बच्चे बड़े हो गए ,निशा दिनभर घर में अकेली रहती ,बच्चे अपनी पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त रहते ,मौहल्ले में घूमने का भी उसे ज्यादा शौक नहीं ,फोन उठाया, उसे ऐसे ही चला -चलाकर देखती रही ,उसने अपनी पसंद का एक'' एप ''अपने फ़ोन में डाला ,उसमें कुछ लोगों से उसकी बातचीत भी आरम्भ हुई ,ऐसे ही अनजान लोगों से हल्की -फुल्की बातचीत हो जाती ,उन दोस्तों में एक लड़की अपनी नई -नई तस्वीरें डालती ,कभी बेटी के साथ , कभी साड़ी पहनकर ,कभी सलवार सूट में ,नये -नये तरीकों से अपनी तस्वीरें डालती रहती। निशा ने भी सोचा ,-सबके अपने -अपने शौक हैं ,कोई तस्वीरों द्वारा दिल बहलाता ,कोई बातचीत करके ,निशा भी ऐसे ही ''एप ''पर, बैठकर समय व्यतीत करती। कुछ दिनों पश्चात उस लड़की ने अपनी तस्वीरें डालनी बंद कर दीं। एक दिन निशा ने ही उससे पूछा -क्या कारण है ?जो हमारे लिए समय नहीं निकाल पा रही हो ,तब उसने बताया -कोई घरेलू परेशानी है ,बात आई -गयी हो गयी। कुछ समय बाद उसने बताया कि पति बिमार हैं ,हम अस्पताल में हैं। निशा ने हमदर्दी के शब्दों के साथ ,उससे सहानुभूति जताई। भगवान से प्रार्थना की कि तुम्हारे पति शीघ्र ही स्वस्थ हों। लगभग एक माह पश्चात उस लड़की ने एक टूटे हुए दिल की तस्वीर डाली जिसे देखकर थोड़ी घबराहट हुई ,कहीं कुछ अनिष्ट न हो गया हो उस लड़की के साथ ,यही सोचकर निशा ने उससे पूछा - अब कैसे हैं ?तुम्हारे पति। ठीक हैं ,उसका जबाब आया। टूटे हुए दिल की तस्वीर मैंने देखी ,क्या मैं इसका कारण जान सकती हूँ ?मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा , बड़ी बहन समझ तुम मुझसे अपनी परेशानी बाँट सकती हो निशा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा।
दीदी ,मेरे पति ने मुझे धोखा दिया ,शादी -शुदा होते हुए भी मुझसे शादी की ,अब मेरी बच्ची और मैं ही हूँ ,मैं कहाँ जाउंगी ?उसका जबाब आया।
निशा को उसकी बातें पढ़कर बहुत दुःख हुआ ,दुनिया में कैसे- कैसे लोग हैं ?अपने मन को समझाकर निशा ने लिखा -क्या तुम्हारे घर में और कोई नहीं ?अपने मम्मी -पापा के पास चली जाओ !
नहीं दीदी ,मेरा कोई नहीं ,मैं तो अनाथ हूँ ,अभी एक बहन है ,उसी के यहां रह रही हूँ, उसका जबाब आया। ठीक है ,निशा ने आश्वस्त होते हुए लिखा ,साथ ही उसे दुनियादारी समझाते हुए बताया -देखो ये दुनिया है ,जीवन इतना भी आसान नहीं ,संभलकर रहना ,बहन और जीजा के साथ।
ठीक है दीदी ,उसका जबाब था। निशा को लग रहा था ,जैसे उस लड़की की सारी परेशानियाँ वो समझ गयी है और अब उसकी जिम्मेदारी बनती है किसी भी तरह उसकी मदद करे ,तभी जैसे उसे कुछ याद आया ,उसने फिर लिखा -क्या तुम कुछ पढ़ी -लिखी हो ?अथवा कुछ काम जानती हो ,जानती हो तो शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ी होने का प्रयास करो। बहन और जीजा पर कब तक निर्भर रहोगी ?
