मेरे बेटे का आज जन्मदिन है, मैंने रात में ही सोचकर तैयारी कर ली थी कि क्या -क्या बनाना है ?सुबह बेटे को उठाने गई -आदि !उठो बेटा ,आज तुम्हारा जन्मदिन है। उठो !तुम्हारे मामा -मामी आने वाले हैं ,तुम्हारे पापा उन्हें स्टेशन पर लेने गए हैं ,उनके आने से पहले तैयार हो जाओ। कहकर ,वो रसोई घर की तरफ भागी क्योंकि उसे याद आया कि उसने गैस पर दूध रखा था। दो घंटे बाद सुनील ,भइया - भाभी को लेकर घर आ पहुँचे।भइया -भाभी यात्रा के थके हुए थे, आकर नहाये ,चाय -नाश्ता किया और थोड़ी देर के लिए सो गए। मैं रसोईघर में खाना बनाने की तैयारी करने लगी। सब्जियाँ सब बन चुकी थीं केवल चावल बनने रह गए थे ,तभी फोन की घंटी बजी ,मैंने तुरंत लपककर फोन उठाया ,मैंने' हैलो' किया तभी दूसरी तरफ से आवाज आई -भाभी! मैं बोल रही हूँ निधि। हाँ दीदी बोलिये 'मैं मन ही मन सोच रही थी
कि अपने भतीजे को जन्मदिन की बधाई देने के लिए फोन किया होगा ,इसके विपरीत वो बोलीं -भाभी हम आपके ही पास आ रहे हैं, स्टेशन आने वाला है ,आप भइया को भेज दीजिये ,हमें लेने के लिए क्योंकि हम आपके शहर में पहली बार आ रहे हैं। हम स्टेशन पर भाई का इंतजार करेंगे। सुनकर ,मेरी हालत एकदम खराब हो गई ,सुबह से काम में जुटी थी और अब ये लोग ,बताकर तो आना चाहिये था। कुछ सूझा नहीं एकदम से बोल दिया -दीदी हम तो यहाँ हैं ही नहीं। हम तो बाहर हैं ,गोवा। लड़के का जन्मदिन है न इसीलिए उसे घुमाने ले आये,आपको बताकर तो आना चाहिए था ,हम नहीं जाते।
निधि की आवाज में घबराहट थी -पर भाभी मैंने तो पूछा था कि आपका कहीं जा तो नहीं रहे हो तब तो आपने मना कर दिया था। वो तब कोई हमारी योजना नहीं थी बाद में हुई। आप हमें बतातीं , तो हम नहीं जाते। मैं भी तो अपने भतीजे के जन्मदिन पर आप लोगों को चौंका देना चाहती थी पर तुमने तो मुझे ही चौंका दिया। अब मैं कहाँ जाउंगी ?मुझे तो इस शहर के बारे में कुछ भी नहीं पता। इतनी दूर से आये हैं ,एकदम से तो वापस नहीं जा सकते। तुम्हारे जीजाजी को पता चलेगा तो कितने गुस्सा होंगे ?दीदी की आवाज में घबराहट थी। तब तक मैंने भी अपने झूठ को सच मान लिया था और बोली -दीदी आप परेशान मत होइए ,पास में ही कोई होटल हो तो वहाँ रुक जाना। ठीक है ,मैं उनसे बात करती हूँ कहकर निधि ने फोन काट दिया। ये बातें कुछ -कुछ मेरी भाभी ने सुन ली थीं। तभी भाभी आकर बोलीं -किससे बातें कर रहीं थीं ?कौन होटल में ठहरा है ?कुछ नहीं भाभी मेरी सहेली घूमने गयी थी तो वहाँ का होटल बड़ा ही अच्छा है उसी के बारे में बात हो रही थी।
