रात कोई भी हो, सबके लिए समान नहीं होती, किसी के लिए सुख लेकर आती है ,तो किसी के लिए दुख लेकर आती है। रात्रि तो वही होती है , किंतु अलग-अलग समय के लोगों के लिए अलग-अलग संदेश लाती है। हर भयानक रात, में भूत- प्रेत ,पिशाच ही नहीं होते। जहां भूत- प्रेत, पिशाच हों वही रात ''भयानक रात'' नहीं होती। किसी के लिए वह चांदनी रात है। किसी के लिए प्रेम का संदेश देती है। किसी के लिए आराम की रात है। हमारे हवलदार प्रताप सिंह जी के लिए वह रात अत्यंत'' भयानक रात'' बन गई , वही रात नहीं, उससे जुड़ी आगे आने वाली कई रातें भी उनके लिए भयानक हो गईं।
प्रताप सिंह जी अपने नाम की तरह ही, प्रतापी थे। बहादुर व्यक्ति थे, जोश उनके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था, देश के लिए और अपने लोगों के लिए कुछ कर जाना चाहते थे। किंतु परिस्थितियाँ ऐसी रहीं , वह पुलिस में भर्ती तो हो गए किंतु हवलदार ही बनकर रह गए। घर के इकलौते बेटे थे। आगे बढ़ने का प्रयास करते, और किसी न किसी कारण से पीछे रह जाते। अब अपने आगे बढ़ने की उम्मीद उन्होंने छोड़ ही दी थी, किंतु कुछ दिनों से उनके मन में जोश और उत्साह फिर से उमड़ गया था क्योंकि उनका बेटा, अब दसवीं की पढ़ाई कर रहा था। मन ही मन वह उसे पुलिस के बड़े पद पर देखना चाहते थे , इसलिए उसको पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते और स्वयं उसको, अपनी तरफ से, अपने बेटे सुबोध को पहले ही प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया। इतना तो वह जान ही गए थे कि पुलिस में भर्ती के लिए ,उनके बेटे को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है , इसीलिए वह पहले ही ,हर तरह से मजबूत कर देना चाहते थे। सारा दिन पढ़ने का कार्य था ,वे चाहते थे कि अच्छे से अच्छे अंको से वह आगे बढ़े।
प्रातः काल ही उसे उठाकर, घूमाने के लिए ले जाते थे, उनके लिए यह उनके प्रशिक्षण का प्रमुख कार्य था। हर मां-बाप की दृष्टि में यही होता है कि अपने बच्चों को, पूरी तरह से, प्रशिक्षित कर देना चाहते हैं जो कमियां उनमें रह गईं या जिन कमियों के कारण ,वह आगे न बढ़ सके। उन कमियों को समझते हुए, यही उम्मीद लगाते हैं कि हम तो आगे न बढ़ सके किंतु हमारा बच्चा, आगे बढ़े। उन्हें इस बात की बहुत ही प्रसन्नता होगी कि उनका ही बेटा, उनसे बड़ा अफसर बनेगा। किसी चीज की भी कमी नहीं छोड़ देना चाहते थे।
सुबोध ! जी पापा जी !
जी, पापा जी कर रहे हो ,अब तक तो तुम्हें दौड़ लगाने चले जाना चाहिए था। अभी तक पड़े सो रहे हो।
रात्रि में थोड़ी, देर से सोया था परीक्षाएं भी तो आने वाली हैं इसीलिए आंख ही नहीं खुली। इकलौता बेटा होने के साथ -साथ आज्ञाकारी भी था ,जो कहते मान लेता।
यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?यदि तुम्हारी परीक्षाएं हैं , तो अपने को परेशान मत करो !मन लगाकर पढ़ो और अच्छे से परीक्षाओं की तैयारी करो ! प्रशिक्षण फिर से आरंभ करेंगे।
अब आंख ही खुल गई हैं , तो चला जाता हूं।
ठीक है, किंतु आज के पश्चात परीक्षाओं के पश्चात, चले जाना। सुनो !अपनी पत्नी से बोले-इसका जरा विशेष ख्याल रखना , किसी चीज की कमी न होने देना, इसका खाना समय पर होना चाहिए, मैं इसके लिए , बादाम, चवनप्राश इत्यादि चीजें लाकर रख दूंगा। प्रताप सिंह जी को उम्मीद थी, कि बेटा अच्छे अंकों से पास होगा उसके पश्चात वह प्रशिक्षण देंगे और जब पहले से ही ,बच्चा अनुभवी होगा तो किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रह जाएगी। मैं भी गर्व से कह सकता हूं ,कि यह ऑफिसर मेरा बेटा है। कितने अरमान सजोए थे ? बस कुछ दिनों की ही तो बात है। कम से कम एक महीना समझ लो, उसके पश्चात, इसका प्रशिक्षण फिर से आरंभ कर दूंगा। चलो !इस बहाने मेरी भी परेड हो जाएगी सोच कर ही मुस्कुरा दिए।
