⚘जब भी देखती हूँ मैं आइने में कभी
लगती हूँ मैं उसको और भी हसीन,
⚘बारह वो कहता है मुझसे यही
मासूम हो तुम खूबसूरत सी कली
⚘परी हो या अपसरा हो कोई
जो मरते हैं तुम्हें देखकर के यहाँ
⚘उन्हें बता क्यों नहीं देती वक्त है सही
तुम मेरी हो मेरी हो मेरी हो जिन्दगी
⚘आइना हूँ मैं तेरा मुझे देखो तो सही
जो सच है , मैं तुमसे कहूँगा वही।
⚘जन्म जन्म का है साथ तुम्हारा मेरा
तुम मेरी हो! मेरी हो! मेरी हो! जिन्दगी।
स्वरचित रचना सय्यदा-----✒
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