आरती को जब कपिल का पत्र मिला ,उसके मन में तो ख़ुशी थी, किन्तु दिल में घबराहट थी। अजीब सी गुदगुदी महसूस हो रही थी,न जाने इस पत्र में ,उसने क्या लिखा होगा ?यह सोचकर ही ,चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। कुछ समझ नहीं आ रहा ,इस पत्र को कैसे और कहां छुपाये ?जिससे किसी को इसका पता न चले, अपने बस्ते में ही, किताबों में सबसे पीछे रख दिया। अपना व्यवहार सामान्य करने का प्रयास कर रही थी ताकि घर में किसी को शक ना हो किंतु इस दिल का क्या करें ? वह तो बार-बार उछलने लगता था। मम्मी ! खाना दे दो, मैं खाना खा लूंगी, कहते हुए स्वयं ही खाना ,थाली में सजाने लगी और चुपचाप खाना खाने लगी। रह -रहकर चेहरे पर , मुस्कुराहट आ जाती, तुरंत ही उसे छुपाने का प्रयास करती।
आज क्या बात हो गई ? तू ठीक तो है न... मम्मी ने प्रश्न किया।
मम्मी की बात सुनकर आरती बुरी तरह घबरा गई , उसका मुंह लाल पड़ गया। उसे लगा, जैसे-' चोरी पकड़ी गई।' उसने सब चीजें सही तरीके से तो रखी थीं ,व्यवहार भी सामान्य ही है। फिर क्या बात है? जो मम्मी ऐसा कह रही हैं।
हां ठीक हूं , आरती हकलाते हुए बोली।
मुझे तो तू ठीक नहीं लग रही, देख ! तेरा चेहरा भी कितना लाल पड़ गया है ?
वो तो ऐसे ही धूप में हो गया है , बात बनाते हुए बोली।
नहीं, बात तो कुछ और है , आज तूने खाना भी अपने आप ले लिया, खाने में मीनमेख भी नहीं निकाली ,नख़रे नहीं दिखाए और चुपचाप खाने भी लग गई , बात तो अवश्य ही कुछ और है, तू कुछ तो छुपा रही है, तेरे चेहरे से साफ पता चल रहा है तू घबराई हुई है।
अपने को असफल संयत करने का प्रयास करते हुए आरती बोली -नहीं मम्मी !ऐसी कोई बात नहीं है , मुझे सिर्फ पेपर की चिंता है अभी मेरा कोर्स भी पूरा नहीं हुआ है , और पेपर आने वाले हैं, तो मैंने सोचा-शीघ्र खाना खाकर पढ़ाई में लग जाऊंगी ,उसी की घबराहट है।
इसमें घबराने की कोई बात नहीं है, धैर्य से काम लो और मन लगाकर पढ़ो! तुम्हारा कार्य है, परिश्रम करना घबराना नहीं।
मन ही मन आरती खुश हो रही थी, मैंने मम्मी को शक होने ही नहीं दिया ,अपनी बातों से उन्हें समझा दिया। खाना खाकर तुरंत ही ,अपना बस्ता तो टटोलती है , एक कोने में पड़ी पर्ची को देखते ही, उसकी धड़कनें फिर से बढ़ गईं , यहां पत्र पढ़ना ठीक नहीं होगा ,छत पर चली जाती हूं। सोचते हुए ,वह सीढ़ियां चढ़ने लगी।
तभी मम्मी ने आवाज दी- इतनी धूप में ,छत पर कहां जा रही है?
वह मम्मी मैं ,छत पर देखने जा रही थी ,छत पर कपड़े तो नहीं है ,उन्हें ही उतार लाऊँ !
कोई जरूरत नहीं है, आज कपड़े ही नहीं धुले हैं। पता नहीं ,आज इस लड़की को क्या हो गया है? जिन कामों से बचती थी ,आज वही काम कर रही है। कभी तो ,मेरे कहे से भी नहीं करती ,आज अपने आप ही कर रही है।
ठीक है ,मैं अपने कमरे में बैठकर पढ़ लेती हूं , पढ़ने का बहाना कर, किताब में वह पत्र रखकर, अभी एक अक्षर ही पढ़ा था , मेरी जान ! चेहरे पर मुस्कुराहट, और तेज दिल की धड़कनें ! एकदम से जैसे रुक गईं , जब छोटी बहन ने आकर पूछा -दीदी !यह सवाल समझा दो! तुरंत ही किताब बंद करके, अपनी धड़कनों को संभालते हुए, उसे सवाल समझाने का प्रयास किया। समझाने के पश्चात ,तुरंत ही बोली -अब जाओ ! अपना काम पूरा कर लो।
दीदी मैं यहीं बैठ जाती हूं, कोई 'प्रॉब्लम' होगी तो मैं ,आपसे पूछती रहूंगी।
नहीं ,तुम यहां से जाओ और अपनी जगह पर बैठकर पढ़ो! मुझे' डिस्टर्ब' होगा।
मम्मी ,देख लो! दीदी ,यहाँ बैठकर पढ़ने नहीं दे रहीं। छोटी बहन है, उसको अपनी साथ बैठा लो ! मम्मी की आवाज आई।
चल बैठ जा ! सोचा छोटी है, इसे क्या मालूम होगा ? किताब में पत्र रखकर, पढ़ना आरंभ किया-जब से तुम्हें देखा है, तुम्हारा होकर रह गया हूं। तुम्हारी हर अदा मुझे अच्छी लगती है , तुम्हारी वह मुस्कुराहट! जैसे बिजली की चमक ,तुम्हारा चेहरा ! जैसे खिलता कमल हो। पढ़कर आरती मुस्कुराई, और बोली- कमल तो कीचड़ में खिलता है,धत ! इसे तो उपमा देनी भी नहीं आती।
दीदी क्यों मुस्कुरा रही हो ? किससे बातें कर रही हो ? दिखाओ, दिखाओ !
