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अबके बरस

16 अगस्त 2023

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श्रावण मास 'तो हर बरस आता है और श्रावण के त्यौहार भी ,जैसे -हरियाली तीज , श्रावण के सोमवार,पूरे माह व्रत और कुछ लोग कांवड़ भी लाते हैं फिर महाशिवरात्रि और रक्षाबंधन।बारिश की रिमझिम फुहार से सारी प्रकृति धुली हरी -भरी नज़र आती है। इस माह ,घर की बहु -बेटियों के त्यौहार भी होते हैं। इस माह बेटियों का इंतजार बढ़ जाता है कि भाई आएगा सिंधारा लाएगा। भाई राखी बंधवाने आएगा या फिर उसे अपने घर जाने की उमंग रहती है। साड़ी ,चुनरी ,मेहँदी, पायल की खनक रहती है। प्रकृति' धानी चुनर' ओढ़े रिमझिम फुहार में ,झूले पर झूलती सखियाँ गा उठती हैं -- झूला तो पड़ गया ,अमुआ की डार पे जी ,
                                  ए जी कोई राधा जी,, को झूला झुलावै जी ,
                                  इंद्रराजा झुकी आये ,बाग़ मैं जी।
                                   झूला तो पड़ गया ,अम्मा मेरी बाग़ में जी। 
                                                          अथवा 
                                   अबके बरस भेजो ,भइया को बाबुल सावन में लीजो बुलाये रे। 
                                                          या फिर 
                                   रंग बिरंगी राखी लेके आयी बहना ,राखी बँधवाले मेरे वीर ,बँधवाले रे चंदा।  
जैसे गानों से वातावरण मोहक और आत्मविभोर कर देने वाला हो जाता है ,


