प्रियाजी, के लड़के का विवाह हुआ है , बहु पढ़ी -लिखी सुंदर है, नौकरी भी करती है। प्रियाजी , अकेले ही सारे काम संभाल रहीं थीं लेकिन ख़ुशी में अपनी थकान का ध्यान ही नहीं। आज बहु की मुँह दिखाई की रस्म है ,मौहल्ले की महिलायें आनी शुरू हो गयीं। वे देख रहीं थीं , कि प्रिया जी काम में व्यस्त हैं ,थकान उनके चेहरे से साफ झलक रही थी। महिलायें आपस में बतिया रहीं थीं -देखो प्रियाजी, कितनी व्यस्त हैं ?भई, हो भी क्यों न, शादी वाला घर है ,काम तो है ही पुष्पाजी बोलीं।देखो उम्र भी तो हो चली है ,अब वो वाली बात थोड़े ही रहेगी मनोरमा बोली। तभी सुमन जी बोलीं -प्रियाजी !क्या आपकी बेटियाँ भी चलीं गयीं ?एक को तो रख ही लेतीं ,ब्याह के बाद भी अनेक रस्में होती हैं ,अकेली आप क्या -क्या करेंगी ?वो बोलीं -बेटियों का भी अपना परिवार है उनकी अपनी भी जिम्मेदारियाँ हैं। तभी तो इनकी बेटियाँ अपनी -अपनी ससुराल में खुश हैं ,अपनी जिम्मेदारियाँ भी समझतीं है पुष्पाजी बोलीं। मनोरमा बोली -आजकल तो जमाना ही ख़राब है, कहीं बहु खुश नहीं ,कहीं सास परेशान। सास अच्छी मिल जाये तो बहु नहीं सुनती, सास सख़्त मिज़ाज हो तो, बेटियाँ चार दिन में घर आकर बैठ जाती हैं।छोटी -छोटी बातों में तलाक़ हो जाते हैं। ख़ैर !छोडो, इन बातों को, आप भी क्या बातें लेकर बैठ गयीं ?अब तो 'प्रिया जी की' बहु आ गयी है। अब उन्हें आराम हो जायेगा ,बेचारी अकेली लगी रहतीं हैं कान्ता बोली। बहु बैठी हुई उन सभी की बातें सुन रही थी।
कुछ देर बाद महिलायें अपने -अपने घर चली गयीं ,बहु भी उठकर अपने कमरे में चली गयी।
अगले दिन प्रियाजी सुबह जल्दी उठीं और प्रमोद को भी जल्दी उठकर तैयार होने के लिए कह दिया कि जब तक तुम दोनों देवता पूजकर आओगे तब तक मैं खाने की तैयारी कर लूँगी। आज बहु की पहली रसोई की रस्म का नेग भी हो जायेगा। बहु -बेटा तैयार होकर देवता पूजने गए ,यहाँ प्रियाजी ने सारी तैयारी भी कर लीं। बहु आकर अपने कमरे में लेट गयी तभी बर्तन साफ करते हुए रामदुलारी बोली -माँजी !आपने तो लगभग सारा खाना ही बना दिया। बहुजी तो अब तक रसोईघर में आकर झाँकी भी नहीं ,फिर वो क्या बनायेंगी ?प्रियाजी बोलीं -बहु अभी नई -नवेली है ,अभी से सिर पर काम का बोझ कैसे डाल सकती हूँ ? मैंने दूध उबलने के लिए रख दिया है ,बस बहु उसमें चावल डालकर पका देगी ,बस रस्म हो जाएगी। कल तो दोनों हनीमून के लिए बाहर घूमने जा रहे हैं। तभी उन्होंने नूपुर को आवाज दी ,वो आई और दूध में चावल डालकर चली गयी। उसने थोड़ी देर भी वहाँ खड़े रहने की जरूरत महसूस नहीं की। रामदुलारी ये सब देख रही थी जो उसे अच्छा नहीं लगा किन्तु वो चुप रही ,सोचने लगी इनके घर का मामला है ,मुझे क्या ?प्रियाजी ने फिर से बहु को आवाज लगाई -बहु ,सबके लिए खाना लगा दो। प्रियाजी ने बहु को पहली रसोई के नेग [उपहार ] में सोने के कंगन दिए।सबने कुछ न कुछ उपहार दिया।
अगले दिन बहु -बेटा बाहर घूमने के लिए चले गए। आज प्रिया जी को थोड़ा आराम मिला क्योंकि मेहमान भी सब गए और रस्में भी हो गयीं। आज उन्हें लगा ,वाकई शरीर थक गया है। पंद्रह दिन यूँ ही बीत गए। नूपुर और प्रमोद भी वापस आ गए ,अगले दिन बहु देर तक सोती रही। प्रियाजी ने सोचा -सफ़र की थकान होगी ,बहु को आराम करने दो ,अभी उनकी छुट्टी के दस दिन बचे थे। अगले दिन भी बहु देर तक सोती रही ,खाना भी अपने कमरे में ही खाया। इधर प्रियाजी सोच रहीं थीं कि बहु आये और उनके काम में मदद करे। घर -परिवार में घुले -मिले। आज तो रामदुलारी भी पूछने लगी -माँजी !