कोई उनको जाकर दे आए यह ख़बर
आज आ जाएं मिलने वो हमसे शाम में
याद करते हैं उनको अब दिनों रात हम
किसे पता था एक दिन ऐसा भी आएगा
मेरे विरान दिल में वह आके बस जाएगा
जुदाई ने उसकी हमको परेशान कर दिया
आंखें बिछा रखी है हमने तो इंतज़ार में
मुझे भी साथ ले चलो तुम अपने साथ में
खट्टी मीठी बातें थीं वो बस दिल पे ले गया
समझाओ उसको भूल जा मजा़क समझ के
किसे पता था की एक दिन ऐसा आएगा
बुलाने उसको कोई मेरी तरफ से जाएगा
इतनी सी बात का उसने पतंगड़ बना दिया,
कहा था मैंने नहीं रहना है मुझको गांव में
गांव की शाम भी, क्या शाम है मुक़ाबले
यहां के उजड़ा हुआ जंगल बियाबान है।
मच्छरों की फौज आ गई थी लड़ने के लिए
पंखा लेकर घूमना पड़ता था झलने के लिए।
दोस्तों बस एक बार गई थी इनके गांव में
जैसे तैसे घूंघट काढ़े घुसी थी मैं रसोई में।
तभी कहा था ले आओ अपनी अम्मा को तुम
इसी शहर में, मैं नहीं जाऊंगी तुम्हारे गांव में।
नहीं आऊंगा लेने तुझको कभी भी शहर में
रहना है तो रह आकर इसी गांव में,,,, इसी,,,।
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क्या करूं साथियों,,,,,?
स्वरचित रचना सय्यदा खा़तून ✍️
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