मेरी कहानी की नायिका दीप्ती भी ,जब मैके में थी तो सावन लगते ही ,मोटी रस्सी का झूला ,अपने घर की दुबारी [घर में प्रवेश करते ही जो कमरा आता है ,उसे ही दुबारी कहते हैं ]में लकड़ी के बेलन में डलवा लेती थी और अपनी सखियों संग ,सावन के गीतों पर झूला झूलती और नए -नए गीत सीखती। अबकि बार तो उसकी नई भाभी भी आयी हुई है ,उनसे सावन के नये -नये गीत सीखती है। ये उसकी अपने सासरे जाने की तैयारी चल रही है। ताकि वहां सबको अपने काम और गीतों द्वारा प्रभावित कर सके। माँ घर पर ही'' मनिहार'' को बिठा लेती है ,घर की सभी बहु -बेटियां ,अपनी -अपनी पसंद की रंग -बिरंगी चूड़ियाँ पहनती हैं। इसी तरह 'पों चीवाला 'भी आता और सभी अपने -अपने भाइयों के लिए ,नई -नई और रंग -बिरंगी पोंची खरीदतीं किन्तु दीप्ती की तो पसंद ही अलग थी ,वो अपने भाई के लिए ,सबसे बड़ी पोंची लेती। कारण पूछने पर कहती -मेरे भाई के हाथ में मेरी बड़ी सी पोंची दिखनी चाहिये। पड़ोस की ताईजी कहतीं -तू पगली है क्या ?तेरा भाई शहर में रहता है ,बड़ा हो गया है ,इतनी बड़ी पोंची बांधेगा तो उसके दोस्त भी उस पर हँसेंगे ,उसकी हंसी उड़ायेंगे -क्या गंवारों वाली पोंची है ?दीप्ती का मन नहीं मानता और कहती है -मैं कुछ नहीं जानती ,वो तो ये ही पहनेगा। मेरा भाई है ,जैसी मेरी इच्छा होगी ,वैसी ही लूँगी। भाई रक्षाबंधन पर घर आया ,दीप्ती ने भाई की आरती के लिए थाली सजाई -उसमें कुमकुम -चावल मिठाई के साथ अपनी बड़ी सी पोंची सजाई। भाई ये देखकर थोड़ा परेशान हुआ ,बोला -अब मैं क्या बच्चा हूँ ?इतनी बड़ी राखी। हाँ भाई ,तुम्हारे हाथ में मेरी पोंची ही दिखनी चाहिए। तभी उसे याद आया -क्या नाम बताया ,तुमने इसका ?भाई बोला -तभी तो कहता हूँ थोड़ा पढ़ भी लिया कर ,शहर में इसे सब राखी कहते हैं ,पोंची कोई नहीं बोलता। उसे तो न जाने कितनी अनमोल धरोहर हाथ लगी -सोच रही थी ,इन गँवार लड़कियों को बतलाऊँगी कि इसे राखी कहते हैं किन्तु पहले भाई को राखी तो बांध लूँ। 
                 उसने भाई को राखी बाँधी ,भाई ने उसे सौ रूपये दिए ,उस समय जितने लड़कियों को मिलते थे सबसे ज्यादा मिले किन्तु दीप्ती फिर भी मुँह बनाकर बैठ गयी। बोली -मेरा भाई ,जो शहर में नौकरी करता है ,बस' सौ रूपये 'भाई बोला -अगली बार और ज्यादा दूंगा ,अभी नई नौकरी लगी है। माँ ने भी समझाया -अगली बार और ज्यादा पैसे देगा ,उसकी नाराज़गी अधिक देर तक न रह सकी , तभी दीप्ती की नज़र भाई के पीछे रखे बंडल पर गयी। दीप्ती ने झट से उस बंडल को उठा लिया और फुर्ती से खोल भी दिया उसमें दीप्ती के लिए सलवार -सूट थे जिन्हें देखकर वो झूम उठी और बोली -मुझे पता था ,मेरा भाई मेरे लिए जरूर कुछ लाएगा उन्हें लेकर अपनी सहेलियों को दिखाने घर से बाहर दौड़ गयी ।उसे इस तरह भागते हुए देखकर माँ बोली - इतनी बड़ी हो गयी है ,इसका बचपना अभी तक नहीं गया। सुरेश बोला -माँ ,मैंने कहा था ,कि इसे अभी आगे पढ़ाओ ,आपने इसकी पढ़ाई छुड़वाकर इसे घर में बिठा दिया। क्या करूँ ?बेटा ,गांव का आठवीं तक का विद्यालय है ,आठवीं तक जैसे -तैसे पढ़ी है। पढ़ाई में तो इसका मन ही नहीं है ,तेरे पिताजी से भी कहा तो कहने लगे -आगे पढ़कर भी क्या करना है ?रोटी ही बनानी हैं और ज्यादा पढ़ -लिख गयी तो लड़का ढूढ़ने में दिक्क़त आती है। तेरे पिताजी ने तो एक लड़का देखा भी है। बड़े अमीर और खानदानी लोग हैं ,इकलौता लड़का है , उनके तीन बेटियां थीं , तीनों का विवाह कर दिया। वे लोग भी शहरों में बड़े -बड़े कारोबारी हैं। हमारी दीप्ती भी उन्हें पसंद है ,पैसा तो उन पर ,बस यूँ समझो लक्ष्मी की कृपा है। सुरेश बोला -लड़का क्या करता है ?अभी तो वो बीस बरस का है ,हमारी दीप्ती अब अट्ठारह की हुयी है। अभी तो उसके बड़े -बूढ़े ही सब संभाल रहे हैं फिर भी उसे करने की जरूरत ही क्या पड़ी है ?ज़मीन -जायदाद ही इतनी है वो ही सम्भल जाये ,वो ही बहुत है। उनके ट्रैक्टर से खेती होती है ,सम्पूर्ण गांव में उनका ही घर ऐसा है ,जिनके ट्रैक्टर है। किसी से भी पूछ लो ,उनके घर का पता ,बस कहने भर की देर है -ट्रैक्टर वालों के यहाँ जाना है। वहीं छोड़कर आएगा ,माँ ने उन लोगों का ऐसा बखान किया। सुरेश बोला -जैसी तुम लोगों की इच्छा ,मुझे बता देना ,क्या करना है ?फिर उसकी भाभी तो यहाँ है ही। वो शहरों के तौर तरीक़े जानती है ,वो भी समझा देगी। 


