अरे ,कलमूही ! यह तूने क्या कर डाला ? यह सब करते हुए, तुझे तनिक भी शर्म नहीं आई। तूने परिवार की इज्जत को, मिट्टी में मिला डाला। डोली की मां उस पर चिल्लाते हुई ,बोली -उसके मन में तो आ रहा था कि इसे पीट -पीटकर अधमरा कर दे, कितने दुखों से इस पाला है ? इसकी हर इच्छा पूर्ण की ,इसे पढ़ने भेजा और आज इसने यह दिन दिखला दिया। तुझे क्या जरूरत थी ? उसके पास जाने की,ज्यादा ही जवानी फूट रही है। हमसे कहती, हम तेरा ब्याह करा देते, इस तरह हमारी ''नाक तो न कटती। '' तुझे तनिक भी शर्म नहीं आई , तुझे क्या ?पूरे गांव में, रतिराम का लौंडा ही मिला था। क्रोध में ,पार्वती न जाने क्या-क्या बोले जा रही थी ?
डोली रोते हुए ,अपने कमरे में चली गई। अपने पति की तरफ देख कर, पार्वती बोली -मेरे पिता ने मेरा नाम पार्वती रखा है, और औलाद ऐसी निकली है। यह सब तुम्हारे लाड -प्यार का ही नतीजा है। जब मैं इस पर नजर रखती थी, इसे डांटती थी , तब मुझसे कहते थे -क्यों इसके पीछे पड़ी रहती हो ? कल को ब्याह करके अपने घर चली जाएगी , कुछ दिन तो इसे आराम से रहने दो! अब रह ली आराम से, कटवा दी नाक ,अब किससे क्या-क्या कहेंगे ? किसको सफाई देते फिरेंगे ? अब क्या होगा? इसका, पूरे गांव में थू -थू हो रही है। मैं भी तो कहूं ,इसमें कैसे फुर्ती आ रही है ? दौड़-दौड़ कर खेतों पर जाती थी। मैं तो सोच रही थी -मेरी लड़की समझदार हो गई है,अपनी माँ के कामों में हाथ बँटा रही है। किंतु मुझे क्या पता था? यह उस नाशपीटे के चक्कर में, जाती है। न जाने कब से, इसका उससे चक्कर चल रहा है ?मुझे तो कहते हुए भी शर्म आ रही है।
तुम थोड़ा शांत भी रहोगी, मुझे सोचने दो ! क्या करना है ? कल को, इसी बात पर पंचायत हो सकती है , कुछ लोग कह रहे थे -यदि इस बात को ऐसे ही जाने दिया ,इसे अभी सजा नहीं दी गई तो, इस तरह गांव की अन्य लड़कियों पर , इसका भी बुरा असर होगा और सभी अपने ही गांव की बहू- बेटियों पर सब नजर रखेंगे।गांव की चलना बदल जाएगी, सब ऐसे ही ब्याह कर लेंगे। न ही रिश्तों का, कोई लिहाज़ रहेगा ,न ही बड़ों की शर्म !अपनी जगह उनकी बात भी सही है।
शहरों में भी तो, आजकल यही हो रहा है। हमारे गांव के कुछ रीति -रिवाज़ ,कुछ नियम हैं। कितने नाजो से इसे पाला था ? हमें क्या मालूम था ?ये इस तरह यह सिर नीचा करवा देगी। उन्हें अपनी बेटी के बचपन के दिन याद आ रहे थे -जब वह दौड़कर उनकी गोद में चढ़ जाती थी और वह उसके लिए कुछ न कुछ खाने की चीज लाते थे। चारों बच्चों में, सबसे ज्यादा प्रेम उसी से है। तीनों भाइयों की लाडली है। अपने को बेबस महसूस कर रहे थे ,सोच रहे थे ,पंचायत में न जाने क्या निर्णय हो ? कुछ समझ नहीं आ रहा था।
डोली रोते हुए सोच रही थी -जब उसकी पहली मुलाकात तरुण से हुई थी। तरुण पढ़ने में होशियार है , अपने प्रधान जी का बेटा है, बड़ी पढ़ाई के लिए बाहर गया है किंतु उस दिन वह, भी अपने स्कूल से आ रही थी, अभी वह बाहरवीं क्लास में ही तो है। एक दिन उसके सामने अचानक से तरुण आ गया, तरुण को देखा तो देखती ही रह गई ,यह तो शहर जाकर कितना बदल गया ? काफी स्मार्ट हो गया है। तरुण ने डोली को अपनी तरफ देखते हुए, पूछा -क्या कुछ कहना चाहती हो ?
नहीं, कुछ नहीं, अपने व्यवहार पर स्वयं ही शर्मा गई।
क्या, तुम बड़े कॉलेज में पढ़ते हो ?
