ठंड़ आज कुछ ज्यादा ही पड़ रही है, तन थर-थर कांप रहा है। ऐसे में कुछ लोग, आग जलाकर आग के आसपास बैठे हुए हैं। कुछ लोग रजाई में घुस गए हैं। कुछ गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीने की तैयारी कर रहे हैं। विभोर भी अपनी मां के पास ,चूल्हे के नजदीक बैठा है , चूल्हे से निकलती लपटों से अपने हाथ सेक रहा है। अब तो शीघ्र अंधेरा हो जाता है , बाबा भी खाना खाने आए हैं , उनके कुछ देर पश्चात ही, पिताजी भी खाना खाने आते हैं।आज उन्हें कुछ ज्यादा ही जल्दी है। मां ने उनके लिए गरम-गरम रोटी बनाई , और उन्होंने खाना खाने के पश्चात जैसे अपने कुछ सामान ढूंढने लगे। उन्होंने अपने हाथ में टॉर्च ली और एक बड़ा मजबूत डंडा भी लिया ,अपनी जरूरत के कई सामान लिए। विभोर उन्हें इस तरह तैयारी करते हुए देखकर मां से बोला - पिताजी , इस वक्त कहां जा रहे हैं ?
कहां जाएंगे ? खेतों में पानी बलाने जा रहे हैं। जब गेहूं को पानी दिया जायेगा तभी तो अच्छी फ़सल होगी।
इतनी ठंड में बाहर कैसे जाएंगे ?वो भी जंगल में ,हमें तो घर में ही इतनी ठंड लग रही है ,पिताजी इतनी ठंड जंगल में कैसे रहेंगे ?वो भी पानी का कार्य ,आश्चर्य से विभोर बोला।
हम किसान हैं , किसान के लिए तो ठंडी क्या और गर्मी क्या उसे तो निकलना ही होगा।
क्यों ?यह पानी दिन में भी तो दिया जा सकता था।
नहीं ,दिन में लाइट नहीं आती और फिर नंबर से पानी मिलता है अब हमारा नंबर तो रात्रि में ही लगा है।
इतनी
रात्रि में और इतनी ठंड में, बाबा को अकेले डर नहीं लगेगा।
मां मुस्कुराते हुए बोली-क्यों डर लगेगा ? मेरे विभोर का पिता तो बहादुर है। किसान रात्रि में और दिन में कभी भी अपने कार्य को नहीं भूलता तभी तो हमें अनाज मिलता है। जब भी समय मिलेगा उसे जाना होगा। लेकिन लोग फिर भी उसके परिश्रम को समझते नहीं है।किसान और देश की सीमा पर खड़ा सिपाही, जब अपना कार्य बड़ी कठिनाई और ईमानदारी से करते हैं। तभी यह देश सुरक्षित रहता है और देश का नागरिक भूखा नहीं सोता है।
कल को बड़ा होकर ,मैं भी अपने पिताजी का सहारा बन जाऊंगा मैं भी फिर ऐसे ही खेतों में जाऊंगा मुझे भी ठंड नहीं लगेगी , मैं भी बहादुर हो जाऊंगा।
नहीं ,तुझे खेती नहीं करनी है , मां एकाएक क्रोधित होते हुए बोली-तुझे पढ़ना है, और बड़ा आदमी बनना है और जो मेहनत तेरे बाबा कर रहे हैं, उस परिश्रम को सफल बनाना है और यह तभी सफल होगी जब तू पढ़ - लिखकर बड़ा आदमी बन जाएगा। माना कि किसान ''अन्नदाता '' है? किंतु उसे मिलता ही क्या है ? इतने कष्ट सहकर भी,उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है। अनाज तो ,उसका अपने घर का है लेकिन और कोई सुविधा ठीक से उसे नहीं मिल पाती हैं। जब तू पढ़ लिख जाएगा ,हमारे लिए तो यही हमारी परिश्रम का फल होगा और जो तेरे पिता आज इतनी ठंड में मेहनत कर रहे हैं वह इसीलिए कि कल को तू बड़ा आदमी बनकर उनका सहारा बनेगा उन्हें आराम देगा।
मां यदि हर किसान यही सोचने लगा ,तो फिर अन्न कौन उपजाएगा ?
