केदारनाथ जी की, आज हालत बहुत खराब है ,उनकी पत्नी और उनके बहु -बेटा और उनके चार पोते उनके समीप ही खड़े हैं। बहुत दिनों से, उनकी तबियत खराब थी किन्तु आज कोई दवाई भी असर नहीं कर रही। डॉक्टर ने भी जबाब दे दिया। तभी अचानक जैसे उन्हें होश आया ,और उन्होंने अपने बेटे रामप्रसाद से उसे छोड़कर बाकि सबको बाहर जाने का इशारा किया। रामप्रसाद को अपने समीप बुलाया और उससे कुछ कहा ,शायद, यही बात कहने के लिए वे रुके हुए थे। अपने मन की बात कहते ही ,उनके प्राण -पखेरू उड़ गये। राम प्रसाद जी को अपने पिता के जाने का बहुत दुख हुआ। उनकी अंतिम क्रिया की गई ,उनके सभी संस्कार सुचारू रूप से किए गए। रामप्रसाद जी की पत्नी और उनकी माता को बड़ी उत्सुकता थी , कि केदारनाथ जी , मरने से पहले उनसे क्या कह कर गए थे? किंतु ऐसे समय में किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि राम प्रसाद जी से कुछ कह या पूछ सकें।
जब पिता के सभी संस्कार हो गए ,तब 'राम प्रसाद' जी एक बड़ी सी चाबी लेकर आए और उसे अन्य चाबियों के साथ लाकर टांग दिया। इतनी बड़ी चाबी सभी को आश्चर्य हुआ ,कि यह चाबी तो आज तक हमने देखी ही नहीं ,यह कहां से आई ? तब रामप्रसाद जी ने बताया - कि पिताजी मरने पर से पहले ,मुझे यह चाबी देकर गए हैं। यह खजाने की चाबी है '' राम प्रसाद जी'' की पत्नी के साथ-साथ उनकी माता जी को भी बहुत अफसोस हुआ। आज तक मैंने यह चाबी नहीं देखी और आज अचानक कहां से आ गई ?ऐसा कौन सा खजाना है ?जो उन्होंने आज तक मुझे नहीं बताया। अक्सर उनकी पत्नी उस चाबी का जिक्र करती और उस खजाने को निकालकर लाने के लिए राम प्रसाद जी से कहती, किंतु राम प्रसाद जी उस बात को टाल जाते या कहते -यह खज़ाना हमारे बच्चों की धरोहर है। धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे , बच्चों ने भी उस चाबी को देखा और अक़्सर उस चाबी के विषय में ,माँ या दादी से पूछते। उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ कि हमारे पास इतना बड़ा खजाना है, जिसकी इतनी बड़ी चाबी भी है।
राम प्रसाद जी ने समय के साथ अपने बच्चों का विवाह भी कर दिया। विवाह के पश्चात , बच्चों की बहुओं ने भी, उस चाबी को देखा लेकिन किसी ने भी ,आज तक उस खजाने को नहीं देखा। सबके मन में भ्रम बना हुआ था न जाने कितना और कैसा खजाना है ?
एक दिन राम प्रसाद जी ने अपनी बहू और बेटों को बुलाकर उन्हें बताया- कि यह खजाना मेरे पिता ने,मुझे दिया है। अब मैं वह खजाना तुम चारों बेटों में से किसी एक को देना चाहूंगा, उससे पहले उन्होंने एक-एक बेशकीमती हार अपनी चारों बहू को बाँट दिये। इतने सुंदर आभूषण पाकर उनकी बहुएं बड़ी प्रसन्न हुईं। तब राम प्रसाद जी ने अपने बेटों को बताया -कि ये हार मैंने अपने पिता के दिए खजाने में से ही, तुम सबको लाकर दिये हैं। ऐसे न जाने कितने हार और आभूषण मेरे पिता की खजाने में हैं। किंतु उस खजाने का मालिक सिर्फ तुम चारों में से एक ही होगा। उसे ही मैं इस खजाने की चाबी दूंगा जो इसके क़ाबिल होगा।
