पूरा घर गेंदे और गुलाब के फूलों से सजा हुआ है , बहुत सारे मेहमान आए हुए हैं , सभी अपने -अपने कार्य में व्यस्त हैं, घर में खूब चहल-पहल हो रही है , मेहमान आ रहे हैं।' बरनाले' वाली बुआ जी भी आ गई हैं , जब वह आती हैं, धूम-धड़ाके से आती हैं , उनके आते ही पूरा घर जैसे जाग जाता है। उनकी आवाज तेज होने के साथ-साथ ,वह हंसी मजाक वाली महिला भी हैं। अपनी चुहल बाजियों से , रोते को भी हंसा दें, उनका स्वभाव ही ऐसा है , चलते- फिरते किसी से भी बात करने लग जाती हैं , हंसी मजाक के चलते उस शादी वाले घर में उन्होंने रोेनक ला दी हैं , यहां आकर तो ऐसी हो जाती है , फूफा जी को ही भूल जाती हैं , हम कभी हंसी में कह देते -कि बुआ जी !फूफा जी को ,आप दूर-दूर रखती हैं ,कभी -कभी उनकी ख़ैर -खबर भी ले लिया करो।
तब हंसकर कह देतीं - अब तक उन्हें मैं, झेल र
ही थी ,अब तुम झेलो - यहां पर आकर वह तुम्हारी जिम्मेदारी बन जाते हैं , ऐसा नहीं कि, उन दोनों में प्यार नहीं है , बुआ हम पर भी कुछ जिम्मेदारियां डालना चाहती हैं या फिर वह देखना चाहती हैं- कि हम फूफा जी के साथ, कैसा व्यवहार करते हैं ?
तनु दीदी भी तो आ गई हैं , उनका तो वही रोना-धोना, मम्मी! मेरी सास ने यह कहा ,मम्मी! मेरी सास ने वह कहा।
मम्मी भी उनकी बात सुनती हैं ,प्यार से समझा देती हैं और उन्हें भी काम बता दिया ,जा! तू। अपनी भाभी के लिए , सुंदर सा जड़ाऊ लहंगा लेकर आना ,अपने साथ दामाद जी को भी ले जाना। इस तरफ , हर किसी के हिस्से में , थोड़ा थोड़ा काम आ जाता है। हर कोई अपनी जिम्मेदारियां पूर्ण कर रहा है।
दूल्हे के मामा भी आ गए हैं , उनके भी अलग ही नखरे हैं,नाराज होते हुए बोले - हमें अब बता रहे हो ,जब सब काम हो गया ,' भात ', लेना ना होता तो शायद ,यह भी ना बताते, गुस्से से तमतमाए मामा जी !
मम्मी उन्हें समझा रही हैं , भैया !तुम तो जानते ही हो ,सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही आन पड़ी है। सोचा ,तुम तो अपने ही हो ,आते ही सब संभाल लोगे बुरा नहीं मानोगे , आखिर भांजा तो तुम्हारा ही है। बस मम्मी की यह गोली देते ही, मामा खुश...... जब सब एक साथ मिलकर चलते हैं ,तो यह रिश्ते कितने अच्छे लगते हैं? थोड़ा मनमुटाव थोड़ी चुहल बाजी, कितना लगता है ? सब कुछ......
