कल्पना के पैरों तले से जैसे, जमीन खिसक गई ,उसे विश्वास ही नहीं हुआ ,यह भी हो सकता है। उसे लगा ,शायद उसकी नजरों का धोखा है। वह नजदीक ही ,छुपकर खड़ी हो गई, और चुपचाप उनका पीछा करने लगी। वह जानना चाहती थी, कि उनके बीच रिश्ता क्या है ? कहीं ऐसा ना हो, कि किसी गलतफहमी में, कुछ का कुछ हो जाए। अपनी उस गलतफहमी को दूर कर लेना चाहती थी किंतु यह गलतफहमी नहीं थी। सच ही था। उसका भ्र्म टूट गया। आज नितिन अपनी किसी दोस्त के साथ ,उसी मॉल में घूम रहा था जिसमें कल्पना सामान खरीदने के लिए आई थी। दिल में तो आया कि उनके सामने जाकर खड़ी हो जाऊं ! और उस लड़की से बताऊं -कि यह मेरा पति है , किंतु वह इस तरह अपने परिवार का, सरे बाजार , तमाशा भी नहीं बनाना चाहती थी। उसकी आंखों में आंसू भर आए। उसने क्या नहीं किया? इस परिवार के लिए , अपनी जिंदगी ,अपने सपने, सब कुछ तो खपा दिया। बदले में उसे क्या मिल रहा है ?धोखा, अविश्वास !
आंसू भरे नेत्रों से उसने कुछ सामान खरीदा और घर की ओर रवाना हो गई। घर में आकर देखा, उसके छोटे-छोटे बच्चे अपने दादा-दादी के साथ खेल रहे हैं। उसे नितिन पर बहुत क्रोध आ रहा था, मन में तो आ रहा था ,उसके धोखे के लिए ,सब कुछ तहस-नहस कर दे, पर इससे क्या हो जाएगा ? वह सुधर तो नहीं जाएगा। न ही, उसे अपनी गलती का एहसास होगा। उसका यह इतना प्यारा घर ,जिसे इसने बरसों से मैंने संवारा है ,वह बिखर जाएगा, तिनका तिनका हो जाएगा। उसकी रुलाई फूट पड़ी और वह अंदर कमरे में जाकर कमरे में जाकर बिस्तर पर लेटकर, फूट-फूट कर रोने लगी।
बहु क्या कुछ हुआ है ? क्या कोई परेशानी है ?मुझे बताओ !
नहीं, मम्मी जी !कुछ नहीं हुआ है, आप बस चली जाइए !मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला रहने दीजिए। मैं अकेले रहना चाहती हूं। अपने आंसुओं को छुपाते हुए बोली।
नहीं ,जब तुम आई थीं मैंने तभी तुम्हारे चेहरे को पढ़ लिया था , मैं जानना चाहती हूं ,कि तुम, यह दर्द कहां से लाई हो और क्यों छुपा रही हो ?
अच्छा, मम्मी जी! एक बात बताइए -क्या कभी मैंने, आपकी किसी भी बात की परवाह नहीं की, कभी आपका कहना नहीं माना, कभी इस परिवार के लिए रात- दिन एक नहीं किया। पापा जी के और आपकी किसी काम में मैंने लापरवाही बरती है। कभी मैंने नितिन का कोई कार्य अधूरा छोड़ा है, उसके सभी कार्य समय पर किए हैं या नहीं।
यह सब तो मैं जानती हूं किंतु तुम मुझसे , यह सब क्यों पूछ रही हो ?
