विमला देवी ,रसोई घर में ,जोर शोर से, कार्य करने में लगी हुई हैं। उन्होंने खाने में लौकी के कोफ्ते ,कढ़ी चावल और गरमा -गरम चपाती बनाई है। हालांकि उनके कमर में और घुटनों में दर्द है फिर भी वह रसोईघर में ,आज रसोईघर में बड़े उत्साह से लगी हुई हैं , क्योंकि आज उनके बच्चे जो आ रहे हैं। उनके बेटा -बहु अपनी नौकरी से आ रहे हैं। उनसे मिलने की ख़ुशी में ,वो अपना दर्द ही भूल गयीं। उनके आने से पहले ,वो सारा काम निपटा लेना चाहती हैं ,इस ख़ुशी में आज की दवाई भी भूल गयीं। जब कल्लो ने कहा -माँजी ! कम से कम कुछ खा तो लीजिये ,कभी बच्चे आएं और आप बिस्तर पकड़ लो !
कल्लो की ये बात उन्हें सही लगी ,हाँ ,ठीक ही तो कह रही है ,सोचकर बोलीं -चल तू ,एक सेब काट दे वही खा लूंगी ,उसके पश्चात, बच्चों के आने पर ही साथ ,बैठकर खाना खाएंगे। अब उनका ख्याल कल्लो ही तो रखती है। इसकी माँ ने इसे आगे पढ़ने नहीं दिया और कमाने भेजने लगी ,तब विमला जी ने ही ,उसकी माँ को समझाया और कल्लो की शिक्षा का सम्पूर्ण भार ,अपने ऊपर ले लिया। अब कल्लो उनकी काम में सहायता भी कर देती है ,और उनके पास ही रहकर पढ़ भी रही है।
दोपहर तक ,बच्चे आ गए ,पोते -पोती आकर दादी से लिपट गए ,बहु -बेटे ने अपने सामान को रखा और सफ़र की थकान मिटाने के लिए ,नहाये गए , खाने का समय हो ही रहा था ,खाने की मेज पर आ गये ,बच्चे भी नहाये और सभी ने खाना खाया। मम्मी जी ! हम बहुत थक गए हैं ,अब हम सोने जाते हैं , कहकर बहू और बेटा अपने कमरे में चले गए , पोते -पोती ने भी खाना खाया ,कुछ देर पश्चात , बहु बेटा ने उन्हें भी , अपने पास बुला लिया। किसी को इतना भी ध्यान नहीं था कि विमला जी ने खाना बनाया है ,खाया भी है या नहीं , यह भी पूछने की ,जरूरत महसूस नहीं की। विमला जी के साथ कल्लो लगी हुई थी उसने रसोई घर का सामान सिमटवाया ,तब विमला जी ने खाना खाया।
तब कल्लो ! बोली -आप नाहक ही उनकी प्रतीक्षा कर रहीं थीं ,तब भी आपने अकेले ही खाना खाया इससे तो उन लोगों से पहले ही खा लेतीं , इससे क्या फर्क पड़ जाता ?उन्होंने कल्लो की बात का कोई जबाब नहीं दिया ,उससे बोलीं - कल्लो !आज मैं बहुत थक गई हूं थोड़ी देर मैं भी, आराम करूंगी।
शाम को सभी आराम करके उठे, उन्होंने पहले ही ,घूमने का कार्यक्रम बना लिया था। बेटे ने कहा -मम्मी ! हम चाय पीकर बाहर घूमने जायेंगे ,बच्चे भी घूम लेंगे ,आस -पास की चीजें दिखा लाऊंगा ,फिर पता नहीं ,कब छुट्टी मिले ?
