सुगंधा ने बाहरवीं पास कर ली ,घर में न ही ख़ुशी का वातावरण है न ही दुःख का। बल्कि उसके पिता को उसके विवाह की चिंता अवश्य हो गयी और वे बड़ी तन्मयता से उसके लिए लड़के की तलाश में जुट गए। सुगंधा का बाहरवीं करना ही जैसे उनका उद्देश्य था उसके पूर्ण होते ही वे अपने आगे के कार्य में जुट गए। उन्होंने अपनी बेटी से ये भी नहीं पूछा कि उसे आगे पढ़ना है या नहीं। न ही उसके उत्तीर्ण होने पर कोई प्रसन्नता ही प्रकट की। सुगंधा के लिए तो जैसे ये आम बात थी ,उसको तो जैसे पहले ही मालूम था कि उसके साथ क्या होना है ?इसी से उसने अपने पिता के किसी भी कार्य के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं की क्योंकि उसने इन परिस्थितियों के लिए अपने को पहले ही तैयार कर लिया था। कहीं कोई लड़का बताता तो उसे देखने चल देते। बेटी को दहेज़ में क्या -क्या देना है ?उसकी सूची तैयार कर ली है किसी भी चीज की कमी न रहे। कभी बर्तन खरीदते ,कभी बिस्तर और कभी स्वर्ण आभूषण। सारा दिन अपनी नौकरी करते और जब समय मिलता तो बेटी को देने वाले सामान की सूची में निशान लगाते जाते और जो रह गया उसे लाने का प्रबंध करते। उन्हें दिन -रात की मेहनत में अपनी परेशानी नहीं दिखती वरन बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की सोचकर अपनी परेशानी को महसूस ही नहीं कर पाते।
अबकि छुट्टियों में जब उसका भाई नमन आया तो देखा -छोटी बहन के विवाह की तैयारियाँ चल रही हैं ,उसे बड़ा अज़ीब लगा ,आज के बदलते समय में पिता से ऐसी सोच की उसे उम्मीद नहीं थी। वो तो चाहता था जिस तरह पिता ने मुझे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया उसी तरह अपनी बेटी को भी करेंगे किन्तु पिता की सोच सुनकर उसे आश्चर्य हुआ कि आज भी इनकी सोच के अनुसार लड़के -लड़की की परवरिश में भी भेदभाव करते हैं और लड़की को भी ज्यादा पढ़कर क्या करना है ?लड़केवालों को दिखाने के लिए उसे बाहरवीं करा दी। नमन ने अपने पिता से पूछा -आप छोटी को आगे क्यों नहीं पढ़ने दे रहे हैं ?विक्रम जी बोले -लड़कियों का ज्यादा पढ़ना ठीक नहीं ,इसने बाहरवीं तो कर ही ली तेरी माँ तो पाँचवीं पास थी। लड़कियों को करना भी क्या है ?आगे जाकर घर ही संभालना है आगे पढ़कर क्या करेगी ?किन्तु पापा ये अभी छोटी है इसकी उम्र ही क्या है ?नमन बोला। विक्रमजी बोले -अठ्ठाहरवें वर्ष में चल रही है ,अभी लड़का भी देख रहे हैं ,साल -छह माह तो लग ही जायेंगे। नमन बोला -तब तक ये क्या करेगी ?करना भी क्या है ?तब तक अपनी माँ के साथ काम में हाथ बटायेगी ,घर के काम सीखेगी, विक्रम जी ने समझाया। उनके उत्तर से नमन संतुष्ट नहीं हुआ ,बोला -पापा आपको पता नहीं ,आजकल लड़कियाँ क्या -क्या कर रही हैं ?पढ़ -लिखकर अभियंता ,पुलिस में हैं ,अध्यापिका ,मंत्री और भी न जाने क्या -क्या ?सबके माता -पिता आपकी तरह ही सोचते तो आज वे जिस मंजिल पर हैं ,वहां न पहुंच पातीं।
विक्रमजी बोले -मुझे तेरे भाषण नहीं सुनने ,ये मेरी बेटी है। मैं अपने बच्चों का भला -बुरा समझता हूँ ,हमें अपनी बेटी को आगे पढ़ाना है या नहीं अथवा इसका ब्याह करके इसे इसके घर भेजना है। जो हमारा उत्तरदायित्व है उसे पूर्ण करना है , इससे तुझे कोई मतलब नहीं।पिता ने ऐसी विरक्तिपूर्ण बातें की ,जैसे मैं तो उसका कुछ लगता ही नहीं ,मुझे तो उसे कुछ कहने समझाने का अधिकार ही नहीं। सुनकर नमन को क्रोध आया किन्तु अपने को संयत रखते हुए ,बोला -पापा वो इस घर की बेटी है ,कोई ग़ैर नहीं ,उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए हम नहीं सोचेंगे तो और कौन सोचेगा ?