                     बरस के अंदर -अंदर दीप्ती का विवाह हो गया। उस पर तो अपनी ससुराल का ऐसा रंग चढ़ा ,एक से एक महंगी साड़ी , कीमती आभूषण ,वो तो किसी सेठानी से कम नहीं लगती थी। ब्याज़ पर पैसे चढ़ाने लगी ,हिसाब तो जैसे उसकी अंगुलियों पर रहता था ,उसके कहने भर की देर होती और वो वस्तु उसके सामने आ जाती। माँ और पिताजी तो प्रसन्न थे। माँ -बाप को और क्या चाहिए ?उनकी औलाद सुख से रहे। कहते हैं न ,- पैसा जब आता है तो बुराई भी लाता है, ससुराल का रंग तो उस पर चढ़ा किन्तु पैसे का अहंकार भी उसमें शामिल हो गया। अब तो तीज -त्यौहार पर लेना -देना भी वो पैसे के तराज़ू में तौलने लगी। हर बात पर कहती -अच्छे से अच्छा देना ,मेरी ससुराल में मेरी ''नाक मत कटवा देना ''.माता -पिता जब तक जिन्दा रहे उसकी हर इच्छा पूरी हो जाती। सुरेश की तो बंधा वेतन ,नौकरी की कमाई से इतने खर्चे कहाँ हो पाते हैं ? हर चीज़ मोल की, ऊपर से महंगाई ,अपने खर्चे ही पूरे नहीं पड़ते। श्रावण पर प्रेम रस में डूबी फुहारें ,रिमझिम बरसता पानी ,श्रावण के गीत आज भी मन को मोह लेते किन्तु उनमें वो हास् -परिहास ,मान -मनौवल नहीं रहा। उसकी जगह पैसे और अहम ने ले ली। दीप्ती की जबान में वो अपनापन ,प्यार न दीखता वरन शब्दों में व्यंग्य और उपहास नज़र आता। सुरेश यानि मेरे दादाजी तंगी से तंग आकर नौकरी छोड़कर व्यापार करने लगे। व्यापार में अपनी जमा -पूंजी सब लगा दी। व्यापार भी नहीं हो पाया वरन अपना मकान बेचकर किराये के घर में रहने की नौबत आ गयी। 
                 इस बार सुरेश परेशान थे ,बहन का सिंधारा जाना है और राखी पर आएगी तो क्या देंगे ?किसी से उधार लेकर सिंधारे का इंतजाम किया। राखी पर भी घर में से एक -एक पैसा जोड़कर उसे दिए। किन्तु दीप्ती को इसमें अपनी बेइज्जती लगी ,बोली -इससे ज्यादा पैसे तो मेरे घर के नौकर ,अपनी बहनों को दे देते हैं। अपनी भाभी से बोली -सब नीचे से ऊपर को बढ़ते हैं किन्तु भाई तो ऊपर से नीचे को जा रहा है। दुनिया उन्नति कर - करके कहाँ से कहाँ पहुंच गयी ?और ये नीचे जा रहा है। भाभी ने महसूस किया कि इनका अहंकार इतना बढ़ गया कि अपने बड़े भाई के लिए कतई भी सम्मान नहीं रहा। अगले बरस राखी पर वो नहीं आयी किन्तु भाई का दिल नहीं माना ,सोचा -कम ही सही ,कम से कम मेरी बहन की थाली सूनी तो न रहेगी और भाई अपनी बहन से मिलने चल दिए ,रास्ते में एक दर्जन केले लिए और ख़ुशी -ख़ुशी अपनी बहन के घर पहुंच गए। भाई के आने पर दीप्ती को कोई प्रसन्नता नहीं हुई ,बोली -इनकी क्या आवश्यकता थी ?बच्चे तो केले नहीं खाते कहकर भाई के सामने ही वे केले अपनी नौकरानी को दे दिए। सुरेश उसके इस व्यवहार से आहत हो वापस आ गए। अब उन्हें लगने लगा रिश्ते निबाह नहीं पायेंगे ,हम अपनी परेशानियों से स्वयं ही जूझते रहेंगे। बहन ने भी कभी नहीं पूछा -भाई केेसा है ?कहाँ है ?
                हर राखी में रेडियों पर गाना बजता ,सुरेश अपने दिनों को याद कर अपने आँसू छिपा जाते सोचते -क्या रिश्ते इतने कमजोर होते हैं जो पैसों के बोझ तले दबकर अपना दम तोड़ देते हैं ?क्या ऐसे ही रिश्ते हैं ?पैसों के बिना रिश्तों का भी कोई महत्व नहीं। उन्हें अपनी बहन के व्यवहार के कारण सभी रिश्ते खुदगर्ज़ ,मतलबी नज़र आने लगे। आज उनके पास दोमंजिला मकान है ,दो -दो गाड़ियां हैं किन्तु हर बरस बहन की यादें दुःख और परेशानियाँ दे जातीं। आज भी रेडियों पर गाना चल रहा है -
                  '' बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है ,प्यार के दो तार से संसार बांधा है। ''
राखी तो उनकी कलाई पर बंध जाती है किन्तु उस बड़ी सी राखी की जगह ,आज भी खाली है ,बाहर से सबको प्रसन्न नज़र आते हैं किन्तु दिल की किसी गहराई में कटु स्मृतियाँ ,दिल पर एक बोझ सा छोड़ जातीं। एक दिन दीपू बोला -दादी ,बुआ दादी कहाँ रहती हैं ?दादी बोली -अब क्या लाभ ?कहीं भी रहती हो। दीपू ने जिद की -आप बताइये तो सही। दादी से पूछकर ,वो बिन बताये ,बुआ दादी के गांव पहुँच गया। उसे कोई जानता भी नहीं था उसने भी ,वो गांव पहली बार देखा है। पता पूछते हुए ,दीपू उनके घर पहुंच गया। बुआ दादी तो अब बूढी हो चली थीं ,उनके तो पोते -पोती भी थे। बुआ दादी ने मुझे पहचानने का प्रयत्न किया किन्तु पहचानती कैसे ?इससे पहले कभी देखा ही नहीं किन्तु परिचय कराते ही मेरे सिर पर हाथ फेरा और घर की बातें पूछने लगीं। बुआ दादी को अपने किये व्यवहार पर पछतावा था। समय ,उम्र और रिश्तों ने उन्हें भी एहसास करा दिया था कि ये सब बाहरी दिखावा 'क्षणभंगुर ''है।'' पैसा और जवानी कब, कहाँ ,किसी की सुनते हैं ?और जब ये चले जाते हैं तब ज़िंदगी के अनुभव छोड़ जाते हैं और की गयी गलतियों का एहसास।'' अब तो अपनी कोठरी में पड़ी रहतीं। मुझसे मिलते ही अपने भाई की एक झलक देखने के लिए तड़प उठीं। ख़ुशी और दुःख दोनों ही साथ -साथ आँखों के द्वारा बह निकले ,बोलीं -क्या तुझे भाई ने भेजा है ?मैं जानती थी उसे मेरी चिंता अवश्य होगी। मैं उसके साथ कैसा भी व्यवहार कर लूँ ? किन्तु वो आज भी मुझे याद करता है।  


