प्रशांत ,ने स्कूल में नया -नया दाखिला लिया ,इससे पहले अपने मम्मी -पापा के संग दूसरे शहर में रहता था ,अब उसके पापा का, इस शहर में तबादला हो गया। जब से इस कक्षा से आया है ,सभी बच्चे अपने -अपने घर जाकर उसका गुणगान करते। उसकी शिक्षा के लिए ही नहीं वरन उसके बढ़ते खर्चों को देखकर कहते -देख लो ,मम्मी वो कितना खर्चा करता है ? मेरी दोस्त को ऐसे ही चार सौ -पांच सौ वाला उपहार दे दिया।
कभी बताते ,आज उसने सभी दोस्तों को दावत दी ,आज वो इतना महंगा पैन लेकर आया था। उसने अपने हर प्रोजेक्ट पर बहुत पैसा लगाया और उसका ही'प्रोजेक्ट ' पहले स्थान पर था। अध्यापिका भी उसी से प्रसन्न रहती हैं। आये दिन, बच्चों के इसी तरह के चर्चे रहते। कुसुम भी इन बातों से और उसके खर्चों से परेशान आ चुकी थी , बच्चे कभी कहते -मम्मी उसका 'पेंसिल बॉक्स ' कितना महंगा है ?मैंने अपने बच्चों को समझाने का प्रयत्न भी किया। इस तरह किसी की भी चीजों को देखकर ,परेशान नहीं होते। हमारे पास जो है ,उसी में प्रसन्न रहना चाहिए ,उन्हें कहावत भी सुनाई -''जेते पांव पसारिये ,जाकी लाम्बी सौर ''अर्थात उतने ही पैर पसारने चाहिए ,जितनी लम्बी चादर होती है। किन्तु उन्हें तो जैसे कुछ सुनना ही नहीं था। अब तो बात उनके पापा तक पहुंच गयी ,कहते -पापा क्या कमाते हैं ? जो हम खुलकर खर्चा नहीं कर सकते ,उसके पापा कितना कमाते हैं ?वो कितना भी व्यय कर ले, उसे कुछ नहीं कहते और आप हो ,एक -एक पैसे का हिसाब पूछती हो।पायल ने अपने बच्चों को समझाते हुए कहा - बेटा ,पैसे तो हम भी लूटा सकते हैं किन्तु आज लुटा दिया तो कल के लिए भी तो पैसे चाहिए। हर परिवार में बज़ट बनाकर कार्य करते हैं ,सरकार भी बज़ट ही बनाती है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो ''आमदनी कम होगी और खर्चा ज्यादा करेंगे तो कैसे बाक़ी के खर्चे पूरे होंगे ?हमारी जितनी आमदनी है ,उसी के अनुरूप ही तो व्यय करना होगा। तब दीपक पायल से बोला -पापा ज्यादा क्यों नहीं कमाते ? आये दिन ,स्कूल में बेइज्जती होती रहती है ,उसकी मम्मी को उस पर क्रोध और हँसी दोनों आये। ये देखो ,कुछ करने -धरने नहीं और इनकी बेइज्जती हो रही है।फिर पूछा -कैसे ज्यादा कमायें ?वेतन तो सीमित ही होता है। उसी में हमें पूरा महीना चलाना होता है।
जब बच्चा छोटा होता है ,तब उम्मीद करते हैं ,ये थोड़ा बड़ा हो जाये तब आराम से रहेंगे ,जब चलने लगता है ,तब उसका विशेष ध्यान रखना पड़ता है ,कहीं कुछ उठाकर न खा ले ,या किसी गलत स्थान पर हाथ न डाल दे। तब अपेक्षा होती है ,जब अपनी पाठशाला जाने लगेगा तब थोड़ा आराम मिलेगा। तब उनके उन खर्चों का हिसाब लगाते रहते हैं ,प्रयत्न तो यही रहता है कि बच्चा अच्छी शिक्षा ग्रहण करे और अपनी आमदनी में से अपने खर्चे कम करके, उसके लिए पैसा निकालते हैं। जब ऐसी परिस्थिति आ जाये तब बच्चे को कहाँ तक समझाये ?ऐसी परिस्थितियों के लिए बच्चों को समझाना ही नहीं स्वयं को भी तैयार करना होता है। किस परिस्थिति में और कैसे अपने बच्चे को समझाना और ढ़ालना है ?कहाँ हमें झुकना है और कहाँ समझौता करना है ?ये समय भी कम चुनौती पूर्ण नहीं होता। दिव्या ने भी थोड़ा कमी करके अपने बच्चों के लिए महंगे ,'पेंसिल बॉक्स ''ले आई क्योंकि उसके बेटे का मन तो उसकी महंगी चीजों पर ऐसे आ गया कि एक दिन वो प्रशांत का पैन ही उठा लाया। इससे उसने अपने बेटे को डांटा तो बहुत और उसका पैन वापिस करवाकर ,उसे भी कुछ सामान लाकर दिया , साथ ही कुछ हिदायतें भी।
आज के समय में बच्चे को संस्कारी और संयमी बनाना भी आसान नहीं। एक बार तो हद ही हो गयी जब उसने'' प्रेम दिवस ''पर उपहार बाँटे। हर कोई उसे अपने घर बुलाना चाहता, ताकि आये- तो उपहार में कोई महंगा और विशिष्ट सामान ही होगा। दो बरस पश्चात उसके पिता कहीं और चले गए और साथ में वो भी, हम ही जानते हैं ,कैसे उन दो बरसों में ,अपने बच्चों को संभाला और क्या -क्या तर्क -वितर्क दिए ?उसके जाने के पश्चात धीरे -धीरे बच्चे अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने लगे ,अब उन्हें समझाना आसान लग रहा था। मेरा बेटा पढ़ -लिखकर नौकरी करने लगा ,उसके दोस्त भी अच्छी जगह नौकरी करने लगे ,कुछ ने अपने पिता का व्यापार ही संभाला। सब कुछ व्यवस्थित लग रहा था। एक दिन एकाएक ललित का फ़ोन आया, वो बड़ा प्रसन्न था ,तब उसने मुझे बताया -मम्मी आपको मालूम है ,मुझे कौन मिला ?आज मुझे प्रशांत मिला ,मैंने अपनी स्मरण शक्ति पर जोर डालते हुए पूछा -कौन प्रशांत ?आप भूल गयीं ,जो हमारे विद्यालय में बड़े महंगे -महंगे उपहार बांटता था। हाँ -हाँ मैंने अपनी स्मृति पर जोर देते हुए कहा। मन ही मन सोचा -कहीं मेरे बेटे को फिर से न बिगाड़ दे ,उसके महंगे शौक़..... प्रत्यक्ष पूछा -अब कैसा है वो ?मम्मी उसकी अब सब हेकड़ी निकल गयी। अब अपनी कमाई है ,और पैसे भी कम मिलते हैं ,उसके पापा तो अब नहीं रहे ,थोड़ा उन्होंने जोड़ा होगा ,उसकी मम्मी और वो दोनों कमाते हैं। महंगाई भी इतनी है कि अपने खर्चे ही पूरे हो जायें वही बहुत है।
पापा की कमाई में कितना भी खर्चा कर लो? जब स्वयं कमाना पड़ता है ,तब ''आटे -दाल का भाव मालूम पड़ता है। ''आज तो अपनी दोस्त को एक फूल भी नहीं ख़रीद सका ,कह रहा था -ये बेकार के चोंचले हैं। अपने बेटे की बातें सुनकर मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसू थे ,मेरा समझाना ,मेरे दिए ,संस्कार व्यर्थ नहीं गए।