बहू के आते ही घर में खुशहाली आ गई , आये भी क्यों न ?बहुत धूमधाम से शादी हुई है ,बहु दान -दहेज भी बहुत लाई है। पच्चीस लाख नकद , समधी जी ने बेटी -दामाद के खाते में जमा करा दिए। बाक़ी घरेलू सभी सामान ,गाड़ी ,सोने के जेवर ,महंगे कपड़े ,सभी कुछ तो दिया है। ऐसा भी नहीं है , कि उसकी ससुराल में किसी चीज की कमी है , उसके ससुराल वाले तो पहले से ही ,बहुत पैसे वाले हैं, कहते हैं न..... '' पैसे को पैसा ही खींचता है। '' लड़की वाले ने भी देखा है ,कि लड़का अकेला है , घर में पहले से ही दो -दो गाड़ियां खडीं हैं , कई एकड़ जमीन है।बाग़ हैं , करोड़ों की कोठी है , कहने सुनने को घर में, सास भी नहीं है , वो कोरोना में चल बसीं। लड़का भी अभियंता है। बेटी को इस घर में किसी भी चीज की कमी नहीं रहेगी , यही सोचते हुए ,लड़की वाले ने अपनी बेटी उस घर में ब्याहने का निर्णय लिया और दिल खोलकर पैसा खर्च किया।
लड़की बहुत ही व्यवहार कुशल थी , पढ़ी लिखी थी , किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी दोनों ही तरफ पैसे का बोलबाला था , लड़की का पिता भी उच्च पद से , सेवानिवृत्त हुआ था ,कहने में तो ये भी आ रहा था ,बेटी के पिता ने 'नंबर दो 'में पैसा बहुत कमाया था। अब उस कमाई का ये लाभ हुआ ,उनकी काली -कलूटी बेटी ख़ुशी -ख़ुशी अपने ससुराल पहुंच गयी। अब तो पैसा होना चाहिए , काले होने से क्या होता है ?अब तो पैसे के बल पर ,साज़ - सज्जा भी बहुत अच्छी हो जाती है। काला भी गोरा हो जाता है, ऐसी ही तो लग रही थी वह ,अपने विवाह के समय। पार्लर वाली ने न जाने कितनी परतें चढ़ाई थी ? अपने विवाह के समय वह गोरी लग रही थी , शादी की चकाचौंध ने उसके चेहरे पर नजरें टिकने ही नहीं दीं लोग -बाग भी क्या-क्या देखें ?एक से एक चीज खाने में, सजावट में, सब बेहतरीन था ।
इस घर में ,इससे पहले जो बहुएं आईं थीं ,वे अपनी ससुराल के वातावरण में पूरी तरह ढ़ल चुकी थीं। सास ही इतनी कठोर थी ,यदि कोई बहु उनके कहे में न चले ,तो सारा घर सर पर उठा लेती थीं ,सभी बच्चे से लेकर बड़े तक ,उनके आगे -पीछे डोलते थे। नौकर -चाकर की तो बिसात ही क्या ?बेटे भी ,बहु से तब तक नहीं बोलते थे ,जब तक माँ न कहे। बहुओं में आज भी ,उनके मरने के पश्चात भी ,वही दहशत बनी हुई है। आज घर में नई बहु ने प्रवेश किया है ,वो एक तरह से उनके बेटे की बहु ,यानि उनके पोते की बहु है। अब इसकी न ही सास है ,न ही दादी सास ,एक चाची है ,उन्होंने सोचा -अब नई बहु को घर के कायदों को सीखाना मेरी जिम्मेदारी बनती है ,किन्तु अब जमाना बदल रहा है। जो हमने झेला ,उतना तो नहीं ,हाँ कुछ रीति -रिवाज हैं ,जो उसे समझा दूंगी।
प्रेरणा बहु तो आते ही, हनीमून पर चली गयी ,उसने तो किसी को बताना भी मुनासिब न समझा ,चाची सास को यह देखकर बुरा लगा, कि ये लोग तैयार हो चले गए ,अपने ससुर या मुझसे पूछना भी आवश्यक नहीं समझा। पंद्रह दिनों में दोनों घूमकर आये ,उसके पश्चात, अपने मायके चली गयी। बहु घर में टिके तो उसकी ,बाक़ी की रस्में कराई जाएँ ,किसी से क्या कहें ?आखिर बहु अपनी ससुराल आ ही गयी। चचिया सास ने सोचा -लड़के की नानी को बुलवाकर ही उनके सामने बहु की मुँह दिखाई की रस्में कर देते हैं। उस समय तो बहु घर में ही नहीं थी ,अब ये रस्म करवा देते हैं। नानी को सम्मान के साथ बुलाया गया ,नानी ने प्रेरणा से कहा गया -बेटी अपना सर ढक लेना ,जब आस -पड़ोस की महिलाएं ,तुम्हें देखने आएंगी , किन्तु बहु ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। सूट पहनकर बैठ गयी ,जब घर की महिलाओं ने देखा ,और स्वयं ही सोच लिया ,शायद इसने सुना नहीं ,अपने आप ही समझौता कर लिया ,चलो साड़ी नहीं सूट ही सही ,रस्म ही तो करनी है। नानी बोली - प्रेरणा बेटा !सर तो ढक लेतीं।
