आज प्रातः काल जब मनु उठी तो सिर में, थोड़ा भारीपन था अजीब सा महसूस हो रहा था समझ नहीं आ रहा ,ऐसा क्या हुआ है ? सिर में हल्का-हल्का दर्द था, सोच रही थी -आज सिर की थोड़ी मालिश की जाए। रसोई घर में गई और गैस के चूल्हे पर चाय बनाने के लिए ,चाय का पानी रख आई और सिर में डालने के लिए ,थोड़ा तेल गुनगुना करने लगी थी ,तभी उसे एक फोन आ गया। जिसको सुनते ही, उसकी हालत खराब हो गई। क्या हुआ था ?कब हुआ ? कैसे हुआ ? बहुत कुछ पूछना चाह रही थी किंतु फोन करने वाले ने तुरंत ही फोन काट दिया। अपने सिर दर्द की भी परवाह नहीं रही और दुख के कारण वहीं पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। पति ने उसे इस हालत में देखा तो उससे पूछा -किसका फोन था ?
आंखों में आंसू लिए अपने पति की तरफ देखा, और बोली -भाई का फोन था।
क्या हुआ ?
पापा ,नहीं रहे, कहते हुए रोने लगी।
पति ने उसे ढांढस बंधाया -एक न एक दिन तो उन्हें जाना ही था , उम्र भी हो चली थी। परेशान ही हो रहे थे। चलो !चलते हैं ,मैं गाड़ी निकालता हूं। दीपक समझाते हुए बोला -तुम वहां ज्यादा मत रोने लगना , अपनी तबीयत का भी ख्याल रखना। मनु ने दीपक की बातों को अनदेखा किया और जाकर गाड़ी में बैठ गई। वह शीघ्र अति शीघ्र घर पहुंच जाना चाहती थी।
रास्ते में, उसकी आंखों के सामने उसके पापा का चेहरा घूम रहा था। बचपन से लेकर अब तक, इंसान कैसा हो जाता है ? कोई कितना भी किसी के लिए कुछ भी कर ले ,लेकिन अंत में परिणाम अच्छा नहीं होता। विशेषकर अपने बच्चे ही अपने दुश्मन हो जाते हैं। 'बच्चे ही क्या ?यह तन ही, अपने जीवन का दुश्मन हो जाता है ,यह ही साथ छोड़ने लगता है। मनुष्य दूसरे के भरोसे रह जाता है ,उसके साथ कोई अच्छा कर रहा है या बुरा कर रहा है ,मजबूरीवश और धैर्य से उसे सब सहन करना पड़ता है। ''सारा जीवन कमाने में बिता दिया अपनी खुशियों का कभी ख्याल ही नहीं रखा। बेटियों का विवाह करवा दिया। भाइयों को पढ़ाया। बेटियां विवाह करके अपने ससुराल में चली गईं और बेटे अपनी -अपनी पत्नियों को लेकर अपनी नौकरियों पर चले गए। रमन लाल जी का किसी को ख्याल ही नहीं आया। जब से पत्नी गुजरी हैं ,बस अपने बनाए ,उस घर की देखभाल ही कर रहे हैं या यूं कहें ,उम्र के बाकी दिन बिता रहे थे। बच्चे अपने-अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हैं ,उन्हें उनकी कोई परवाह ही नहीं है ,अपनी पत्नी के आगे अपने बच्चों के आगे ,उन्हें कुछ नजर नहीं आता। बस एक लम्बा इंतजार लग रहा था कि कब जायेंगे ? एक बूढ़ा बीमार ,लाचार पिता, हालांकि साहस करके ,वह अपने जीवन से लड़ रहा है। बच्चे भी तो अपनी नौकरी छोड़कर नहीं आ सकते अपनी पत्नियों के साथ रहना भी पड़ता है ,किंतु क्या ऐसे में दोनों भाइयों ने ही पिता को भुला नहीं दिया ,क्या किसी के पास भी ,उन्हें अपने पास रखने का समय नहीं था।
गलती ,बहुओं की नहीं ,अपने बेटों की है ,हमारी परवरिश में ही कमी रही ,बहुएं तो पराये घर की हैं ,वे ही हमें कैसे अपना लेंगी ?जब बेटे ही ,अपने होकर ,न अपना सके,एक बार पापा ने ही ,ऐसा कहा था।
