निशा का विवाह एक अभियंता से हो जाता है ,जिस पर सम्पूर्ण घर की ज़िम्मेदारियाँ थीं ,निशा ने भी उसका हर सुख -दुःख में सहयोग किया। उसकी हर ज़िम्मेदारी को अपना मानकर चली ,जिस कारण वो अपनी ओर, और अपनी इच्छाओं ,सपनों को भूल ही गयी। किन्तु उसके जीवन में एक समय ऐसा आया ,जब उसे अपने होने का एहसास हुआ ,और वो अपने को जानने का प्रयत्न करने लगी। ऐसा उसके साथ तब हुआ जब उसकी कक्षा की एक लड़की उसे मिली और उसे देखकर ,निशा को अपने -आप पर ग्लानि का अनुभव हुआ। उसे और अपने -आप को देखकर उसे लगा कि वो क्या थी क्या हो गयी ? दीप्ती निशा से कहती है -आजा चल मेरे घर मेरी कोठी पास ही में है किन्तु निशा अपने काम का बहाना बनाकर इंकार कर देती है। अब आगे -
निशा दीप्ती से विदा लेकर ,तेजी से घर की ओर बढ़ती है। मन ही मन सोचती है -ये वही दीप्ती है जिससे मैं बात करना भी पसंद नहीं करती थी। कॉलिज में कपड़े भी ,सबसे सस्ते ,न ही ओढ़ने -पहनने की तमीज़ ,बालों में भी ,एक किलो तेल भरा रहता था, वो भी सरसों का। उसकी आज की छवि को देखकर तो वो हतप्रभ रह गयी। आज की तारीख़ में मेरी क्या हालत हो गयी है ?मन ही मन अपने को कोसते हुए घर पहुंची और सीधे आईने के सामने जाकर खड़ी हो गयी। अपने -आपको देखकर बोली -मैं क्या से क्या हो गयी ?कुछ देर पलंग पर चुपचाप लेटी रही। अचानक उसे जोश आया और बोली - जब वो अपने को इतना बदल सकती है तो मैं क्यों नहीं ?अब मैं भी अपने में बदलाव लाऊंगी ,मैंने अपनी जिम्मेदारियां पूर्ण की और आगे भी करूंगी, किन्तु अब मैं आपने -आप पर भी ध्यान दूंगी।
अगले दिन वो ,''साज -सज्जा'' की दुकान पर गयी और उसके पश्चात ,कुछ कपड़े खरीदे। अगले दिन सुबह ही तैयार हो गयी। खन्ना जी की उस पर नज़र गयी, तो बोले - आज कहीं जा रही हो ?निशा चाहती थी- कि खन्ना जी उसकी प्रशंसा करते, किन्तु कुछ ओर ही प्रश्न कर बैठे। निशा चिढ़कर बोली -क्यों मैं ऐसे ही तैयार नहीं हो सकती ?या कहीं जाऊँगी तभी तैयार होऊँगी ,दरअसल आपको मुझे ऐसे देखने की आदत नहीं रही किन्तु अब मैं ऐसे ही रहा करूंगी। अब आपकी दोनों बहनों का विवाह भी हो गया और बच्चे भी पढ़ रहे हैं और अब आपकी आमदनी भी बढ़ी है।
बच्चे भी बाहर आये तो मम्मी को देखकर ,आपस में देखा किन्तु शांत रहे। जब सभी अपने कार्यों में व्यस्त हो गए तो निशा भी ,अपना नया पर्स लेकर चल दी। सासु माँ से कह दिया -अभी आ रही हूँ। उसके इस तरह के तेवर किसी को भी समझ नहीं आ रहे थे। कई जगह धक्के कहकर आकर बैठ गयी। बड़े बेटे ने पूछ ही लिया -मम्मी !इतनी थकी हो ,कहाँ गयी थीं ?थकने के बावजूद भी उसने बेटे को कुछ नहीं कहा ,शांत स्वर में बोली - आज मैं नौकरी ढूंढने गयी थी, किन्तु सभी अनुभव मांगते हैं ,मेरी तो आगे पढ़ाई भी नहीं हो पाई। बेटा उसके समीप आकर बैठा और माँ का माथा दबाने लगा। उसके कोमल अंगुलियों का स्पर्श उसको सुख दे रहा था और वो किसी छोटी बच्ची की तरह सो गयी।
शाम को जब उठी तो उसकी थकावट दूर हो चुकी थी और '' मानस पटल ''तीव्र गति से कार्य कर रहा था। उसने अब तक निर्णय भी ले लिया था ,बस खन्ना जी को बताना बाक़ी था ,इतना वो जानती थी -कि खन्ना जी शाम को थके -हारे आएंगे तो पहले उनकी ''पेट पूजा ''करनी होगी। तब उन्हें अपना निर्णय सुनाना है। इस निर्णय से खन्नाजी पर क्या असर होता है ?ये तो उस समय ही पता चलेगा।
