सुनो ! क्या तुम्हें याद है ? हम कब ,एक साथ बाहर गए थे ? कब एक साथ ,हमने चलचित्र देखा ?क्या तुम्हें याद है ? कब एक साथ बैठकर , चैन की सांस ली ? चलो ,छोड़ो ! क्या तुम्हें मेरा, जन्मदिन भी याद है या हमारी शादी की वर्षगांठ ! जिस दिन हम दोनों ने समाज के सामने, एक दूसरे को अपनाया था।जिस दिन मैंने अपना घर छोड़ा अपना बचपना छोड़ा और तुम्हारे घर को अपनाया। वह दिन तो तुम्हें याद ही होगा। तुम्हारे बच्चे ,तुम्हारे माता-पिता की सेवा में, दिन-रात भूल गई। क्या तुम्हें यह भी स्मरण नहीं रहा? मैं भी ,तुम्हारी जिंदगी में हूं।
सुनो ! मैंने तुम्हें भी समझा ,तुम्हारी मेहनत को भी ,तुम भी तो अपने परिवार के लिए रात -दिन एक कर रहे थे। मैं तो अपने आप को तुम्हारे परिवार में खो चुकी थी। कभी तुमने मुझे ढूंढकर लाने का प्रयत्न भी नहीं किया। मेरा अस्तित्व ही,मुझे याद नहीं दिलाया। तुम्हें भी तो आदत हो गई ,मुझे इस तरह देखने की। मैंने कब लिपस्टिक लगाई ?कब बिंदी लगाई ? कभी-कभी सिंदूर से एहसास दिलाती रही ,तुम मेरे हो, मेरे साथ हो ,किंतु मुझे लगता है ,आज तुम्हें अच्छी नहीं लगती। जमाने से पीछे जो रह गई हूं।आज देखती हूँ , मेरा समर्पण ,मेरा प्यार कुछ भी नहीं, क्या मेरी सादगी तुम्हें बेरंग लगती है ? क्या मेरा प्यार फीका दिखता है ? आज मेरा प्यार तुम्हारे परिवार में बंट गया है। मैं भी तो कई रिश्तों में बंट चुकी हूँ। क्या मेरे विश्वास में, कहीं कोई कमी रह गई है ?
सुनो !अब बच्चे बड़े हो गए हैं ,अब जिम्मेदारियों से मुक्त हो ,मोह के जाल को तोड़ अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं। मैं सबके लिए ही नहीं, अपने लिए जीना चाहती हूं। जिस तरह साथ दिया मैंने, ऐसा ही तुम्हारा साथ चाहती हूं। तुम्हें कुछ याद रहे ना रहे किंतु अपने जन्मदिन को मनाना चाहती हूं। उस दिन को ,जब मेरी जिंदगी में तुम आए और मेरी जिंदगी के मायने ही बदल गए। अब मैं इन रिश्तों ,रीति -रिवाज़ों की ,ज़िम्मेदारियों मुक्त होना चाहती हूं। ऐसा भी नहीं कि मैं सब छोड़ना चाहती हूँ , दूसरों के लिए नहीं ,अब अपने लिए जीना चाहती हूं।
सुनो ! तुमने कभी पूछा ही नहीं ,तुम क्या चाहती हो ? किंतु मैं स्वयं ही बता देती हूं, मेरा भी अस्तित्व है ,मैं एक इंसान हूं, जिसकी भावनाएं हैं ,,हां यह अवश्य है, कि चेहरे की रंगत कुछ फ़ीकी पड़ गई है ,कुछ बालों में चांदनी भी दिखने लगी है। क्या तुम्हें याद है ?मुझे बाहर गए ,कितने बरस हो गए ? याद आए तो बतला देना। अकेले जाते, मुझे डर सा लगता है ,कभी तुम्हारे बगैर जिंदगी की कल्पना ही नहीं की किंतु अब मैं बहार इंतजार में हूं , इस उम्र को भी मैं तुम्हारे संग जिंदादिली से जीना चाहती हूँ। तुम भी तो उसी कश्ती में सवार हो। एक ही कश्ती में रहकर भी, हम अज़नबी से हो गए हैं। भूल गए हैं ,अपनी उम्र कुछ महत्वपूर्ण पल...... तुम्हारे साथ वो पल स्मरण करना चाहती हूँ ,उन पलों को दोहराना चाहती हूँ। जिन्हें तुमने भी भुला दिया ,याद दिलाने के लिए ही तो...... मैं हूं। हम दोनों ही ,इस घर की कड़ी हैं।