तुझे मैंने मना कर दिया तो मना कर दिया, मुझसे ज्यादा बहस मत कर....... कह कर मां ने उसके सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया और बोली -इसे पी और सो जा। मैं यह सोचकर अचम्भित था ,जो माँ अभी कुछ देर पहले किसान को लेकर अपने को गौरवान्वित हो रही थी। अब वही मेरे खेती के इरादे को नकार रही है। जब ये गर्व की बात है ,तब मुझे खेती करने से क्यों मना कर रही है ? इस बात को कितने बरस बीत गए ? विभोर पढा -तब उसने सोचा -उस समय किसान पढ़ा -लिखा ही तो नहीं था। जो बच्चा पढ़ता नहीं था ,उसे खेती में डाल देते थे और जो पढ़ -लिख जाते थे ,वो बाहर निकल जाते हैं। खेती करने के आज भी वही दक़ियानूसी तरीक़े थे। इसीलिए इतने परिश्रम के पश्चात भी आमदनी कम ही हो पाती थी।
मैं किसी की नौकरी कर क्यों करूं ? जब मैं खुद एक किसान हूं ,वो भी पढ़ा -लिखा ,तब मैंने आधुनिक तरीक़ों से खेती करनी आरम्भ की। तब मेरी अपनी खेती- किसानी की पढ़ाई कब काम आएगी ? जिसके परिणाम स्वरुप उसने खेती में बहुत सारी चीजों को समझा, अपनी मां को कभी एहसास नहीं होने दिया कि वह कुछ गलत कर रहा है या सोच रहा है उसने खेती करने के तरीके को बदला। उसके आधुनिकीकरण से, खेती में उन्नति हुई और आमदनी भी बढ़ी। हालांकि उसकी मां कहती रहती ,जब तू इतना पढ़- लिख गया है तो तू बाहर जाकर नौकरी क्यों नहीं करता ?
तब वह मां को समझा देता, जब तक नौकरी नहीं मिलती है तब तक मैं अपने पिता की सहायता करूंगा, उसकी मेहनत सफल हुई , उसके आधुनिक तरीके से खेती करने के कारण , उसे बहुत फायदा हुआ और इस चीज को ,उसके आसपास के किसानों ने भी, बढ़ावा दिया और उसका साथ भी दिया। एक दिन ऐसा आया कि उसे विदेश में बुलाया गया,जहाँ उसके खेती करने के तरीकों को सराहना मिली उसको सम्मानित किया गया। उसकी नौकरी भी लगी और नौकरी के साथ-साथ उसने अपनी खेती में भी और लोगों को भी सहयोग दिया।
उसने अपने पिता की उन'' सर्द रातों'' के महत्व को समझा। जिन ठंडी रातों में उसके पिता, खेतों में पानी देने जाते थे। यह बात उसने वहां उपस्थित उन सभी लोगों को बताई , जब उसने देखा। कि कुछ लोग वहां अन्न की बर्बादी कर रहे हैं , तब उसने उन लोगों को एहसास कराया कि एक किस तरह से परिश्रम करके अन्न का दाना उगाया जाता है और आप लोग उस अन्न की कदर नहीं करते , उसे व्यर्थ बहा देते हैं , या ऐसे ही फेंक देते हैं ,इससे तो अच्छा है। किसी गरीब का पेट भर जाए,'' इस अन्न की कीमत को पहचानो ! उन किसानों की मेहनत को समझो।'' उसके इस तरह भाषण देने पर सभी ने तालियां बजाईं , आज उसे लग रहा था जैसे उसके पिता की मेहनत उन ''सर्द रातों ''की मेहनत सफल हो गई।