ठीक है ,चले जाओ ! विमला जी शांत स्वर से बोलीं -कुछ कहने से भी क्या हो जाता ?उसने पूछा नहीं था बताया था।
गाड़ी में बैठने से पहले ,सुकेश बोला -मम्मी ! हम खाना भी बाहर खाकर आएंगे।
ठीक है ,उन्हें भेजकर ,वो शांत अपने कमरे में आ लेटीं। किसी के पास, समय ही कहाँ है ?इतने दिनों बाद माँ से मिले हैं ,दो घड़ी अपनी माँ ,के पास बैठने का ,थकी टांगों को हाथों से दबाते हुए ,घड़ी में समय देखा शाम के चार बजे हैं। अब शाम को बनाना तो कुछ है नहीं , मेरे लिए दोपहर की सब्जी ही रखी है। वही काफ़ी है। कल्लो अपनी पढ़ाई करके आई थी ,बोली -मांजी ! कोई काम तो नही है।
नहीं ,तू जाकर अपनी पढ़ाई कर ले ,किन्तु उसने महसूस किया घर में कोई नहीं है ,तब बोली -किसी की आवाज नहीं आ रही ,कहीं गए हैं ,क्या ?
हाँ ,वे सभी बाहर घूमने गए हैं ,बच्चों की दो -चार दिनों की ही तो छुट्टी है ,इसीलिए बाहर घूमकर खाना खाकर ही आएंगे इसीलिए ज्यादा कुछ काम नहीं है। तब तक वो रसोईघर में चली गयी थी ,वहाँ फैले झूठे चाय नाश्ते के बर्तन देखकर बोली -शायद ,चाय -पानी पीकर गए हैं ,सारे बर्तन भी यूँ ही पड़े हैं।
ये भी मंज जायेंगे ,आज थोड़ा काम ज्यादा बढ़ गया न....... इसीलिए थकावट भी ज्यादा हो रही है। अभी आराम करके उठूंगी ,तब सब सम्भालूंगी।
कुछ देर पश्चात ,कल्लो रसोई साफ करके,उनके समीप आकर बोली -आपके लिए भी खाना लेते आएंगे। वो चुप रहीं ,सोचने लगीं - इससे क्या कहें ,उसने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा ,कि 'आपके लिए भी खाना लेता आऊंगा।' कल्लो ही बोली - जब किसी के दिमाग में कोई बात न आये तो स्वयं कह देना चाहिए।
वो उसकी बातों का मर्म तो समझ गयीं किन्तु मन ही मन सोचने लगीं -जिसको समझना नहीं होता ,वो कोई भी बहाना बना सकता है। ये तो मन के भाव होते हैं ,जो व्यवहार में दिख जाते हैं ,क्या वो नहीं जानता ?घर में माँ अकेली है ,अपने लिए क्या खाना बनाएंगी ?उनके लिए कुछ लेकर ही चलूँ। दो बच्चों का बाप है ,कोई बच्चा नहीं।
रात्रि में ,नौ बजे वो लोग घूम -फिरकर घर में घुसे ,माँ ने दरवाजा खोला ,मेरे अकेलेपन के कारण ,कल्लो मेरे साथ ही थी ,जो पढ़ रही थी ,मैंने खाना खा लिया था ,मेरा मन कह रहा था -ऐसी किसी भी बात की मैं ,उनसे अपेक्षा न रखूं ,जिससे मेरे मन को दुःख हो , हुआ भी ऐसा ही।
अच्छा हुआ ,आप जगीं हुईं हैं ,मैंने बहुत जल्दी की तब भी ,थोड़ा समय लग गया , कहकर सुकेश अंदर आया , बच्चे भी अंदर आ गए ,पत्नी भी अंदर चली गयी।पीछे माँ दरवाजा बंद करते हुए रह गयी ,न चाहते हुए भी ,उनकी दृष्टि उसके हाथों पर गयी ,वो अपनी माँ के लिए कुछ नहीं लाया था ,देखकर उन्होंने एक गहरी साँस ली। अच्छा हुआ ,मैंने कोई उम्मीद ही नहीं लगाई ,इस समय तक तो मेरी भूख ही मर जाती।
