जहां और कभी न हो
मिलना..........।
कितना अविश्वसनीय है
उनका अपनों से भी ज़्यादा
अपना हो जाना..........।
जैसे रिश्ता हो कोई
बहुत ही दिल का क़रीबी
उनसे पुराना..........।
कितना अविश्वसनीय है
उनका एकाउंट को डिलीट
करके चले जाना.......।
ख़ाली डीपी से हटती नहीं
नज़रें, हम देखना चाहते हैं
फिर से चेहरा सुहाना.....।
स्वरचित रचना सय्यदा----✍️
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