जी हाँ ,आज की हमारी कहानी की नायिका ''सुम्मी ''है ,जो सांवली सी भोली -भाली ,अंतर्मुखी लड़की है। वैसे तो माता-पिता ने उसका नाम' सुमनलता 'रखा है किंतु मां लाड में उसे 'सुम्मी 'ही कहकर पुकारती है।सांवली होने के पश्चात भी ,उसके तीखे नयन ,नक्श ,किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी थे। सुम्मी अपने में ही खोये रहने वाली ,एक सीधी सी लड़की है अपने मन की बात ,किसी से नहीं कहती है, अपने माता -पिता की इकलौती संतान है। वो अपने आस -पास के वातावरण को देखती ,महसूस करती है ,अनेक प्रश्न उसके जहन में गूंजते हैं ,किन्तु किससे बात करे ,किससे पूछे ?हर चीज मम्मी से तो नहीं पूछ सकती ,उसकी मम्मी उसे बाहर कहीं जाने ही नहीं देतीं ,इसीलिए उसकी कोई दोस्त भी नहीं है। एक- दो स्कूल की दोस्त हैं भी तो ,स्कूल तक ही सीमित हैं। उनसे भी कभी उसने अपने मन की कोई बात नहीं की। इसीलिए किताबें पढ़ती रहती। पापा ने रेडियो लाकर दिया ,तो रेडियो में गाने सुनती रहती और उसका मन लगा रहता।
जब थोड़ी और बड़ी हुई तो घर में ,टेलीविजन आ गया। अब उसका मन ,अपनी शिक्षा के साथ -साथ ,टेलीविजन पर कभी धारावाहिक देखती या कभी चलचित्रों में खो जाती ,अभी वो बारह बरस की ही तो हुई थी ,किन्तु फिल्मों ने उसके मन पर गहरा असर किया ,किस तरह दो प्रेमी मिलते हैं ,दोनों में प्यार होता है। एक -दूसरे पर जान लुटाने के लिए तैयार रहते हैं। वो अक्सर सोचा करती -मुझे भी , ऐसा ही प्रेम करने वाला पति मिलेगा। उसकी सभी कल्पनाएं उस तक ही सीमित रहतीं क्योकि उसकी मम्मी ने उसे डरा जो दिया था ,अपने मन की बात किसी न कहना ,आजकल जमाना ठीक नहीं ,किसी की कमजोरी मिल जाये तो ,उसका लाभ उठाने लगते हैं। इस डर से भी ,अपनी भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखती। मन ही मन उसके विचार उमड़ते और मन में ही दफन हो जाते। कुछ फिल्मों से कुछ किताबों से उसका ज्ञान बढ़ रहा था किंतु कहती, किसी से कुछ नहीं थी। उसमें अजीब तरह का' दब्बूपन ' आ गया था , अपने आप से बहुत लड़ती और प्रयत्न करती , वह भी अन्य लड़कियों की तरह , खेलें ,प्रतियोगिता में भाग ले , खुलकर हंसे ,किंतु बस यह सब सोच ही पाती थी ,कर नहीं पाती थी। करना बहुत कुछ चाहती थी किंतु अपने दब्बूपन के कारण , अपने अंतर्मुखी व्यवहार के कारण ,किसी के सामने खुलकर नहीं आ पाती थी।
उम्र के साथ-साथ उसे इस बात का आभास होने लगा , कि वह अन्य लड़कियों से कुछ अलग है , जब उन्हें हंसते हुए देखती तो उसे लगता ,मैं क्यों, ऐसे खुल कर हँस नहीं पा रही हूं , वह तो सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती। उन्हें बात करते देखती तो लगता ,मैं क्यों नहीं कर सकती ? अब यह उसकी परीक्षा ही समझिए अपने आप से ही लड़ने लगी। वह भी आगे बढ़ने का प्रयास करने लगी , साहस करके प्रतियोगिता में भाग लेने लगी।धीरे -धीरे उसमे आत्मविश्वास जगने लगा। इसी बीच उसके पापा की बदली हो गयी और वो दूसरे शहर में ,चली गयी। सुम्मी के पापा हमेशा ,उसे कहते ,न जाने इसका विवाह कैसे होगा ?इतनी जंचती नहीं ,उनके लिये , गोरा रंग ही सुंदरता का प्रतीक था। इस कारण अपने को ,ठीक तरीके से संवार कर रहने का प्रयास करती।