हां, यदि तुम्हें भी आगे पढ़ना होगा तो कॉलेज ही जाना होगा, यहां तो 12वीं तक का ही स्कूल है। धीरे-धीरे दोनों में बातें होने लगी, पढ़ाई की बातें करते-करते, वह एक दूसरे के प्रति आकर्षण महसूस करने लगे। डोली ब्राह्मण परिवार से है, तरुण चौधरी के परिवार से है। दोनों ही अपनी -अपनी अहमियत रखते हैं। किंतु बिरादरी तो अलग है हीं । न जाने धीरे-धीरे बातें करते-करते, एक दूसरे को समझते, कब एक दूसरे के करीब आ गए ?उन्हें पता ही नहीं चला। कभी पड़ोसी की छत पर मिलते , कभी गली - मोहल्ले में कहीं दिख जाते , तो खेतों पर चले जाते। गांव की लड़की है, गांव का ही लड़का है,दोनों पढ़ाई की बातें करते होंगे किसी ने इस और ध्यान ही नहीं दिया, किंतु जब एक दिन, गांव के ही किसी व्यक्ति ने ट्यूबवेल के कमरे में जाकर, उसका दरवाजा खोला, तो दंग रह गया। गांव के प्रधान जी का बेटा, और गांव के ब्राह्मण कुल की बेटी, दोनों कमरे में अकेले थे। यह सब देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने दोनों को डांटा, और आवाज लगाकर आस - पड़ोस के लोगों को भी बुला लिया। तरुण तो भागना चाहता था किंतु उसे भागने नहीं दिया। जब सजा मिलनी है तो दोनों को ही मिलेगी। धीरे-धीरे लोग इकट्ठा होने लगे और यह बात संपूर्ण गांव में फैल गई।
शर्म के मारे सत्येंद्र जी की तो नजर ही नहीं उठ रही थी। मन ही मन सोच रहे थे, यह इसने क्या कर डाला? पूरी उम्र इज्जत कमाई, और इसे '' मिट्टी में मिलाते '' तनिक भी देर नहीं लगी।
बस इतना ही कह पाए -क्या हमारे प्यार में कोई कमी रह गई थी ,बेटा ! डोली को वास्तव में ही, बहुत दुख हो रहा है उसने अपने पापा का सर नीचा कर दिया , किंतु वह तरुण से भी तो प्यार करती है, तरुण ने भी उसे वायदा किया है, कि वह उसी से विवाह करेगा।
जिस बात का डर था ,वही हुआ। कुछ देर बाद ही, पंचायत से बुलावा आ गया।मुद्दा था, चौधरी का लड़का और ब्राह्मण कुल की बेटी ! का अनैतिक संबंध। चौधरी साहब दबंग आदमी थे, पैसे वाले भी थे, उन्हें क्या डरना ?रईसों के बेटों के तो यही काम होते हैं। इज्जत तो बेटी वाले की गई , मूंछों पर ताव देकर, आकर कुर्सी पर बैठ गए।
पंचायत में सुनवाई हुई, और निर्णय लिया गया, कि गलती तो दोनों ही बच्चों की है, दोनों ही पढ़े लिखे हैं, और जानबूझकर की गई ,गलती को क्षमा नहीं किया जा सकता।
पंचायत ने अपना निर्णय सुनाया-चौधरी साहब का बेटा, अब वापस गांव में नहीं घुस सकता,इसने अपने गांव की लड़की संग ही अवैध संबंध बनाये हैं , उसे गांव से निकाला दे दिया गया, और सत्येंद्र जी की बेटी को, उसके परिवार की अच्छाई को ध्यान में रखते हुए ,उसे समझाया गया, और सत्येंद्र जी को आदेश दिया गया शीघ्र से शीघ्र, कोई भी लड़का मिले कोई बड़ा बूढ़ा हो उससे इसका विवाह करा दें और इसे भी गांव निकाला दिया जाता है ,विवाह के पश्चात यह इस गांव में फिर कभी क़दम नहीं रखेगी।
पंचायत निर्णय तो तरुण को कोड़े ,लगाने का भी दे सकती थी किन्तु चौधरी साहब का पैसा और उनका रुतबा देखकर ,सजा को बदल दिया गया। चौधरी साहब को पंचायत का यह निर्णय भी पसंद नहीं आया था, वह भी परेशान हो उठे, कि क्या मेरा बेटा कभी गांव में नहीं आ पाएगा ? उधर सत्येंद्र जी भी परेशान थे, इतने शीघ्र, कैसे मैं अपनी बेटी का विवाह कर सकता हूं जबकि सारे गांव में और आसपास की गांवों में भी यह चर्चा का विषय बन गया है। कौन , इस वक्त इसका हाथ थामेगा किंतु पंचायत का निर्णय था, न मानने पर और भी कुछ सजा मिल सकती थी।पंचायत ने ये कैसा निर्णय सुनाया ?पार्वती नाखुश होते हुए बोली।