हल्दी की रस्म के लिए सभी महिलाएं आती हैं ,बहन आरती का थाल लेकर आ गई , सबने हल्दी की रस्म पूर्ण की , उसके पश्चात तनु दीदी ने अपने भाई का आरता किया। कुछ आस पड़ोस की महिलाएं भी आई हुई थीं , ढोलक की ताल पर बन्ने गाए जा रहे थे -
एक लड़की ने गाना उठाया -'' बन से बन्नडी फेरो पर झगड़ी ,तू क्यों नहीं लाया रे...... सोने की तगड़ी।''
तब भाभियाँ ,दुल्हे मियां से मजाक करती हैं - देवर जी !जितनी मौज मस्ती करनी है , कर ली , अब तो हमारी देवरानी की चलेगी, उसकी ही सुनना पड़ेगी , अब बता भी दो ! मुंह दिखाई में ,उसके लिए क्या लिया है ? सोने की तगड़ी है या और कुछ....... कहकर वह सारी खिलखिला कर हंस पड़ीं।
लेफ्टिनेंट साहब !कुछ जवाब भी देंगे या यूं ही चुपचाप ,सुनते रहेंगे ,छोटी भाभी ने उसकी आँख में ,बड़ा सा काजल लगाते हुए हंसकर पूछा। कुछ बता रहे हैं या फिर इसी आंख में काजल रहने दूँ , कहकर फिर से हंसने लगीं।
अब मैं क्या कहूं ?आप तो मालकिन हैं, वह तो अभी नई आएगी, कुछ जानती भी नहीं होगी , जो आप करोगी वही होगा ,लेफ्टिनेंट रोहित ने भाभियों को आश्वस्त किया।
ओहो जी !अभी से उसकी तरफदारी , इसी हंसी मजाक के चलते, आखिर बारात, नंदिनी के द्वार पर आ ही गई।
नंदिनी ,ससुराल से आया ,अपना जड़ाऊ लहंगा पहने मेकअप किए, बारात के इंतजार में ही तो बैठी थी। सरिता ,अपने बेटे के लिए बहुत सुंदर बहु ढूंढ कर लाई है ,'चांद का टुकड़ा है', देखने वालों ने कहा।
मेरा बेटा भी तो किसी से कम नहीं, उसी से जोड़ी मिला कर लाई हूं , सरिता जी, इठलाते हुए बोलीं। तारों की छांव में नंदिनी अपनी ससुराल आ गई। सब ने उसका स्वागत किया, हर कोई उसको' पलकों पर बैठा लेना चाहता है।' रोहित की तो जैसे उससे नजर ही नहीं हट रही थी , ऐसी ससुराल पाकर नंदिनी भी, भाव विभोर हो उठी। अभी रोहित की ,पंद्रह दिनों की छुट्टियां और बची थीं। घरवालों ने नंदिनी और रोहित की, बाहर घूमने की टिकट करा दी , दोनों दुनिया से बेखबर कभी पहाड़ो में, कभी नदियों में, और कभी विदेशों में घूम रहे थे। वह उन पंद्रह दिनों को , जैसे स्वर्णिम बना देना चाहते थे , यही यादें तो होंगी जो जीवन भर उन्हें स्मरण रहेंगी , नंदिनी तो बेहद प्रसन्न थी , इतनी अच्छी ससुराल, इतना प्यार करने वाला पति , वो तो जैसे ,अपने भाग्य को सराह रही थी। पंद्रह दिन कैसे बीत गए ?उन्हें पता ही नहीं चला। रोहित के जाने का समय आ गया , अब तो रोहित के बिछड़ने मात्र से ही , नंदिनी काँप जाती , जब रोहित जा रहा था ,तब वह ''जार जार रो रही थी।''
नंदिनी को, समझाते हुए रोहित बोला -पगली ! तुम क्यों रो रही हो ?मैं शीघ्र ही तुम्हें , अपने पास बुला लूंगा।
रोहित के जाते ही घर, सुनसान सा हो गया, जिस घर में एक माह पहले बहुत रोेनक हो रही थी आज वही घर सुनसान पड़ा है। बहू अपने कमरे में उदास है , धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार भी चले गए , सरिता जी भी अपने प्रतिदिन के कार्य करके थक कर सो जाती या फिर अन्य कार्यों में उलझ जातीं। उन्होंने सोचा -शायद, बहू का मन रोहित के बिना नहीं लग रहा इसीलिए उससे बोलीं -जाओ !कुछ दिन के लिए अपने घर घूम आओ !
नंदनी भी खुशी-खुशी तैयार होकर, अपने मायके चली गई।
एक दिन रोहित का फोन आया, मम्मी -नंदनी कैसी है ?