अभी से ही इसका विवाह कर देंगे तो दूसरे के घर जाकर रोटी बनाएगी। मैं इस तरह अपनी बहन की ज़िंदगी नर्क में नही झोंक सकता। विक्रमजी तो जैसे ठानकर ही बैठे थे कि किसी की कोई बात न ही सुननी है, न हीं माननी है।बोले -रोटी तो बनानी पड़ती हैं ,कोई पढ़े या नहीं और जो काम जीवनभर करना है उसके सीखने या करने में कैसी बुराई ? बात बढ़ते -बढ़ते इतनी बढ़ गयी ,नमन ने अपना संयम खो दिया और तेज आवाज में बोला - यदि वो आपकी बेटी है तो मेरी बहन भी है और अपनी बहन का भला -बुरा सोचना मेरा भी कर्त्तव्य है और मुझे लगता है इसकी ख़ुशी आगे पढ़ने में है ,इसका जीवन संवर जायेगा।विक्रमजी बोले -तेरी नज़र में हम अपनी बेटी के विषय में अच्छा नहीं सोच रहे ,हम उसका बुरा चाहते हैं। तभी सुगंधा ने झगड़े की आवाज़ सुनी तो घबरा गयी और वो अपनी मम्मी को बुलाने के लिए दौड़ी। इसी झगड़े के कारण ही तो सुगंधा ने पिता से आगे पढ़ने की बात नहीं की और आज वो ही कारण बन गए।
कलावती जी कम शिक्षित होने के बावजूद भी बहुत ही सुलझी हुई और समझदार महिला हैं ,अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखा है। रिश्तों को कैसे सम्भालना है ?बड़े -छोटे का मान कैसे बनाये रखना है ?वे बखूबी समझती हैं। सुगंधा के बताने पर सारा काम छोड़कर उसके पीछे चल दीं। बेटे और पिता की बहस को देखकर उन्होंने पहले दोनों की शांत होने के लिए कहा किन्तु विक्रमजी बेटे के इस तरह जबान लड़ाने के कारण ज्यादा आहत थे ,कलावती जी ने परिस्थितियों को समझते हुए ,बोलीं - वो तेरे पिता हैं ,अपने बच्चों की ख़ुशी ही चाहेंगे ,तुम लोगों का आजतक भला -बुरा ये ही सोचते आये हैं और अब तुम इनकी सोच पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हो ,जो भी इन्होने सोचा होगा अपनी बेटी का अच्छा ही सोचा होगा। कलावती को इस तरह अपने पक्ष में बोलते देखकर विक्रमजी थोड़ा शांत हुए और बोले -अब तुम ही समझाओ अपने लाड़ले को कहकर बाहर चले गए। उनके जाते ही नमन बोला -मैं भी तो इसका भाई हूँ। माँ मुस्कुराते हुए बोली -हम कब मना कर रहे हैं ?बल्कि हमें तो ये सोचकर प्रसन्नता हुई कि तुम अपनी बहन के लिए सोचते हो। फिर सारी परिस्थितियों को समझाते हुए ,बोलीं -तेरे पिता इसकी शिक्षा के विरुद्ध नहीं हैं,यहाँ जहां तक भी विद्यालय था उन्होंने इसे पढ़ने से नहीं रोका ,रही बात इसे आगे पढ़ाने की ,आगे पढ़ने के लिए इसे बाहर जाना होगा। स्यानी लड़की का बाहर निकलना मतलब ''अंगारों पर चलने ''जैसा है। नमन बोला -बाहर लड़कियों के लिए छात्रावास हैं और अलग कमरा लेकर भी रह सकती है। कलावती जी बोलीं -और हमें यहां रातभर नींद नहीं आएगी ,पता नहीं लड़की कैसी होगी ?और जब समाचार सुनते हैं कि पिता ने बेटी को कितने परिश्रम से पढ़ाया ?और बेटी किसी लड़के के चक्कर में पड़कर ,अपने पिता के मान -सम्मान से खेल गयी तो हिम्मत नहीं होती ,अभी तूने भी तो वो ख़बर सुनी होगी ,उसके पिता ने बेटी के व्यवहार के कारण आत्महत्या कर ली।
नमन बोला -मम्मी ये जरूरी तो नहीं कि सभी लड़कियां ऐसा करें। कलावती जी बोलीं -क्या हम किसी का भविष्य पढ़ सकते हैं ?भविष्य में क्या लिखा है ,कौन क्या करता है ?ये कौन जान सका है ?सभी माता -पिता को अपने बच्चों पर विश्वास होता है किन्तु कौन, किन परिस्थितियों में क्या करता है ?ये तो हम नहीं कह सकते। नमन बोला -मम्मी आप भी पापा की भाषा बोलने लगीं। नहीं ,मैं उनकी भाषा नहीं बोल रही किन्तु मैं उनकी सोच उनकी भावनाओ को समझती हूँ कलावती जी ने समझाया। बोलीं -हम लड़के वालों से पूछ लेंगे यदि ये आगे पढ़ना चाहेगी तो क्या आगे पढ़ने देंगे ?ये क्या मम्मी ?जो कार्य आप स्वयं नहीं कर रहे वो कार्य दूसरों से करने की कैसे उम्मीद लगा सकते हैं ?