ब्याह के किसी की लख़्ते जिगर को
वह कमीना इस क़दर पीट रहा है।
🙇 बूढ़े हैं मां-बाप सह न पायेंगे
सोचकर मासूम ने सब्र किया है
🙇रुकते नहीं आंसू देख ये नजा़रा
क्यों दुनिया को चाहिए दहेज का पिटारा
🙇कुचल दूं जाकर फन उसका उसी वक्त
खा़तून दिल है कि बस जल रहा है।
घरेलू हिंसा की वारदातें आजकलबढती जा रही है एक आदमी ने अपनी पत्नी को दूसरी बेटी को जन्म देने पर मार डाला,,, एक सास ने अपनी बहू को छोटी सी बात पर घर में जलाकर मार दिया,,, दहेज कम लाने पर ससुराल वालों ने बहू को मार-मार कर अधमरा कर दिया आए दिन इस तरह की खबरें न्यूज़ चैनल पर जोर शोर के साथ सुनाई जाती है,,, सुनकर मन विचलित हो जाता है
आए दिन हमारी समाज की महिलाएं किसी ना किसी रूप में घरेलू हिंसा की शिकार होती रहती है,,,,,बड़े ही दुख के साथ लिखना पड़ता है,,,,, यह समस्या अनपढ़ और गांवर लोगों की नहीं है ,,,,,आज सभ्य समाज में भी यह समस्या अपनी जड़े जमा चुकी है,,,,, कभी बेटियों की मां के रूप में,,,,,, कभी पत्नी के रूप में,,,,, तो कभी बहन और बेटी के रूप में उसे घरेलू हिंसा का शिकार बनाया जाता है,,,,।
कुछ परिवारों की स्थिति इतनी ख़राब है किसी भी तरहां से जब उन्हें पता चलता है कि उनके घर बेटी होने वाली है तो उनका बस नहीं चलता कि वह किसी न किसी रूप में बहू को ही मार डाले,,,,,
कभी पति हाथ उठाता है पत्नी पर ,,,,, तो कभी भाई उसको जीने नहीं देता,,,,, कभी बाप बन कर कोई बेटी को सताता है,,,, तो कभी रिश्तेदार बनकर,,, कभी औरत इसका विरोध कर देती है,,,,, कभी कानून का सहारा लेती है ,,,,,, और कभी परिस्थितियों वश चुपचाप घरेलू हिंसा को बर्दाश्त करती रहती है,,,,,।
पर किसी ना किसी रूप में घरेलू हिंसा महिलाओं को जीने नहीं देती,,,, आज़ादी की तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें होती हैं औरतों के लिए क्या औरत सचमुच में आज़ाद है,,,, यह सवाल मैं आज आपसे पूछती हूं,,, आज़ादी तो बहुत दूर की बात है वह अपने ही घर में चैन की सांस तक नहीं ले पातीं,,, तिल तिल मरती रहती है,,, और सहती रहती है,, घरेलू हिंसा,,,
कुछ प्रतिशत महिलाओं को छोड़कर अधिकतर महिलाएं हिंसा की शिकार होती हैं,,, कभी चुप हो जाती हैं तो कभी विरोध कर लेती हैं,,,,, ।
जब तक वह कानून से मदद लेती है उनकी हिम्मत,,,, उनका हौसला,,,,, मदद मांगते- मांगते दम तोड़ देता है,,,,,।
आखिउर उनकी सुनता ही कौन है,,, दबंगों की दबंगई ही चलती है सब तरफ,,,।
मैं अपील करती हूं उन सभी महिलाओं से जो घरेलू हिंसा की शिकार हैं,,मत सहन करो हिंसा,,, आवाज़ उठाओ विरोध करो,,, इस तरहां तिल-तिल मरने से अच्छा है हिंसक का विरोध करो,,,, एक दिन आपकी आवाज रंग लाएगी,,,
किसी की लिखी हुई यह पंक्तियां हैं,,,
जिंदा रहकर न यूं रोज़-रोज़ मरो ,
मौत की तो दवा नहीं है मुमकिन
पर जिंदगी का तो कुछ इलाज करो
सहना अब बंद भी करो,,,वरना कितने कानून बना लिए जाएं,,, सब बेकार है,,,, उसका लाभ कुछ ही लोग उठा पाते हैं कमज़ोर की आवाज हमेशा दबा दी जाती है,,,।
कभी परिस्थितियां ऐसी हो जाती है कि वह हिंसा को सह जाती है,,,,उन लोगों की खा़तिर जो उसके लिए ही जिंदा है,, और हिंसक समझते हैं उसके सहने को उसकी कमजोरी,,,
तेरे ज़ुल्मो सितम सह जाती हूं ये सोच कर
घर में कमजोशर अकेली एक मां है बेचारी री
मर जाए ना कहीं वह तकलीफ मेरी सुन कर
नादान है तू समझता है सहना कमजोरी है मेरी
घरेलू हिंसा रोकने के लिए नियमों की नहीं जागरूकता की आवश्यकता है,,, आख़िर कब होंगे हम जागरूक और कब रुकेगी यह घरेलू हिंसा,,,,
सय्यदा खा़तून ✍️
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