                   दीपू उन्हें लेने नहीं गया था किन्तु उनकी बेचैनी देखकर बोला -बाबाजी ने आपको लेने के लिए भेजा है। कह रहे थे ''अबके बरस ''राखी तो उनकी बहन ही बांधेगी। सुनकर बुआ दादी 'भावविभोर 'हो उठीं बोलीं -पूरे पंद्रह बरस बाद उससे मिलूंगी ,मैं कैसे उसे अपना मुँह दिखाउंगी ?इतने बरसों से उसकी कोई खबर नहीं ली ,क्या वो अपनी छोटी बहन को क्षमा करेगा ?मैंने उसके नाम की हर बरस एक राखी ली है। मैंने सोचा था , मेरे गुस्से के कारण ही या मेरी कड़वी बातों से ही वो उन्नति कर ले किन्तु उसका मुझे दंड भी मिला उससे दूर हो गयी। प्रत्येक बरस की राखी उसे बांध दूंगी इतने बरसों का मलाल दूर कर लूँगी सोचकर वो दीपू के साथ चल दीं। आज राखी पर घर में' सलूने ' रखे गए। नमकीन -मीठे जवे बने हैं। मिठाई और राखी से थाली सजी है ,तभी दीपू की गाड़ी आकर घर के दरवाज़े पर रुकी। उसकी बहन दौड़ती हुयी आई बोली -भाई आप कहाँ चले गए थे ?मैं इतनी देरी से इंतजार कर थी। दीपू बोला -आज मैं बरसों का इंतजार समाप्त करने गया था ,कहते हुए उसने बुआ दादी को सहारा देकर गाड़ी से बाहर उतारा। दीप्ती के मन में अजीब सी घबराहट ,बेचैनी सी हो रही थी। उन्हें अपने व्यवहार पर पछतावा था। दादाजी आराम कुर्सी पर बैठकर बच्चों को देख रहे थे। बुआ दादी उनके पास जा खड़ी हुईं ,दादाजी ने एक नज़र उन्हें देखा ,जैसे उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा हो उन्होंने पुनः अपनी नज़रें उठाईं। दादी ने आव देखा न ताव और अपने भाई के गले लिपटकर रोने लगीं। बरसों का दबा ज्वालामुखी था जो अश्रु के रूप में लावा बन बह रहा था। थाली लाई गयी ,दादी ने अपनी बड़ी -बड़ी राखी निकालकर भाई की कलाई पर बांधनी आरम्भ की। वो राखी बांधती जा रही थीं और रोती भी जा रही थीं। दादाजी के चेहरे पर मुस्कान और मेरे तरफ कृतग्यता से देख रहे थे। ''अबके बरस ''दीपू ने दो भाई -बहनों को जो मिलवा दिया था। 


             विशेष -कहानी पढ़कर दिल को छू जाये तो ''लाइक ''और कमेंट भी करें। किसी बिछड़े या किसी भी परिस्थिति में अलग हुए भाई -बहनों को शेयर करें ताकि उन्हें भी अपने रिश्तों की गहराई का एहसास हो सके। 
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रचनाएँ
जीवन के रंग
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इतना लम्बा जीवन हम जीते हैं,उसमे सुख है,दुःख है, मस्ती है,मिलना है,बिछुड़ना है,जीवन की पटरी उतार- चढ़ाव से भरी है,जीवन के इस सफ़र में लोग मिलते हैं,बिछुड़ते हैं, उस जीवन के छोटे छोटे हिस्सों को लेकर बनती है एक कहानी वो कहानी जो आपके और हमारे जीवन से मिलती जुलती सी लगती है।उस कहानी में किसी का दर्द छुपा है तो किसी का प्यार समेटती नजर आती है,किसी की दिल से जुड़ी भावनाएं पढ़ हम भावविभोर हो उठते है,किसी का दर्द अपना सा लगता है,जीवन के कुछ ऐसे ही रंग बिखेरती नज़र आती हैं,ये कहानियाँ,इनमें शामिल हो जाइये और इन रंगों को महसूस कर मुझे अपनी समीक्षाओं द्वारा प्रोत्साहित करते रहिये धन्यवाद🙏
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राजनीति

