दीप्ती आज, अपने घर आ रही है। बहुत दिनों से मायके जाना नहीं हुआ था। घर -गृहस्थी में ऐसी फंसी ,मम्मी भी अक्सर फोन करती रहतीं , तब भी जाना नहीं होता। क्योंकि कभी तो पतिदेव को छुट्टी नहीं मिलती और कभी बच्चों की परीक्षा चल रही होती हैं। बस शुरुआत में ,आना-जाना हो जाता था। जब लड़की अपने घर में ,रम जाती है तब उसका मायके जाना कम ही हो जाता है। दीप्ती आज बहुत दिनों बाद अपने मायके आ रही है। भाभी ने और मां ने बहुत तैयारियाँ की है , जो भी दीप्ति को खाने में पसंद है , उसकी पसंद का ही खाना बनवाया है।
ख़ुशी -ख़ुशी दीप्ती अपने घर आई और ढेर सारे उपहार भी लाई , बच्चे, बच्चों के साथ ,खेलने लगे। खूब सारी बातें भी हुईं। खाना मेज पर लगा दिया गया , दीप्ती भी ,भाभी की सहायता करने लगी। अकेली भाभी क्या -क्या संभालती ?तभी दीप्ती की नजर , फ्रिज में रखी सब्जी पर गई ,और बोली- यह क्या बनाया है ? खुशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है।
हां ,दीदी !यह रात की सब्जी है , रात में बनाई थी, थोड़ी सी बच गई मैंने सोचा- बाद में गर्म करके खा लूंगी।
दीप्ति ने वह सब्जी वापस फ्रिज में रख दी और भाभी से बोली -भाभी ! मैं कभी भी ,बासी सब्जी और बासी रोटी नहीं खाती , वैसे तो डॉक्टर भी मना करते हैं, बासी खाना खाने के लिए।
वह तो मैं जानती हूं, पर दीदी ! सब्जी -नापतोल कर तो बनती नहीं , अंदाजे से ही बनाई जाती है कई बार ऐसा होता है ,किसी घर के सदस्य ने कम खाया किसी ने ज्यादा खा लिया। थोड़ा बहुत तो बच ही जाता है, मेरा तो विचार है -'' खाना कम नहीं पड़ना चाहिए।''
हां ,यह बात भी सही है। तब तक बच्चों ने खाना खा लिया था ,तब उसकी भाभी बोली -दीदी !आप भी खाना खा लीजिए।
दीप्ती भी खाना खाने लगी। घर के कार्यों से निपटकर , दीप्ति अपनी मम्मी के पास जाकर बैठ गई , और उनसे बातें करने लगी। लड़कियों की मैके में आकर क्या बातें होती हैं ?वही सास और ननद की बातें ,अपने मैके तो आ जाती हैं, किन्तु मन वहीँ अटका होता है ,चाहे ,बुराई के रूप में ही क्यों न हो ? अच्छी सास मिल गयी तो ,अच्छी बातों की चर्चा ,बुरी सास है ,तो उसकी जिन बातों ने नश्तर चुभोये हैं , उन्हें स्मरण करके , अपनी मां से अपना दुख बांटती हैं।अब कहने वाले तो, इन बातों को बुराई भी कह सकते हैं। किंतु जो कुछ भी उसके साथ घटा होता है अच्छा या बुरा ,इसका एहसास हमेशा उसके साथ रहता है। दीप्ति की भी कुछ खट्टी और कड़वी यादें थी ,जो वह अपनी माँ से बता रही थी।
तभी भाभी भी चाय लेकर अंदर आ गई , दीप्ति की कुछ बातें उसने भी सुन लीं ,वो बोली -दीदी ! बुरा तो नहीं मानोगी , ऐसी बातें सभी की जिंदगी में होती हैं क्योंकि अलग-अलग तरह के लोग होते हैं अलग-अलग स्वभाव के होते हैं, किसी से अपना स्वभाव मिलता है किसी से नहीं मिलता है। तब क्यों ''बासी रोटी'' खानी।
दीप्ति अपनी भाभी की बातों का आशय नहीं समझ पाई , और बोली -भाभी मैं तो बासी रोटी खाती ही नहीं, आपने इतनी अच्छी सब्जी बनाई थी ,फिर भी मैंने उसे नहीं खाया।
बासी से रोटी से मेरा आशय, पुरानी बातों को क्यों याद करना जिससे दिल में दर्द हो, दुख हो,'' जो बीत गया सो बीत गया। ''
भाभी !तुम मेरा दर्द नहीं समझोगी , मैंने क्या-क्या नहीं झेला ? जिस पर बीतती है ,उसे ही पता होता है जब मैं उन दिनों को याद करती हूं, तो मेरी रूह कांप जाती है और आज उन स्मृतियों को स्मरण करके क्रोध बढ़ जाता है।
सभी लड़कियों को कुछ ना कुछ दूसरे परिवार में जाकर समझौते तो करने ही होते हैं , मेरे हिसाब से मैंने भी यहां आकर थोड़े बहुत समझौते किए हैं। किंतु आपको लगता नहीं होगा क्योंकि मैं आपकी भाभी हूं। हां यह बात अलग है कि इतना ज्यादा नहीं सहना पड़ा। अब उन बातों को भूल जाओ !आगे बढ़ो !
आगे तो मैं कब की बढ़ चुकी हूं ?बस कभी-कभी यादें आ जाती हैं और मम्मी को देखकर कुछ ज्यादा ही यादें आ गईं। दीप्ति को अपनी भाभी का तर्क पसंद नहीं आया और बोली -भाभी ! मान लो !आपने बरसों पहले बबूल के बीज़ जमीन में दबाये थे ,अब वो 'बीज़ 'पेड़ बन गया। बबूल के बीज़ थे ,तो उस पर काँटे ही मिलेंगे।तब उस पेड़ से आप आम की उम्मीद कैसे कर सकती हैं ?बरसों पहले मेरे ह्रदय में ,मेरी सास द्वारा'' बबूल के बीज़ बोये गए ,''तब मेरे मन से उनके लिए ,अच्छे शब्द कैसे निकल सकते हैं ? दर्द के रूप में ,उनकी बुराई ही तो स्मरण रहेगी ,तब मैं अच्छाई कैसे गिना सकती हूँ ?
माना कि उन्होंने आपके साथ, सही व्यवहार नहीं किया किन्तु उस पेड़ को फलने -फूलने का मौका भी तो आप ही दे रहीं हैं ,उसे खाद -पानी देकर ,यानि उन्होंने एक बीज बोया ,तब आप उस पेड़ को पनपने क्यों दे रहीं है ?उस पेड़ को वहीँ काट दो ! उससे बचकर निकल जाओ !जब हमें मालूम है ,ये पेड़ कटीला है ,तब हम रास्ता भी तो बदल सकते हैं। सबसे बड़ी बात ,उसे सींचना ही नहीं है ,तब वो बड़ा नहीं होगा। मैं मानती हूँ ,अपनी माँ के सामने अपना दर्द हल्का करना होता है ,कर लीजिये किन्तु उस दर्द को यानि ''बासी रोटी ''खानी छोड़ दीजिये वरना आपका ही नुकसान के सिवा ,कुछ नहीं होगा। जो हमारी सेहत पर असर डालता है। हाँ ,ये बात अवश्य है ,जिन रिश्तों को हम परख लेते हैं ,सावधानी अवश्य बरतिए वरना दर्द का कोई नया बीज उत्प्नन होने में देर नहीं लगती।