उधर से जबाब आया -मैंने बाहरवीं पास की है ,कोई काम नहीं आता ,अभी सीखने में समय लगेगा।
निशा ने जबाब दिया -मैं देखती हूँ कि मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूँ ?कहकर निशा परेशान सी घूमने लगी ,वो सोच रही थी- कि मैं किस प्रकार उसकी मदद कर सकती हूँ ?वो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगी। कुछ समय पश्चात उसके पति आये ,उनके आते ही निशा ने सारी बातें उन्हें बताईं। पाठकजी बोले -तुम क्यों इन झंझटों में पड़ती हो ?क्या उस लड़की ने तुमसे मदद मांगी ?नहीं, निशा का जबाब था। फिर तुम क्यों नाहक ही परेशान हो रही हो ?निशा बोली -उसने अपना समझ ,मुझे अपनी समस्या बताई ,बेचारी न जाने कितनी परशानियाँ झेल रही होगी ?उसके पति ने उसे धोखा दिया। ये आदमी लोग भी न कितने बेदर्द होते हैं ?बेचारी लड़की अपनी छोटी बच्ची को लेकर कहाँ जायेगी ?विवाहित होते हुए भी ,उससे विवाह किया ,सबसे बड़ा धोखा तो उसने ये ही किया और बेटी होने के बाद छोड़ गया। क्या ये कम बडी बात है ? कहकर निशा अपने काम में लग गयी ,निशा काम करती जा रही थी किन्तु चुप थी। पाठकजी जानते थे- कि ये उसी लड़की के विषय में सोच रहीं होंगी। उन्होंने रात को निशा को समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा -देखो ,इतना परेशान होने की आवश्यकता नहीं है ,तुम अभी ये भी नहीं जानती कि वो लड़की कहाँ रहती है ?कैसे उस व्यक्ति से मिली ?बिना जाने -समझे उससे कैसे विवाह कर लिया ?वो जो भी बता रही है ,वो सही है या ग़लत ,हमें क्या मालूम ?निशा बोली -कोई अपना दर्द ऐसे ही नहीं बताता फिरता, उसने मुझे अपना समझा, तभी ये बातें बताई ,रही बात उसके रहने की वो तो मैं उससे कल पूछ ही लूँगी ,पूरे विश्वास के साथ बोली। पाठकजी को लगा -इन्हें समझाना ,व्यर्थ है यह सोचकर करवट बदलकर सो गए।
निशा की आँखों में नींद नहीं थी ,तभी उसे ध्यान आया ,मेरी एक सहेली है' पंखुड़ी ,वो भी तो ऐसे लोगों की मदद करती है ,अब मैं भी समाज के ऐसे ही लोगों की मदद किया करूंगी। शुरुआत इसी लड़की से करती हूँ ,कल मैं पंखुड़ी से भी मिलूंगी और उस लड़की से भी उसके रहने का स्थान पूछूँगी यही सब सोचकर निशा सो गयी। अगले दिन अपना काम निपटाकर उस लड़की को संदेश भेजा -कहाँ रहती हो तुम ?
उसका जबाब आया -जमशेदपुर की हूँ ,वहां अब कोई नहीं रहता ,अब मैं भुवनेश्वर में हूँ।
शाम को निशा ने पाठकजी को बताया- कि वो कहाँ रहती है ?सुनकर वो हँसे बोले -तुम्हें पता भी है ,वो कितनी दूर है ?आस -पास की बात हो तो आदमी सोचे भी ,तुम कैसे उसकी मदद कर पाओगी ?निशा ने अपना फैसला सुनाया -अब मैं भी समाज -सेवा करूंगी। चाय पीते हुए मुस्कुराकर बोले -अभी तुम इन पचड़ों में न पड़ो फिर सोचा -मानेगी तो है नहीं ,बोले -जैसी तुम्हारी मर्जी।
अगले दिन निशा ने पंखुड़ी से बात की -पंखुड़ी बोली -वो तो बहुत दूर है ,वो यहां आ जाये तो कोशिश करूंगी ,उसे अपनी संस्था द्वारा कोई काम दिलवा सकूँ। निशा आश्वस्त होकर आ गयी।
उसने पम्मी से पूछा -क्या तुम यहां आकर काम करना चाहोगी ?उसने भी आने से इंकार कर दिया कि मैं इतनी दूर नहीं आ सकती। निशा को लगा कि वो एक काम भी नही कर पायी तभी उसे ध्यान आया कि पंखुड़ी की बहन उधर ही आस -पास रहती है ,कम से कम उससे बात करके उसका हाल -चाल तो मालूम ही कर सकती हूँ। निशा ने पंखुड़ी की बहन रुपाली से बात की ,उसने कहा -दीदी आपने सही समय पर मुझे बता दिया क्योंकि हमारा उधर ही घूमने जाने का कार्यक्रम है ,आप मुझे उस लड़की की तस्वीर और उसका पता भेज देना ,मैं मालूम करूंगी ,उसे जिस भी तरह से मदद की आवश्यकता होगी ,मैं आपको बता दूंगी। निशा उसकी बातों से आश्वस्त हो गयी ,ये काम वो पाठकजी को बिना बताये कर रही थी ,उन्हें बता देना चाहती थी, कि मैं भी कुछ कर सकती हूँ। लगभग पंद्रह दिन हो गए ,रुपाली की तरफ से कोई समाचार नहीं मिला तब निशा ने ही उससे पूछा -क्या हुआ ?कुछ नहीं दीदी, उसका जबाब आया। क्या तुम उससे मिलीं ?तुमने मुझे कुछ नहीं बताया -बताओ न ,क्या हुआ ?वो बोली -दीदी मैं आपकी भावनाओं की क़द्र कर सकती हूँ लेकिन आपके साथ धोखा हुआ है ,जो भी उसने आपको बताया वो सब झूठ था। विश्वास न करते हुए निशा बोली -कैसा धोखा ?रुपाली बताना शुरू किया -मैं अकेली ही इस काम को नहीं कर सकती थी लेकिन आपकी भावनाओं की कदर करते हुए ,मैंने अपने देवर को उसकी ख़ोज में लगा दिया।
