आज कबीर बहुत फूट कर रोया , उसे अपने किए पर पछतावा था। अपनी मां की गोद में सिर रखकर बहुत देर तक रोता रहा, पछतावा करता रहा ,मैंने अपनी मां को कितने कष्ट दिए हैं ? कभी सोचा ही नहीं, उस पर क्या बीतती होगी ? मुझे माफ कर दे ,माँ ! जैसे-जैसे सुलोचना कहती रही, बस उसकी बातों पर विश्वास करके, वह आगे बढ़ता रहा। सुलोचना से भी तो मां ने ही मिलवाया था। कितना खुश होकर उसे घर लेकर आई थी ?वह कितनी खुश थी ?कि मेरे बेटे की बहू आ रही है ,उसके लिए कभी सोने के जेवर लाती कभी साड़ियां खरीदती कितने अरमानों से उसे लेकर आई थी ?
शुरू- शुरू में तो ,वह भी बहुत अच्छा व्यवहार करती थी, मेरी तो ,जैसे जिंदगी सफल हो गई थी। जैसा वह कहती मां वैसा ही कर देती ,तब उसे कोई आपत्ति नहीं थी किंतु जब मां ने उससे काम करने के लिए कहा अपनी जिम्मेदारियां को संभालने के लिए कहा - तब माँ उसे बुरी लगने लगी। जब तक मां उसे बनाकर खिलाती रही ,तब तक मां अच्छी लगती रही और जैसे ही, मां ने उसे घर के काम और सामान संभालने के लिए कहा।
सुलोचना प्रतिदिन मेरे सामने, नए-नए दुखड़े रोती। मैं हैरान था ,अचानक मां को क्या होता जा रहा है ? जो माँ इतने दिनों से , हंस हंस कर खुश होते हुए कार्य कर रही थी अचानक वह मां इतनी बुरी कैसे हो गई ?
अक्सर में माँ से पूछता -मां कोई परेशानी तो नहीं है ,तो मुझे मना कर देतीं। कहती -'मैं सब संभाल लूंगी तू बेफिक्र रह , तू अपना कार्य देख किंतु अक्सर सुलोचना मां की शिकायतें करती ही रहती। अब धीरे-धीरे माँ पर मुझे भी शक होने लगा। जब मैं सुलोचना से कहता- कि मेरे सामने तो माँ , ऐसा कोई भी गलत व्यवहार नहीं करती है।
तब सुलोचना ने बताया-आपके जाने के बाद ,मुझसे सारा काम कराती है , और अपने आप आराम से बैठी रहती है। मैंने कहा भी ,यह तो कोई बात नहीं हुई। जब तुम नहीं आई थीं , तब माँ भी तो अकेली ही काम करती थीं। उनकी तरह तुम भी ,घर संभालो !
कबीर की बात सुनकर सुलोचना भड़क गई और बोली -क्या मैं इस घर में काम करने के लिए आई हूं ,मैं क्या नौकरानी हूं ?ना ही ,मुझसे इतना सारा काम होता है। कबीर समझ रहा था, कि सुलोचना काम करने से बचती है और मां चाहती है कि वह अपनी जिम्मेदारियां को समय से ही समझ ले।
कुछ समय पश्चात मैं एक बेटे का बाप बन गया। अब माँ पर तन्मय की जिम्मेदारी रहती , घर के कार्य पहले की तरह बख़ूबी संभाला। मां ने इतनी मेहनत से उसे पाला -पोसा, सुलोचना के भी कई कार्य किये।
जब सुलोचना थोड़ी ठीक हुई तो ,उसका फिर से वही रोना हो गया। आये दिन, उसको कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती। शाम को माँ तन्मय को लेकर बगीचे में घूमाने ले जाती थी और सुलोचना घर में आराम करती थी। एक दिन न जाने कैसे ,तन्मय गुम हो गया ? बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिला। मां घबराती हुई ,घर पर आईं और बोलीं -तन्मय न जाने कहां खो गया ?
मम्मी जी !यह सब आपकी लापरवाही का नतीजा है ,जो आपने मेरे बेटे को खो दिया सुलोचना उनसे चिल्ला कर बोली।
उस दिन तो मुझे भी ,माँ पर क्रोध आ गया था , बाहर घूमने गईं ,क्या इतना भी, एक बच्चे का ख्याल नहीं रख सकती थीं ।
मां ने अपनी बात रखी, कि मैं तो वही थी न जाने ,अचानक से कहां गायब हो गया ? मैंने आसपास भी बहुत ढूंढा। पता नहीं कैसे ?आंखों से ओझल हो गया। क्या मैं तुम्हें नहीं पाला था ?
