एक अधेड़ उम्र दम्पत्ति ,प्रातःकाल ,वृद्ध आश्रम के दरवाजे पर खड़े नजर आये। उस व्रद्धाश्रम के संस्थापक ने इतनी ठंड में ,उन दोनों को खड़े देखा। तब वह उनके करीब गया और उनसे ,उनके इस स्थान पर खड़े होने का कारण जानना चाहा किन्तु वे लोग तो ,जैसे कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे। ताराचंद इतना तो समझ गया था कि इन्हें किसी अपने ने ही यहाँ का रास्ता दिखला दिया है। न जाने कौन इतना निर्मोही है ?जो इतनी ठंड में ,इस उम्र में इन्हें यहाँ छोड़कर गया। उनकी पत्नी की आँखों से आसूँ तो रुक ही नहीं रहे थे। ताराचंद इतना तो समझ गया था, कि अब इनसे इस वक़्त कुछ भी पूछना उनके जख्मों को कुरेदना है , इस वक्त इन्हें , मानसिक और भावनात्मक सहारे की आवश्यकता है। तब ताराचंद बोला -जो भी हुआ, आप पहले अंदर आइये ? ठंड का मौसम है, अंदर बैठिए और चाय पीजिए ! उनके मन में बहुत कुछ चल रहा था, अंदर कड़वाहट थी, उनके अहम को ठेस पहुंची थी। अपने लिए, किसी की सहानुभूति या हमदर्दी भी दर्द दे रही थी। तब ताराचंद उनसे प्रार्थना करते हुए बोला -आपको ठंड लग जाएगी ,अभी आप अंदर चलिए ,जैसे ही धूप निकलती है या जैसा भी आपको लगे ,आप यहाँ से जहां जाना चाहें ,तो जा सकते हैं।
ताराचंद की बात सुनकर , उस महिला के पति ने ,उन्हें इशारों से अंदर चलने का आग्रह किया। दोनों अंदर आए और आसपास देखने लगे। उन्हें दफ्तर में बिठाया गया, उनके लिए चाय -नाश्ता मंगवाया गया। उन्हें अपने वृद्ध आश्रम से परिचित कराया गया और उस आश्रम में भ्रमण भी कराया गया ताकि वह अन्य लोगों को देखें और अपने दर्द को कम कर सकें। इस दुनिया में, सिर्फ वे ही ऐसे माता-पिता नहीं है, जिनके साथ ऐसा हुआ है। ऐसे बहुत से माता-पिता या रिश्तेदार कोई भी हैं ,जिन्होंने धोखा खाया है और यहां रहकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इस बीच उनसे एक बार भी यह नहीं पूछा गया ,कि वह कौन है और कहां से आए हैं ? किसने उन्हें धोखा दिया है क्योंकि यह तो स्वाभाविक ही है ,ज्यादातर माता-पिता बच्चों के द्वारा ही इस उम्र में ठुकराये गए होते हैं।
ताराचंद ने उनसे आग्रह किया -जब तक उन्हें कोई घर या ठीक से कोई सहारा नहीं मिल जाता है, वह यहां रह सकते हैं। उनसे कुछ भी ,जानकारी लेने से ताराचंद ने , अभी अपनी मैनेजर से मना कर दिया था। वे लोग यहां ठहरने के लिए , तैयार हो गए और उन्होंने कमरा नंबर 303 चुना। बहुत दिनों पश्चात, कमरा नंबर 303 का वे दो पलंग, अपने को सौभाग्यशाली मान रहे थे ,जो बहुत दिनों से खाली पड़े थे। वे लोग वहीं रहने लगे , अन्य लोगों से घुलने- मिलने में उन्हें थोड़ा समय लगा। यहाँ सभी व्यक्ति वक्त के सताये थे। कोई किसी के जख्मों को नहीं कुरेदता था। किसी को अपनी कहानी बातों ही बातों में बता दें , वो अलग बात थी।उनके रहने पर इतना ही ज्ञात हो पाया - श्रीमान शेट्टी दम्पत्ति बहुत अच्छे परिवार से हैं , अपने समय में बहुत बड़े व्यापारी थे। अब काम बच्चों पर सौंप दिया ,उन्हें क्या मालूम था ?''आस्तीन में सांप '' पाल रहे हैं। जब तक वो कोठी, जो उनका और उनकी पत्नी का सपना थी ,बच्चों के नाम नहीं हो गयी ,तब तक उनका घर में सम्मान होता रहा। उसके पश्चात, उन्हें उनकी औकात दिखा दी गयी। वक़्त इतनी जल्दी पलटा खा जायेगा ,इससे पहले कि वो कुछ समझ पाते। ड्राइवर उन्हें यहाँ छोड़ गया। इतनी कहानी से ज्यादा उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। शायद ,तब भी उनके मन में अपने बच्चों के प्रति, किसी कोने में प्यार छुपा था जो नहीं चाहता था किसी को भी उनके बच्चों या उस शहर के विषय में मालूम हो। उन्हें कमरा नंबर 303 में रहते दो बरस हो गए। शेट्टी जी कई दिनों से बिमार थे उनकी पत्नी उनकी सेवा में संलग्न थी। आज प्रातःकाल ही , इस सूचना ने मुझे चौंका दिया ,दोनों पति -पत्नी ही नहीं रहे।
मेरे वृधाश्रम का कमरा नंबर 303 के वे 'दो पलंग 'फिर से रिक्त हो गये है ,उसमें जो शेट्टी दंपति रहते थे अब नहीं रहे अपनी यादों, अपनी बातों, अपने जीवन की कहानी के वे ,अकेले गवाह थे। जो कहानी किसी शानदार कोठी से आरंभ हुई ,उनके प्यार की तीन निशानियां, इस जहां में आईं ,उनके लिए जीवन भर की कमाई ,अपने उन बच्चों पर गर्व कर, वह कोठी जो उनका सपना थी ,उनके हवाले कर, निश्चित होना चाहते थे। कमरा नंबर 303 कि वह छटपटाहट भरी वो कहानी, आज समाप्त हो गई।