आज दीपक की बिटिया का विवाह है। सब कुछ सही समय पर ठीक -ठाक चल रहा है। कुछ दिन पहले दीपक की हालत देखने लायक थी।' बहनजी' आईं थीं ,रिश्ता लेकर,उनके किसी जानने वाले का बेटा था। उनका परिवार और वो लड़का भी हमें पसंद आ गया। तब भी दीपक परेशान था ,लड़के वाले देखने आ रहे हैं। सब कैसे होगा ?बहनजी ,ने हिम्मत बंधाई कि सब ठीक ही होगा। थोड़ा सा ही काम था, सही तरीके से निपट गया। विवाह तय हो गया। जैसे-जैसे दिन नजदीक आते जा रहे थे ,उसकी बेचैनी बढ़ती
जा रही थी। कैसे होगा, सब ?यही प्रश्न बार -बार उसके दिमाग में घूम रहे थे। लड़की के लिये जेवर खरीदने ,कपड़ों की खरीददारी इत्यादि। छोटे -मोटे कार्यक्रम की तैयारी में ही सारा घर अस्त -व्यस्त हो जाता है,ये तो फिर भी विवाह है। ससुराल वालों को देने वाले उपहार भी तैयार करने हैं अभी वो ये सब सोचकर कामों की एक सूची बना ही रहा था कि तभी संजू का फोन आया -उसने फोन उठाया ही था कि उधर से आवाज आई -हाँ भई !सुना है ,बिटिया का विवाह है ,दोस्तों को भूल गया क्या ?दीपक ने अपनी बेचैनी छिपाते हुए कहा -कहाँ भूल गया ?लेकिन... अभी वो इतना ही कह पाया था। उधर से आवाज आई -हमारे लायक कोई सेवा हो तो ,बताना।पहले तो दीपक ने सोचा,- कि ये क्या मदद कर सकता है ?फिर सोचा ,शायद कोई मदद हो ही जाये। बोला -वैसे तो हमारे घर की गृहणियाँ सुघड़ होती ही हैं ,जब घर में बेटी होती है ,तो तभी से थोड़ा -थोड़ा जोड़ना आरम्भ कर देती हैं। लेकिन समयानुसार कुछ चीजें लेनी पड़ती हैं। तभी तो पूछ रहा हूँ, हमारे लायक कोई सेवा हो तो बताना ,बिटिया सिर्फ़ तुम्हारी ही नहीं ,हमारी भी है। उधर से संजू की आवाज आई। दीपक बोला -मेरी भी सुनेगा ,अपनी ही चलाता रहेगा। मैं अभी परेशान हूँ खरीददारी को लेकर ,अभी कपड़े और गहने भी लेने हैं ,बस इन्हीं समस्याओं में उलझा हूँ कोई सही सी जगह बता दे , वहॉँ जाकर सही दामों में काम हो जाये, इधर -उधर भटकना भी न पड़े। दीपक की बात सुनकर संजू बोला --बस इतनी सी बात ,मेरे जानने वाले एक मित्र हैं ,उनके यहाँ गहनों के डिजाइन भी एक से एक मिलेंगे। मैं उनसे बोल दूंगा, मुझे समय भी बता देना ,कब जा रहे हो ?मैं भी वहाँ पहुँच जाऊंगा ,और समस्या बताओ संजू ने पूछा। दीपक मन ही मन खुश होता हुआ बोला -कपड़ों लिए कहाँ जायें ,गुरुदेव ?मैं तुझे एक नंबर दूंगा उस पर बात करना ये समस्या भी दूर हो जायेगी। अनौपचारिक होते हुए संजू बोला -तू तो हमें भूल ही गया लेकिन हम आज भी तेरे दोस्त हैं और कोई परेशानी हो तो बताना। सुनार का पता और नंबर देकर संजू ने फोन रख दिया।
अगले दिन सब लोग मिल-जुलकर संजू के बताये शोरूम में गए और उनकी मनपसंद सभी चीजें मिल गयीं। अब उनके साथ संजू भी था ,वो उनको लेकर 'वस्त्र भंडार 'में पहुंचा। दीपक शंका में बोला -यहाँ क्या सही कपड़े मिलते हैं ?तू चल तो सही। वे किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसके साथ हो लिए। दुकान बहुत ही बड़ी और शानदार थी। संजू ने उन्हें वहाँ रखी बेंच पर बिठाया बोला -साड़ी ,सूट ,लहंगा जो पसंद करना है कर लो। दीपक ने महसूस किया कि संजू बड़े अधिकार से उस दुकान में घुसा, उसे देखकर वहाँ बैठे लोग भी मुस्कुराये। दीपक ने सोचा -शायद ये पहले भी यहाँ आया हो ,इसीलिए यहाँ के लोग इसे जानते हों। तभी पत्नी ने आवाज लगाई -वो सब सामान देखने लगा ,जो उसकी पत्नी व बेटी ने पसंद किया। देखने- दिखाने में लगभग दो -तीन घंटे बीत गए। इस बीच उनके लिए चाय भी आई। इस समय के दौरान उन्हें संजू का ध्यान ही नहीं रहा ,जब सारी चीजें तय हो गयीं ,तब उन्होंने इधर -उधर देखा। वहाँ बैठे लोगों से पूछा -यहाँ जो हमारे साथ सज्जन थे, कहाँ गए ?