बेटा ! वो ठीक है ,तू उसकी चिंता मत कर ,कुछ दिनों के लिए अपने घर गई है , तू चाहे तो उसके घर पर ही उसे फोन कर लेना , तू बता, तू कैसा है ?
मम्मी ! मैं ठीक हूं , अब फोन रखता हूं, और नंदिनी को फोन करता हूं , कहकर वह फोन रख देता है।
हेलो ! नंदिनी ने फोन उठाया।
कैसी हो ? तुम तो मुझे भूल ही गईं , रोहित ने मजाक किया।
हां हां, तुम्हें तो बड़ा याद था , जब से गए हो ,तब से एक भी फोन किया है ,उलाहना देते हुए बोली।
मैं नहीं कर पाया ,तुम तो कर लेतीं, आखिर 'लेफ्टिनेंट रोहित' की पत्नी हो, तुम्हें क्या कोई मना कर देता ?
अच्छा, यह मक्खन बाजी छोड़ो !और यह बताओ ! मुझे कब लेने आ रहे हो ?
अब की छुट्टियों में, हम दोनों साथ ही आएंगे।
तब तक क्या मैं, इंतजार करती रहूँ ? मुंह बनाते हुए , नंदिनी ने पूछा।
न- न तब तक हम, फोन पर ही गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड खेलते रहेंगे , कभी तुमने मुझे फोन किया, कभी मैंने तुम्हें फोन किया। दूर रहते हुए भी हम पास रहेंगे। इसका भी अपना अलग मजा है , परेशान ना हो, हर पल को जियो ! अब मुझे देखो! सुबह से शाम काम में दिन कब निकल जाता है? पता ही नहीं चलता, शाम को तुम्हारी याद आती है तो तुम्हारी फोटो देख लेता हूं। ''दिल में छुपा रखी है ,तस्वीर-ए -यार की,
जब भी याद आती है नजरें , झुका कर देख लेता हूं।''
बस-बस ,शायर साहब ,कहीं मुझे अपने आप पर गुरुर ना हो जाए , चलिए ,फोन रखती हूं , आगे भी इसी तरह,फोन करते रहिएगा।
हां हां क्यों नहीं? हम तो, अपनी रानी साहिबा के गुलाम हैं ,कह कर हंसने लगा।
आज अचानक अखबार में कुछ ऐसी खबर पढ़ी , रोहित की पापा के, चेहरे पर चिंता के बादल छा गए , क्या हुआ ? जी , सरिता ने अपने पति से पूछा।
कुछ नहीं, कहकर बाहर को निकल गए। चिंता होना तो स्वाभाविक था, अभी बेटे का नया-नया विवाह हुआ है ,बहु, उसकी प्रतीक्षा में है और युद्ध छिड़ गया। न जाने क्यों यह युद्ध होते हैं ?क्यों ये लोग चैन से ना ही रहते हैं ,ना रहने देते हैं। युद्ध का परिणाम कुछ भी हो सकता है। शाम तक सरिता जी को और नंदिनी को भी युद्ध के बारे में पता चल गया था। सभी के चेहरों पर चिंता छाई थी। उन्होंने अपने बेटे को फोन करना चाहा ,कई बार तो फोन लगा ही नहीं, एक बार लगा भी तो...... वह भी बहुत जल्दबाजी में, रोहित ने कहा -यहाँ सब ठीक है, आप चिंता ना करें , तब मां से बोला - मम्मी! यदि मैं रहा तो सम्मान के साथ आऊंगा और यदि मैं नहीं रहा तो नंदनी से को मेरा एक संदेश दे देना,'' वह मेरा इंतजार ना करें, और मेरी जगह किसी और को दे दे। '' शायद , मरने से पहले,यही उसका ''आखिरी कॉल ''था।
रोहित आया , सम्मान के साथ , किंतु चार लोगों के कंधों पर,वो 'वीरगति ''को प्राप्त हो गया था ,नंदिनी उसकी उसी ''आखिरी कॉल ''को स्मरण कर रही थी -अबकि छुट्टियों में ,हम दोनों साथ आएंगे , ये सब सोचते ही उसकी आंखें भर आई थीं।