27 जुलाई 2023
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पारुल पढ़ी -लिखी होने के बावजूद, संस्कारों ,परम्पराओं जैसे बंधनों में बंधी ,एक आस्तिक महिला थी। विवाह के बाद अब तो ससुराल ही उसका अपना घर था। उस आशियाने को उसने बड़े प्यार और जतन से सजाया। उसने अपनी

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रेगिस्तान में खो गया

29 जुलाई 2023
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लो , बाबू सा ,चाय पी लो ,सुबोध का इस आवाज से ध्यान भंग हुआ ,उसने पलटकर देखा ,वही काली कजरारी आँखें , दमकता सुडौल बदन किन्तु वो आँखें...... ऐसा कैसे हो सकता है ?उसने आश्चर्य से मन ही मन कहा। नहीं ,ये

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अकेले हम, अकेले तुम

31 जुलाई 2023
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रामलाल जी के दो बेटियाँ और एक बेटा है ,बेटा अभी छोटा है, पढ़ाई कर रहा है। रामलाल जी समय रहते अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर देते हैं। दोनों ही अपने -परिवार में खुश हैं। रामलाल जी भी प्रसन्न ही थे किंतु

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बच्चे

2 अगस्त 2023
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विमला देवी ,रसोई घर में ,जोर शोर से, कार्य करने में लगी हुई हैं। उन्होंने खाने में लौकी के कोफ्ते ,कढ़ी चावल और गरमा -गरम चपाती बनाई है। हालांकि उनके कमर में और घुटनों में दर्द है फिर भी वह रसोईघर मे

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सहारा

5 अगस्त 2023
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मैं अक्सर उन्हें ,अपनी खिड़की से देखा करता ,वह एक तस्वीर लिए ,या कुछ कागज...... ,दूर से इतना पता नहीं चल पा रहा था , वे लोगों से मिलते ,कुछ पूछते या बातचीत करते और चले जाते। पता नहीं ,क्या जानना चाह

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आदर

6 अगस्त 2023
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मम्मी घर में ही ,''हॉबी क्लासेस '' चलातीं थीं ,विशेष रूप से लड़कियों, को केक -बिस्किट बनाना सिखातीं ,सारा दिन अपने ही कार्यों में लगीं रहतीं हैं ,वैसे वो बहुत मेहनत करती हैं। यह कार्य भी आसान नहीं , सभ

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बाप की कमाई

8 अगस्त 2023
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प्रशांत ,ने स्कूल में नया -नया दाखिला लिया ,इससे पहले अपने मम्मी -पापा के संग दूसरे शहर में रहता था ,अब उसके पापा का, इस शहर में तबादला हो गया। जब से इस कक्षा से आया है ,सभी बच्चे अपने -अपने घर जाकर

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आखिरी कॉल

10 अगस्त 2023
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पूरा घर गेंदे और गुलाब के फूलों से सजा हुआ है , बहुत सारे मेहमान आए हुए हैं , सभी अपने -अपने कार्य में व्यस्त हैं, घर में खूब चहल-पहल हो रही है , मेहमान आ रहे हैं।' बरनाले' वाली बुआ जी भी आ गई हैं ,

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समाज - सेवा

14 अगस्त 2023
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बच्चे बड़े हो गए ,निशा दिनभर घर में अकेली रहती ,बच्चे अपनी पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त रहते ,मौहल्ले में घूमने का भी उसे ज्यादा शौक नहीं ,फोन उठाया, उसे ऐसे ही चला -चलाकर देखती रही ,उसने अपनी पसंद का

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अबके बरस

16 अगस्त 2023
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भेंट

18 अगस्त 2023
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सुगंधा ने बाहरवीं पास कर ली ,घर में न ही ख़ुशी का वातावरण है न ही दुःख का। बल्कि उसके पिता को उसके विवाह की चिंता अवश्य हो गयी और वे बड़ी तन्मयता से उसके लिए लड़के की तलाश में जुट गए। सुगंधा का बाहरवीं

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एक राज़

20 अगस्त 2023
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आज तो निलेश ने हद ही कर दी, उसके एक तमाचा भी जड़ दिया। सारिका जी, को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया, उन्होंने निलेश को डांटते हुए कहा -तुम्हें तनिक भी शर्म नहीं है। तुमसे उम्र में कितनी बड़ी हैं ?तुम्हार

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सुम्मी!

25 अगस्त 2023
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जी हाँ ,आज की हमारी कहानी की नायिका ''सुम्मी ''है ,जो सांवली सी भोली -भाली ,अंतर्मुखी लड़की है। वैसे तो माता-पिता ने उसका नाम' सुमनलता 'रखा है किंतु मां लाड में उसे 'सुम्मी 'ही कहकर पुकारती है।सांवली ह

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दादीजी!

