आज शीघ्र ही, कॉलेज की छुट्टी हो जाएगी, लेक्चर भी शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा इसीलिए सभी दोस्तों ने आपस में मिलकर'' कॉफी हाउस'' में जाकर कॉफी पीने की योजना बनाई। श्रुति, पल्लवी ,अनिरुद्ध और तेजस्व ! चारों ही अच्छे दोस्त हैं ! दोस्ती के नाम पर कभी भी, कभी किसी दूसरे दोस्त पर एहसान नहीं करते और न ही एहसान लेते हैं। यदि किसी का भी ऐसा कोई खाने -पीने का कार्यक्रम बनता है, तब वह अपने-अपने पैसे करते प्रयोग करते हैं ,हां यह बात अलग है, कि किसी विशेष अवसर पर , जैसे जन्मदिन हो या घर में कोई विशेष बात हो। उसकी पार्टी करनी है ,तो तब वही बच्चा सम्पूर्ण व्यय वहन करता है। आज सभी के पास इतने पैसे तो थे कि वह एक-एक कप कॉफी पी सकें इसीलिए सभी प्रसन्नतापूर्वक अपने उस कीमती समय को, काफी के साथ खुशनुमा बनाने के लिए कॉफी हाउस की तरफ बढ़ चले।
वे जैसे ही ,काफी हाउस की तरफ जा रहे थे तभी उन्हें एक बुजुर्ग दिखाई दिया ,जो हाथ में कटोरा लिए हुए उनसे भीख की इच्छा रख रहा था किंतु वे लोग अपनी ही धुन में ,लापरवाही से, कॉफी हाउस के अंदर चले गए और वहां चार कॉफी का आदेश दे दिया। सभी गरमा -गरम कॉफी की कल्पना करके मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे और अपने कॉलेज की अपनी पढ़ाई की बातें करने में व्यस्त थे। कुछ देर पश्चात ही ,चारों के सामने एक-एक कॉफी का मग था। सभी ने काफी पीना आरंभ किया किंतु पल्लवी रुक गई और वह अपने स्थान से उठी और बोली -मैं अभी आती हूं , साथ में काफी का मग भी ,लेकर चल दी।
इसे क्या हुआ ?यह बाहर क्यों जा रही है ? उसके दोस्त आपस में ही एक दूसरे से पूछने लगे। तब तक वह बाहर जा चुकी थी।
पल्लवी ने उस बुजुर्ग को आसपास, नजर दौड़ाकर देखा , वह उसी '' कॉफी हाउस ''के किनारे सड़क पर बैठा हुआ था। पल्लवी उसके करीब गई और बोली-बाबा कुछ खाओगे !
हां, बिटिया सुबह से भूखा हूं , कुछ खाने को मिल जाता तो...... उससे पहले ही पल्लवी ने उसके सामने वह काफी का मग रख दिया और बोली -लीजिए ,यह कॉफी पीजिए !
यह क्या है ?यह तो मैंने आज तक कभी नहीं पी। उसने ललचाई नजरों से कॉफी की तरफ देखते हुए कहा।
नहीं पी है, तो आज भी लीजिए, इस ठंड में आपको आराम भी करेगी। यह दूध की बनी होती है, चाय की तरह ही होती है किंतु उसका स्वाद थोड़ा अलग होता है। बूढ़े ने काफी का मग़ उठाकर अपने हाथों में ले लिया, और घूंट-घूँट करके पीने लगा। तभी पल्लवी बोली-आप पीजिए ,मैं अभी आती हूं , उसकी जेब में थोड़े ही पैसे थे। फल तो नहीं खरीद सकी किंतु उसने नजदीक की दुकान से ही, कुछ बिस्किट ,रस इत्यादि सामान खरीद कर, उस बुजुर्ग के हाथ में देते हुए बोली -यह आपका कुछ खाने का सामान है, इसे खा लीजिएगा। तब तक उस बुजुर्ग ने कॉफी पी ली।
कॉफी का मग लेकर पल्लवी अपने दोस्तों के पास आकर बैठ गई , किंतु उसके दोस्त उसकी यह सभी हरकतें देख रहे थे और चुपचाप वापस आकर बैठ गए थे।
क्या तुमने इतनी जल्दी कॉफी पी ली ?उसका खाली मग़ देखकर, मुस्कुराते हुए अनिरुद्ध ने पूछा ।
हां ठंडी ही थी, ज्यादा गर्म नहीं थी, पल्लवी ने बहाना बनाया।
हमारी काफी तो बहुत गर्म है, हमसे तो ये पी भी नहीं जा रही , कहते हुए उसके दोस्तों ने एक और खाली मग वेटर से मंगवाया, और सब ने अपनी -अपनी कॉफी में से थोड़ा -थोड़ा हिस्सा, पल्लवी के लिए उस मग में भर दिया और बोले -अब तुम यह पीकर दिखाओ !
पल्लवी समझ गई थी ,मेरे दोस्तों को सब पता चल गया है, इसलिए वह लोग मेरे साथ ऐसा कर रहे हैं , वह मुस्कुराई और बोली- तुम सबकी कॉफी में जो दिल बना था, वह तो मुझे ही दे दिया , और हंस कर बोली -मैं यह कॉफी भी तुम सबसे पहले पी लूंगी, कहते हुए उसने , वह मग उसने अपने अधरों से लगा लिया। सबने एक साथ कॉफी पी ! तब पल्लवी बोली- ''यह आज की कॉफी मेरे लिए जीवन की सबसे ,कभी न भूलने वाली कॉफी होगी। इसमें मेरे सभी दोस्तों का प्यार जो छुपा था , कॉफी पर दिल बनाने से कुछ नहीं होता, कॉफी दिल से पिलाने से होता है।'' आज वह ''एक कप कॉफी ''पल्लवी के लिए यादगार बन गई, और उस बुजुर्ग के लिए, जीवन भर का स्वाद, और जीने की आस बन गई।