कहां ,क्या गायब हो गया ?यह सब आपकी लापरवाही है और क्या सारा दिन मुझसे या काम करवाती रहती हैं। मेरा बेटा , न जाने कहां खो गया ?कहकर वह रोने लगी।
उस घर की चिक- चिक से मैं तंग आ चुका था कुछ मैं, अपने बच्चे के खो जाने के कारण ,परेशान था। मैं मां पर चिल्ला उठा-मैं आपकी हरकतों से तंग आ चुका हूं ,आप कहीं चली क्यों नहीं जातीं ? थोड़े दिन हमें भी चैन से रहने दीजिए , जब से पापा गए हैं, तब से हमारी'' नाक में दम ''किया हुआ है और मैं तन्मय को ढूंढने बाहर चला गया। बगीचे के आसपास लोगों से पूछा ,गलियों में पूछा, तब मैंने देखा कि एक पुलिस वाला तन्मय को लेकर आ रहा है।
तब उस पुलिस वाले ने बताया -कि यह बच्चा एक गुब्बारे वाले के पीछे-पीछे जा रहा था ,मुझे कुछ शक हुआ ,तब मैंने गुब्बारे वाले से पूछा-क्या यह तुम्हारे साथ है ? पहले तो उसने हां कहा किंतु जब मैं उसे डांट कर पूछा तो उसने कह दिया- कि मैं इसे नहीं जानता। तब मैंने इससे पूछा , तुम्हारा घर कहां है ? इसे तो कुछ भी जानकारी नहीं थी किंतु जो बातें इसकी दादी इसे समझती और सुनाती थी ,उसके आधार पर हमने अंदाजा लगाया और जब इसने हमें' तिरंगा पार्क' का नाम बताया। वह' तिरंगा पार्क 'में अपनी दादी के साथ खेलने आता है। तब हम लोग इसे लेकर इधर आ गए।
यह आपने बहुत ही अच्छा किया, खुश होते हुए ,कबीर बोला-उसका बेटा मिल गया , इससे बड़ी ख़ुशी उसके लिए और क्या होगी ? उसने उस पुलिस वाले को,''धन्यवाद ''के रूप में , एक मिठाई का डिब्बा खरीद कर भी दिया। हालांकि वह मना कर रहा था, कि यह तो हमारा कर्तव्य है ,किंतु तब भी कबीर ने अपनी खुशी के लिए, उसे वह डिब्बा दे दिया। खुशी-खुशी कबीर, घर आ गया और उसने घर आकर सारी बातें बताईं । आज उसे एहसास हुआ कि मां ने खेल ही खेल में ,मेरे बेटे को क्या-क्या सीख दिया ? यदि माँ की दी, शिक्षा काम न आती तो तन्मय का मिलना मुश्किल था। यही बात अपनी मां को भी बताना चाहता था कि आपके कारण ही आज यह वापस अपने घर आ गया। उसने सुलोचना से पूछा -कि माँ नहीं दिख रहीं , कहां है ?
मुझे नहीं मालूम , और अपने बेटे को प्यार करने लगी।
कबीर ने अपनी मां को घर में ,हर जगह ढूंढा किंतु माँ कहीं दिखलाई नहीं दी। अब उसे अपने शब्दों का आभास हुआ, कि उसने किस तरह ,अपनी मां से कितने कठोर शब्द कहे थे ? कहीं मां को बुरा तो नहीं लग गया। पता नहीं ,कहां चली गईं , अंधेरा भी होने वाला है ,आसपास हर जगह ढूंढ लिया लेकिन माँ नहीं मिली, हताश होकर, पुलिस से मदद मांगी ,पहले तो पुलिस वालों ने, उसे टालना चाहा-और कहा हो सकता है ,इधर-उधर गई हों , कहीं रिश्तेदारी में या कहीं और, आप आसपास पूछ लीजिए। रात्रि का समय था, किंतु उसके कहने पर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर ली ,निराश वह घर आ गया। आज छह माह पश्चात, उसे अपनी मां , एक'' वृद्ध आश्रम'' में दिखलाई दीं , जब वह अपने दोस्त के साथ, उस वृद्ध आश्रम में गया था वहां अपनी मां को देखकर हैरत में पड़ गया और बोला- आप यहां हैं और मैंने आपको कहां-कहां नहीं ढूंढा ? कह कर वह फूट-फूट कर रोने लगा। मां !उस समय मैं अपनी परेशानी में आपसे वह बातें कहा गया, जो मुझे कहनी नहीं चाहिए थी। मुझे माफ कर दो ! माँ ! अब घर चलो ! मां भी तो अपने बच्चों से बिछड़ कर बहुत दुखी थी किंतु बेटे ने जो शब्द कहे थे ,उनके कारण उनके पैर जड़ हो गए थे। मां से बार -बार क्षमा मांगने पर, तब उसकी मां बोली -उस दिन तेरा बेटा ही नहीं खो गया था, उस दिन मैंने भी ,अपना बेटा खो दिया था। जो आज मुझे मिला है , चल ! मैं तेरे साथ घर चलती हूं।