इंसानों की तरह ही लोभ के भी कई रूप है ,कई रूपों में नजर आता है। हमारे बड़े बुजुर्गों ने कहा है -क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह ये सभी पतन की ओर ले जाते हैं। ये सभी बुराइयां हैं ,किन्तु मेरा मानना है ,इनमें कोई बुराई नहीं, इंसान की सोच में बुराई होती है। इन सबकी अधिकता में बुराई है। इस पर एक कहानी मैं आपको बताती हूँ। एक किसान के चार बेटे थे। पिता ने मरते समय अपने बच्चों से वचन लिया ,सभी मिलजुलकर रहना और घर की उन्नति के विषय में सोचना। मेरी सम्पूर्ण जायदाद तुम चारों की ही है ,मैं चाहता तो तुम्हारा बंटवारा भी कर सकता था किन्तु मैंने सोचा -बंटवारे में ,इस जमीन के टुकड़े -टुकड़े हो जायेंगे। तीनों भाई चाहते थे ,कि बंटवारा हो !हम अपनी जमीन को बेचें या उस पर खेती करें ,ये हमारा निर्णय होगा। उनका लोभ ,इतना अधिक बढ़ गया था ,वे अपने पिता के मरने की प्रतीक्षा में ही थे। कब वो जाये और हम खुलकर अपने तरीक़े से अपना जीवनयापन करें।
सबसे बड़ा ,भाई पिता की तरह ही सोचता था -उसके मन में ,जायदाद का कोई लोभ नहीं था। वो बाहर रहता था किन्तु यह चाहता था -मेरे तीनों भाई मिलकर ,इस सम्पत्ति को संभालें और समय -समय पर आकर मैं भी इनकी सहायता कर दिया करूंगा। उसने पूरे दिल से पिता को वचन भी दिया और उसे निभाने का प्रयास भी किया।
अब तीनो भाई आपस में सलाह करते ,यह तो बाहर शहर में रहकर मौज कर रहा है और हम गांव में परेशानियों में जूझ रहे हैं। परेशान तो उनका बड़ा भाई भी था ,किन्तु उसने अपनी परेशानी ,कभी छोटे भाइयों को नहीं बताई और उसका हमेशा यही प्रयास रहता कि घर का बंटवारा न हो।
भाई, पिता के मरने का इंतजार था। इस किसानी से तो मैं तंग आ गया ,सोच रहा था -कोई व्यापार करूंगा किन्तु अब ये 'रमन 'पिता की जगह सिर पर बैठ गया।
हाँ ,तपन मैं भी यही सोच रहा था -इस जमीन को बेचकर शहर में मकान ले लूंगा किन्तु रमन तो बंटवारे की बात करता ही नहीं।
अरे !काहें का बंटवारा !ये जमीन तीन हिस्सों में बटेगी ,वो तो शहर में मौज ले रहा है ,खेती उससे आती नहीं है ,वो इस जमीन का क्या करेगा ?वो तो पढ़ -लिखकर ' लाटसाहब ''बन गया और हम यहाँ गधा मजदूरी कर रहे हैं।सबसे छोटा बोला।
लोभ रमन को भी था ,पिता की सम्पत्ति बनी रहे ,परिवार एकजुट रहे।
लोभ तपन को भी था,सम्पत्ति को बेचकर शहर में रहने का लोभ !सुख पाने का लोभ !
सबसे ज्यादा लोभ तो सबसे छोटे को था ,भाई का हिस्सा ही हड़पना चाहता था। धीरे -धीरे यह बात रमन को पता चली कि उसके भाई बंटवारा चाहते हैं तो उसे दुःख हुआ और उसने समझाने का प्रयास किया। तुम क्या समझते हो ?बाहर कोई दुःख -तकलीफ़ नहीं है। जीने के लिए सभी को परिश्रम करना पड़ता है। ये हमारी पुश्तैनी जमीन है ,जो हमारे पुरखे छोड़कर गए हैं। इसे क्यों बर्बाद करते हो ?फिर तुम लोग इतने पढ़े-लिखे भी नहीं कि कहीं नौकरी ही कर सको। इस जमीन को बेचकर क्या करोगे ? क्या ये सब सोचा है ?
छोटा वाला पूरे तैश में आ गया और बोला -तुम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे भी आगे बढ़ें और हम ये भी नहीं चाहते- कि तुम्हें तुम्हारा हिस्सा मिले। इतने दिनों से हमारा बाप बनने की कोशिश कर रहे हो कहते हुए पास रखा मूसल भाई के सर पर दे मारा। क्रोध और लालच में भूल गया था इसका परिणाम क्या होगा ? रमन वहीं ढेर हो गया ,छोटा उसकी हत्या के जुर्म में जेल चला गया। उधर रमन के बच्चे अनाथ हो गए ,छोटे के बच्चों को भी अपमान सहना पड़ा। ओने -पौने दाम में ,उस जमीन को बेचकर दोनों भाई गांव छोड़कर चले गए। लोभ की अधिकता दोनों में ही थी ,वो पिता को दिए वचन को निभाना चाहता था ,दूसरा जमीन हड़पने की फिराक़ में था। यदि बड़ा भाई ज्यादा भला न बनकर उनको उनके हिस्से के साथ उनके हालात पर छोड़ देता। भाइयों में इतना आक्रोश न बढ़ता। तब वो शायद जिन्दा होता। यदि मन में उसकी सम्पत्ति हड़पने का लोभ उसके भाइयों में आ ही गया था। तब शायद मौका देखकर कभी भी उसे मारने का प्रयास भी कर सकते थे। फ़र्क इस बात से नहीं पड़ता कि किसने क्या और कैसे किया ?किसका लोभ अधिक था ,सही था या गलत !अब यह निर्णय आप करिये !