पूर्णिमा जी ,की अब उम्र हो चली है ,आँखों पर चश्मा भी चढ़ गया है। अब वो आराम चाहती हैं ,बहुत सालों से उत्तरदायित्वों के चलते ,शिक्षिका के पद पर कार्यरत रहीं। बहुत से बच्चोंको पढ़ाया ,उनकी ज़िंदगी में न जाने कितने बैच आये और चले गए ?वो विज्ञान की अच्छी शिक्षिका रही थीं ,उनसे बच्चे घर पर भी पढ़ने आ जाते थे। अब तो स्वयं उनके बच्चे भी ,शिक्षा ग्रहण करके ,बाहर कमाने निकल गए। अब इस घर में ,दोनों पति -पत्नी ही साथ में रहते हैं। स्कूल छोड़े इतने वर्ष हो गए ,कुछ बच्चे अभी भी स्मरण हैं और कुछ को समय ने भुला दिए। आज अचानक उनके घर के दरवाजे के सामने, एक बड़ी सी गाड़ी आकर खड़ी होती है। मौहल्ले वालों के कान खड़े हो जाते हो जाते हैं कि मामूली शिक्षिका के घर पर आज ये कौन आ गया है ?
गाड़ी से एक ,सुंदर ,सजीला नौजवान बाहर निकलता है ,उसके हाथ में ,फूलों का गुच्छा था ,वह किसी से पूछता है ,क्या पूर्णिमा मैडम !का घर यही है ?
जी ,एक पड़ोसी ने जबाब देने के साथ प्रश्न भी पूछ ही लिया ,भइया !कौन हो ?
उसके इस प्रश्न पर वह मुस्कुराया और बड़ी शालीनता से बोला -उनका एक छात्र !कहकर आगे बढ़ गया।
उसके पीछे शायद उसका कोई नौकर जो बहुत सारे उपहार लेकर गाड़ी से निकल रहा था। उस व्यक्ति ने दरवाजे की घंटी बजाई। अभी आती हूँ ,कहते हुए वो कुर्सी से उठकर जाने लगीं ,उनके पति रसोई में चाय बना रहे थे ,रसोई से बाहर आये और दो कप चाय लेकर आये और मेज पर रखते हुए बोले -तुम बैठो !मैं खोलकर आता हूँ। जब उन्होंने दरवाजा खोला ,कोई अनजान व्यक्ति उनके दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था। जी कहिये !
पूर्णिमा मैम !
हाँ ,यहीं हैं ,आइये कहते हुए ,उन्होंने उस व्यक्ति को अंदर जाने के लिए रास्ता दे दिया।
अंदर आकर उसने ,पूर्णिमा जी को देखा ,और आगे बढ़कर पैर छू लिए ,पूर्णिमा ने उस व्यक्ति को गौर से देखा और पूछा -कौन हो ?
मैडम !आपने मुझे पहचाना नहीं ,मैं शरद !
न जाने कितने विद्यार्थी पढ़कर निकले ,कुछ स्मरण नहीं हो रहा था ।
मैम ! याद कीजिये ! दो हज़ार का बैच ,''पीछे की बैंच ''पर बैठने वाला सहमा और डरा -डरा सा शरद !उसने अपना परिचय स्वयं दिया।
जिसके कारण पूर्णिमा जी मुस्कुरा दीं ,क्या तुम वही शरद हो ?
जी , याद आया।
हाँ आओ !बैठो ! अब तुम क्या कर रहे हो ?उनकी स्मृतियाँ धीरे -धीरे लौट रहीं थीं ,उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था ,क्या ये वही शरद है ?तब तक उसके नौकर ने सभी उपहार एक मेज पर सजा दिए थे। उधर देखते हुए बोलीं -इन सबकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
ये आपके छात्र का ,आपके प्रति स्नेह है। उसके ये शब्द सुनकर उनकी आँखें नम हो गयीं। आजकल कौन किसी को याद रखता है ?इतने विद्यार्थियों को पढ़ाया ,कभी सामने दिख भी गए तो अनजान बन निकल जाते हैं। नमस्ते !तक नहीं निकलती ,कुछ कह भी दें किन्तु बचकर निकलने में भलाई समझते हैं। गुरु के प्रति वो आदर भाव नजर नहीं आता और ये शरद !!!तुमने बताया नहीं ,आज अपनी मैडम की कैसे याद आ गयी ?और क्या कर रहे हो ?