तभी सुनील आये और मुझे एक तरफ ले गए, बोले -सपना !क्या तुम्हें पता है कि दीदी आईं हैं और तुमने उनसे झूठ बोल दिया कि हम यहाँ नहीं हैं। उनके लिए नई जगह है ,कहाँ जायेंगी ?कितनी परेशान हो रहीं थीं ?पहले तो मैं घबरा गई कि सुनील कहीं भइया -भाभी के सामने तमाशा न कर दें , फिर सम्भलते हुए कहा -आपको कैसे पता चला ?कि दीदी यहाँ आई हैं। अभी जीजाजी का फोन आया था
,कह रहे थे -तुम तो गोवा में घूम रहे हो ,हम यहाँ स्टेशन पर बैठे हैं। पहले तो मैं मना करने वाला था फिर सोचा कि तुमने क्या सोचकर झूठ बोला ?तुमसे भी बात कर लूँ। तब तक मैंने भी अपने मन में योजना तैयार कर ली थी कि कैसे सुनील को समझाना है ?मैंने कहा -पहले आप जीजाजी को पास के ही किसी होटल का पता बता दो। वो मैं पहले ही बता चुका हूँ ,पर तुमने मेरी दीदी और जीजाजी से ऐसा क्यों कहा ?पहली बार आ रहीं थीं तुम्हें शर्म नहीं आई झूठ बोलते हुए। दीदी ने अचानक ही फोन किया कि हम स्टेशन पर पहुँचने वाले हैं ,मैं एकदम से घबरा गई ,छोटा सा मकान है हमारा। उनका मकान देखा है ,कितना बड़ा है? पूरी सुविधा के साथ रहते हैं। भइया -भाभी भी आये हुए हैं ,इस फ्लैट में भीड़ सी हो जाती। फिर ओढ़ने -बिछाने के कपड़े भी तो चाहिए हमारे पास ज्यादा कपड़े नहीं हैं ,जरूरत के हिसाब से ही हैं। मैं सारा दिन खाना बनाने में लगी रहती। होटल में सब सुविधा मिलेगीं उन्हें ,घूम भी लेंगे। मैंने अपना तर्क दिया।
सगा भाई यहाँ रह रहा है और बहन होटल में रुकेगी। वो हमसे मिलने आईं हैं ,होटल में रहना होता या घूमने जाना होता तो किसी और शहर में भी जा सकती थीं। परेशान होकर वो बाहर चला गया क्योंकि तीर कमान से निकल चुका था।सुनील ने सारे काम बेमन से किए। कुछ दिन बाद मेरा जाना अपने मायके हुआ क्योंकि मेरा मायका और ससुराल में दो घंटे का ही अंतर् है बच्चों की छुट्टी होने पर मैं दोनों ही जगह चली जाती थी। जब मैं अपने घर के दरवाज़े पर उतरी तो देखा ताला लगा था। गर्मी पड़ रही थी ,सोच रही थी कि इतना लम्बा सफ़र तय करने के बाद बदन थक चुका था।सोचा था , जाते ही ठंडी हवा में आराम करुँगी फिर भाभी के हाथों का गरम -गरम खाना खाऊंगी। ताला देखकर दिमाग़ वैसे ही सुन्न हो गया। पहले पड़ोसियों से पूछा -भाभी कहाँ गई हैं ?किसी को कुछ नहीं पता था। फिर फोन किया ,तो फोन नहीं लग रहा था।मैं परेशान गर्मी में बच्चों को लेकर कहाँ जाऊँ ?भाभी को बताया भी था कि मैं आ रही हूँ फिर भी ताला लगाकर कहाँ चली गईं ?हद होती है, गैर जिम्मेदारी की भी। मुझे गुस्सा आ रहा था।