उसने बताया कि वो लड़की अनाथ है किन्तु किसी ने भी उससे धोखे से विवाह नहीं किया ,उसके सम्पर्क में एक लड़का आया था ,उसने पहले ही बता दिया था कि में विवाहित हूँ किन्तु उसका पैसा देखकर जबरदस्ती उसे अपने जाल में फंसाया उसका परिवार तो रहता नहीं था वो छुट्टियों में जाता था। बाक़ी समय में उसके साथ रहती उसने सोचा कि कोई बच्चा हो गया तो अपने मतलब के लिए उससे लाभ उठा सकती है ,उससे आये दिन नए -नए खर्चे करवाती , उसके पहले परिवार में भी उसके दो बच्चे हैं ,पत्नी है। बड़ी मुश्किलों से उसने पैसे लेकर उस आदमी का पीछा छोड़ा। उसने तो अपनी बदली करा ली ,उससे अब भी उस लड़की का खर्चा लेती है और अब अपने जीजा के साथ रह रही है। वो बहन उसकी अपनी सगी बहन नहीं। वो भी अनाथ आश्रम में ही बनी , अब दोनों में झगड़ा होता है ,उसके पति के साथ घूमती है ,अब बने हुए उस जीजा पर नज़र है,क्योंकि अब उस पर उसकी निगाहें हैं। जो लोग उसे जानते हैं ,कह रहे थे कि ये पैसों के लिए और अपनी सुख -सुविधाओं के लिए कुछ भी कर सकती है ,उसे कोई काम नहीं करना ,न ही मदद की आवश्यकता है। वो तो ऐसे ही बताकर आपसे संवेदना बटोर रही थी।
उसकी बातें सुनकर निशा को ऐसे लगा जैसे वो आसमान से गिरी हो ,पाठकजी ठीक ही कह रहे थे बिना जाने -बूझे किसी पर ऐसे ही विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। उसने तो ख्यालों में ही न जाने कितने लोगों की मदद कर डाली ?लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो किसी की भावनाओं का इस कदर भी फायदा उठा सकते हैं ,ख़ैर मेरा तो कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ किन्तु भावनाओं से तो खेल गयी। मैं उसके लिए कितना परेशान थी ,उस व्यक्ति को भी कोस रही थी जो बेचारा स्वयं ही उसके चंगुल में फंसा था ,उसके सिर से ''समाज -सेवा ''का भाव तिरोहित हो गया। असलियत सामने आते ही निशा एकदम चुप हो गयी
,उसने पाठकजी से कोई बात नही की ,वरना रोजाना ही निशा के पास पाठकजी को बताने के लिए कोई न कोई विषय होता। दो- चार दिन बाद पाठकजी बोले -निशा !तुम्हारी उस सहेली का क्या हुआ ?जिसका पति उसे छोड़ गया ,पहले तो निशा ने बताना नहीं चाहा कि सुनेंगे तो ताना मारेंगे कि मैं न कहता था कि इन पचड़ों में मत पड़ो ,तुम शीघ्र ही किसी पर भी विश्वास कर लेती हो। उन्होंने दुबारा पूछा तो वो अपने को रोक न सकी और अपराधबोध से सब कुछ बता दिया। सुनकर पाठकजी चुप हो गए ,कुछ देर बाद बोले -तुम भोली और सीधी हो ,''जैसा आदमी होता है ,वैसा ही दूसरे को समझ लेता है। ''तुम्हारी सोच तो अच्छी थी तुमने कोई गलती तो नहीं की ,तुम्हारी ग़लती ये थी कि तुमने बिना जाने -समझे उस पर विश्वास कर लिया।
दुनिया इतनी बड़ी है तो उसमें लोग भी भांति -भांति के होंगे ,सच्चे भी झूठे भी। ऐसे लोगो के कारण तुम अपनी सरलता को तो भुला नहीं सकतीं ,हाँ ये अवश्य है कि ऐसे लोगों से सतर्क जरूर रह सकती हो। परेशान न हो ,तुम यहीं पर रहकर गरीब बच्चों को पढ़ाकर उन्हें कुछ कलाकारी सिखाकर अपना शौक पूरा कर सकती हो। मुस्कुराकर पाठक जी बोले -अब उस सहेली का क्या हुआ ?काहें की सहेली ,मैं तो बस इंसानियत के नाते उसका दुःख सुनकर उसकी मदद करना चाहती थी ,अब वो भाड़ में जाये ,मेरी बला से कहकर निशा ने मुँह बनाया। पाठकजी ने निशा के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा -तुमने कुछ नहीं कहा उसे। निशा मुँह बनाते हुए बोली -जो भी मन में आया उसे खूब सुनाया और अब मैंने उसे ''ब्लॉक ''कर दिया। बेकार ही उसके चक्कर में पड़ी कहकर निशा अपने काम में लग गयी।