आज आपको मिलवाते हैं ,''मिस्टर अनोखेलाल से '', मिस्टर अनोखेलाल ,अपने नाम की तरह ही अनोखे हैं। उनकी बातें भी दिलचस्प हैं , मैंने उस इंसान को जब भी देखा या मिला हमेशा खुश ही देखा। उसे इस तरह खुश देखकर, कभी -कभी मुझे उससे जलन भी हो जाती थी। मैं अक्सर उसे देखकर सोचता था ,ये भी बाल -बच्चेवाला इंसान है ,इसका अपना भी परिवार है ,पत्नी है ,माँ है किन्तु मैंने कभी उसे अपने परिवार या अपनी परेशानियों के लिए रोना -रोते नहीं देखा। कई बार मैंने उससे पूछा भी ,भई, अनोखेलाल जी ,क्या आपके घर में ,कभी आपकी पत्नी या माँ को लेकर नोकझोंक नहीं होती ,क्या वे एक -दूसरे की आपसे जुगली नहीं करतीं ?
तब भी मुस्कुरा कर बोले- यह कोई नई और बड़ी बात नहीं है, हर घर में यही चलता है , इसे देखा जाए तो एक तरीके से'' जनरेशन गैप ''भी कर सकते हैं , पत्नी उम्र में कम है ,पढ़ी लिखी है, नए ख्यालातों की है , दूसरी तरफ मां अनुभवी है , थोड़ी पारंपरिक सोच है और बहू पर या अपने छोटो पर हुकूमत करना चाहती है। सब विचारों में अंतर होना तो स्वाभाविक ही है। आप बताइए, आपके यहाँ सब कैसे हैं ?
मेरी पत्नी और मेरी माँ की कभी नहीं बनती ,घर जाता हूँ तो पत्नी और माँ के क्रोध का मैं ही , शिकार बनता हूँ। कभी बच्चों की मांगों को लेकर ,तनाव हो जाता है। अब आप ही सोचो !अपनी नौकरी की ,सिरदर्दी उसके पश्चात घर में आओ ! तो इन लोगों की चिकचिक, कभी -कभी तो लगता है ,जान ही दे दूँ। कम से कम इन झमेलों से छुटकारा तो मिलेगा। ऑफिस गया ,तब इसी तरह बातें हो रहीं थीं ,हर किसी का कोई न कोई रोना लगा ही रहता है।
परसों तो पाठक साहब ! की हालत ही खराब थी ,ऑफिस ही नहीं आये अस्पताल पहुंच गए। घरवाले कहते हैं -अब बहु का होकर ही रह गया है। पत्नी कहती -अपने छोटे बेटे के लिए ज्यादा कर रहे हैं। सास भेदभाव करती है। मैंने सीधे माँ से ही यह बात कह दी ,अपनी गलती को कौन मानता है ?न ही बीवी चुप रहने का नाम लेती है, दोनों में जमकर खूब झगड़ा हुआ और पाठक साहब ,पहुंच गए अस्पताल ! अब बीवी ,उनके सिरहाने बैठी रो रही है। घरवाले ,उन्हें देखने तो आये हैं किन्तु औपचारिक रूप से ,अब उनकी नाराजगी अपने घरवालों से भी है। वे कहते हैं -ये पराये घर से आई है ,ये बच्चे मेरे हैं ,तब इन्हें लेजाकर कहाँ छोड़ आऊँ ?क्या ये अब तक इस परिवार का हिस्सा नहीं बने हैं ?जब बुरा समय आता है ,तब कोई साथ खड़ा नहीं दीखता ,''वैसे सभी अपना अधिकार जतलाना तो जानते हैं ,किन्तु कर्त्तव्य के समय ये ही लोग न जाने कहाँ चले जाते हैं ?''
भई ! उनका तर्क भी अपनी जगह सही है ,किन्तु तर्क और सच्चाई को कोई नहीं जानना चाहता ,ये परिवार इक बना हुआ जाल है ,न ही निकलते बनता है ,न ही इसमें रहते बनता है। माता -पिता को इस उम्र में छोड़कर चले गए ,तब ये लोग ही कहेंगे -'बुढ़ापे में अपने माता -पिता को छोड़कर चले गए। इस छोटी सी जान को कितने जंजाल हैं ?फिर भी हमारे अनोखे लाल जी प्रसन्नचित्त रहते हैं। कभी पत्नी या माँ को कुछ भी कहते नहीं सुना ,न ही कभी उन्हें परेशान होते देखा बल्कि दूसरों की परेशानी में हमेशा साथ खड़े होते अवश्य देखा है।
एक दिन हमें ,उनके पड़ोसी अग्रवाल जी मिल गए ,तब उन्होंने बताया -कि इनके घर में आये दिन, झगड़े होते रहते हैं।
क्या सच में ?हमने आश्चर्य जताया।
झगड़े होना तो आम बात है ,सभी के घरों में होते हैं ,आप ये बतलाइये इनकी पत्नी -माँ इन्हें कुछ नहीं कहतीं या कोई और परेशानी !