चल तू, अपना काम कर ले , मेरी किताब में एक चैप्टर ऐसा है जिसे पढ़ कर मुझे हंसी आ गई
अच्छा मुझे भी दिखाओ ! उसके ना दिखाने पर, छोटी बहन चिल्लाने लगी-मम्मी ,देख लो !दीदी !मुझे अपनी किताब नहीं दिखा रही हैं। घबराकर आरती ने, वह पत्र तुरंत ही किताब से निकालकर, मोड़कर फिर से बस्ते में छुपा दिया। अब उससे मना कर दूंगी, मुझे पत्र ना लिखें, कितनी घबराहट होती है ? पत्र को छुपा कर उसने चेेन की सांस ली, किंतु पत्र में लिखी पंक्तियाँ ,सोच -सोचकर , बार-बार उसे मुस्कुराने के लिए मजबूर कर रही थीं। जब भी मौका देखती। पत्र पढ़ती और मुस्कुराती , जब तक दूसरा पत्र उसे न मिल गया। इस तरह पत्रों का सिलसिला चल निकला। बेचैनी, घबराहट के बावजूद भी पत्र आते और जाते , बहुत सारे पत्र हो गए कहां छुपाए ? उन्हें एक ऐसी डायरी में छुपाया ,जिसका ज्यादा उपयोग नहीं होता जो एक कोने में रखी रहती है, उस पर भी चढ़ी ज़िल्द के अंदर, उन पत्रों को छुपाया। दो बरस हो गए, बड़ी एहतियात से उस डायरी को संभाल कर रखा, ताकि किसी को भी, उन पत्रों के विषय में पता ना चले। कपिल दूसरे शहर चला गया ,उसके पिता की बदली जो हो गई। पत्रों का सिलसिला थम गया, रह गया तो इंतजार !
आरती का विवाह तय हुआ, और उसका विवाह भी हो गया। वह डायरी !आज भी वहीं रखी है। बहन अब समझदार हो गई थी , उसे समझाया, कि इस डायरी को कोई ना छेड़े,इसकी जिम्मेदारी तुम्हारी है। उसने भी हामी भर दी। अपने प्यार की धरोहर, अपनी बहन के सुपुर्द करके और निश्चिंत होकर अपनी ससुराल चली गई। कुछ दिनों पश्चात , घर गयी ,मौका मिलते ही ,अपनी डायरी के पास गयी। उसे अपने हाथों से स्पर्श कर ,उन चिट्ठियों को महसूस करने का प्रयास करते हुए ,उसकी आँखें नम हो आईं ,इच्छा हुई ,एक बार उसके लिखे शब्दों को पढ़ ,कपिल की भावनाओं को महसूस कर सके। कमरे का दरवाजा बंद कर, उस डायरी के कवर को खोलकर,देखा तो उसमें एक भी चिट्ठी नहीं थी। ये देखते ही ,वह आश्चर्यचकित रह गयी। इसका अर्थ है ,किसी ने मेरे पत्र लिए हैं ,हो सकता है ,पढ़े भी हों। घबरा गयी ,उसकी यादें भी न जाने कहाँ गयीं ?दिल का दर्द गालों पर बहने लगा। उस अनमोल डायरी को वहीं छोड़ जैसे ही उसने दरवाजा खोला बाहर माँ खड़ी थी।
उसे अंदर ले गयी और बोली -तूने पहले क्यों नहीं बताया ?मुझसे एक बार तू बताती तो सही ,सारा दर्द अकेले और चुपचाप पी गयी। मैं तेरे पापा से बात करती।
किन्तु अब तो उसकी यादें भी किसी ने चुरा लीं।
चुरा नहीं लीं ,मिटा दीं ,मैंने तेरे सभी पत्र जला दिए। अब वे तुझे, तेरी ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ने देते। अब तू उसकी सभी यादें मिटा दे ,इसी में तेरी भलाई है। अब माँ को सब पता है ,सोचकर माँ के गले लगकर बहुत रोयी। तुम्हारी वो निशानी भी नहीं रही ,तुम्हारी यादें तो मेरे दिल में हैं ,उन्हें कोई नहीं मिटा सकता किन्तु तुम्हारी याद में, वो रात्रि बहुत रोयी।