नानीजी ,आप भी न... वो लोग मेरा मुँह देखने आ रही हैं या सिर कहकर ऐसे ही बैठी रही ,नानी को बहु से ऐसे जबाब की उम्मीद नहीं थी ,वो चुप हो गयीं।
अगले दिन ,बहु की खाना बनाने की रस्म थी ,खाना बनाने वाली ने सब्जियां वगैरह काट दीं ,तब सब्जी छौंकर बाहर आ गयी ,खीर के लिए चचिया सास के कहने पर ,चावल दूध के अंदर डाल आई और अंदर आकर लेट गयी।
बहु तुम यहाँ हो ,खीर पक रही है ,जल गयी तो ,उसे चलाना भी तो होता है।
दया क्या करेगी ?उसे किसलिए रखा है ?क्या वो खीर भी नहीं चला सकती ?कहकर लेटी रही ।
बेटा ,अब अपनी ज़िम्मेदारियों को संभालना सीख़ लो ! दया को तो मजबूरी में रखा था ,जब तुम्हारी सास चली गयीं ,तब तुम्हारे ससुर के लिए खाना कौन बनाता ?हम लोग भी चले जाते हैं ,अब स्वयं घर की जिम्मेदारियाँ उठाना।
जी....... कहकर लेट गयी। खाना खाने आ गयी किन्तु सर्व करते समय भी ,अपने कमरे में ही रही।
शादी से पहले ,ये किस तरह से सभी कार्य कर रही थी ,इसके उसी व्यवहार को देखकर तुम सभी प्रसन्न हो गए थे ,विवाह के पश्चात ,कहने पर भी ये कार्य अपनी इच्छानुसार ही कर रही है ,तुम्हारी भाभी या मम्मी आज जिन्दा होतीं तो शायद गृहक्लेश हो जाता ,चाची अपने पति से बोली।
बच्ची है ,आगे सब उसे ही करना है ,कर लेगी, तुम परेशान न हों कहते हुए उनके पति ने समझाया। एक सप्ताह पश्चात ,तृप्ति अपने चाचा -चाची के यहाँ आई ,सुबह हुई किन्तु तृप्ति नहीं उठी ,जब उठी ,तब कामवाली से बोली -मेरे कमरे में दो कॉफी भिजवा दो !
बेटा ये रसोई नहीं संभालती ,हमारे यहाँ खाना बहुएं ही बनाती हैं ,तुम स्वयं बना लो या अभी मैं बना देती हूँ।इससे आगे कुछ कहतीं ,उससे पहले ही वो बोली - आप ही बना दीजिये, कहकर अपने कमरे में चली गयी।दोपहर का खाना खाकर, अपने पति के साथ बाहर चली गयी। शाम को ,दोनों बाहर से ही खा -पीकर आये।
आज वे सोच रहीं थीं ,जब मैं अपनी ससुराल आई ,सास का रौब रहता था ,हमने भी अपने घर संभाले ,तब भी चार बात सुनने को मिल जाती थीं, किन्तु आज इसे समझाया भी तो समझने को तैयार नहीं है। अब सभी चुप हैं ,जो भाईसाहब ,एक गिलास पानी की देरी हो जाती थी ,गर्म हो जाते थे ,और पानी पीते ही नहीं थे ,दीदी ,हर चीज कैसे सलीके से सजाकर रखती थीं ?तब भी किसी न किसी चीज पर ,भाईसाहब ,नाराज हो जाते थे और आज हालात ये हैं - बहु ने ,एक कप चाय या कॉफी भी ,बनाकर नहीं दी ,इसे कोई कुछ कहता ही नहीं। मैंने उस दिन उससे कहा -तृप्ति ,अपने चाचाजी को पानी दे देना ,मैं खाना बना रही थी ,तो कहती है -चाचाजी ,बच्चे नहीं हैं ,स्वयं लेकर पी सकते हैं। और अब दूसरे मकान में ,अपने माता -पिता के साथ रह रही है ,अब सबकी बोलती बंद है।
परिस्थितियों को समझते हुए ,चाचा बोले -ये नहीं ,इसके बाप और इसके ससुर का पैसा बोल रहा है ,वरना इसकी इतनी हिम्मत न होती ,वे भी परेशान हैं किन्तु अब किसी से कुछ नहीं कहते ,रिश्तों में अब वो जुड़ाव भी तो नहीं रहा ,समय काट रहे हैं।
मैंने पहले ही कहा था ,कि अच्छे परिवार की कोई सभ्य लड़की से, विवाह करना किन्तु तुम लोगों को तो तगड़ा दहेज चाहिए था। क्या हम लोगों ने घर नहीं संभाले थे ?आज हालत ये हैं ,भाईसाहब !चुपचाप बैठे रहेंगे ,कोई उन्हें एक कप चाय भी पूछने वाला नहीं है ,आज भी दया ही उनकी देखभाल कर रही है। अब वो जाने या आप कहकर दिशा ने अपनी फिक्र उनके सिर डाल शांत हो गयी।