वहां तो इसकी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाएँगी नमन झुंझलाकर बोला। कलावती जी बोलीं - जिसके लिए ,तू जो इतना लड़ रहा है ,उससे भी तो पूछ ले कि वो भी पढ़ना चाहती है या नहीं।इसकी इच्छा भी तो महत्व रखती है ,पढ़ना तो इसे ही है। नमन को माँ की बात सही लगी और सुगंधा से बोला -देख मैं चाहता हूँ कि तू गांव की हीनभावना से ग्रस्त लड़की न बनकर आगे बढ़। बाहर निकलेगी तो तेरा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा ,सही -गलत की समझ होगी। अपना अच्छा -बुरा सोचेगी ,अपने जीवन के फैसले करना सीखेगी। अब बता तू आगे पढ़ना चाहती है या नहीं। सुगंधा हिचकिचाती हुई बोली -पढ़ना तो चाहती हूँ किन्तु पापा,कहकर वो चुप हो गयी। नमन बोला -तू पापा की चिंता मत कर, मैं उन्हें समझा लूंगा। अपने भविष्य और जीवन के बारे में तुझे सोचना है ,विवाह करना है या आगे पढ़ना चाहती है। सुगंधा बोली -पढना तो चाहती हूँ। नमन खुश होकर बोला -तो फिर तय रहा तू आगे पढ़ेगी। कलावती जी सुगंधा से बोलीं -देखा ,तेरा भाई कितना ध्यान रखता है ?अपनी बहन का। उधर नमन से बोलीं -बेटा ,बहुत बड़ा उत्तरदायित्व ले रहे हो ,तुम जो भी करो ,सोच -समझकर करना। तुम्हारे पिता आहत न हों। उन्हें दुःख नहीं होना चाहिए। नमन बोला -ऐसे कैसे हो सकता है ?या तो वो आहत होंगे या फिर इसकी इच्छाएँ दफ़न होंगी। कलावती जी ने फैसला बच्चों पर सौंप दिया ,बोलीं -जो भी करो ,समझदारी से करना।
अगले दिन सुबह विक्रम जी उठे उनके चेहरे पर थकावट सी थी ,उनका उतरा चेहरा देखकर कलावती बोली -आप तो व्यर्थ ही चिंतित होते हैं , हमारे बच्चे समझदार हैं जो भी करेंगे ठीक ही होगा। एक बार विश्वास करके तो देखिये। नमन तो अपने काम पर चला गया ,घर में उस झगड़े का कुछ दिन तो असर रहा ,धीरे -धीरे सब ठीक हो गया। किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा। सुगंधा भी मन ही मन सोच रही थी ,भइया दो दिन के लिए आया था और अब मेरी पढ़ाई का किसी ने भी जिक्र नहीं किया। उसने अपने को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। एक माह पश्चात ''रक्षा -बंधन ''पर नमन आया और बोला -तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है ?सुगंधा बोली -क्यों मज़ाक कर रहे हो ?आपने तो कुछ बताया नहीं। मेरी पुस्तकें भी कौन लाता ?
अगले दिन राखी पर जब सुगंधा ने नमन को राखी बाँधी और अपनी भेंट यानि उपहार के लिए उसकी तरफ देखने लगी ,तब नमन ने एक लिफाफा उसकी थाली में रख दिया। उत्सुकतावश सुगंधा ने वो लिफाफा खोलकर देखा -शहर के बड़े कॉलिज की ''नियमावली पुस्तिका'' थी ,उसके साथ ही ''फीस रशीद ''भी थी। जिसे देखकर सुगंधा खिल उठी ,बोली -भइया ये आपने सब कैसे किया ?नमन बोला -जब मैं यहाँ से गया था तो सभी जरूरी कागज़ात लेकर गया था। अब तुझे वहां जाने की भी आवश्यकता नहीं। घर पर ही रहकर अपनी शिक्षा पूर्ण कर सकती है। बस तुझे परीक्षा देने जाना होगा। अपने विषय भी चुन लेना ,तेरी पुस्तकें भी ले आऊँगा। और इस तरह नमन ने अपने पिता की बात का भी मान रखा और बहन को भी आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। ये सभी बातें कलावती जी ने खुश होकर अपने पति यानि विक्रम जी को बताई तो वो भी प्रसन्न होकर बोले -तुम्हारे माता -पिता ने तुम्हारा नाम यूँ ही कलावती नहीं रख दिया कुछ तो कलाएं तुम में भी हैं। वो हंसकर बोली -हाँ -हाँ तीस वर्षों से मैं अपनी कला से किसी के जिद्दी और गुस्सैल बेटे को संभाल रही हूँ तो क्या मैं अपने बच्चों को नहीं संभाल सकती सुनकर विक्रम जी हंस पड़े बोले -आज मेरे बेटे ने अपनी बहन को अद्भुत ''भेंट ''दी जो उसे जीवन भर काम आएगी।