खाना खाकर वे टहलने लगे ,सभी कार्य निपटाकर ,निशा भी आ गयी। टहलते हुए बोली -सुनोजी !मैंने सोचा है ,मैं कोई अपना कार्य करूंगी। उन्होंने एक क्षण पलटकर देखा ,फिर बोले -क्या काम ?मैं ''प्रसाधक ''का कार्य सीखूंगी और अपनी दुकान भी खोलूंगी। घर पर ही रहकर कार्य करूंगी और घर की देखभाल भी हो जाएगी। खन्नाजी परेशान होते हुए बोले -तुम्हें ,इन सबकी क्या आवश्यकता है ?अब तक घर के कार्यों में उलझी रहीं ,अब आराम करो। वे इस तरह निशा को टरकाना चाहते थे किन्तु वो तो उनके पीछे पड़ गयी। बोली -अपने लिए न जियूं ,मैं न कुछ करूँ। अब इस उम्र में क्या करोगी ?ये कहकर तो खन्नाजी ने मुसीबत को बुला लिया। निशा बोली -अभी मेरी उम्र ही क्या है ?पैंतीस की तो हूँ ,मेरा विवाह शीघ्र हो गया। वरना मेरी उम्र में तो लड़कियों के विवाह हो रहे हैं। मुझे क्या बुढ़ापा आ गया ?आ भी गया ,तो आप लोगों की वजह से ,कभी अपने पर ध्यान नहीं दिया और वो एक दीप्ती है -परसों मिली थी बाजार में ,कैसी लगती थी ,कोई भी उसे दोस्त बनाने को तैयार नहीं था और आज उसे देखो !कैसी इठला रही थी ?और मैं ,उसके समक्ष अपने को गंवार और अनपढ़ महसूस कर रही थी। आखिर निशा ने ,क्रोध में अपने मन की भड़ास निकाल ही दी और खन्ना जी भी ,उसके बदले व्यवहार का राज़ जान चुके।
वो निशा से बोले -तुम क्या किसी से कम हो ? घर -परिवार संभालना भी आसान कार्य नहीं ,हर कोई इतने सुरुचि पूर्ण ढंग से घर को नहीं संभाल पाता ,जैसे तुमने संभाला। यदि तुम्हारी यही इच्छा है, तो जो भी सीखना है ,सीखो ! मैं तो तुम्हारी परेशानी सोचकर ही मना कर रहा था। यदि तुम खुश हो और कर सकती हो तो करो। खन्नाजी ने निशा को समझाते हुए कहा। निशा प्रसन्न हो गयी ,और खन्नाजी पर अपने प्रेम की मुहर लगा दी।निशा ने भी बड़ी लग्न मेहनत से कार्य सीखा और अपना कार्य भी प्रारम्भ कर दिया। अब तो खन्ना जी का सहयोग भी मिल रहा था।
अब तो किट्टी भी में जाने लगी ,वहीँ पर चर्चा थी -कि
जब बच्चे बड़े हों तो ज्यादा ख़्याल रखना पड़ता है ,कहीं उनकी संगत गलत तो नहीं। एक दिन मेरा बेटा देर से आया ,तभी मैंने अपनी स्कूटी निकाली और वहीं पहुँच गयी ,देखा -तो दोस्तों के संग ,सड़क पर खड़ा ऐसे ही हँसी -ठिठौली कर रहा था। तभी मुझे क्रोध आया कि ये समय शिक्षा का है या इधर -उधर समय बर्बाद करने का। ''इस बात को सुनते ही निशा को लगा,- अब उसके बच्चे भी बड़े हो गए हैं ,उसे भी ''स्कूटी ''सीखनी चाहिए। किन्तु फिर से घर में वही ''अवहेलना ''खन्ना जी ने समझाने का प्रयत्न किया ,बोले -इसमें चोट लगने का भी ड़र है ,हड्डी भी टूट सकती है। अभी तुम्हारा व्यापार भी है ,घर -गृहस्थी भी है।तुम्हें कुछ हो गया तो कैसे सब संभालेंगे ?
निशा ने तर्क दिया -जब हम रसोईघर में खाना बनाते हैं ,कई बार हाथ भी जला ,कई बार चाकू से अँगुली भी कटी। तब किसी ने भी नहीं कहा -कि तुम ये कार्य मत करो ,तुम्हारा हाथ जल जायेगा या कट जायेगा। तब'' स्कूटी '' सीखने पर ही परेशानी क्यों ? आपको हो न हो ,मुझे अपने -आप पर विश्वास है। उसके तर्क से निरुत्तर होकर, खन्ना जी ने निशा के लिए ''स्कूटी ''ख़रीद ली। पंद्रह दिनों के अथक प्रयास से आख़िरकार निशा स्कूटी सिखने में सफल रही। अब वो घर के दैनिक कार्य भी ,स्कूटी से ही करने लगी। अब तो सभी को उस पर विश्वास हो गया। सब कुछ ठीक -ठाक चल रहा था ,एक दिन निशा कुछ सामान लेने बाहर गयी। सड़क पर बहुत ही भीड़ थी ,निशा भी उसी भीड़ में शामिल थी और वो एक किनारे पर खड़ी भीड़ के छटने की प्रतीक्षा कर रही थी। तभी पीछे से एक मोटरसाइकिल की टक्कर उसे लगी और वो अपने को संभाल नहीं पाई और सड़क के किनारे ,पड़ी बजरियों पर गिर गयी ,जिस कारण उसके सीधे हाथ की हड्डी टूट गयी। तीन माह का प्लास्टर चढ़ गया। जब मैं उससे मिलने पहुँची, तो हँसकर बोली -ये हड्डी ''स्कूटी '' सीखते समय नहीं टूटी ,उसके पश्चात ही टूटी वरना खन्ना जी कहते -तुम नहीं सीख़ पाओगी। मैं उसे देखकर सोच रही थी -इस दुःख में भी मुस्कुरा रही है। कैसी ''निराली ''है ,मेरी ''दोस्त ''