क्योंकि इतना सब करने के बावजूद भी मुझे धोखा मिला है, मैंने इस परिवार के लिए कितने समझौते किए ? अपनी पढ़ाई छोड़ दी, नौकरी करती थी वो नौकरी भी छोड़ दी। सारा दिन, इस परिवार में लगी रहती हूं। सजना- संवरना तक भूल गई और इसके बदले मुझे क्या मिला ? धोखा ! नितिन ने मेरे विश्वास को तोड़ दिया। कहते हुए, वो फिर से रोने लगी।
कहीं तुम्हारी गलतफहमी तो नहीं , क्या तुम्हें पूर्ण विश्वास है ?वह तुम्हें धोखा दे रहा है।
जी, मैंने अपनी इन्हीं आँखों से देखा है। पहले तो,मैंने विश्वास नहीं किया था किंतु जब मैंने उन दोनों को साथ में देखा, उन्हें बातें करते हुए देखा तब मुझे यकीन हुआ -कि नितिन मुझे धोखा दे रहे हैं।
अब तुम क्या करोगी ? तुमने कुछ सोचा है।
यह आप ,मुझसे पूछ रही हैं ? मैं इस घर को छोड़कर चली जाऊंगी , उनके जीवन से निकल जाऊंगी । जब उनके मन में ,मेरे प्रति प्यार, सम्मान ,विश्वास कुछ भी नहीं रहा , तो मेरा इस घर से जाना बेहतर होगा ?
कहां जाओगी ?तुम! तुमने इतने वर्षों से, इस अपने मंदिर जैसे घर को सजाया है, यह घर तुम्हारा है। वह तो रात में, आकर सो जाता है। इसे सजाती -संवारती तो तुम ही हो। यदि तुमने उसे, इस तरह छोड़ दिया ,क्या उसे अपनी गलती का एहसास होगा ? तुमने जो यह अपना घर सजाया -संवारा है ,क्या यह बिखर नहीं जाएगा ? मान लो! तुम क्रोध में चली भी गईं , और इस जगह को बसाने के लिए ,कोई दूसरी आ गई। तो क्या वह इस घर को वह अपनापन ,वह प्यार, दे पाएगी। तुम्हारे तरीके से इस घर को संवार पाएगी ,जैसे तुमने संभाला है।तुम अपनी चीज किसी के लिए कैसे छोड़ सकती हो ?
तब आप ही बताइए ,मम्मी जी! मैं क्या करूं ? कल्पना फिर से बिलख -बिलखकर रो उठी।
तुम्हें साहस से काम लेना होगा , कहां गलती रह गई? जो वह इस तरह भटक गया। उस बात को समझना होगा। उसे एहसास दिलाना होगा, कि उसने कैसे एक रिश्ते में काँटे बोने का प्रयास किया है। तुमने इतने सारे समझौते किए ,क्या उनका कोई महत्व नहीं ? क्या उनकी कोई कीमत नहीं ? उसे इसी बात का एहसास दिलाना होगा। यदि तुम इस घर को छोड़कर चली गईं , तो क्या वह संभल जाएगा ? जब तुमने इतने समझौते किए हैं, तो अपने इस घर को संवारने और अपने रिश्ते को बनाये रखने के लिए ,एक समझौता और करना होगा। भटके हुए को, सही राह पर लाना होगा। यूं रोने से काम नहीं चलता , न ही डरकर भागने से काम चलता है, इस मुसीबत का डटकर सामना करना होगा। तेरी यह ''सासू मां'' तेरे साथ है ,कहकर वो मुस्कुरा दीं।
शाम को जब नितिन अपने घर आया तो उसने देखा -कल्पना और बच्चे तैयार खड़े हैं, मम्मी पापा भी बैठे हैं। वह समझ नहीं पाया ,कि यह क्या हो रहा है ? उसने कल्पना से पूछा -क्या तुम लोग कहीं जा रहे हो ?