सुबह जब सुकेश उठा ,माँ दूध गर्म कर रही थी ,उन्हें देखकर बोला -घुमते तो हैं, किन्तु बहुत थकान हो जाती है।रात्रि में भी ,बच्चों को अपने शहर के कई मंदिर ,पार्क दिखलाये ,बच्चों को भी तो पता होना चाहिए ,अपनी सभ्यता ,संस्कृति का ,कैसे पूजा होती है ?यही संस्कार ही तो अभी सीखेंगे ,बचपन से ही उसकी नीं व डाली जाती है। कल्लो उनकी बातें सुनकर सोच रही थी -क्या यही सभ्यता -संस्कार सिखा रहे हैं ?माँ घर में भूखी है या नहीं, ये भी नहीं सोचा ,उसके लिए भी कुछ खाने को ले जाएँ।मंदिर की देवी ,दिखाने ले गए उन्हें भोग चढ़ाया ,घर की देवी की ओर ध्यान ही नहीं ,जो तुम्हें इस संसार में लेकर आई। कैसी शिक्षा इन्होंने ग्रहण की है ?जिसमें अपनी माँ के मन का दर्द ,उनकी भावनाएं भी न समझ सके। सोचकर वो अपने बिस्तर से उठी और बोली -लाइए !मांजी !आपके पैरों में दर्द है ,चाय मैं पकड़ा देती हूँ। ऐसा उसने जानबूझकर कहा।
क्या माँ ,आपके पैरों में दर्द है ,आपने बताया क्यों नहीं ?क्यों इतना काम करतीं हैं ?आप बैठिये ! चाय कल्लो पकड़ा देगी , कहकर उसने लाड़ दिखलाया ,वे मन ही मन प्रसन्न हुईं ,चलो ! कल्लो के कहने से ही सही ,इसे मेरा ख्याल तो आया। तब तक बहु भी आ गई थी ,वो भी रसोई में गयी और बोली -जाने से पहले ,नाश्ता यहीं कर लेना ,मम्मी जी को परेशानी होगी इसीलिए नाश्ता मैं ही बना दूंगी ,कहते हुए उसने एहसान सा दिखाया।
तू कहीं जा रहा है ?
हाँ ,मम्मी वो इसकी बहनें हैं ,हमारी मौसीजी हैं ,एक -दो रिश्तेदारी और भी हैं ,घूम आऊं ! कहकर सभी तैयार होने लगे। तीन दिनों पश्चात ,वो घर आया और बोला -छुट्टियां कैसे बीत गयीं ? पता ही नहीं चला। सबकी शिकायतें रहती हैं ,आता नहीं ,मिलता नहीं ,अबकी बार सबकी शिकायतें दूर कर दीं , कहकर वो सभी तैयार होकर जाने के लिए, निकल गए ,पैसों का बड़ा रौब दिखाया ,रिश्तेदारों पर अपनी धाक जमाई और चला गया।
जिस माँ के कारण आया ,उससे एक बार भी बैठकर ,उसका हाल जानना नहीं चाहा। किसी डॉक्टर को ही दिखा देता ,उसके साथ रहने के लिए नहीं ,वरन ऐसे आये ,जैसे -किसी होटल में रहकर चले जाते हैं।मांजी ,थकी सी टेलीविजन पर कोई धार्मिक चैनल चलाकर ,शायद अपने मन की बेचैनी का हल ढूंढ़ रहीं थीं ,उसमें भी मन नहीं लगा तो अपने कमरे में जा बैठीं। मैं उनके मन की व्यथा को समझ रही थी ,उनके बच्चे आये और चले भी गए किन्तु कुछ अधूरापन सा ,उनके मन पर छोड़ गए। मैं उनके लिए गर्मागर्म हल्दीवाला दूध लेकर गयी ,तो देखा ,वो अपनी आँखें पोंछ रहीं थीं। मेरे हाथों से चुपचाप ,दूध का गिलास ले लिया और बोलीं -तेरा नाम ही कल्लो है ,किन्तु तेरा मन उतना ही साफ..... स्वच्छ ,इसे ऐसे ही रहने देना ,जिसमें तू दूसरों के मन को समझ और पढ़ सके ,ये पढ़ाई कभी न भूलना कहकर आशीर्वाद दिया और सो गयीं।