भूख भी लगी थी फिर ड्राइवर से कहा कि किसी ढ़ाबे पर ले चलो ,खाना ही खा लेते हैं ,गाड़ी वाले को मैं छोड़ना नहीं चाहती थी ,पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाये ?सुनील भी साथ नहीं थे। बार -बार फोन मिलाने का प्रयत्न करती रही। फ़ोन लगने पर भाभी ने फोन उठाया मैंने गुस्से भरे लहज़े में कहा -भाभी आप कहाँ हैं ?मैं कितनी परेशान हो रही हूँ जबकि आपको मालूम था कि मैं आ रही हूँ। बच्चे भी परेशान हो रहे हैं गर्मी में। भाभी बोलीं -अभी दो घंटे लग जायेंगे ,आप पड़ोस की भाभीजी के यहाँ रुक जाना, मैं उन्हें फोन कर दूँगी। तब मेरी जान में जान आई क्योंकि गाड़ी वाला बार -बार जाने के लिए कह रहा था। मैं पास के घर में अपना सामान लेकर रुक गई।थोड़ी देर बाद भाभी आ गईं, मैं जल्दी से अपना सामान लेकर घर में घुस गई और अपनी शिकायतें शुरू कीं। भाभी बोलीं -मम्मी की अचानक तबियत बिगड़ गई इसीलिए जाना पड़ गया। मैं फिर भी कुछ न कुछ कहती रही, अपनी परेशानी बताती रही।
तब भाभी बोलीं -शहर में ही रहकर मैंने झूठ तो नहीं बोला ,कि मैं यहाँ नहीं हूँ। भाभी की बात सुनकर मैं, अचानक चुप हो गई। भाभी की तरफ देखने लगी। भाभी बोलीं -मुझे सब मालूम है दीदी बाक़ी का मुझे तब पता चला जब मैं एक शादी में गई थी। आपकी ननद भी वहाँ आईं थी और अपनी परेशानी का किस्सा सुना रही थीं। कैसे स्टेशन पर बैठी रहीं ?फिर कोई होटल किया वो उन्हें महंगा पड़ गया किराये की भी परेशानी हो गई। पैसा तो अपने साथ लाये थे पर होटल के खर्चे ने उन्हें परेशानी में डाल दिया। उन्हें वापस भी जाना था। अपने भतीजे के लिए कई दिनों से तैयारी कर रहीं थीं बेसन के लड्डू बनाये थे कई तरह की मिठाईयां थीं , काफी सामान भी लाई थीं कि बड़ा शहर है वहाँ ये चीजें महंगी मिलती होंगी। फिर भी वो अपनी गलती मान रहीं थीं कि मुझे बताकर जाना चाहिए था। उन्हें जब पता चलेगा तो क्या सोचेंगी ?वो तुम्हारे लिए कितना सोच रहीं थीं ,तुमने क्या किया ?तुम तो थोड़ी सी देर में ही परेशान हो गईं जबकि तुम इस शहर को जानती हो। जब मुझे पता चला कि तुम्हारी ननद है ,मैंने शर्म के कारण उन्हें अपना परिचय भी नहीं दिया।
भाभी की बात सुनकर मैं कुछ बोल नहीं पाई, अब तो भाभी से नज़र भी नहीं मिला पा रही थी। भाभी बोलीं -जैसे आप मेरी नन्द हो इसी तरह वो भी आपकी ननद हैं ,आप चाहती हैं कि आपके भाभी -भइया आपसे प्यार करे सम्मान दें। ऐसे ही वो भी तो चाहती होगीं आपसे प्यार -सम्मान मिले। झूठ या धोखा नहीं। जब हम अपने को दूसरे की जगह पर रखकर देखेंगे तो दूसरों की परेशानी भी महसूस कर सकते हैं। हालांकि मैं थोड़ा जल्दी भी आ सकती थी लेकिन उन परेशानियों को जब तक हम स्वयं महसूस नहीं करेंगे तब तक हमें अपनी गलतियों का एहसास नहीं होता। सही ज्ञान तो किताबों में भी भरा पड़ा है पर कोई मानता नहीं। जब तक खुद पर न बीते। फिर हंसकर बोली -भाभी हूँ तुम्हारी ,दुश्मन नहीं ,जो भी कहूँगी तुम्हारे भले के लिए ही होगा।