उसके घर से अक्सर, चीखने- चिल्लाने की, लड़ने की आवाजें आती रहतीं। अक़्सर सुनने में आता ,जो लोग अनपढ़ या गरीबी के वातावरण में रहते हैं। उनके घरों में ही ऐसे झगड़े होते रहते हैं। किंतु उन्हें गरीब भी नहीं कह सकते थे , सामान्य वर्ग का आदमी था ,अक्सर उसके परिवार में लड़ाई- झगड़े होते ही रहते हैं। मुझे तो लगता मारपीट भी हो जाती होगी, क्योंकि ऐसी ही आवाजें आती रहती थीं।
तरुणा ने अपनी सास से पूछा- उनके घर में, क्या होता रहता है ?जो आए दिन, झगड़े ही होते रहते हैं।
अब तो हम लोगों को आदत पड़ चुकी है, उन्होंने जवाब दिया -इसका पति ऐसा ही है, इसको मारता- पिटता रहता है। कभी-कभी शराब भी पी लेता है , उस दिन तो घर में बहुत ही झगड़े होते हैं।
इसकी पत्नी , इसका विरोध क्यों नहीं करती ? तरुणा ने पूछा।
विरोध करने पर ही तो उसकी कुटाई होती है, वह मुस्कुराते हुए बोलीं। विरोध करके भी क्या हो जाएगा ? भारतीय नारी जो ठहरी , रहना तब भी उसे यहीं है, बच्चों को लेकर कहां जाएगी ? यह बात वह भी जानता है।
तब क्या उसके पति को इस बात का अहंकार है, कि वह उन्हें खिला-पिला रहा है, और उनकी आवश्यकता पूर्ण करता है, तो क्या उसे पीटने का अधिकार मिल गया ?
अब यह बात तो वही जाने , हम तो जब भी चले जाते हैं, बड़े सम्मान से और आदर से बातचीत करता है।उस दिन तुमने पहली बार खाना बनाया था ,उसके घर देने गयी ,देखते ही प्रसन्न हो गया और बोला -आज बहु की पहली रसोई है कहकर थाली ली खाने बैठ गया। हो सकता है ,उसकी बहू में ही कोई कमी हो।
उसकी बहू में क्या कमी हो सकती है ? वह भी तो उसे भोजन बनाकर खिलाती है, उसका घर संभालती है, उसके बच्चे पालती है, इस हिसाब से तो, उसे भी अपने पति को पीटने का अधिकार मिल जाता है।
बहु ! यह क्या मूर्खों वाली बातें कर रही हो ? क्या कोई पत्नी अपने पति को पीटने की बात तो सोचना दूर , उसे उल्टा जवाब देने की बात भी नहीं सोच सकती।
उल्टा जवाब न दे किंतु गलत का विरोध तो कर ही सकती है , हो सकता है, वह गलत का विरोध ही करती हो ,जिसके परिणाम स्वरुप उसे यह मारपीट का दंड झेलना पड़ता हो।अपने आप ही जबाब भी ले लिया। शायद ,तरुणा के इस तरह के प्रश्नों से, उसकी सास को ही उसकी बातें नाग़वार लगीं क्योंकि एक औरत ही नहीं चाहती कि दूसरी औरत में इस तरह की विद्रोही भावना जाग्रत हो। अभी बहु नई थी किन्तु उसकी बातें उन्हें पसंद नहीं आईं इसीलिए वे बाहर चली गयीं।
एक दिन वही पड़ोसन तरुणा घर आई , तरुणा उससे बहुत कुछ पूछना चाहती थी किन्तु समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह से बात की शुरुआत करे ? उनसे पूछने का साहस जुटा रह थी। कहीं वह कहने न लगे तुम्हें हमारे परिवार से, क्या मतलब ? हमारी अपनी परेशानियां, अपनी बातें हैं, तुम क्या कान लगाकर हमारी बातें सुनती हो ? बातों ही बातों में, तरुणा ने कह ही दिया। क्या बच्चे पढ़ाई में ध्यान नहीं देते हैं ? अक्सर भाईसाहब के डांटने- पीटने की आवाजें आती रहती है।
वह तो ऐसे ही हैं, उन्हें अधिक क्रोध आता है , जब क्रोध आता है तो चिल्लाने लगते हैं।
आपने कभी उन्हें समझाया नहीं , इस तरह बच्चों पर चिल्लाना, मारपीट करना अच्छा नहीं है, बच्चे विद्रोही हो सकते हैं।
उनके बच्चे, वही जाने कहकर उसने अपना पल्ला झाड़ लिया।
एक दिन तो मुझे लगता है,भाईसाहब आप पर भी चिल्ला रहे थे, तरुण बोली।
तो क्या हुआ ? उनका अपना परिवार है ,अपने बीवी बच्चे हैं ,अपनों पर गुस्सा नहीं निकालेंगे तो और किस पर निकलेंगे ?उनका हक बनता है। जब अपनी बीवी बच्चों से प्यार कर सकते हैं, तो गुस्सा निकालने के लिए भी तो घरवालों पर ही निकालेंगे। उसने जवाब दिया।
मन ही मन तरुणा सोच रही थी -न जाने, यह महिला किस मिट्टी की बनी है ? अपने पति का पक्ष ले रही है , और उसकी गलतियों पर पर्दा डाल रही है। तभी तरुण की सास बोली -इससे क्या छुपा रही है ? यह सब जानती है, तेरा पति कैसा है ? शराब पीता है, तेरे साथ मारपीट करता है। मोहल्ले में सभी जानते हैं, कैसा है ?वो......
