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जो न खेले कभी मेरे एहसासो
जज़बात से बिन कहे वाकि़फ रहे
मेरे हालात से ,
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उदास हो के रोऊं मैं जब भी कभी
मुस्कुराहटों से भरदे वो मेरी ज़िन्दगी ,
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मुश्किलों में फंसे जाऊं, अगर मैं कभी,
राह में मिल जाए, वो मुझको तभी,
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गुम हो जाऊँ जो मैं कभी अपने आपमें,
वापस ले आए वो मुझको फिर जहाँन में
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आज़माइश में डालें जो हयाते ज़िन्दगी,
बस साथ देता रहे , वो मेरा हर एक घड़ी,
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रूठ भी जाऊँ जो मैं उससे कभी,
मंना ले आकर के, वो मुझको, तभी ,
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हंसता रहे वो, और कहे बस यही ,
अपनी है तू, दोस्त प्यारी बड़ी,प्यारी बड़ी,
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तेरे संग ही है, मेरी ज़िन्दगी, मेरी ज़िन्दगी,
हाँ, मेरी ज़िन्दगी, हाँ मेरी ज़िन्दगी------।
स्वरचित रचना
सय्यदा------✒
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