श्रीमती गुप्ता ने जैसे ही, कक्षा में प्रवेश किया ,तभी उनके ऊपर एक पर्ची आकर गिरी। उस पर्ची को उन्होंने देखा और आसपास भी देखने लगीं। यह पर्ची उनके पास, किसने फेंकी है ?पहले तो सोचा ,ऐसे ही कहीं से उड़कर आ गयी होगी ,जब उसे खोलकर देखा तो लगा, किसी का ''प्रेम -पत्र ''है।
वहीं खड़े न रहकर वह कक्षा में अंदर प्रवेश कर गईं और कुर्सी पर बैठकर, आराम से उस पर्ची को खोला और पढ़ने लगीं -तुम मेरी प्रिया ! मेरे मन की लहरों से निकली, एक तरंग हो, मैं समझ नहीं पा रहा, तुम्हें क्या-क्या लिखूं ? बस यूं समझ लो ! तुम मेरी जान हो ! श्रीमती गुप्ता जी को पत्र दिलचस्प लगा और वह आगे पढ़ने लगीं। तुम मेरी रूह में समाई हो , तुम्हें जब भी देखता हूं, मेरा हृदय तीव्र गति से धड़कने लगता है। जब तुम मेरे सामने ,अपने घर की खिड़की पर अपने बाल सुखाती हो और झटक कर, जब उन्हें पीछे ले जाती हो, मेरा कलेजा ही चीर जाती हो। तुम्हारी हर एक अदा मेरी हर धड़कन पर भारी है। मैं यह पत्र तुम्हारे लिए लिख रहा हूं। मेरी एक-एक पंक्ति में जैसे तुम समाई हो। कभी-कभी तो मुझे लगता है, मैं तुम्हारे विरह में तुम्हें पाने के लिए, कहीं देवदास ना बन जाऊं। बहुत उम्मीदों से मैं ,यह पत्र तुम्हें लिख रहा हूं। मैं जानना चाहता हूं ,क्या तुम भी, मुझसे प्रेम करती हो ?जितनी शिद्दत से मैं चाहता हूं,तुम भी उतनी शिद्दत से चाहती हो। मेरा यह ''प्रेम पत्र'' पढ़कर हो सकता है, तुम नाराज भी हो जाओ ! और हो सकता है ,मेरी अंतरात्मा की आवाज सुनकर तुम भी मेरे पास दौड़ी चली आओ ! तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा - चाहने वाला दी.......
मैडम पत्र पढ़कर सोच रही थीं - यह पत्र किसने, किसको लिखा होगा ? क्या किसी ने मेरे लिए पत्र लिखा है? किसी छात्र की इतनी हिम्मत कि वह अपनी अध्यापिका को पत्र लिखें किंतु उसने अपना नाम नहीं लिखा, कितना चालक है? मैंने देखा है ,वहां तो कोई भी नहीं था ,फिर यह पत्र मेरे ऊपर कैसे गिरा ?शायद कोई , मेरे ऊपर पत्र गिरा कर पीछे हट गया होगा। उन्होंने दोबारा उस पत्र पर सरसरी नजर डाली। इस पर दी लिखा है ,शायद !अपना नाम लिखना चाह रहा था ,लिख नहीं पाया। काश !मैं कुंवारी होती, पढ़ने से तो लग रहा है -किसी ने यह पत्र दिल से लिखा है किंतु आजकल के बच्चे कैसे हो गए हैं ?पढ़ाई में ध्यान ही नहीं रहता। ऐसे ''प्रेम पत्र ''देखो! कितने तरीके से लिखते हैं ?पत्र लिखने की अक़्ल इन्हें न जाने ,कहाँ से आ जाती है ? यह भी हो सकता है, किसी बाहर के लड़के ने यह पत्र ,कॉलिज की लड़की के लिए लिखा हो और बीच में मैं आ गई हूं और इसीलिए यह पत्र मुझे मिल गया किन्तु मैं तो यहाँ आई थी, जो कोई भी है ,इसी कक्षा से संबंधित है।
अध्यापिका ने तभी खड़े होकर, सब बच्चों को डांटा आजकल तुम लोगों का, पढ़ाई में ध्यान नहीं रहा है ,न जाने क्या-क्या गुल खिलाते रहते हैं ? चालाक इतने हो गए हैं, अपना नाम भी नहीं लिखते हैं ,इसी बात की उन अध्यापिका को बेचैनी थी।
लड़कियों ने अंदाजा लगा लिया- कि अवश्य ही मैडम को किसी ने पत्र भेंट किया है। एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा दीं। मैडम ,बहुत देर तक सोचती रहीं आखिर ये पत्र किसने लिखा होगा ?किसको लिखा होगा ? फिर सोचा -क्यों इस विषय में अपना समय गंवाना और बच्चों को पढ़ाने लगीं ?मेरे समझाने से तो कोई सुधरने वाला नहीं। जब कक्षा से बाहर जा रही थी, तो बगीचे से होती हुई जा रही थीं। उन्होंने सोचा- आजकल किसी का पता नहीं रहता, हो सकता है, इस पत्र को मेरे पास देखकर, कोई गलत समझ बैठे और उन्होंने वह पत्र पास की ही झाड़ियों में उछाल दिया। झाड़ियों के दूसरी तरफ पांच -छह लड़कियां बैठी थीं जो अपना कार्य कर रही थीं और बातें कर रही थीं। पत्र दिव्या की गोद में जाकर गिरा, दिव्या ने पत्र उठाया और पढ़ा और अपनी सहेली को दे दिया बोली- यह तेरे प्रेमी ने पत्र भेजा है।
