क्या तुम यही रहती हो ? आज से पहले तो तुम्हें कभी नहीं देखा , पड़ोस का एक लड़का अपनी छत से खड़े होकर, दूसरी छत पर खड़ी लड़की से पूछ रहा था।
वह लड़की मुस्कुराते हुए बोली -नहीं ,मैं यहां नहीं रहती , मैं तो सिर्फ कुछ दिनों की छुट्टी में , यहां आई हूं। यह मेरी मौसी का घर है।
ओह ! तो तुम जतिन की मौसेरी बहन हो।
हां...... पर तुम इससे क्या ? रिंकू के चेहरे पर मुस्कुराहट बरकरार थी।
मुझे तो कुछ नहीं, मैं तो ऐसे ही पूछ बैठा ,क्योंकि आज तक तो तुम्हें देखा नहीं था इसीलिए...... वैसे मेरा नाम'' कार्तिक'' है , मैं जतिन का ही दोस्त हूं ,उसी की क्लास में पढ़ता हूं। तुम्हारा क्या नाम है ?
मुझे प्यार से सब' रिंकू' कहते हैं ? वैसे मेरा नाम'' पूर्णिमा'' है।
अब तुम्हें मैं तुम्हारे प्यार वाले नाम से पुकारू या पूर्णिमा के नाम से।
तुम क्यों मेरा नाम पुकारोगे ? तुमसे मेरा कौन सा काम पड़ने वाला है ?
काम तो कुछ नहीं पड़ेगा, बस ऐसे ही कभी पुकारना पड़ गया। मैं जतिन के घर आया ,तुमसे मिलना पड़ गया।
जबकि जब देखेंगे, वैसे तुम करते क्या हो ?
अभी तो बताया, जतिन के साथ ही पढ़ता हूं।
ओह हाँ !
लगता है, लड़ाई करने के साथ-साथ, तुम्हारी याददाश्त भी कमजोर है।
यह तुम क्या कह रहे हो ? भला, मेरी याददाश्त क्यों कमजोर होने लगी ?
वैसे तुमने बताया नहीं तुम क्या कर रही हो ?
मैंने इसी वर्ष मास्टर्स की डिग्री हासिल की है वह भी ''हिंदी साहित्य ''से।
उसका तो जैसे मुंह खुला का खुला ही रह गया ? क्या???? साहित्य में मास्टरी किए हुए हो , तुम्हें देखकर लगता तो नहीं।
क्यों नहीं लगता ?तुम्हें क्या मैं, बुद्धू नजर आती हूं , जब तुम जैसे लोग इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर सकते हो ,तो मैं मास्टर नहीं कर सकती।
तुम्हारा क्या मतलब है, तुम जैसे लोग से....... क्या तुम्हें हम पढ़े लिखे नजर नहीं आते ?
पूर्णिमा ने कार्तिक को ऊपर से नीचे तक देखा , गेहुएँ रंग का वो लड़का, देखने में कुछ विशेष तो नजर नहीं आ रहा। मन ही मन सोचा- इसमें है ही क्या ? फिर सोचा -मुझे क्या ? मेरे कहने का मतलब है - तुम्हें लगता है ,कि मैं मास्टरी नहीं कर सकती हूं तो तुम लोग भी, इंजीनियरिंग नहीं कर सकते हो। बात को बदलते हुए पूर्णिमा बोली।
तुम बात को गलत समझ रही हो, देखने तुम में तो तुम ,इतनी कम उम्र की लग रही हो लगता है ,जैसे अभी 10वीं 12वीं पास की होगी इसीलिए मुझे आश्चर्य हुआ कि तुम मास्टरी कर रही हो।
उसकी बात का आशय समझ कर ,पूर्णिमा मुस्कुरा दी -तभी उसने एक संवाद उसे सुन डाला-''हां ,ऐसा ही होता है, मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता। '' कहकर हंस दी। अब तो अक्सर उन दोनों की बातें होने लगीं। दोनों खूब देर तक बातें करते रहते कभी पढ़ाई के विषय में ,कभी अपने शौक के विषय में , पूर्णिमा की दो महीने की छुट्टियां समाप्त हो गईं , अपने घर आते समय पूर्णिमा ,कार्तिक से भी मिली , बातों ही बातों में कार्तिक ने उसके घर का पता भी मांग लिया। पूर्णिमा अपने घर वापस आकर अपनी आगे की पढ़ाई में जुट गई।
लगभग एक माह पश्चात , एक चिट्ठी उसके नाम आई , उसे बहुत आश्चर्य हुआ ,मेरे लिए किसने चिट्ठी लिखी है ? उसके छोटे बहन भाई खुश हो रहे थे ,दीदी !आपके नाम की चिट्ठी आई है , कौन है ?वो !
