अभय अवस्थी जी,आज उनकी तस्वीर पर एक माला टँगी है ,उनकी पत्नी 'माया' उनकी बातों को ,उन यादों को स्मरण कर रोये जा रही है। अवस्थी जी ,मुझे यूँ अकेला छोड़कर क्यों चले गये ? मैं आपके बिना अकेली कैसे रहूंगी ?मेरे लिए एक बार भी नहीं सोचा ,उनकी आँखों से अश्रु बहे जा रहे थे।
आस -पास बैठी ,पड़ोस की महिलाएं ,उन्हें सांत्वना दे रही थीं -'माया जी अपने आपको सम्भालिये ,जो आया है ,उसे एक न एक दिन जाना ही होता है। अवस्थी जी ,का साथ यहीं तक था। आपको इस तरह रोते देखकर उनकी आत्मा को भी दुःख पहुंचेगा। आप ही ऐसे टूट जायेंगीं तो बच्चों को कौन सम्भालेगा ?
अवस्थी जी के अंतिम संस्कार के सभी कार्य पूर्ण हो चुके थे। धीरे-धीरे ,दोस्त -रिश्तेदार सभी वापस लौट गए। घर एकदम से सूना हो गया था, बच्चे घर को संभालने का प्रयास कर रहे थे। माया अपने कमरे में पड़ी थी। अपलक उनकी तस्वीर को निहारे जा रही थी। कुछ स्मृतियां रह -रहकर आई और साथ ही ,आंखों में आंसुओं का सैलाब ले आतीं और वह स्मृतियां धुंधलाने लगतीं। कुछ देर पश्चात ,बहू ने कमरे में प्रवेश किया और बोली-मम्मी जी ! बहू की आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ ,तब वह उठने का प्रयास करने लगीं। बहू ने नजदीक आकर उनकी कमर के पीछे तकिया लगा दिया और बोली -कब तक इसी तरह पड़ी रहेगीं ? थोड़ा सा कुछ खा लीजिए वरना आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी।
कुछ भी खाने का मन नहीं है ,बहू ! सिर में बहुत दर्द है।
तभी तो कह रही हूं ,बिना खाए तो तबीयत और बिगड़ जाएगी आपके लिए चाय और बिस्किट ला देती हूं। और साथ ही सिर दर्द की गोली भी ,कहकर रूपाली चली गई।
बहू ने गोपाल के हाथ ,चाय और बिस्कुट के साथ सिर दर्द की गोली भी भिजवा दी। उसे खाकर माया को थोड़ा आराम मिला। कुछ देर पश्चात नींद आ गई स्वप्न में अवस्थी जी उससे मिलने आए ,ऐसा लगा -कि वह रो रहे हैं।
आपको क्या हुआ? क्यों परेशान हो ?माया ने उनसे पूछा।
मुझे माफ कर दो, माया !
यह आप क्या कह रहे हैं ? मुझसे माफी क्यों मांग रहे हैं ?तभी उन्हें जैसे किसी ने हिलाया वह उनका हाथ पकड़ना चाहती थी किंतु उनका हाथ छूट गया क्योंकि उनकी आंख खुल गई थी। आंख खुलते ही ,एहसास हुआ वह अब तक वे नींद में थीं। अवस्थी जी उनसे मिलने आए थे, किंतु न जाने क्यों रो रहे थे ? मुझसे किस बात के लिए क्षमा याचना कर रहे थे ? माया का मन कुछ उदास सा हो गया। विरक्त नजरों से ,अपने बेटे की तरफ देखा जिसके उठाने पर ही ,वह फिर से अपने अवस्थी जी से दूर हो गई थीं। वह कुछ कहना चाहते थे-मन का भार हल्का करना चाहते थे।
मम्मी !वकील साहब आए हैं ,आपसे मिलना चाहते हैं।
आती हूं ,कहकर बेटे को बाहर भेज दिया ,बिस्तर से उठकर ,एक नजर अपने को आईने में देखा ,बाल ठीक किये आंखों की उदासी को किसी भी तरह से छुपा न सकीं और बाहर आ गई। वकील ने उन्हें देखते ही, नमस्कार कर एक लिफाफा उनके हाथ में थमा दिया और वसीयत के विषय में बताने के लिए ,घर वालों को एकत्रित किया। किंतु सभी की नजरें उस लिफाफे पर थी ,जो रहस्यमय तरीके से उनके हाथ में ,घरवालों का मुंह चिढ़ा रहा था। वकील ने जब वसीयत पढ़कर सुना दी ,कोई प्रसन्न नजर आया ,कोई शांत था किंतु माया उस लिफाफे को लेकर ,अपने कमरे में आ गई। उसने वह लिफाफा खोला ,उसमें से एक पत्र निकाला , वह उस पत्र को पढ़ने लगी - मेरी माया !
मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, नाम मेरा 'अभय 'है किंतु जब से मैंने तुम्हारे साथ छल किया है ,तब से ड़र के साए में जी रहा था, मैंने तुम्हारे प्यार और विश्वास को धोखा दिया। अब तुम यही सोच रही होगीं मैंने ऐसा क्या गुनाह किया ? मैंने यह बात ताउम्र तुमसे छुपाए रखी किंतु मेरी आत्मा को यह गवारा नहीं था इसलिए जाने से पहले एक सच्चाई तुम्हें बता देना चाहता था किंतु साहस नहीं जुटा पाया। अपने मन पर बढ़ते बोझ को कम कर देना चाहता हूं।
तुम जानती ही हो ,अक्सर काम के सिलसिले में ,मैं बाहर जाता रहता था। एक बार जब' फिलिपींस'गया था तब वहां एक लड़की से मुलाकात हुई और वह मुलाकात बढ़ती गई और प्यार में बदल गई उसने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा। वह रिश्ता भी नहीं ,जो मेरा तुम्हारा रहा है ,पत्र पढ़ते हुए माया की आंखों से अश्रु जल किसी झरने की तरह बह रहे थे । जब उसे शब्द दिखने बंद हो गए तो उसने अपने साड़ी के पल्लू से आंसू पोँछकर दोबारा पढ़ना आरंभ किया।
मैंने तुम्हारे लिए भी ,अपने प्यार में कोई कमी नहीं की बच्चों को भी ,कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी, क्योंकि मैं तुमसे भी बहुत प्रेम करता था किंतु उसके भोलेपन ने मेरा मन विचलित कर दिया था जब वह एक बेटे की मां बन गई ,तब मैंने उससे विवाह कर लिया उसकी सभी सुख -सुविधाओं का भी ख्याल रखा किंतु उससे स्पष्ट कह दिया था -'तुम्हें अपने देश नहीं ले जा सकता।' यह रहस्य वर्षों तक मेरे सीने पर बोझ बनकर रहा ,तुम मेरी पत्नी हो ,तुम्हारा अधिकार बनता है, सच्चाई जानने का....... मै जानता हूं, जब तक तुम्हें यह पत्र मिलेगा, मैं इस दुनिया में नहीं होगा। शायद ,तुम्हारे उस पवित्र प्रेम के सामने मैं अपराधी !तुम्हारी नजरों का सामना नहीं कर सकता था। मैं कमजोर पड़ गया था इसीलिए इस पत्र द्वारा ,तुम्हारा क्षमा प्रार्थी हूं। हो सके तो अपने इस डरपोक पति को क्षमा कर देना ,तुम्हारा अपराधी तुमसे प्रेम करने वाला, इसे अब भय मुक्त कर दो ! इसे क्षमा दे दो !अब यह भी नहीं कह सकता ,तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा -
''अभय अवस्थी''
माया, अब जोर-जोर से रो रही थी तभी उसका बेटा और बहू अंदर आए ,क्या हुआ ?मम्मी जी ! उनकी नजर अब भी उस पत्र पर थी। न जाने उस पत्र में ,पापा ने क्या लिखा होगा ? किंतु माया ने अपने इस दुख में भी, उस पत्र को अपने हाथों से छुपा लिया। बच्चों के चले जाने पर ,उस पत्र को वापस लिफाफे में ही डालकर उसे अग्नि के हवाले कर दिया ताकि बच्चों के मन में ,अपने पिता का सम्मान कम ना हो। अपने पति के उस ''रहस्यमई पत्र ''के रहस्य को 'रहस्य 'ही रहने दिया।