अब तो बहुजी को आये हुए चार दिन हो गए उनकी थकान नहीं उतरी। अब प्रियाजी क्या कहतीं ?बहु भी उठी और नहा -धोकर फिर से अपने कमरे में जा बैठी। प्रिया जी बोलीं -नूपुर क्या तुम्हें यहाँ कोई परेशानी है ?नहीं मम्मीजी नूपुर ने छोटा सा जबाब दिया। फिर तुम सारा दिन कमरे में क्यों बैठी रहती हो ?बाहर आओ ,हमारे साथ बैठो! वो बोलीं। उनके कहने पर नूपुर थोड़ी देर के लिए बाहर आई ,उस समय दूरदर्शन पर एक धारावाहिक चल रहा था। उस समय प्रियाजी शाम के खाने में बनाने के लिए सब्जी काट रहीं थीं। उन्हें देखकर भी नूपुर ने न ही मदद के लिए हाथ बढ़ाया ,न ही उन्होंने कहा। तब प्रियाजी बोलीं -आओ सब्ज़ी बना दो , मैं आटा मलती हूँ। उनके कहने से वो उनके साथ चली सब्जी छौंककर दुबारा कमरे में जाने के लिए मुड़ी ही थी कि उन्होंने रोक दिया बोलीं -नूपुर !आज रोटी भी तुम सेंक दो।
नूपुर ने खाना बनाया न ही स्वाद था ,न ही बेस्वाद कह सकते थे। वे बोलीं -बहु क्या तुमने पहले कभी खाना नहीं बनाया ?वो बोली -मम्मीजी मैं तो कभी -कभार ही बनाती थी ,भाभी ही बनाती थी। तभी उसका देवर बोला -अब तुम यहाँ मेरी भाभी हो। वो उसका इशारा समझी नहीं या समझकर भी अनजान बनी रही और खाना खाने बैठ गयी। सुबह जल्दी उठकर मेरे साथ नाश्ते में मेरी मदद करना प्रियाजी बोलीं। नूपुर ने हाँ में गर्दन हिलायी। अगले दिन वो आठ बजे तक भी कमरे से बाहर नहीं आई ,प्रियाजी इंतजार करती रहीं। हताश होकर उन्होंने ही नाश्ता बना दिया। दोपहर के खाने में उन्होंने बहु की मदद ली। उन्हे बहु से बार -बार कहना अच्छा नहीं लग रहा था। वे सोचतीं, कि वो स्वयं ही मदद के लिए क्यों नहीं आती ,पढ़ी -लिखी, नौकरीपेशा महिला है, बच्ची थोड़े ही है जो बार -बार उसे समझाने बैठो। अगले दिन उसका भाई उसे लिवाने आया ,बोला -दीदी का फोन आया था तो मम्मी बोलीं -अपनी बहन को दो -चार दिन के लिए ले आ फिर तो उसको काम पर जाना होगा फिर मिलना नहीं हो पायेगा। नूपुर भी भाई के आते ही तैयार होकर चली गयी। उसके इस व्यवहार से[ न ही उसने जाने के लिए पूछा और अपने घर भी फोन दिया ,काम से बचने के लिए बहाना किया ]बेहद आहत हुईं। जिस दिन उसे अपने दफ्तर जाना था उससे एक दिन पहले शाम को प्रमोद उसे ले आया। अगले दिन वो सुबह सात बजे उठकर तैयार हुई प्रियाजी ने नाश्ता बनाया। नाश्ता खाकर और अपना दोपहर का खाना लेकर चली गयी पीछे सारे घर की जिम्मेदारी उन पर घर का सारा फैला सामान समेटना ,घर की साफ -सफाई कराना आदि। शाम को जब सारी तैयारी कर देतीं तब वो सबके लिए चपाती सेंक देती। इस तरह एक सप्ताह बीत गया।
आज रविवार है ,प्रियाजी ने सोचा - आज तो बहु काम में मेरी मदद करेगी लेकिन वो तब तक बाहर नहीं आयी जब तक उन्होंने नाश्ता नहीं बना लिया। अब तो उनके पति भी कहने लगे -तुम कब तक लगी रहोगी ,बहु से कहती क्यों नहीं ?वो झुंझलाकर बोलीं -क्या कहूँ ,क्या उसे स्वयं अक्ल नहीं कि छुट्टी के दिन तो अपनी जिम्मेदारी समझे। क्या उसकी भाभियाँ काम नहीं करतीं ,क्या वो अलग शहर में रह रही होती तो सारा काम करके अपने दफ्तर नहीं जाती और आकर भी करती। यहाँ मदद लिए भी खड़ी नहीं होती ,क्या मैं उसकी सास हूँ या इस घर की नौकर। क्या कहूँ ,किससे कहूँ ?ज्यादा कहने से घर का वातावरण तनावपूर्ण न हो जाये। वे बोले -कब तक इन बातों पर पर्दा डालती रहोगी ?