उत्सुकता से रिंकू ने वह चिट्ठी खोली -चिट्ठी पढ़ कर उसे बड़ी खुशी भी हुई और हंसी भी आई , तब उसने घर में सभी को बताया। यह कार्तिक की चिट्ठी है ,जो मुझे मौसी के घर मिला था। तब उसने सबको विस्तार से उसकी बातें बताई। अचानक इस तरह चिट्ठी मिलने से आश्चर्य के साथ-साथ रिंकू को खुशी भी हुई। जवाब देना तो बनता है , रिंकू ने भी जवाब दिया, इस तरह चिट्ठियों का सिलसिला चल निकला।
अचानक से उसकी चिट्ठी आनी कम हो गईं , जहां महीने में चार चिट्ठी आ जाती थीं , वहीं दो या एक हो गईं । वह अक्सर अपनी चिट्ठियों में , अपनी मम्मी द्वारा उसके विवाह के लिए ,लड़की खोजने की बात लिखा करता था। तब रिंकू ने समझा शायद वो, अपनी शादी की तैयारी में लगा हो, क्या मालूम उसकी मम्मी ने उसके लिए कोई लड़की देख ली हो ? उन्हीं तैयारियों में व्यस्त हो। इधर रिंकू की शादी की बात भी चल रही थीं । यह तो अच्छा संयोग था , वह लड़का उनकी गली से आगे की गली में ही रहता था। वह भी रिसर्च कर रहा था। माता-पिता की रजामंदी से जब दोनों में धीरे-धीरे बात होने लगी , वह कभी-कभी घर पर भी आ जाता था।
कभी-कभी रिंकू को , कार्तिक की स्मृति हो ही जाती ,तब सोचती - लगता है ,उसकी शादी हो गई है इसी लिए उसने चिट्ठी लिखना बंद कर दिया है। हो भी क्यों न....... भई, किसी की पत्नी को यह तो पसंद नहीं आएगा कि उसका पति किसी और लड़की को पत्र लिखें। चाहे वह प्रेम -पत्र न होकर, साधारण पत्र ही क्यों न हो ? आखिर विवाह का समय भी आ गया और एक दिन रिंकू का विवाह भी हो गया। रिंकू उस परिवार में आकर बहुत खुश थी।
एक दिन रिंकू के पति ने कहा , क्या कानपुर में तुम्हारा कोई दोस्त था ?
अपने पति की बात सुनकर रिंकू को आश्चर्य हुआ , इन्हें किसने कानपुर के दोस्त के विषय में बता दिया हालांकि वह उसे अपना दोस्त नहीं समझती थी। अपने भाई का दोस्त ही समझती थी। तब उसे कार्तिक की याद आ ही गई और बोली - वो तो मेरे भाई का दोस्त है , उनके पड़ोस में ही रहता था जब मैं अपनी मौसी के यहां गई थी तब मेरी मुलाकात भी उससे हो गई थी। तब से वह मुझे चिट्ठी लिखने लगा , और धीरे-धीरे उसकी चिट्टियां आनी कम हो गईं। मुझे लगता है, शायद उसका विवाह हो गया। अब घर -गृहस्थी में फंस गया होगा। रिंकू की बातें सुनकर, उसका पति चुप हो गया और बहुत सारी चिट्टियां उठाकर उसके सामने ले आया। उन्हें देखकर ,रिंकू आश्चर्य चकित रह गई , तुम्हारे पास यह चिट्टियां कहां से आईं ? उसने अपने पति से पूछा।
तब उसके पति ने बताया, एक बार मैं तुम्हारे घर गया था, तब डाकिए ने तुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे घर पर डाली ,मैंने जिज्ञासावश वो चिट्ठी उठा ली ,अपने घर आकर उस चिट्ठी को पढ़ा। तुम समझी या नहीं किन्तु मैं उसकी चिट्ठी को पढ़कर समझ गया। वो अपनी बातों से तुम्हें इशारे दे रहा है ,समझा रहा है कि वो तुम्हें चाहने लगा है। तब मैंने उसकी और चिठ्ठी भी ले लीं। कुछ तुम्हें हाथ लगीं कुछ मुझे किन्तु इतना तो मैं समझ ही गया। ये तो मेरा पत्ता काटने के चक्कर में है ,तब मैं इसी कोशिश में रहता कि चिट्ठी तुम तक न पहुंचे।
तुम अपने को इतना असुरक्षित महसूस करने लगे ,वो तो मुझे बहुत दिनों से पत्र लिख रहा था ,मुझे उसमे कोई दिलचस्पी नहीं थी किन्तु मैं उसका दिल भी तोडना नहीं चाहती थी इसीलिए मैं उसकी बातों को हंसकर टाल दिया करती थी। किन्तु आज मुझे चिट्ठियों के न मिलने का सच मालूम हो गया। जो चिट्ठी मुझे मिलती थी उसमें अक्सर वह अपनी चिठ्टी का जिक्र करता और मैं कहती मुझे नहीं मिली। अब पता चला ,वो ''चिट्ठी चोर ''तो तुम थे ,कहते हुए अपने पति के संवरे बालों को अपने हाथों से बिखेर दिया और बोली -तुम्हारी बीवी इतनी अच्छी है ,कि तुम्हें कुछ नहीं कहा ,वरना चिट्ठी चुराने के जुर्म में कई धाराएं भी लग सकती थीं और तुम जेल भी जा सकते थे।
वो तो हम आज भी ,तुम्हारी कैद में है ,कहकर वो भी मुस्कुरा दिया।