जिंदगी में पहली बार कुछ अलग ही एहसास हो रहे थे ,ऐसा उसने आज से पहले कभी महसूस नहीं किया। वो उसकी बातों को यादकर अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी। लगता है ,जिंदगी कितनी सुहानी है ,सब कुछ अच्छा ही अच्छा है ,जीवन में जैसे बहार आ गयी है ,दिल में जो रिक्तता थी, लगता है, जैसे वो भर गयी है। उसने रुपाली पर ऐसा प्रभाव छोड़ा था कि वो अब तक उसके दिल -दिमाग पर छाया हुआ था। उसे रह -रहकर उसकी बातें अब भी याद आ रहीं थीं। वो सोच रही थी कि कैसे वो उसे उस दिन ''आर्ट गैलरी ''में मिला था ?लम्बा ,तंदुरुस्त और आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था, वो जिससे भी मिलता उसी से उसी की भाषा में बात करता- सरदारजी से पंजाबी में बात की ,किसी से अंग्रेजी में ,किसी से तमिल में। इस तरह बातें करते देख रुपाली का ध्यान अनायास ही उसकी तरफ खींचता चला गया। रुपाली को अपनी तरफ मुस्कुराता देख उसका ध्यान भी रुपाली की तरफ गया। वो मुस्कुराता हुआ ,रुपाली की तरफ बढ़ा और बोला -आप एक ख़ूबसूरत कलाकार हैं। आपको कैसे मालूम रुपाली ने पूछा ?अरे !यहाँ 'आर्ट गैलरी 'में या तो वो आएगा जो कला में रूचि रखता हो या फिर स्वयं ही कलाकार हो और आप तो भगवान की तराशी हुई , स्वयं ही इतनी सुंदर कलाकृति हैं । न जाने उसने रुपाली की सुंदरता के विषय में क्या -क्या कह डाला ? उसकी बातें रुपाली को भावविभोर कर रहीं थीं।
उसने रुपाली से उसकी पेंटिंग के विषय में पूछा।
रुपाली बोली -हाँ मैंने भी हिस्सा लिया है ,उधर मेरी बनाई पेंटिग है। उसने ऊपर से नीचे तक रुपाली को नजरभर देखा -'रुपाली ने बिना बाजु का ब्लाउज पहना था जिस पर बॉर्डर की शिफॉन की'' तोतई रंग ''की साड़ी थी। खुले लम्बे बाल,गोरा रंग ,लाल रंग की लिपस्टिक और ऊँची एड़ी की चप्पल और गले में लटकता लम्बा हार , वो अपने में ही एक कलाकृति लग रही थी।क्षणभर को उसे देख वो ठगा सा रह गया। वो बोला - भगवान की कलाकृति तो मेरे सामने खड़ी है ,लगता है उसने आपको फुरसत से बनाया है ,चलिये देखते हैं आपने क्या बनाया है ?वो अपनी इतनी प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समा रही थी ,वो तो जैसे हवा में उड़ने लगी थी अपने को फूल से भी हल्का महसूस कर रही थी। किसी ने कभी इस तरह से, कभी उसकी प्रशंसा नहीं की। इस बीच उसने बताया कि वो भी चित्र बनाता है ,उसे कम से कम पांच भाषाएँ आती हैं। रुपाली की पेंटिंग देखकर उसने कुछ नहीं कहा। उसके बाद दोनों ने साथ बैठकर चाय पी। वो आकर्षक होने के साथ -साथ उनके शौक भी एक जैसे हो गए। उन्हें इस बहाने से मिलने के कई मौक़े मिलेंगे ,यही सोचकर वो खुश थी और सिखने को भी मिलेगा तभी एकाएक उसे याद आया कि उसकी पेंटिंग के विषय में अभी तक उसने कुछ नहीं बोला।
अभी वो ये सोच ही रही थी कि वो बोला -ये आपने ज्वालामुखी ही क्यों चुना ?क्या मन में बहुत कुछ भरा है। ठीक समझे ,रुपाली बोली। ज्वालामुखी अपने अंदर न जाने क्या -क्या दफ़न किये रहता है और जब उसकी इंतहा होती है तो वो फट पड़ता है। बात को बीच में काटते हुए बोला -जब वो फटता है तो आ स -पास के वातावरण को भी प्रभावित करता है ,कितनी खतरनाक?अभी वो कुछ कहता उससे पहले ही वो बोली -इसीलिए तो सुप्त है ,फटा नहीं ,कहकर हँस पड़ी दोनों बड़ी देर तक बातें करते रहे। आज तक उसने कभी भी किसी से भी इतनी बातें नहीं की थी। उसने अपना कार्ड दिया -मेरे स्टूडियो मैं आना। रुपाली ने -कार्ड की तरफ एक नजर देखा ,नाम पढ़कर मुस्कुराई और बुदबुदाई -रुपेश। क्या हुआ आप इस तरह क्यों मुस्कुरा रही हैं ?