30 अगस्त 2023
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प्रियाजी, के लड़के का विवाह हुआ है , बहु पढ़ी -लिखी सुंदर है, नौकरी भी करती है। प्रियाजी , अकेले ही सारे काम संभाल रहीं थीं लेकिन ख़ुशी में अपनी थकान का ध्यान ही नहीं। आज बहु की मुँह दिखाई की रस्म है ,म

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तैयारी, अगले जन्म की

5 सितम्बर 2023
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आज आपको मिलवाते हैं ,''मिस्टर अनोखेलाल से '', मिस्टर अनोखेलाल ,अपने नाम की तरह ही अनोखे हैं। उनकी बातें भी दिलचस्प हैं , मैंने उस इंसान को जब भी देखा या मिला हमेशा खुश ही देखा। उसे इस तरह खुश देखकर,

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पैसा बोलता है!

8 सितम्बर 2023
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बहू के आते ही घर में खुशहाली आ गई , आये भी क्यों न ?बहुत धूमधाम से शादी हुई है ,बहु दान -दहेज भी बहुत लाई है। पच्चीस लाख नकद , समधी जी ने बेटी -दामाद के खाते में जमा करा दिए। बाक़ी घरेलू सभी सामान

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सांझा चूल्हा

11 सितम्बर 2023
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साँझा चूल्हा ''जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है। एक ऐसा परिवार ,एक ऐसी छत जिसके नीचे ,एक बड़ा परिवार रहता है ,जिसमें दादी -बाबा ,ताऊ -ताई ,चाचा -चाची ,उनके बच्चे। घर में खूब रौनक रहती है। सास- बहुएं ,रस

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बहकते कदम!

16 सितम्बर 2023
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जिंदगी में पहली बार कुछ अलग ही एहसास हो रहे थे ,ऐसा उसने आज से पहले कभी महसूस नहीं किया। वो उसकी बातों को यादकर अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी। लगता है ,जिंदगी कितनी सुहानी है ,सब कुछ अच्छा ही अच्छा है

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स्वार्थी

19 सितम्बर 2023
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मां !तुम कितनी लापरवाह हो ? अपना तनिक भी ख्याल नहीं रखतीं। रमेश ,माँ को आज डॉक्टर को दिखलाकर लाया है। माँ, कई दिनों से ,थकावट ,घुटनों में दर्द , इत्यादि बीमारियों की शिकायत कर रही थीं। रमेश ने सोचा

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बेसन के लड्डू

21 सितम्बर 2023
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गुप्ता जी ,शांति से बैठे ,समाचार -पत्र पढ़ रहे थे ,तभी उन्हें कुछ मीठा खाने की इच्छा हुई और अपने बेटे की बहु से बोले - पल्लवी बेटा ! जरा'' बेसन के लड्डू'' तो देना। पल्लवी रसोई घर में थी, रसोई घर स

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श्राद्ध

29 सितम्बर 2023
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नई नवेली दुल्हन जब घर में आ जाती है, तो बहु की जिम्मेदारी तो बढ़ती ही हैं लेकिन सास की जिम्मेदारियां भी कम नहीं होतीं। बहु को अपने घर के तौर- तरीक़े समझाना ,बहु को उसकी जिम्मेदारियों से परिचित कराना। व

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बासी रोटी

21 अक्टूबर 2023
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दीप्ती आज, अपने घर आ रही है। बहुत दिनों से मायके जाना नहीं हुआ था। घर -गृहस्थी में ऐसी फंसी ,मम्मी भी अक्सर फोन करती रहतीं , तब भी जाना नहीं होता। क्योंकि कभी तो पतिदेव को छुट्टी नहीं मिलती और कभी बच्

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रात का डर

30 अक्टूबर 2023
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मैंने दादा जी से , रात कितनी बार कहा था ?चलो !चलकर डॉक्टर को दिखा लेते हैं ,लेकिन इन्होंने मेरा कहा नहीं माना , क्रोधित और उत्तेजित होते हुए ,जाह्नवी अपनी मम्मी से बोली - अब बड़े हैं, अपनी चलाएंगे बच्

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भूले नहीं, उलझ गये थे

16 नवम्बर 2023
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आज दीपक की बिटिया का विवाह है। सब कुछ सही समय पर ठीक -ठाक चल रहा है। कुछ दिन पहले दीपक की हालत देखने लायक थी।' बहनजी' आईं थीं ,रिश्ता लेकर,उनके किसी जानने वाले का बेटा था। उनका परिवार और वो लड़का भी ह

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चिट्ठी का सच

19 नवम्बर 2023
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क्या तुम यही रहती हो ? आज से पहले तो तुम्हें कभी नहीं देखा , पड़ोस का एक लड़का अपनी छत से खड़े होकर, दूसरी छत पर खड़ी लड़की से पूछ रहा था। वह लड़की मुस्कुराते हुए बोली -नहीं ,मैं यहां नहीं रहती ,

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खो गया, बच्चा

13 दिसम्बर 2023
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आज कबीर बहुत फूट कर रोया , उसे अपने किए पर पछतावा था। अपनी मां की गोद में सिर रखकर बहुत देर तक रोता रहा, पछतावा करता रहा ,मैंने अपनी मां को कितने कष्ट दिए हैं ? कभी सोचा ही नहीं, उस पर क्या बीतती होग