क्यों नहीं कहतीं ?एक बार तो उनकी माँ ने उनकी पिटाई भी कर दी ,इस बात पर भी ,बहुत क्लेश हुआ क्यों कि किसी की पत्नी के सामने ,उसके पति की पिटाई हो तो वो भला कैसे बर्दाश्त कर सकती है ?उनकी पत्नी ने भी , बहुत कुछ अनोखेलाल जी को कहा है - नकारा हो ,कायर हो ,खड़े -खड़े पिट रहे हो ,शर्म नहीं आती इत्यादि।
तब भी शांत रहे !हम आश्चर्य से बोले।
जी हाँ ,उनका कथन था - मेरी माँ है ,मेरी गलती पर डाँटना उनका अधिकार है।
कोई व्यक्ति इतना सहनशील कैसे हो सकता है ?आजकल तो किसी छोटे बच्चे को ही डांट दो तो उसकी ही बेइज्जती हो जाती है। अनोखेलाल जी साधु तो नहीं हैं ,क्या उन पर किसी की भी बात का कोई असर नहीं पड़ता ,अब हमने तय किया -उनसे ही, इस बात का राज जानना होगा।
संयोग से तीन दिन बाद ,बाजार में एक दुकान पर मिल गए ,उन्हें देखकर हमारी बांछें खिल गयीं ,सोचा आज ही इनसे इनकी सहनशीलता का राज पूछ लेते हैं -और भई अनोखेलाल जी !क्या चल रहा है ?
वे अपनी वही पुरानी मुस्कान के साथ बोले -सब मजे में हैं।
कहाँ जा रहे हैं ?
वही घरेलू सामान लाने जा रहे हैं।
अच्छा एक बात बताइये !सच -सच बताना ,क्या आपके घर मैं कभी कोई क्लेश नहीं होता।
क्यों नहीं होता ?ऐसा कोई घर है ,जहाँ तू -तू ,मैं -मैं न होती हो , उन्होंने तुरंत जबाब दिया।
तब क्या ?आप कभी परेशान नहीं होते ,मेरा मतलब है ,आपको कभी परेशान या फिर किसी भी तरीके की ,किसी से कोई शिकायत करते भी नहीं देखा ,न ही आपको कभी अपने व्यापार को लेकर परेशान होते देखा है ,जबकि व्यापार में ऊंच -नीच तो चलती ही रहती है ,तब भी आप ,जब भी दिखलाई दिए ,अपनी इसी प्यारी मुस्कुराहट के साथ दिखलाई दिए ,मेहनत भी खूब करते हैं ,क्या मैं इस मुस्कुराहट का राज जान सकता हूँ ,आपकी ये मुस्कुराहट ,मुझे झूठी भी नहीं लगती।
अनोखी लाल जी मुस्कुराए, और बोले -झूठी मुस्कुराहट ,झूठी जिंदगी जी कर करना क्या है ? परिवार में खटपट अनबन तो लगी ही रहती है, मुझे ऐसा कोई परिवार नहीं दिखता ,जहां पर परेशानी ना हो, तब अपनी परेशानी का रोना रोने से क्या लाभ ? हर कोई परेशान है , अब किसी के सामने अपना दुखड़ा तभी तो रोया जाए, कि वह खुश है ,यदि वह भी खुश नहीं हैं ,हमारी तरह ही परेशान है ,तो उसके सामने दुखड़ा रोने से क्या लाभ ? सभी अपने- अपने कर्मों का लाभ ले रहे हैं ?
कभी-कभी मेरी पत्नी भी कहती है - दुनिया में ऐसे लोग क्यों होते हैं कुछ लोग तो बैठकर ही खाते हैं , और कुछ लोगों को मेहनत करते -करते भी , उसके परिश्रम का फल उसे नहीं मिलता।
तब मैंने कहा -ये इसके कर्मों का ही फल है। किसी को बैठे-बिठाए खाने को मिल रही है, किसी को मेहनत करके भी ,दो रोटी नसीब नहीं हो रहीं , कोई इसीलिए परेशान है कि यह बैठकर क्यों खा रहा है ? मैंने एक बार कहीं पढ़ा था -''यह इंसान के अपने पिछले कर्मों का फल होता है , जो इस जन्म , में उसने अच्छी जगह जन्म लिया, अमीर परिवार में पैदा हुआ या बैठ कर खा रहा है , या फिर उसने पिछले जन्म में ऐसे कर्म किए हैं कि उसे मेहनत करते हुए भी, खाने को नहीं मिल रहा। तब मैं अक्सर सोचता हूं -''यदि मेरे पिछले कर्म बुरे हैं उन्हीं के आधार पर मुझे पुत्र, पत्नी व मां यह सब मुझे मिले। अब मैं सोचता हूं -यदि अपने कर्म इस जन्म में भी खराब करूंगा तो मेरा आगे आने वाला जन्म भी बिगड़ जाएगा कहकर वह मुस्कुराने लगे।'' तुम समझ रहे हो ना....... हमने पिछले जन्म में जो कर्म किए उनका फल हम अब इस जन्म में भोग रहे हैं , और अब जो कर्म करेंगे उनका फल या दुष्परिणाम हमें अगले जन्म में भोगना होगा , इसीलिए मैं सोचता हूं इस जन्म में अच्छे कर्म करूंगा , तभी तो मेरा अगला जन्म सुधरेगा। बात बहुत बड़ी और गहरी थी जो उन्होंने आसानी से कह दी।
ये बात बहुत से लोग जानते भी होंगे, किन्तु इस बात पर अमल तो हमारे ''अनोखेलाल जी ''ही कर रहे हैं। मैं समझ रहा था ,कि उनकी खुशी का राज उनके'' अगले जन्म की तैयारी ''है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी, वह निर्लिप्त भाव से सभी कार्य कर रहे थे ,'' जो मिल रहा है ,उसमें भी खुश ! जो नहीं मिला है उसमें भी खुश ,'' यही उनकी खुशी का रहस्य था। हम लोग छोटी-छोटी बातों पर परेशान होने लगते हैं , बात इतनी बड़ी भी नहीं होती और उसका'' तिल का ताड़'' बना लेते हैं , यदि हर इंसान उनकी तरह सोचने लगे तो शायद, जीवन की आधी उलझनें कम हो जाएं। वह तो चले गए, किंतु उनकी बात सुनकर मैंने भी ,अब यह ''गुरु मंत्र की तरह'', बात अपने जीवन में ,गांठ बांध ली।