कुछ नहीं , वो बोली। कुछ तो है उसने शंकित होते हुए पूछा -तुम्हारा नाम भी मेरे नाम से मेलखाता है। रुपाली है , मेरा नाम। संजोग की बात है ,वो बोला। उससे इतनी देर तक बातें करने के बाद उसे एहसास हुआ कि उसका एक घर भी है ,घर की याद आते ही तब उसे याद आया कि वो तो विवाहिता है उसका पति है ,बच्चे हैं। वो तो जैसे परीलोक से नीचे आ गिरी।
रुपेश ने तो जैसे उसे स्वप्न लोक में ही पहुँचा दिया था। कितनी सुंदर थी वो दुनिया ?मन में कितनी शांति थी ?मन आसमान की बुलंदियों में उड़ रहा था। वास्तविक जिंदगी में उतरते ही लग रहा था,- जैसे तपते रेगिस्तान में किसी ने उतार दिया हो या पथरीले रास्तों में भटक रहे हों। ख्यालों ,ख्वाबों की दुनिया जब खो जाती है तो बहुत दुःख होता है ,जैसे कोई अनमोल वस्तु हमसे छीन ली गयी हो। उसने रुपेश को नहीं बताया कि वो विवाहिता है उसके बच्चे भी हैं। उसने अभी जो सपने देखे ,उन्हें और जीना चाहती थी। लौटते समय वो सोच रही थी -'अट्ठारह साल की ही तो थी, जब उसका विवाह सुधीर के साथ हुआ। प्यार क्या होता है और कैसे ?ये तो उसने जाना ही नहीं। एक जिम्मेदार लड़के को मेरा पति बनाकर मेरे माता -पिता ने जैसे अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। कमाऊ ,क़ामयाब और जिम्मेदार लड़का कोई बीस या बाईस साल का तो मिलेगा नहीं ,वो मुझसे सात -आठ साल बड़े थे ,सब रीति -रिवाजों से हो गया। प्यार क्या होता है? उसने कभी महसूस ही नहीं किया। पति अपने कामों में लगे रहते उन्होंने भी कभी महसूस नहीं किया कि पत्नी की शारीरिक आवश्यकताओं से अलग भावनात्मक आवश्यकताएं भी होती हैं। भावनायें जो दो लोगों को विचारों से जोड़कर रखती हैं, मात्र खाना पूर्ति ही नहीं। तेईस वर्ष की होते -होते दो बच्चों की माँ बन गयी। सुधीर की सोच थी- कि औरत को क्या चाहिये ?खाने -पीने और ख़र्चों के सिवा और क्या चाहिए ?
वो भी बच्चों को पालते ,काम करते न जाने कितने वर्ष बिता दिए ?समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा। बच्चे थोड़े बड़े हुए तो उसने समय बिताने के लिए पेंटिग सीखी और अपनी आगे की शिक्षा जारी की सुधीर ने किसी भी बात के लिए मना नहीं किया जो वो कहती, हो जाता, लेकिन तीन -चार घंटों की मुलाकात में जो उसने रुपेश के साथ ख़ुशी महसूस की, वो उसने सुधीर के साथ इतने वर्षों भी महसूस नहीं की ,उसका मन उड़ना चाहता था कुछ और सोचना ही नहीं चाहता था। घर आकर काम में तो लग गयी लेकिन दिल और दिमाग तो जैसे वहीं थे। आज आइना भी शायद कुछ कह रहा था वो देर तक उसमें निहारती रही। उसने गाउन पहना उसके दिल की ख़ुशी बार -बार उसके चेहरे पर आकर कुछ क्षण के लिए ठहर जाती। शाम को जब सुधीर आये तो आज उसने उसे तनिक निहारा उसे सुधीर एक जिम्मेदार और थका व्यक्ति नजर आया। वो सोच रही थी कि सुधीर के साथ उसने कभी ऐसा महसूस क्यों नहीं किया ?वो सुबह जल्दी उठकर रुपेश के स्टूडियो में जाना चाहती थी। उससे ज्यादा उसका सानिध्य पाना चाहती थी। जब वो वहाँ पहुंची तो चौंक गयी वहाँ उसका एक'' तैलीय चित्र'' था उसकी सुंदरता पर वो मुग्ध हो गयी ,उसे अपलक देखती रही। वो उसकी तरफ खींचती जा रही थी ,वो उसके साथ अधिक से अधिक समय बिता रही थी। इस कारण घर की जिम्मेदारियाँ उससे छूटती जा रहीं थीं ,वो अपनी ही दुनिया में आगे बढ़ती जा रही थी।