बहू -बेटों को राम प्रसाद जी पर पूर्णतः विश्वास हो गया कि उनके पास बहुत सारा खजाना है और वह हमें हासिल करना है ,अपने को दूसरे से बेहतर साबित करके। सभी भाई एक दूसरे के साथ प्रेम से रहते यदि एक त्याग करता तो दूसरा उससे अधिक त्याग करने का प्रयास करता। बहुएं भी अधिक धन की मांग नहीं करतीं क्योंकि रामप्रसाद जी ने उनसे पहले ही कह दिया था ''कि जो जितना अधिक धन व्यय करेगा उसके खजाने में से खर्च ही होगा ,उसका उतना ही खजाना कम होता जाएगा।'' इसीलिए हर बहू यह सोचती ,कि यदि मैंने वह खजाना, खर्च करने का भी सोचा ,तो मेरे हिस्से का धन कम हो जाएगा। चारों में से सभी अपने-अपने को एक दूसरे से बेहतर साबित करने में जुटे हुए थे और बहुएं भी, इस काम में पीछे नहीं थीं। रामप्रसाद जी का परिवार, बहुत खुशहाल था, सभी प्रेम से रह रहे थे। कुछ लोग तो उनके परिवार की सराहना करते और उनके उदाहरण देते कि राम प्रसाद जी का परिवार कितना ''एकजुट होकर प्रेम'' से रहता है।
एक न एक दिन ,सभी को जाना होता है, राम प्रसाद जी का भी समय आ गया। सभी को इस बात की प्रतीक्षा में थी कि यह चाबी किसको मिलेगी ? रामप्रसाद जी का योग्य बेटा और योग्य बहू कौन से हैं ? जिनको यह खजाने की चाबी मिलेगी। रामप्रसाद जी का जब अंत समय आया तो उन्होंने भी, अपने पिता की तरह बाकी सबको कमरे से बाहर निकाल कर ,अपने चारों बेटों को अपने समीप बुलाया। चारों बेटे चुपचाप कमरे से बाहर आ गए और बताया राम प्रसाद जी नहीं रहे। सबके मन में उत्सुकता थी, कि यह चाबी कौन से बेटे को मिली है ? रामप्रसाद जी के भी सारे संस्कार पूर्ण किए गए और वह चाबी अपने निश्चित स्थान पर फिर से टांग दी गई। केदारनाथ जी, के एक ही बेटा था- रामप्रसाद जी ! रामप्रसाद जी के चार बेटे हुए ,उन चारों के भी चार ही बेटे हुए। तब उन्होंने भी, अपने बेटों के सामने, राम प्रसाद जी के द्वारा कहे हुए वाक्य दौहरा दिए। वे सब भी, उसी प्रकार से उस चाबी को प्राप्त करने के लिए, प्रेम से और एक साथ रहते।
कुछ वर्षों पश्चात ,जब राम प्रसाद जी की पत्नी , भी अपने पति के पास जा रही थी। तब उसने भी ,अपने बेटों को अपने पास बुलाया। सभी बहुओं ने सोचा -शायद हमारी सास के पास भी ,किसी खजाने की चाबी होगी लेकिन वह स्वयं ही नहीं जानती थीं '' कि राम प्रसाद जी के पास कौन सा खजाना उनके पिता ने दिया था जो आज तक उन्होंने नहीं देखा।''
तब रामप्रसाद जी की पत्नी ने अपने बेटों से पूछा-मुझे सच-सच बताना तुम्हारे पिता ने तुम्हें कौन सा खजाना दिया था , जो मैंने आज तक भी नहीं देखा। चारों बेटे मुस्कुराए और मन से बोले -आपके पास यह खजाना हमेशा ही रहा है किंतु आपने कभी भी इस और ध्यान ही नहीं दिया। इस चाबी का रहस्य यही है, हमारे ''परिवार की एकता '' जब दादाजी गए थे तो उन्होंने हमारे पिता को समझाया था -'कि तुम्हारे चार बेटे हैं, और इस तरह से परिवार में झगड़ा होना स्वाभाविक है, और इस चीज का बाहरी लोग लाभ उठाते हैं। इसीलिए अपने घर की एकता को बनाए रखना आपस में प्रेम रहे , एक दूसरे का ख्याल रखें ,बस यही प्रयास करना। तब हमारे पिता ने बहुत सोचा-कि किस तरह घर को एकजुट करके रखा जाए , तब उन्हें यही उपाय सूझा जिसके कारण हम सब भाई एक साथ रहे, हमारी पत्नियां भी खजाना खर्च ना हो जाए ,जितनी हमारी आमदनी थी ,उसमें ही खर्चा चलाया इसीलिए हम पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालती थीं। यह किसी भी खजाने की चाबी नहीं है। यह हमारी ''एकता और प्रेम ''के खजाने की चाबी है उन्होंने अपनी मां को उस चाबी का रहस्य बता दिया, जिसे सुनकर वह सुकून की नींद सो गईं। आज भी वह चाबी उसी जगह टंगी हुई है , रामप्रसाद जी के खजाने की चाबी की चाहत में, आज भी उनके परिवार के सभी लोग एकजुट होकर प्रेम से रहते हैं।
''देश हो या घर सभी के पास उस खजाने की चाबी है ,बस थोड़ी सी समझदारी की आवश्यकता है। ''