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तुम्हारी याद में

14 दिसम्बर 2023
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आरती को जब कपिल का पत्र मिला ,उसके मन में तो ख़ुशी थी, किन्तु दिल में घबराहट थी। अजीब सी गुदगुदी महसूस हो रही थी,न जाने इस पत्र में ,उसने क्या लिखा होगा ?यह सोचकर ही ,चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। कुछ

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सराहना

19 दिसम्बर 2023
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प्रगति अपनी बारी के इंतजार में, अस्पताल में,मरीज़ों की पंक्ति में बैठी थी। इतने बीमार लोगों की ,भीड़ थी। हर कोई परेशान नजर आ रहा था, किसी को कुछ न कुछ बीमारी थी। प्रतीक्षा करते-करते उसे काफी देर हो

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रहस्यमयी चाबी

21 दिसम्बर 2023
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केदारनाथ जी की, आज हालत बहुत खराब है ,उनकी पत्नी और उनके बहु -बेटा और उनके चार पोते उनके समीप ही खड़े हैं। बहुत दिनों से, उनकी तबियत खराब थी किन्तु आज कोई दवाई भी असर नहीं कर रही। डॉक्टर ने भी जबाब दे

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अपूर्ण किस्सा

23 दिसम्बर 2023
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रेवती आज पराग के लिए पराठे लाई, दोनों ने खुश होकर, एक साथ बैठकर खाए। जब से पराग ,इस दफ्तर में आया है, तब से रेवती से, उसकी कुछ ज्यादा ही दोस्ती हो गई है। रेवती भी, उसके आने से खुश है। दोनों ही समझदार

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क्या तुम्हें याद है!

26 दिसम्बर 2023
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सुनो ! क्या तुम्हें याद है ? हम कब ,एक साथ बाहर गए थे ? कब एक साथ ,हमने चलचित्र देखा ?क्या तुम्हें याद है ? कब एक साथ बैठकर , चैन की सांस ली ? चलो ,छोड़ो ! क्या तुम्हें मेरा, जन्मदिन भी याद है या हमार

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सर्दी की रात

31 दिसम्बर 2023
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ठंड़ आज कुछ ज्यादा ही पड़ रही है, तन थर-थर कांप रहा है। ऐसे में कुछ लोग, आग जलाकर आग के आसपास बैठे हुए हैं। कुछ लोग रजाई में घुस गए हैं। कुछ गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीने की तैयारी कर रहे हैं। विभोर

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कमरा नंबर ३०३

6 जनवरी 2024
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एक अधेड़ उम्र दम्पत्ति ,प्रातःकाल ,वृद्ध आश्रम के दरवाजे पर खड़े नजर आये। उस व्रद्धाश्रम के संस्थापक ने इतनी ठंड में ,उन दोनों को खड़े देखा। तब वह उनके करीब गया और उनसे ,उनके इस स्थान पर खड़े होने का कार

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जैसे को तैसा

12 जनवरी 2024
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मेरे बेटे का आज जन्मदिन है, मैंने रात में ही सोचकर तैयारी कर ली थी कि क्या -क्या बनाना है ?सुबह बेटे को उठाने गई -आदि !उठो बेटा ,आज तुम्हारा जन्मदिन है। उठो !तुम्हारे मामा -मामी आने वाले हैं ,तुम्हा

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अनूठा निर्णय

21 जनवरी 2024
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अरे ,कलमूही ! यह तूने क्या कर डाला ? यह सब करते हुए, तुझे तनिक भी शर्म नहीं आई। तूने परिवार की इज्जत को, मिट्टी में मिला डाला। डोली की मां उस पर चिल्लाते हुई ,बोली -उसके मन में तो आ रहा था कि इसे पीट

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समझौता

3 फरवरी 2024
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कल्पना के पैरों तले से जैसे, जमीन खिसक गई ,उसे विश्वास ही नहीं हुआ ,यह भी हो सकता है। उसे लगा ,शायद उसकी नजरों का धोखा है। वह नजदीक ही ,छुपकर खड़ी हो गई, और चुपचाप उनका पीछा करने लगी। वह जानना चाहती थ

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रहस्यमयी पत्र

4 फरवरी 2024
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श्रीमती गुप्ता ने जैसे ही, कक्षा में प्रवेश किया ,तभी उनके ऊपर एक पर्ची आकर गिरी। उस पर्ची को उन्होंने देखा और आसपास भी देखने लगीं। यह पर्ची उनके पास, किसने फेंकी है ?पहले तो सोचा ,ऐसे ही कहीं से उड़क

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एक कप कॉफी

24 फरवरी 2024
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आज शीघ्र ही, कॉलेज की छुट्टी हो जाएगी, लेक्चर भी शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा इसीलिए सभी दोस्तों ने आपस में मिलकर'' कॉफी हाउस'' में जाकर कॉफी पीने की योजना बनाई। श्रुति, पल्लवी ,अनिरुद्ध और तेजस्व ! चारों