एक सप्ताह बाद आज भी रविवार है। सब अपने -अपने कमरों में थे ,पूरे घर में शांति पसरी थी लेकिन लगभग छः अचानक कुछ टूटने की तेज़ आवाज़ से सबकी आँखें खुल गयी ,सब अपने -अपने कमरों से निकलकर आवाज की तरफ दौड़े। आवाज रसोईघर की तरफ से आई थी ,वहाँ का नज़ारा देखकर सबके मुँह खुले के खुले रह गए ,उन्होंने देखा कि -प्रियाजी ,की आँखें ऊपर चढ़ी हुई थीं और बाल बिखरे थे और उन्होंने ही कोई डिब्बा फेंककर मारा था। उनकी ये हालत देखकर सब सहम गए तभी वर्माजी बोले -शायद ये गर्मी के कारण हुआ है। चलो इन्हें सब बाहर सोफे पर बिठाओ। बहु ! तुम पानी लेकर आओ। प्रियाजी को बाहर खुले में बिठाया। बहु पानी लेकर आ गयी ,तभी प्रदीप बोला -मम्मी !मम्मी!तभी प्रियाजी बोलीं -मैं तेरी माँ ना हूँ ,दादी हूँ समझा। सब एक साथ चौंक उठे दादी !हाँ उनके अंदर की दादी बोली। क्या हुआ ?जो आप सुबह -सुबह यहाँ पधारीं वर्माजी बोले। कैसे न आती ?अरे इसने बहु को क्या सिखाया है ,जब से आई है। एक कप चाय भी ढंग की पीने को न मिली। अब भी देख कैसी खड़ी है ?दादी के पैर न छुयेगी नूपुर की तरफ देखते हुए बोलीं। नूपुर प्रदीप का मुँह देखने लगी। उसे क्या देख रही है ?आ..मेरे पैर छू !जब नूपुर उनके पैर छूने पास आई तो दादी उसका हाथ पकड़कर बोली -क्यों री ,सोने के कड़े तो तूने फट से लपक लिए ,खाना तो एक दिन भी ढंग का बनाकर ना खिलाया। अभी तक सो ही रही है ,घर के बहुएं सुबह उठकर नहा -धोकर पूजा करके रसोई में खाना बनावें ,इसने कुछ भी ना सिखाया,तभी तो मैं आई इसके हाथों की चाय पीकर मैं बोर हो गयी। जा तू चाय बनाकर ले आ ,आज तेरे हाथ चाय पियूँगी और साथ में बढ़िया , चटपटा नाश्ता भी बनाकर लाना। इससे पहले नहाकर जोत [दीपक ]जलाकर पूजा करना ,मैं यहीं बैठी हूँ। इसने तो बहु को घर के तौर -तरीक़े भी न सिखाये।क्या घर की बहुओं का आठ बजे उठने का टैम होवै ,तेरी सास को भी मैंने ही सिखाया, अब तुझे भी मैं ही सिखाकर जाऊँगी।
नूपुर जल्दी नहा-धोकर रसोईघर में घुसी नाश्ता बनाया ,सर्वप्रथम दादीजी को दिया सबके खाना खाने के बाद दादीजी बोलीं -दोपहर के खाने में कुछ अच्छा सा बना लेना ,इतने मैं आराम कर लेती हूँ। तभी नूपुर प्रदीप से बोली- किसी ओझा को बुला लेते हैं। तभी दादी चिल्लाकर बोलीं -तू ओझा को बुलाएगी ,आज तक तेरी सास की हिम्मत ना हुई ,मेरे खिलाफ बोलने की और तू कल की आई ,बड़ी हिम्मत दिखा रही है। क्या तेरी भावज काम न करतीं ,तेरी माँ लगी रहे है ?उनकी कडक आवाज़ से नूपुर सहम गई। वो आराम करने कमरे में गयीं। नूपुर बोली -ये क्या मुसीबत है ?प्रदीप बोला -ये ऐसे ही कभी भी आ जाती हैं। अपने परिवार से प्यार जो करतीं थीं ,बस जब आती हैं जब कोई सही तरीक़े से नहीं चलता। अब तो सालों बाद आयीं हैं, तुम्हारे कारण। तुम अपनी जिम्मेदारी समझकर सही तरीक़े से काम करतीं, तो न आतीं। अभी दोनों बात कर ही रहे थे कि मम्मीजी उठकर आ गयीं बोलीं -अरे मैं तो रसोईघर में थी मैं सो कब गयी ?कितना समय हो गया? अभी नाश्ता बनाती हूँ। तभी नूपुर बोली -मम्मी जी आप ठीक तो हैं ,हाँ मुझे क्या हुआ है ?वो बोलीं। आज दोपहर के खाने में क्या बनेगा ?ये बता दीजिये फिर दोनों ने मिलकर खाना बनाया भी खाया भी। प्रदीप बोला -लगता है ,दादीजी चलीं गयीं। तभी प्रियाजी चौंकते हुए बोलीं -क्या दादी आईं थीं ?नहीं शायद चलीं गयीं। अब सब ठीक है प्रदीप मुस्कुराकर बोला। वे भी मुस्कुरा दीं।