मानसी ने वह पत्र देखा तो उसे पढ़ कर बड़ा अच्छा महसूस हुआ और बोली- काश !कोई मेरे लिए ऐसा पत्र लिखता किंतु क्या करूं? मेरा कोई ऐसा दोस्त नहीं है। यह शायद , गीतिका का होगा और गीतिका को दे दिया। वह पत्र इधर से उधर उछलता रहा ,सब ने उसकी भावनाओं को पढ़ा, महसूस भी किया किंतु किसी ने भी उस पत्र को अपना नहीं माना।
तभी रागिनी बोली -मुझे लगता है ,यह पत्र मैडम का है ,वे ही इधर से जा रही थीं। मैंने देखा था, तभी यह पत्र हमारी तरफ आया था। लगता है ,यह उन्हीं के किसी बॉयफ्रेंड का है, किंतु इस बात की बदनामी ना हो कि वह शादीशुदा होकर, किसी से मिलती-जुलती है या'' प्रेम -पत्र'' आदान-प्रदान करती हैं ,उन्होंने बदनामी के ड़र से यहां फेंक दिया होगा। इस बात की पुष्टि उनकी कक्षा के उन लड़के -लड़कियों ने भी की जिन्होंने मैडम को पत्र पढ़ते और मुस्कुराते देखा था । एक दूसरे से लड़कियों में यह चर्चा धीरे-धीरे संपूर्ण कॉलेज में फैलने लगी- कि मैडम का कोई बॉयफ्रेंड है और उसने मैडम को' प्रेम पत्र' लिखा है। कॉलेज में, कुछ बच्चे ,मैडम के हितेषी भी थे,उन्होंने यह बात जाकर मैडम को बता दी।
मैडम को बड़ा ही क्रोध आया, यह अफवाह किसने फैलाई है? वह पत्र कहां है और किसके पास है ? किंतु पत्र एक दूसरे से होते हुए न जाने कहां पहुंच गया ? किंतु मैडम अवश्य ही चर्चा का विषय बन गईं । इस बात का मैडम को बहुत दुख हुआ और उन्होंने सोचा -कि मैंने क्यों वह पत्र इस तरह से फेंक दिया ?मुझे वह पत्र प्रधानाध्यापिका को दे देना चाहिए था।यूँ इस तरह से, मेरी बदनामी ना होती अब तो पत्र की ढूंढेर मचने लगी क्योंकि प्रधानाध्यापिका इस बात की तह तक जाना चाहती थीं - कि वह पत्र किसका है और किसने किसको लिखा है ?
जब संपूर्ण कॉलेज में, उस पत्र की चर्चा होने लगी तभी एक अध्यापक का ध्यान उस ओर गया। वह भी, उस पत्र को ढुँढ़वाने में जी जान से जुट गए। वह भी नहीं चाहते थे कि वह पत्र किसी को मिले। उन्होंने प्रधानाध्यापिका को समझाना चाहा -जब इस पत्र पर किसी का नाम नहीं है तो क्यों उसे चर्चा का विषय बनाया जा रहा है ? जब तक वह पत्र नहीं मिल जाता है, तब तक उसके विषय में कोई बात नहीं करेगा। हमारे कॉलेज भी इतनी सारी छात्राएं हैं, वह किसी का भी हो सकता है। उन मैडम ने तो पढ़ा है-उन्हें जब ही वह पत्र फाड़ कर फेंक देना चाहिए था, उनकी इसी लापरवाही के कारण वह पत्र आज ''रहस्यमई ''हो गया है।
प्रधानाध्यापिका ने, प्रार्थना स्थल पर आकर सभी छात्र और छात्राओं को समझाया-इस विषय पर कोई भी किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं करेगा, हो सकता है ,वह पत्र बाहर से ही आया हो। वह न ही, मैडम का है और न ही, किसी अन्य लड़की का, इस अफवाह को ज्यादा बढ़ावा ना दें। जिस किसी को भी वह पत्र मिलता है ,वह मेरे पास लेकर आए। मुस्कुरा कर बोलीं - मैं भी तो वह पत्र पढ़ना चाहती हूं , जो इतनी चर्चा का विषय बन गया है। प्रधानाध्यापिका अधेड़ उम्र थी, बोलीं - हो सकता है,इस उम्र में ही, मुझ पर किसी का दिल आ गया हो ,कह कर मुस्कुरा दीं।
किंतु तेवतिया जी सतर्क हो गए, और उन्होंने लड़कों से कहा - जिसे भी वह, पत्र मिले तुरंत फाड़ देना ! इस अफवाह को हमें और नहीं बढ़ने देना है क्योंकि सच्चाई कोई नहीं जानता था वह पत्र तेवतिया जी ने ही, अपनी पड़ोसन शीला को देखकर लिखा था , जो सीढ़ियों से उतरते हुए, श्रीमती गुप्ता जी के ऊपर जा गिरा था। किसी का इस ओर ध्यान भी नहीं गया कि इतने सीधे से दिखने वाले दीपांकर जी ऐसी हरकत भी कर सकते हैं।