पापा हम ही नहीं आप भी हमारे साथ चल रहे हैं। नहीं ,मैं तो दिनभर का थका हुआ हूं, थोड़ा आराम करूंगा।
इसमें तुझे करना ही क्या है ? बच्चों को ले जाकर घूमाना है ,डिनर कराना है। बहुत दिन हो गए ,बहू घर से बाहर नहीं गई है. इसे अपने साथ लेकर जाना है मम्मी जी ने जवाब दिया -अंदर जाकर फ्रेश हो जाना और तैयार होकर बच्चों को बाहर घुमाने के लिए ले जाना। हालांकि कल्पना थोड़ी सी उखड़ी हुई थी , उसे अभी भी नितिन का वही रूप स्मरण हो रहा था। किंतु सास ने उसे इस विषय में, नितिन से जिक्र करने के लिए भी मना कर दिया था। उन्होंने कहा था -तुमने अभी तक जो समझौते किए हैं, उनका यह इम्तिहान है , और इसमें पास होना है। घर छोड़कर ,तोड़कर कोई भी जा सकता है , किंतु उसको बनाए रखना ,यही इन समझौतों का इम्तिहान है। बाहर घूमने ले जाने का नितिन का मन तो नहीं था किंतु मम्मी ने भी कह दिया था और बच्चे भी तैयार थे, उसे ले जाना पड़ा। आरम्भ में तो नितिन का मन नहीं था किंतु बाद में ,धीरे-धीरे वह भी मुस्कुराने लगा अपने बच्चों के साथ घूम कर ,उसे भी अच्छा लगा।
घर आकर कल्पना नितिन से बोली - मैं सोच रही हूं -अब बच्चे भी बड़े हो गए हैं, घर में एक कामवाली रख लेते हैं और अब मैं अपने शौक पूरे करूंगी। तुम जानते तो हो, कि मुझे पहले से ही पेंटिंग और मूर्तियां बनाने का बहुत शौक रहा है, तो अब सोचती हूं क्यों ना मैं ,अपने खाली समय में यही कार्य आरंभ कर दूँ।
कल्पना की बात सुनकर नितिन झुंझलाया और बोला -क्या आवश्यकता है ?इस तरह खर्च बढ़ाने की। बच्चों और मम्मी -पापा का ख्याल कौन रखेगा ?
क्या ज्यादा ही खर्चे बढ़ जाएंगे ,तब मैं नौकरी कर लेती हूं। तुम्हारी कमाई पर अब मेरा भी तो अधिकार बनता है ,आज तक तुमसे कुछ नहीं माँगा किन्तु अब तुम्हारा भी तो फ़र्ज बनता है ,मेरी इच्छाओं का ख्याल रखो !ज्यादा ही परेशानी है ,तो मैं नौकरी कर लेती हूँ। क्या तुम्हें स्मरण नहीं ?हम कहाँ मिले थे ?चलो !उन यादों को ताज़ा कर लेते हैं।रही बात मम्मी -पापा जी की अब तुम्हें भी हाथ बटाना होगा। मेरे तो सास -ससुर हैं किन्तु तुम्हारे माता -पिता हैं ,मुझसे ज्यादा तो तुम्हारी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है। अब तो आये दिन ,कल्पना नितिन से अपनी कोई न कोई इच्छा, उसके सामने रख देती। एक दिन तो कमाल ही हो गया। जब कल्पना अपनी लम्बी सी चोटी कटवाकर,कटे बालों में उसके सामने आई। आज तो कुछ विशिष्ट ही लग रही थी। नितिन उसे देखता ही रह गया।
अपनी मम्मी के पास जाकर बोला -अचानक इसे क्या हो गया है ?आये दिन, इसके खर्चे और तेवर बढ़ते जा रहे हैं ,आखिर ये चाहती क्या है ?आप क्यों कुछ नहीं कहतीं।
मैं क्या कहूं ?उसे भी तो अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ है और अब उसकी उम्र कब आएगी ?हँसते हुए बोलीं -ये भी सतर्क हो गयी है।
किस बात से ?
बहु ने तुझे नहीं बताया।
क्या नहीं बताया ?
इसकी एक सहेली थी ,उसके पति ने उसके साथ बेवफ़ाई की। वो तो सारा दिन घर में ,बच्चों में व्यस्त रहती और उसका पति अपने ही दफ्तर की लड़की के साथ ,गुलछर्रे उडा रहा था। उसका तो घर टूट गया ,बेचारी अब कहीं नौकरी करके, अपना गुजारा कर रही है। ये सुनकर शायद ये भी ड़र गयी है ,ऐसा मुझे लगता है। किन्तु मेरा बेटा ऐसा नहीं है ,जो अपने ही हाथों से ,अपने ही आशियाने को उजाड़े !है न ,बेटा !
नितिन कुछ सोच रहा था ,माँ के पूछने पर बोला -मम्मी ! आप भी क्या बातें करती हो ?ये भी नाहक परेशान हो रही है, कहकर वहां से उठ गया। अब नितिन के व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा था। धीरे -धीरे वो अपने घर वापस लौट आया। ये '' समझौता ''भी आज उसका घर बसा गया।