एक माह पश्चात बेटे की परीक्षाएं भी हो गयीं , और फिर से प्रताप सिंह जी ने उसका प्रशिक्षण आरंभ कर दिया। इस तरह बेटे के बारहवीं की परीक्षाएं भी आ गयीं और चली भी गयीं।अब तो बस मंजिल के क़रीब ही हैं। अब सर्दियां भी शुरू हो गई हैं , किंतु जिनके सामने मंजिल होती है और उनके जीवन का कुछ उद्देश्य होता है ,उनके लिए क्या सर्दी और क्या गर्मी ! प्रसन्न होते हुए स्वयं भी 5:00 बजे उठ जाते और बेटे को भी उठाते। चलो! मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे आ रहा हूं और दोनों बाप -बेटा घूमने निकल जाते , उस दिन कुछ ज्यादा ही धुंध थी, घना कोहरा छाया था। इतनी ठंड में, अब प्रताप सिंह जी से भी नहीं उठा जाता, किंतु बेटे के कारण स्वयं भी, उठते हैं, यदि वह स्वयं ही अलसी करेंगे तो बेटा ,पहले से ही नहीं जा पाएगा।
पापा आज तो बहुत ही धुंध है।
हां है तो, किंतु नियम तो नियम होता है। जब हमें टहलना ही है। क्या आज दौड़ने का मन नहीं है ?तो थोड़ा सा टहल लेते हैं और फिर उसके बाद घर वापस चलते हैं, इतना घना कोहरा था कि 10 कदम की दूरी पर क्या हो रहा है ?वह भी नहीं पता चल पा रहा था। अचानक, बेटे को न जाने क्या सूझी ? और वह दौड़ लगाने लगा। पापा आप मेरे पीछे आइये ! मैं जा रहा हूं। कहते हुए , वहआगे निकल गया।
अरे !रुक तो जरा, मैं भी आ रहा हूं, पता नहीं इसे क्या सूझी ? चलो अच्छा है लगाने दो दौड़ ! इस उम्र में नहीं दौड़ेगा तो कब दौड़ेगा ?मन ही मन सोचा।
सुबोध कहीं भी दिख नहीं रहा था, उन्होंने आवाज लगाई किंतु उनकी आवाज भी शायद, उस तक नहीं पहुंच पा रही थी, कुछ ज्यादा आगे निकल गया है, क्या ? सोचते हुए आगे बढ़े, तभी वह किसी चीज से टकराये नीचे झुककर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए , यह क्या हुआ ? उन्होंने उस इंसान को सीधा किया ,यह तो सुबोध है ! उनके हाथ- पैरों की जैसे जान ही निकल गई, वह शायद वहीं चक्कर खाकर गिर जाएंगे किंतु अपने बच्चे के लिए उन्हें मजबूत होना था। थोड़ी भी देरी उनके बेटे के लिए, गलत साबित हो सकता था उन्होंने चिल्लाना आरंभ कर दिया। तभी एक ऑटो वाला उन्हें जाता दिखा , उन्होंने उसे आवाज लगाई और फौरन उसे ऑटो में बिठाकर अस्पताल की ओर चल दिए। बेटे को अस्पताल में भर्ती किया।
इसे बहुत गहरी चोट आई है ,डॉक्टर ने बताया -शाम तक यदि इसे हो आ गया तो ठीक है ,प्रताप सिंह जी ने फोन पर ही अपनी पत्नी को सभी परिस्थितियों से अवगत कराया। वो भी घर को बंद करके वहीं आ गयीं ,दोनों पति -पत्नी ने दिनभर कुछ नहीं खाया। लगभग शाम को चार बजे बच्चे को होश आया ,दोनों अपने बच्चे को देखने गए। प्रताप सिंह जी पुलिस के आदमी थे। जानना चाहते थे कि आख़िर हुआ क्या था ?
तब उनके बेटे ने टूटे शब्दों में बताया- कि कोई ट्रक उसे टक्कर मारकर गया था। अब अपने आप पर ही प्रतापसिंह जी पछतावा कर रहे थे कि क्यों मैंने इसे सोने नहीं दिया ,इतनी ठंड में मुझे इसे दौड़ाने की क्या आवश्यकता थी ?अपने सपनों के चलते मैंने इसे भी आराम से रहने नहीं दिया। तब उनकी पत्नी उनसे बोली -अब वह ठीक है ,आपने सुबह से कुछ नहीं खाया है ,अब कुछ खा लीजिये। डॉक्टर के आश्वासन पर दोनों पति -पत्नी खाना खाने चले गए किन्तु जब वो वापस आये ,उनका सुबोध इस दुनिया को छोड़कर जा चुका था। वो रात्रि उन दोनों पति -पत्नी के लिए सबसे ''भयानक रात ''बन गयी ऐसी न जाने कितनी रातें उन्होंने रोते ,करवट बदलते सिसकियों में गुजारी।
यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है , इसमें नाम के परिवर्तन के अलावा, उसकी मौत में भी परिवर्तन किया गया है क्योंकि वास्तविकता में उसकी मौत दुर्घटना स्थल पर ही हो गई थी।