उसे मिलते हुए लगभग एक माह हो गया। एक दिन अचानक रुपाली की मम्मी उसके घर आ पहुंची - देखा घर तो बहुत गंदा पड़ा है। माँ ने पूछा - क्या तुम स्वस्थ नहीं हो ?क्यों क्या हुआ ?माँ के इस तरह प्रश्न पूछने पर वो बोली। कुछ नहीं ,घर काफी गंदा है , लगता है ,काफी दिनों से इसकी साफ -सफाई नहीं हुई है। वो झेंपते हुए बोली -हाँ, कुछ दिनों से सफाई नहीं हुई है ,कल कर दूँगी। अगले दिन वो घर की सफाई में लग गयी, उसका बाहर जाना नहीं हुआ। आज घर चमक रहा था ,माँ बोली -देखा अब घर केेसा अच्छा लग रहा है ?साफ -सुथरे घर में मन भी लगता है ,माँ अपनी बात जारी रखते हुए बोली -पत्नी ,बहु घर की लक्ष्मी होती हैं और तुम तो एक जिम्मेदार माँ भी हो। घर तुम्हारे कारण ही चलता है ,जब तुम घर में रहकर अपनी ये सब जिम्मेदारियां सही से निभाती हो ,सब चीजें ठीक से संभाल पाती हो तभी दामाद जी निश्चिन्त होकर बाहर काम कर पाते हैं। अपने घर आकर पत्नी और बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखते हैं तो पूरे दिन की थकान दूर हो जाती है। दामाद जी, तो इतने अच्छे हैं ,कभी तुम्हें किसी बात के लिए मना ही नहीं किया। किसके लिए सारा दिन धक्के खाते हैं ,मेहनत करते हैं ?अपने ही परिवार के लिए न अपने आप ही उत्तर देते हुए बोलीं। बहुत से आदमी तो बाहर घूमते रहते हैं पराई स्त्रियों पर नजर रखते हैं उनमें तो कोई 'ऐब 'भी नही।
शाम को माँ बोली -दामाद जी !अब आपको कोई काम तो नहीं ?नहीं ,क्यों ?सुधीर बोले। अभी तो मैं भी आई हुई हूँ,बच्चों को मैं संभाल लूँगी आप दोनों अपने लिए भी समय निकालिये। थोड़ा कहीं घूम आइये ,फिल्में देखिये। यही तो उम्र है घूमने -फिरने की ,काम तो जिंदगी भर का है। दो दिन बाद वो सैर को निकले। बाहर चाँद की चांदनी में घूमते हुए सुधीर बोले -हम अपनी जिम्मेदारियों में इतने फँसे थे कि कभी बाहर जाने का सोचा ही नहीं। घर का बड़ा था तो माता -पिता के साथ बहनों के विवाह की जिम्मेदारी फिर बच्चे हुए वो जिम्मेदारी, कुछ सोचने -समझने का मौका ही नहीं मिला पर तुम सब संभाल लोगी यही सोचकर मैं निश्चंत रहता हूँ। रुपाली चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी। फिर एकाएक वो बोला -चलो एक अच्छी सी फ़िल्म देख आते हैं और कल वो लाल बॉर्डर वाली साड़ी पहनना,उसमें तुम परी लगती हो। क्या तुम्हें पता है कि मुझ पर क्या अच्छा लगता है ?कमाल करती हो तुम भी ,क्या मुझे नहीं पता होगा कि मेरी पत्नी कैसी लगती है या उस पर क्या फ़बता है। तुम मेरे घर की लक्ष्मी हो ,अन्नपूर्णा हो ,सब कुछ मेरा दिन तो तुम्हारा चेहरा देखकर ही निकलता है।मेरा प्यार शांत है, मैं और लोगों की तरह अपने प्यार का प्रदर्शन नहीं कर पाता। रुपाली ने नजर भरकर सुधीर को देखा ,सोचने लगी -कितना सम्मान ,विश्वास ,प्यार भरा है इनके मन में ,मैं इतने साल साथ रहकर भी समझी नहीं। वो मन ही मन अपने आप को धिक्कारने लगी ,-'मैं ऐसे व्यक्ति के विश्वास को धोखा दे रही थी।
एक सप्ताह बाद दोनों घूमकर लौटे ,दोनों खुश थे। अजीब सी शांति और ठहराव आया उनकी जिंदगी में। जिंदगी फिर से अपने उसी पुराने ढर्रे पर चल निकली। माँ भी एक सप्ताह रहकर अपने घर चली गयीं। अब रुपाली के लिए कोई बंधन नहीं था। उसने अपने को आईने में निहारा और चित्र बनाने बैठ गयी। उसने अपने बहकते कदमों को रोक लिया था।