जब भी कोई उसकी प्रशंसा करता ,तब उसे लगता, ये उसकी प्रशंसा नहीं वरन हंसी उड़ा रहा है।पापा के कहेनुसार वो अपने को सुंदर मानती ही नहीं थी। वो मेकअप तो नहीं करती, किन्तु सही से कपड़े पहनना ,केश सज्जा ,सब पर विशेष ध्यान देती। एक दिन उसकी यही सादगी ,उसका भोलापन किसी को भा गया ,संयोग ये हुआ ,वो सुम्मी को भी भा गया। जब सुम्मी ने उसे पहली बार देखा ,तो देखती रह गयी ,वो और कोई नहीं, उनके पड़ोसी का लड़का था ,दोनों आँखों ही आँखों में एक -दूसरे को देखते और मुस्कुराते। वो कभी उसके घर फोन करता तो कभी सुम्मी की मम्मी फोन ,उठाती ,कभी उसके पापा। उसकी नजर अक्सर सुम्मी के घर पर ही रहती ,सुम्मी भी उससे मिलना चाहती थी किन्तु इसमें उसका दब्बूपन ही आड़े आ रहा था। एक दिन वो बाहर गयी थी ,तब ही वो ,उसका पीछा करने लगा और एकांत गली में ,वो सुम्मी के सामने आ गया। उसे इस तरह अकेले में देखकर ,सुम्मी बुरी तरह घबरा गयी और उस गली से बाहर निकलने के लिए ,अपनी गति तीव्र कर दी।
नमन, ने उसे रोकना चाहा ,और बोला - रुक जाओ !मेरी बात तो सुन लो !किन्तु सुम्मी नहीं रुकी ,उसका बस चलता तो वो भी रूककर ,बहुत कुछ कहना चाहती थी -''कि वो भी उसे पसंद करती है ,किन्तु घबराहट इतनी थी ,उसका दिल शायद बाहर निकलकर गिर जायेगा ,उसे तभी शांति मिली ,जब तक वो उस सुनसान गली से बाहर नहीं आ गयी। घर आकर अपने व्यवहार के लिए अचम्भित थी ,उसने हाथ आया मौका गंवा दिया। कहना बहुत कुछ चाहती थी ,किन्तु अपने एकांत में ही ,उससे बहुत सारी बातें करती ,उससे रूठती ,उसे मनाती।
एक दिन नमन का पत्र उसे मिला ,मेरी प्यारी सुम्मी !
तुम बहुत सुंदर हो ,जबसे तुम्हें देखा है ,तुमसे प्यार हो गया है किन्तु मैं नहीं जानता ,तुम भी मुझे प्यार करती हो या नहीं। तुम्हें फोन करता हूँ ,तो फोन भी नहीं उठातीं हो ,क्या तुम मुझे पसंद करती हो या नहीं ,दूर से अपनी मुस्कान भेज देती हो ,पास आने पर घबराती हो। तब भी , मुझे अच्छी लगती हो। अभी मैं पढ़ने के लिए बाहर जा रहा हूँ ,यदि तुम भी मुझसे प्यार करती हो तो, अपने घर की छत पर आ जाना मैं समझ जाऊंगा। तुम्हारा नमन !
पत्र पढ़ते ही ,सुम्मी बाहर की तरफ भागी किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि जब उसे पत्र मिला ,वो उसने तभी नहीं पढ़ा ,छुपते -छुपाते ,तीन -चार घंटे पश्चात ,उसे पढ़ पाई। छत पर आई ,वो नहीं दिखा ,अपने घर की बालकनी में गयी ,तब भी नहीं दिखा ,थोड़ी -थोड़ी देर बाद ,बाहर जाकर झांकती और वापस आ जाती ,मन में रह -रहकर दर्द बढ़ रहा था ,किसी से कह भी नहीं सकती थी। अब घंटों खड़ी उसके घर को निहारती रहती ,उसका ''पहला प्यार ''उसके जबाब के इंतजार में चला गया। और वो उसके इंतजार में उस घर को निहारती रहती ,शायद वो अभी घर से बाहर निकलकर आएगा और अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे देखेगा। कभी तो ये इंतजार पूरा होगा ,कभी वो अपने घर आया भी तो ,व्यस्तता के कारण या कैसे भी ,उसे नहीं दिखा ,या उसने सुम्मी के न दिखने पर ,शायद उसका इंकार समझ लिया था किन्तु सुम्मी हर बार एक उम्मीद से उसकी प्रतीक्षा में थी ,एक तड़प थी ,बस एक बार दिख जाये ,तो उससे खूब बात करूंगी ,उससे अपनी देरी की क्षमा याचना करूंगी।
इतने इंतजार के पश्चात ,वो दिखा भी तो उस दिन ,जिस दिन वो दुल्हन बनी बैठी थी ,उसे देखकर उसके दिल का गुब्बार ,आँखों से बह निकला ,उसका दिल तड़प रहा था। वहाँ बैठी महिलाएं समझ रहीं थीं ,घर से दूर होने के दुःख में दुखी है किन्तु उसका दुःख तो वही जानती है ,उसकी व्याकुलता इतनी बढ़ गयी उसने एक बच्ची के माध्यम से उसे बुला भेजा ,नम आँखों से उससे बोली -उस दिन मैं छत पर आई थी ,तभी दुल्हन को स्टेज़ पर ले जाने के लिए ,कुछ लड़कियों ने उसे घेर लिया ,नमन उसे जाते देख रहा था।