बहन जी, वह जैसा भी है,मेरा पति है, मोहल्ले वाले मुझे और मेरे बच्चों को खाने को ,नहीं देकर जाते।
सम्मान करना तो अच्छी बात है, किंतु क्या उनका कर्तव्य नहीं बनता है कि वह आपके कार्यों का भी सम्मान करें और आपका सम्मान करें तरुणा ने पूछा।
तरुणा की सास बोली -मैं तो जब भी इसके घर गई हूं ,बड़े सम्मान से उसने मेरे लिए कुर्सी बिछाई है , पानी लेकर आया है। बड़े प्रेम भाव से, व्यवहार करता है।
यह कैसा सम्मान है? तरुणा ने पूछा-एक बाहरी औरत, तुम्हारे घर आती है तुम उसे सम्मान देते हो , किंतु जो महिला तुम्हारे परिवार की देख रेख कर रही है, तुम्हारे बच्चों की मां है, तुम्हारी हर गलतियों को छुपाना अपना कर्तव्य समझती है ? तुम अपने परिवार के लिए कमाकर लाते हो तो वह तुम्हारी उस कमाई का सदुपयोग कर, दो रोटी का जुगाड़ में लग जाती है। उस महिला के प्रति, तुम उसके मन में सम्मान नहीं , उसके प्रति क्या कोई कर्तव्य नहीं बनता ? क्या उसके प्रति अधिकार ही स्मरण रहते हैं।
मुझे लगता है, आप उस पर निर्भर हैं, इसीलिए ज्यादा मारपीट करता है और आप सहन भी करती हैं। एक बात बताइए ! यदि आप भी कमा रही होतीं, तो क्या उसकी मारपीट सहन कर लेतीं ? जिस तरह से अब तक सहन करके, और उसको छुपाने का प्रयास कर रही हैं।
कह नहीं सकती, उसने जवाब दिया। हो सकता है, अब जो छोटी-छोटी समस्याएं हैं, वह समस्याएं ही ना होतीं। यह भी हो सकता है, मैं काम रही होती , तब मैं उसकी चार बातें क्यों सुनती ?
तरुणा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई, वह बोली -मैं यही तो कहना चाह रही थी, यह कैसा सम्मान है? जो मजबूरी में लिपटा है, आप भी जानती हैं ,वह सही नहीं कर रहे हैं किंतु यह आपकी मजबूरी है क्योंकि आप अपने बच्चों को लेकर कहां जाएंगी ? इस विवशता के चलते, अपने शब्दों से, प्रसन्न हो ,अपने अपमान को ढक लेती हैं। यह सम्मान नहीं है, न ही आपका उनके प्रति, और न ही उनके मन में आपके प्रति, दोनों ही विवशता को ढ़ो रहे हैं।उनके संग रहना ,उनकी बातें सुनना आपकी विवशता है। यदि कोई दूर से आपके विचार जाने ,तो आदर्श नारी समझेगा किन्तु आपकी विवशता नहीं।
हम जैसी नारियों के कारण ही ,आज न जाने कितने घर बसे हैं ?हो सकता है ,ये मेरी विवशता हो किन्तु यदि मैं कमा रही होती तब भी शायद ,हम दोनों मिलकर अपनी समस्याओं को सुलझा रहे होते किन्तु आजकल की नारियों की तरह नहीं ,कि पैर में कांटा चुभा और झगड़े कोर्ट -कचहरी में पहुंच गए। झगड़े किसके घर में नहीं होते ?जो कमाती हैं ,उनमें भी झगड़े होते हैं किन्तु इसे हमारा अपने परिवार और पति के लिए समर्पण कह सकतीं हैं, कि धैर्य के साथ पति की मनःस्थिति को समझ ,उनके क्रोध को ,अपने ऊपर ले लेतीं हैं। सारा दिन वो भी न जाने कितने लोगों से मिलते होंगे ?किसकी डांट सुनते होंगे ,अपमान भी झेलना पड़ता होगा। किसलिए ? हमारे लिए ,उनके उसी परिश्रम का सम्मान मन में है। कमाकर मैं उनका सहारा बनती ,न कि उनसे अलग होने का सोचती ,झगड़े किसमें नहीं होते ?दो बहन -भाइयों में भी होते हैं। किन्तु इसी कारण से घर नहीं तोड़े जाते कहकर वो गर्व के साथ उठी और चली गयीं।
तरुणा उनको जाते देख रही थी ,वो सोच रही थी ,मैं तो इनके सम्मान की ही बात कर रही थी। मैं कहाँ गलत हूँ ?