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भयानक रात का आख़िरी कॉल

2 मार्च 2024
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शोभित, रतन, अतुल और नारंग चारों दोस्त ,मस्ती में जा रहे थे। कॉलेज की छुट्टियां चल रही थीं। कुछ समझ नहीं आ रहा था ,समय काटे नहीं कट रहा था। जब भी समय मिलता है ,चारों दोस्त घूमने निकल पड़ते हैं । आज के

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सोशल मिडिया

5 मार्च 2024
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पापा ने उसे नया फोन दिलवाया था, आज उसने'' सोशल मीडिया'' पर अपना नया-नया अकाउंट बनाया था। वह बहुत प्रसन्न थी, अपने जन्मदिन पर बहुत सारी तस्वीरें, अपने फोन में ही खींच लीं थीं । कभी फेसबुक कभी व्हाट्स

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स्कूटी ( भाग १)

16 मार्च 2024
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जीवन तो हादसों से ही भरा होता है ,कुछ न कुछ हादसे हमारे जीवन में हो ही जाते हैं और कुछ हादसे ऐसे होते हैं जो जीवन को एक नई दिशा दे जाते हैं, या फिर व्यक्ति की सोच ही नहीं ,उसका व्यक्तित्व ही बदल जाता

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स्कूटी ( भाग २)

17 मार्च 2024
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निशा का विवाह एक अभियंता से हो जाता है ,जिस पर सम्पूर्ण घर की ज़िम्मेदारियाँ थीं ,निशा ने भी उसका हर सुख -दुःख में सहयोग किया। उसकी हर ज़िम्मेदारी को अपना मानकर चली ,जिस कारण वो अपनी ओर, और अपनी इच्छाओं

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डरावनी गुड़िया

17 मार्च 2024
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बिट्टो ! हां ,यही तो नाम है , उसका...... उसका भी मन करता था कि वह खेल -खिलौनों से खेले , किंतु उसकी मां के पास तो इतने पैसे ही नहीं थे कि वह उसको खिलौने दिलवा सके। एक दिन तो बिट्टो जिद करके ही बैठ ग

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ये कैसा सम्मान?

23 मार्च 2024
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उसके घर से अक्सर, चीखने- चिल्लाने की, लड़ने की आवाजें आती रहतीं। अक़्सर सुनने में आता ,जो लोग अनपढ़ या गरीबी के वातावरण में रहते हैं। उनके घरों में ही ऐसे झगड़े होते रहते हैं। किंतु उन्हें गरीब भी नहीं

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पिछला जन्म

30 मार्च 2024
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धीरेंद्र और वीरेंद्र दो अच्छे मित्र थे। एक ही गांव में रहते थे। साथ-साथ पढ़ते और खेलते थे। उन दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी। एक दूसरे पर जान छिड़कते थे ,दोनों ने विवाह भी लगभग एक साथ ही किया दो

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वो भयानक रात

2 अप्रैल 2024
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रात कोई भी हो, सबके लिए समान नहीं होती, किसी के लिए सुख लेकर आती है ,तो किसी के लिए दुख लेकर आती है। रात्रि तो वही होती है , किंतु अलग-अलग समय के लोगों के लिए अलग-अलग संदेश लाती है। हर भयानक रात, में

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मुझे सम्मान चाहिए

5 अप्रैल 2024
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बहुत दिनों पश्चात शिखा अपने मायके अपने भैया -भाभी से मिलने आई है , आये भी क्यों न ? खुशी का बहाना भी है। भाभी की अभी कुछ महीनों पूर्व ही , नई नौकरी लगी है। भैया- भाभी ने तो एक बार भी नहीं कहा -क

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जादुई घोड़ा

7 अप्रैल 2024
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वह किसी ऐसे जादू की कल्पना करता ,पलक झपकते ही ,उसके सभी कार्य हो जाए। वो हमेशा कल्पनाओं में खोया रहता है। सोचता है ,कोई ऐसी चीज हो, जो जादू की तरह उसकी सभी कल्पनाओं को उड़ान दे या फिर कोई ऐसी जादुई

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दोस्ती या प्यार

20 अप्रैल 2024
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रजत ! यह तुम क्या कह रहे हो ? मैंने कभी तुम्हें इस नजर से देखा ही नहीं , मैं तो तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त ही समझती हूं। किंतु मैं तो तुमसे मन ही मन प्रेम करता आ रहा हूं, जब से मैंने तुम्हें

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जाने का डर

22 अप्रैल 2024
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स्वांती परेशानी में बैठी थी , उसके मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे, क्या यह सही होगा ? जो लोग सोचते हैं या कहते हैं, वे सही हैं। समझ नहीं आ रहा क्या करूं? जब प्रणव ने बताया -कि वह बाहर पढ़ने जाना चाहता

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