ख़त्म करो अब भयानक रातों की कहानी
दिल चाहता है हो अब खु़शियों की रवानी।
न छेड़ो बार-बार वही उस का क़िस्सा पुराना
दिल डरता है सोच कर अब उसका फसाना।
कैसे किसी मासूम ने संभाला होगा खुद को,
तेजाब से जलते हुए अपने जिस्म का छाला।
संवेदनाएं इस क़दर क्यों मर जाती हैं उनकी
किसी मासूम को बना लेते हैं हवस निवाला
रात होती नहीं है भयानक कोई भी जहान मे
न जाने कौन सा लम्हा उसे करदे भयानक।
मुजरिमो को कर देगा ख़त्म जब कोई जहां से
खुशियों भरा दिन होगा, होगा दिवाली नजा़रा
स्वरचित रचना सय्यदा----✒️
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