लो ! घर आ गया कहते हुए दीपक ने गाड़ी को ब्रेक लगाया। मनु शीघ्रता से, गाड़ी से उतरी और पिता की तरफ देखा, निस्तेज ,निश्चल ,शांत चेहरा ! किंतु उस पर पड़ी झुरियां, न जाने कितनी कहानी कह रही थीं ? उनके जीवन की ,उनके संघर्ष की, उनके प्रेम की, यह सब कहानियां अब इस घर में समा गई हैं। यह घर कुछ बोलना नहीं जानता किंतु उसने सब कुछ देखा है। वह भी, जो मनु नहीं जानती, सिर्फ महसूस करती है अपनों से के दूर जाने का दर्द ,अपनों से हुए अपमान का दर्द ,जब तक उनका चेहरा नहीं देखा था तब तो मनु रो रही थी, किंतु अब न जाने, कैसी संवेदना उसके अंदर भर गई, उसे रोना ही नहीं आ रहा उसे लग रहा था -चलो ! इस अनचाहे जीवन से इन्हें मुक्ति तो मिली।
तभी मनु का भतीजा आकर उसके पास बैठकर, रोने लगा। बुआ ! बाबा जी चले गए, उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मनु बोली -हां ,बेटा !एक दिन सबको जाना ही होता है। इन्हें रोकर नहीं, शांत रहकर विदा करो ! आखिर ऐसे जीवन से, उन्हें मुक्ति मिली, जिसकी किसी को चाहत ही नहीं थी। वह स्वयं भी इस तन से थक चुके थे , अब आराम करेंगे। रामलाल जी की विदाई की सभी तैयारियां होने लगीं और कुछ समय बाद, उन्हें गंगा जी ले जाया गया।
हर्षित को देखकर सभी कहते -बाबा पर गया है ,इस बात को सुनकर वह मुस्कुरा उठता, खुश होता क्योंकि वह अपने बाबा से बहुत ही प्यार करता था।
तब मनु बोली -बेटा !यह जीवन है , यह जिंदगी का सफर है, इसमें लोग आते -जाते रहते हैं। अपने व्यवहार से ,अपने प्रेम से ,अपनी कुछ यादों को छोड़ जाते हैं। किंतु एक बात कहती हूं -तुम्हें जो यह तन मिला है, इस पर कभी अभिमान मत करना, तुमने देखा, तुम्हारे दादाजी अपने समय में कैसे रहे होंगे ? और आज, उनका तन कितना कमजोर और जर्जर हो गया था ? ऐसे समय पर दूसरे पर आश्रित होना इंसान की मजबूरी हो जाती है। जब तक इंसान के हाथ -पैर चलते रहते हैं, वह अपने गुरूर में, न ही इंसान को इंसान समझता है ,न ही ,दूसरों की भावनाओं की कद्र करता है। तुमने देखा, दादाजी ने घर बनाया, सभी सुख सुविधाएँ कीं , किंतु आज उनके साथ कुछ भी नहीं गया। न मैं, न कोई सामान, न घर ,न गाड़ी , यहां तक कि उनका तन भी उनके साथ नहीं जा पाएगा। सिर्फ उनका व्यवहार, उनका प्रेम उनकी यादें हमारे साथ रहेंगीं। जब तक हम जिंदा हैं, उन्हें स्मरण करते रहेंगे। तुमने देखा इंसान के साथ कुछ भी नहीं जाता, उसका व्यवहार और उसका प्रेम ही ,इंसानों को उसकी याद दिलाता है वरना वह इंसान भी याद नहीं रहता , इसीलिए इस जीवन में, परिश्रम करना, दूसरों का सम्मान करना, स्वार्थी मत बन जाना, लालसा से मत भर जाना, अपने लिए भी समय बिताना और हमेशा प्रसन्न रहना। किसी को ठेस मत पहुंचाना, और इस तन पर तो कभी भी अभिमान मत करना। बाकी समय के साथ, कभी तुम्हारे पास समय हुआ ,किसी की याद आए तो बुआ को भी स्मरण कर लेना, कहकर वह अपने भाइयों से विदा लेकर अपने घर आ गई , जिसकी जिम्मेदारी उसके पिता ने वर्षों पहले उसे सौंपी थी।