मैं अक्सर उन्हें ,अपनी खिड़की से देखा करता ,वह एक तस्वीर लिए ,या कुछ कागज...... ,दूर से इतना पता नहीं चल पा रहा था , वे लोगों से मिलते ,कुछ पूछते या बातचीत करते और चले जाते। पता नहीं ,क्या जानना चाहते हैं ? लेकिन वो प्रतिदिन ,अक्सर लोगों से मिलते, उनसे बात करते और फिर वापस चले जाते , न जाने किसकी तलाश है ? क्या जानना चाहते हैं ? एक दिन मुझे भी मौका मिला ,मैं उठ कर उनके करीब चला गया, मैंने पूछा -अंकल जी ! क्या आप किसी की तलाश में हैं ?
मुझे देखकर उनके चेहरे पर ,रौनक आ गयी ,और बोले -मैं अपने बेटे को ढूंढ़ रहा हूँ।
क्या आपका बेटा, कहीं गया है, क्या ?
हां, वह मुझे छोड़ कर गया था ,कह रहा था -पापा ! आप यहां ठहरिये , मैं अभी आता हूं। वह जब से गया है , आया ही नहीं। मैंने सोचा ,कोई छोटा बच्चा या छोटा लड़का होगा , तभी उन्होंने मुझे फोटो दिखाया, जिसमें पच्चीस -छब्बीस साल का जवान लड़का था।
मैंने आश्चर्य से पूछा -इतना बड़ा लड़का ,यह कैसे खो गया ?
पता नहीं ,मुझसे कहकर गया था ,अभी आ रहा हूँ।
ये क्या करता है ? कहीं आपको छोड़कर तो नहीं चला गया।
ये फ़ौजी जवान है , ये मैदान से पीछे नहीं हटता ,पीठ दिखाना इसने नहीं सीखा। वो अवश्य ही यहाँ आएगा ,कहकर वो चले गए ,जैसे ,उन्हें मेरी बातों से दुःख पहुँचा हो। मैं उन्हें जाते देख रहा था। मन ही मन सोच रहा था -आजकल के बच्चे ,जिस तरह माता -पिता को झूठ बोलकर चले जाते हैं ,या बीच राह में छोड़ जाते हैं। शायद ये भी ,इसी तरह झूठ का शिकार हो गए हैं।
मैंने सामने ही ,''टी स्टाल ''वाले से चाय बनाने के लिए कहा ,किन्तु उन अंकल की बात मेरे मन में अभी भी घूम रही थी। तब मैंने चायवाले से ही पूछा - क्या तुम उन्हें जानते हो ? वे कौन है ?
आप किसकी बात कर रहे हैं ? चाय वाले ने पूछा।
मैंने सोचा था, शायद ,इसने मुझे उनसे बात करते देख लिया होगा , अरे वही ,जो अपने लड़के का फोटो लिए घूमते रहते हैं ।
ओहो ! वो ,खन्ना साहब ! बेचारों के साथ बहुत बुरा हुआ उसने मुँह बनाते हुए कहा।
ऐसा क्या हो गया ? मैंने जिज्ञासावश पूछा।
उनका बेटा ''फौजी'' था।
फौजी था ,मतलब !अब नहीं है ,उसका जबाब ,मेरी उम्मीद के विपरीत था।
ये कोरोना के दिनों की बात है , वह अपनी छुट्टी में आया हुआ था , उसने यहां रहकर भी, बहुत से लोगों की सहायता की और सेवा भी की जिसके कारण, वह भी बीमार हो गया किंतु अपने पिता को नहीं बताया ये बीमारी उन्हें न लग जाये , उन्हें वृद्ध आश्रम के करीब छोड़कर बोला -मैं अभी आ रहा हूं , वृद्धाश्रम वालों को भी फोन कर दिया था कि वह उन्हें अपने आश्रम में जगह दे दें , परिवार में और कोई नहीं था। पिता को सुरक्षित कर, अस्पताल में भर्ती हो गया , किंतु कोरोना के प्रकोप से नहीं बच सका।आज ये ,उसी की तलाश में रहते हैं ,इन्हें लगता है ,इनका बेटा आएगा ,किसी ने इनके बेटे के विषय में ,इन्हें कुछ नहीं बताया -ये सुबह उठकर ,नहा -धोकर उसकी तस्वीर लेकर चल पड़ते हैं ,अपने बेटे की तलाश में ,कुछ लोगों से पूछते हैं ,थक जाते हैं ,तो वापिस चले जाते हैं।
उनकी कहानी सुनकर मुझे दुःख हुआ ,अगले दिन , मैं उनसे मिलने ,वृधाश्रम की ओर चल दिया। मुझसे मिलकर खुश हुए और मुझे पहचान भी गए ,तुम तो वही हो ,जिसे मैं कल मिला था।
जी........
तुम यहाँ कैसे ? उत्सुकता से उन्होंने पूछा।
मैं आप ही को ढूंढ रहा था किंतु पहचान नहीं पाया , मैं आपके बेटे का दोस्त हूं , मेरा नाम निर्भय है , उसी ने मुझे भेजा है।
इतना सुनते ही वो बहुत खुश हो गए और बोले -वह कब आ रहा है ?
उसे अभी छुट्टी नहीं मिल रही है ,उस पर काम का बहुत दबाब है , इसीलिए उसने मुझे आपको लेने के लिए भेजा है , अब आप मेरे साथ चलकर , मेरे घर में रहेंगे ,मेरे दोस्त के पिता क्या वृधाश्रम में रहेंगे ? जब तक वो नहीं आता ,आप मेरे साथ चलकर रहिये वरना वो मेरी क्लास ले लेगा।
मेरी बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हुए , अपने बेटे का कुछ तो संदेश मिला , वो सहर्ष मेरे साथ ,आने के लिए तैयार हो गए , मैंने उन्हें बताया -''इस कोरोना में मेरे माता - पिता भी नहीं रहे , उन्हें मुझसे सहानुभूति हो गई , और बोले -मुझे ही अपना पिता समझना, कहकर मुझे आशीर्वाद दिया। इस बात को पांच वर्ष हो गए हम दोनों एक साथ रहते हैं ,एक दूसरे का'' सहारा'' बनकर। धीरे-धीरे मैंने उन्हें उनके बेटे के विषय में भी बतला दिया- कि वह एक बहादुर फौजी था। आज वह इस परिवार में,अपने पोते -पोती के साथ रच बस गए हैं।