उन्होंने ऊपर की तरफ इशारा किया। सारे ऊपर कॉउंटर की तरफ गए ,तो दीपक एकदम से चौंक गया ,आश्चर्य से बोला -गौरव तू ,ये तेरी दुकान है ,संजू भी वहीं बैठा -बैठा मुस्कुरा रहा था। दोस्तों से मिलकर दीपक बहुत ही खुश थे सबने साथ मिलकर एक रेस्टोरंट में खाना खाया। दीपक को लग रहा था जैसे उसकी परेशानियाँ आधे से ज्यादा खत्म हो गयी हों। मन ही मन सोच रहा था कि अपने घर -परिवार में इतना व्यस्त रहा कि मुझे मालूम ही नहीं ,कौन सा दोस्त कहाँ पर है ?एक -दो को छोड़कर। अभी वो ये ही सब सोच रहा था। तभी गौरव बोला -मंडप वगैरह सब करा लिया। दीपक बोला -वो तो मेरे बेटे के दोस्त के पिता का है ,वहीं इंतजाम हो गया। खा -पीकर लौटते समय दीपक ने अपनी पत्नी से कहा --देखा ,दोस्ती का असर,तुम कहती थीं -मुझे, तुम्हारे आवारा दोस्त पसंद नहीं। तब बेचारे अपनी -अपनी जिंदगी में उलझे हुए थे। कोई नौकरी की तलाश में था ,कोई तैयारी कर रहा था। मेरे पास थोड़ी देर के लिए आ जाते तो वो तुम्हें पसंद नहीं आता था। धीरे -धीरे तुमने मुझे मेरे सारे दोस्तों से अलग करवा दिया। आज दीपक दोस्तों से मिलने के कारण और उसकी परेशानियों के हल हो जाने के कारण अपने को बहुत ही हल्का महसूस कर रहा था। आज उसकी बातों को सुनकर और दीपक के दोस्तों का व्यवहार देखकर प्रभा मन ही मन शर्मिंदा थी। उसे लगता था कि दीपक के दोस्त अपने मतलब के लिए यहाँ आते हैं ,उससे पैसा ऐंठने ,लेकिन आज उसे अपनी सोच पर दुःख हो रहा था कि सभी लोग हमारी सोच जैसे भी नहीं होते, तभी उसने चलते समय दबी सी आवाज में उसके दोस्तों से कहा भी था -भइया !अपने ही घर की शादी समझना परिवार के साथ सब लोग आना।
सुगंधा के विवाह में सब दोस्त अपने -अपने परिवार के साथ तैयार खड़े थे। किसी भी तरह की परेशानी को हाथों हाथ संभाल लिया। आख़िर वो समय भी आ गया, जब बेटी विदा होकर अपने घर चली गयी। बेटी विदा हुई तो मन उदास था। रिश्तेदार और दोस्त भी जाने की तैयारी करने लगे। तभी दीपक ने दोस्तों को रूकने का इशारा किया। सब रातभर के थके थे। दीपक ने चाय मंगवा ली, बोला -- दोस्तों के साथ बैठकर अच्छा लग रहा है। सब घर -गृहस्थी में फंसकर एक दूसरे को भूल गए। पता ही नहीं था, कि कौन ,कहाँ है ?सुनील से ही मुझे सबका फोन नंबर मिला ,आज एक दो को छोड़कर सभी दोस्त यहाँ हैं। बेटी के जाने का दुःख है तो दोस्तों से मिलने की ख़ुशी भी है। मैं कभी भी याद करता था तो किसी का नंबर नहीं ,बस संजू को छोड़कर। मैं सोचता, सारे दोस्त भूल गए ,उन्होंने भी पता लगाने का प्रयत्न नहीं किया। तभी गौरव बोला -हम भी तो यही सोचते थे। तभी दीपक की पत्नी मिठाई लेकर आई और बोली -भुला कोई नहीं था ,बस अपनी -अपनी घर गृहस्थी में उलझ गए थे ,जो अपने मित्र या रिश्तेदार होते हैं जिनके साथ बचपन बिताया हो ,उसे भला कोई कैसे भुला सकता है ?देर -सवेर उनके साथ बिताये क्षण याद आ ही जाते हैं। जिस कारण नई ऊर्जा के साथ ,अपने बिताये क्षणों को याद कर ,दूर रहकर भी दोस्ती आज भी जिन्दा है। बस एक बहाना चाहिए था सो मिल गया। प्रभा की बातें सुनकर सब मुस्कुराते हुए मिठाई खाने लगे।