उससे तो कम ही है , जो कुछ बरसों पहले, ऐसे ही एक लड़का -लड़की को, पेड़ पर लटकाकर, उन्हें इतना मारा गया था, कि दोनों वहीं तड़प -तड़प कर मर गए थे। उस हिसाब से देखा जाए तो इनकी यह सजा, ज्यादा कठोर नहीं है । पंचायत बर्खास्त हो गई ,दोनों परिवारों में ही परेशानी और चिंता बढ़ गई।
तरुण को तुरंत ही, गांव की बेटी पर गलत नजर रखने पर और उससे गलत संबंध बनाने पर, उसके गले में जुतों की माला डालकर और उसका मुंह काला करके गांव से निकाल दिया गया। यह चौधरी साहब के लिए बहुत ही अपमानजनक, निर्णय था। सत्येंद्र जी भी, अपनी बेटी के लिए, कोई लड़का ढूंढ रहे थे , उसके लिए रिश्ते तो आ रहे थे कोई दोहाजू था कोई विधुर था तो कोई अधेड़ उम्र था। ऐसे ही रिश्ते उसके लिए आ रहे थे।
डोली रात- दिन रोती रहती थी , उसे क्या पता था? इन कुछ ही दिनों के साथ के कारण, उसकी दुनिया इतनी बदल जाएगी एक दिन अपने पापा से बोली - पापा !इससे अच्छा तो है ,आप मुझे मार दीजिए, मैं सारी उम्र, इसी आत्मग्लानी में, मरती रहूंगी। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई किंतु इतनी बड़ी गलती भी नहीं है कि मेरी संपूर्ण जिंदगी का ही सर्वनाश हो जाए। पुराने समय में भी, राजकुमारी के स्वयंवर हुआ करते थे उसमें किसी भी धर्म जाति का, या किसी भी राज्य का राजकुमार आकर, उस आयोजन का हिस्सा बन जाते थे। उन राजकुमारी को अपने वर को चुनने का अधिकार था। क्या हमें इतना भी अधिकार नहीं है ? वह भी मुझे प्यार करता है , मैं भी उससे प्यार करती थी। क्या हमारी शादी नहीं हो सकती ?
यह बात पार्वती ने सुन ली और उसने बेटी के मुंह पर थप्पड़ लगाया और बोली-अभी भी तेरे सर से उसका भूत नहीं उतरा।
मैंने इसमें कौन सा गलत कह दिया ? उससे प्यार करती थी, उससे ही, विवाह करवा दीजिए।
सत्येंद्र जी को यह बात, पसंद आई और बोले -यदि उसने विवाह करने से इनकार कर दिया तब तू क्या करेगी ?
तब आप जो भी और जैसा भी कहेंगे, मैं उसी से विवाह कर लूंगी।
एक रात्रि गांव वालों से छुपते -छुपाते सत्येंद्र जी चौधरी साहब के घर गए, और उनसे बातें की, उनसे कहा-एक निर्णय हमारे बच्चों के विषय में ,पंचायत ने सुनाया ,एक निर्णय अपने बच्चों का भविष्य देखते हुए ,हमें स्वयं करना होगा। आपका बेटा,अब इस गांव में नहीं आ सकता किंतु मेरी बेटी तो उसके पास जा सकती है दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं ,क्यों न दोनों का ही घर बसा दिया जाए ? मुझे तो अपनी बेटी का विवाह करना ही है, तब मैंने सोचा, क्यों न उसी से विवाह करवा दिया जाए, जिससे वह प्रेम करती है। यदि आप चाहे तो इस अनैतिक रिश्ते को, नैतिक बना सकते हैं। मेरी बेटी भी पढ़ी -लिखी है, दोनों साथ रहेंगे एक दूसरे का सहयोग रहेगा। हम क्यों उनके जीवन से खेलना चाहते हैं ? आप चाहें तो इस रिश्ते को एक सही दिशा मिल सकती है, कह कर सत्येंद्र जी अपने घर आ गए।
चौधरी साहब ने भी बहुत सोचा-और सतेंद्र जी के घर संदेशा पहुंचा दिया, अपनी बेटी को लेकर शहर में पहुंचे। गांव वालों से गुप्त तरीके से, यह सब कार्य हो रहा था। शहर में जाकर, दोनों का मंदिर में विवाह करा दिया गया और दोनों को भविष्य में ,सुखी जीवन का आशीर्वाद दिया।
तब चौधरी साहब बोले - आपने ठीक ही निर्णय लिया था ,माना कि दोनों से ही बचपने में गलती हुई है। हमें , उनकी गलतियों को नजरअंदाज कर, आगे सही राह दिखानी है, और हमें आगे गलती का मौका नहीं देना है। इन दोनों बच्चों के भविष्य से खेलने का हमें कोई हक नहीं है।
दोनों पिताओं की समझदारी के कारण, आज डोली और तरुण एक सुखी और वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।