मैं आजकल सरकारी पद पर एक बड़े अधिकारी के रूप में कार्यरत हूँ ,इधर आना हुआ तो आपकी याद इधर खींच लाई। ऐसा सौभाग्य फिर कहाँ मिलेगा ?यही सोचकर मिलने चला आया ,उसके शब्दों में जो सम्मान वो अपने लिए महसूस कर रहीं थीं ,उससे उनका मन गदगद हो उठा। तब तक उनके पति दो कप चाय और ले आये थे। सर !इसकी क्या आवश्ययकता थी ?शरद बोला।
अपनी मैडम ,से मिलने आये हो ,क्या ऐसे ही चले जाओगे ,वैसे मैं अपना परिचय दे देता हूँ ,मैं पूर्णिमा का पति' विशाल' हूँ ,जो पहले कभी अभियंता के पद पर आसीन था किन्तु सेवानिवृत्ति के पश्चात ,आजकल आपकी मैडम की सेवा में व्यस्त हूँ क्योंकि आजकल ये घुटनों के दर्द से जूझ रहीं हैं। शरद को अपनी गलती का एहसास हुआ और उठकर उनके चरण स्पर्श किये। नहीं ,बेटा ! इसकी कोई आवश्यकता नहीं ,तुमने इन्हें स्मरण रक्खा , यही बहुत है।
आप तो मेरे जीते जी ,मुझे स्मरण रहेंगी ,इन्होने ही तो मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया ,मुझे इस जीवन के प्रति जागरूक बनाया। चाय पीकर बोला -अच्छा ,अब मैं चलता हूँ ,कहते हुए ,एक नंबर देता है और कहता है -ये मेरे एक दोस्त का नंबर है ,जो हड्डियों का विशेषज्ञ है ,आप मेरा नाम लेकर मैडम को दिखाइए ,वह अच्छा डॉक्टर है ,वह इन्हें ठीक कर देगा। ईश्वर ने चाहा ,तो मैडम को इस दर्द से आराम मिल जायेगा। कहकर वो चला गया।
तुम्हारा यह कौन सा विद्यार्थी है? जो तुम्हें इतना मान दे रहा था , विशाल ने पूर्णिमा से पूछा।
आज उसे देखकर मेरी यादें ताजा हो गई, मुस्कुराते हुए ,वह कुछ साल पहले, की यादों में खो गईं । इसे देखकर तो यकीन ही नहीं हो रहा कि यह वही लड़का होगा , आश्चर्य से बोलीं। कक्षा में सबसे दुबला सा था, चुप -चुप सा रहता था। जब पहली बार कक्षा में आया तो ,बेंच पर सबसे आगे बैठा, किंतु उस कक्षा में ऐसे छात्र भी थे, जो अकड़ में रहते थे और हमेशा से ही आगे की सीट पर अपना अधिकार समझते थे। नया छात्र था, किसी ने उसका परिचय जानना नहीं चाहा और , उसे धीरे-धीरे खिसकाकर पीछे की बेंच पर बैठा दिया। शुरुआत में तो मेरा भी ध्यान, इस ओर नहीं गया किंतु मेरी नज़रें धीरे-धीरे, महसूस करने लगी, कि यह विद्यार्थी पढ़ने में अच्छा है, किंतु कुछ डरा सा रहता है। शायद शरीर से कमजोर है, धीरे-धीरे मैंने इससे बात की जानने का प्रयास किया। तब पता चला, कि इसके माता-पिता का ,आपस में झगड़ा होता रहता है ? दोनों को ही ,इसकी परवाह नहीं है। अपने अहम के लिए लड़ते रहते हैं, इसके कारण इसकी शिक्षा पर भी असर पड़ रहा है, और इसकी परवरिश पर भी। तब मैंने धीरे-धीरे इसको समझाया था -''यह जीवन है, इसमें ऐसी बहुत सी बाधाएं आएंगीं। मम्मी -पापा का अपना अलग जीवन है। हालांकि तुम उसी घर में रहते हो, यदि तुम अपनी ज़िंदगी को संवारना चाहते हो , तुम्हें अपने जीवन का एक उद्देश्य बना लेना चाहिए ,तुम्हारी शिक्षा पर तो वे पैसा खर्च कर रहे हैं, इसका लाभ उठाइए , बेंच आगे की हो या पीछे की ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारी अपनी बुद्धि है, इसका दुरुपयोग की जगह सदुपयोग करो !उसको अच्छे कार्यों में लगाओ ! और धीरे-धीरे देखो ! जिंदगी कैसे निखरती चली जाएगी ? उसने मेरी बातों को ग्रहण किया हम तो गुरु हैं हमारा कार्य है ,सभी को सही और उचित सलाह देना। हमारे लिए तो सभी छात्र बराबर होते हैं, किंतु कुछ छात्र, अपनी एक विशेष जगह बना लेते हैं , उनमें से' शरद 'भी एक था। जो शिक्षा हम उन छात्रों को देते हैं, सभी उस शिक्षा को दिल से, ग्रहण नहीं करते, न ही ,हमारे बताएं रास्ते पर चलते हैं। किंतु यह छात्र ऐसा था, इसने मेरी बातों को समझा ग्रहण किया और अपनाया भी , आज उसका परिणाम आपके सामने है ,कह कर वह गर्व से मुस्कुरा उठीं और विशाल जी से बोली-बताइए ! कब चलना है ?डॉक्टर के पास।